लंदन जाना जहां जाना मेरे लिये किसी सपने से कम नहीं था। पहली बार मैं अपने देश के बाहर किसी अंजान देश में जा रही थी। वो भी 6 महीने के लिये, अपने पति और बेटी के साथ मन में डर भी था और रोमांच भी। वीजा की तैयारी से लेकर लखनऊ जाकर शापिंग करने तक मेरे मन में यही था कि लंदन जाकर मैं यह सब बहुत मिस करने वाली हूं।
चूंकि मेरी ट्रिप 6 महीने से ज्यादा भी हो सकती थी इसलिये मैं अपने पैरेंटस से मिलने लखनऊ गयी और ठीक एक हफ्ते बाद मुझे लंदन जाना था। लखनऊ के पानी के बताशे हो या फिर टिक्की, कबाब सबका स्वाद लिया।
गाजियाबाद आने के बाद फटाफट पैकिंग की और हम निकल लिये एयरपोर्ट की ओर।
मेरी फ्लाइट सुबह 4 बजे की थी इसलिये हम लोग करीब रात के 11.30 बजे एयरपोर्ट पहुंचे वहां डिनर किया फिर अपने गेट के पास बोर्डिंग के लिये तैयार हुये। हंलिकि मैं कई बार टर्मिनल 3 गयी हूं लेकिन इंटरनेशनल डिपार्चर पर जाना मेरे लिये अलग ही अनुभव था।
2017 फरवरी के महीने में अच्छी खासी ठंड थी। एयरपोर्ट के अन्दर एक अलग ही दुनिया लगती है, ऐसा लगता है कि ना कोई सुबह ना कोई रात।
मेरे लिये बहुत ही अच्छा अनुभव रहा। खैर हमारी बोर्डिंग का समय हुआ, हम लोग अपनी फ्लाइट में बैठ गये। क्योंकि हमारी कन्केटिंग फ्लाइट थी, इसलिये हमें 14 घंटे लगे लंदन पहुंचने में।
खैर वहां पहुंच कर मुझे ऐसा लगा कि यहां तो एकदम अलग है इमीग्रेशन पूरा करने के बाद जब एयरपोर्ट से बाहर निकले तो वहां अलग ही नजारा था। दिल्ली का तापमान 20 डिग्री होगा तो लंदन का 1 डिग्री ये मेरे लिये सबसे बड़ी चुनौती थी। अपार्टमेंट में पहुंचते ही ऐसा लगा ये सब तो कोई सपना है। यहां कुछ भी हमारे देश जैसा तो नहीं है ना कोई इंडियन ना अपने देश जैसी चहल-पहल। एक-दो दिन मुझे बहुत ही खराब लगा मन तो होता था कि वापस अपने देश चली जाऊं। क्योंकि मेरे पति सुबह ही आफिस चले जाते मैं और मेरी तीन साल की बेटी हम दोनों पूरा दिन घर में। खैर मैने खुद को समझाया कि जिस जगह पर जाने के सपने में बचपन से देखती आई हूं वहां पर आने पर परेशानी कैसी।
खैर तीसरे दिन मैं गूगल मैप पर अपने आस-पास सबसे पहले चिल्ड्रन पार्क देखना शुरु किया। मेरे आस-पास ऐसे कई पार्क दिखे। गूगल मैप डाउनलोड किया और निकल पड़ी अपनी एक नई शुरुआत करने। पहले दिन पार्क जाने में अजीब लगा क्योंकि वहां पर अलग-अलग देशों के लोग थे। धीरे-धीरे मैनें उनसे बात करना शुरु की अगर किसी को इंग्लिश नहीं आती तो एक स्माइल और हेलो से ही समय कट जाता। कुछ समय बाद वहां पर एक इंडियन फैमिली मिली जो कि वहीं पास में ही 10 साल से रह रही थी। दोस्ती हुयी सुबह से शाम तक अपने आस-पास की जगहों को देखना शुरु किया। कैसे वहां लोग रहते हैं स्कूलों में बच्चे कैसे जाते हैं क्या सिस्टम में और बहुत सारी जानकारी। एक-दो महीने कैसे बीत गये पता ही नहीं चला कभी सुपरमार्केट तो कभी वीकेली मार्केट सारी जगह जाकर वहां से कुछ ना कुछ जानकारी निकालना। वही जगह जो मेरे लिये एकदम अंजान थी वो अपनी सी लगने लगी। कुछ ऐसे दोस्त बने जिनसे बहुत कुछ सीखने को मिला, तो कुछ बेकार अनुभव भी हुये। खैर मेरे लिये ये लखनऊ से लंदन का सफर यहीं नही खत्म हुआ उसके आगे स्कॅाटलैंड, इटली, नीदरलैंड, फ्लोरेंस, पीसा, मैक्सिकों सिटी, मोनटेरी तक जारी रहा है।