मणि महेश यात्रा
मणि महेश में भगवान शिव मणि के रूप में दर्शन देते हैं। मणि महेश की यात्रा भोले की अन्य यात्रा की तरह बहुत कठिन है। जिसमे हम 15 किमी की कठीन चढ़ाई करेंगें।
अपने घूमक्कड़ दोस्तों के साथ दिल्ली से पठानकोट ट्रेन से फिर आगे कार से चम्बा पहुंचे। चम्बा में शाम को हम लोग चामुंडा देवी के मन्दिर गये। कहा जाता है कि चंबा नगर बसने से पहले भी ये ये मंदिर विद्यमान था। मंदिर भित्ति चित्र और काष्ठकला का अद्भुत उदाहरण है। मंदिर का पूरी छत मूर्ति शिल्प से सजी हुई है। मंदिर में देवी देवताओं, गंधर्वो और ऋषियों के चित्र अंकित किए गए हैं। गर्भ गृह के प्रवेश द्वार पर विशाल पीतल की घंटियां बनी है।
अगले दिन चम्बा से हम लोग 70 किमी दूर भरमौर पहुंचे। भरमौर में चौरासी मंदिर समूह हैं। यहां पर संसार के इकलौते धर्मराज या मौत के देवता यमराज महाराज का मंदिर है।
इसके बाद हम भरमौर से हड़सर गये जो 13 किलोमीटर दूर है। अब यहां से मणि महेश खड़ी चढ़ाई शुरु होती हैं। संकरे व पथरीले रास्तों वाली ये 13 किलोमीटर की चड़ाई एक दिन में पूरी नही होती हैं। हड़सर से 7 किलोमीटर चलने के बाद पहला पड़ाव आता है धनछोह। धनछोह में कोई होटल नही हैं। यहां हम लोग कैंपस में ही रुके।
अगले दिन धनछोह से 7 किलोमीटर चड़ाई के बाद गौरीकुंड पहुंचे। श्रद्धालु पवित्र मणिमहेश झील में स्नान के बाद मणि महेश पर्वत के दर्शन करते है। हमने भी मणि महेश के दर्शन किये। मणिमहेश की उंचाई 18654 फुट की है जबकि मणिमहेश झील की उंचाई 13200 फुट की है। मणिमहेश यात्रा को अमरनाथ यात्रा के बराबर ही माना जाता है।
यह भी माना जाता है कि भक्तों को मणि महेश के दर्शन तभी होते है जब भगवान प्रसन्न होते हैं। खराब मौसम में जब चोटी बादलों के पीछे छिप जाती है तब इसे भगवान की नाराजगी का संकेत मानते है।
यहां पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले चंबा पहुंचना होगा। चंबा से निजी वाहन या बस के माध्यम से आप 60 किलोमीटर दूर भरमौर पहुंच सकते हैं। यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट है। जहां से चंबा की दूरी 120 किलोमीटर दूर है।
पहाड़ों पर चढ़ने के लिए अच्छे ग्रिप वाले जूते, छड़ी, कैप, जैकेट, रेनकोट आदि अपने साथ रखे। अपना पहचान पत्र जरूर साथ ले जाएं।
यहाँ आने का सही समय अप्रेल महीने से मध्य नवंबर तक का है। सर्दियों में यहाँ भारी हिमपात होता है और मणि-महेश लेक जम भी जाती है।