![Photo of एक खत मेरे सुकून के नाम, पहाड़ों के नाम 1/15 by Trupti Hemant Meher](https://static2.tripoto.com/media/filter/nl/img/69032/SpotDocument/1613014636_1613014634336.jpg)
प्रिय सुकून
कोई तुझे स्वर्ग कहता है, तो कोई तुझे जन्नत कहता है। मैंने तो न स्वर्ग देखा है न जन्नत लेकिन जिस दिन से मैंने तुझे देखा और महसूस किया उसी दिन से सुकून क्या होता है, समझ आया। मैं मायानगरी मुंबई मे रहने वाली लड़की हूँ जिसे सुबह 5 बजे दिन शुरू हो कर रात कब होती है ये पता ही नहीं चल पाता। आज 2 महीने हो गए उत्तराखंड से आए हुए लेकिन तेरी यादें पीछा ही नहीं छोड़ती। आज पुराने गाने सुनते-सुनते कन्यादान फिल्म का गाना सुन रही थी -
लिखे जो ख़त तुझे
वो तेरी याद में
हज़ारों रंग के
नज़ारे बन गए।
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आँख बंद करते ही फिल्म की तरह सब घूमने लगा। अभी सोशल मीडिया के दुनिया में कौन किस को ख़त लिखता है! लेकिन मैंने तुझे ख़त लिखना ही जायज़ समझा। मैं तो मुंबई में ठीक हूँ लेकिन तुम्हारी ख़ैरियत कैसी है। यह मुंबई के भीड़ में मैं अकेली और सालों से अजनबी लोगों से मिल के भी तुम भी अकेले। तुम्हारा आकार लगातार बदलते रहता है। कभी आप कैलाश हो तो कभी हिमालय हो कभी नंदा देवी हो तो अभी मेरे सह्याद्रि हो।
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तुम क्या हो या कितने हो इससे मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता मुझे सिर्फ तुम्हारे साथ सुकून मिलता है। पहाड़ों पे चढ़ने से कुछ लोग डरते है। लेकिन मुझे हमेशा तुमने सम्भाल ही लिया है। तुम्हारे सामने मुझे मेरे रोज की परेशानियाँ छोटी लगने लगीं है। जब तक मैं तुमसे नहीं मिली थी मेरे पास सपने देखने और तलाशने का कोई कारण नहीं था। तुम कहानियों से अधिक वास्तविक और शक्तिशाली लगते हो। तुम्हारी यही शक्ति मुझे खुद को समझने में मदद करती है। दुनिया तो देखनी ही है लेकिन खुद को समझने का जज़्बा तुम से ही मिलता है।
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मैं हर चीज को देखना चाहती हूँ, हर किसी को जानना चाहती हूँ। लेकिन जब मैंने तुम्हें खोजा तो पाया कि तुम सिर्फ़ एक नहीं हो, तुम अनंत हो। आप हर जगह हो । मेरे भीतर भी आप बसते हो। जब तुम्हारे साथ होती हूँ तब भी और नहीं होती तब भी। तुम मेरे साथ रहते हो। तुम मेरी प्रेरणा हो। तुम मेरी शक्ति हो। तुम ने हमेशा सब को सब दिया है। लेकिन मैं तुम्हारे लिए कुछ कर सकती हूँ क्या, ये सोच कर ही हँसी आयी। जो सब कुछ दे चुका है मैं क्या दे सकती हूँ उसे।
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आप इस प्रकृति का ही हिस्सा हो जिसने मुझे भी जन्म दिया है। तुम और मैं अपनी जगह हैं । दोनों अकेले लेकिन जब भी मिलेंगे तो होंगे एक दूजे के लिए । यही आशा ले के दिन निकाल लेती हूँ। मुसाफ़िर मैं तुम मंज़िल हो। मेरी जन्नत का दामन तुम ही हो ।
जल्द ही मिलेंगे सुकून भरे दिन के साथ
- आपकी तृप्ति
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