साल था 1569, बादशाह अकबर ने गुजरात में फतह हासिल की, और अपनी बेमिसाल जीत की याद में एक शहर बसाने की सोची, अपने पूर्वजों की राजधानी आगरा से लगभग 35 किमी दूरी पर सीकरी नाम की जगह थी, जहां पहले सिकरवार राजपूतों का राज्य हुआ करता था, इसलिए इन राजपूतों के वंशजों को सीकरी के नाम पर 'सिकरवार' कहा जाता है। इसी स्थान पर उस जमाने के बहुत प्रसिद्ध सूफी संत शेख सलीम चिश्ती भी रहते थे, सम्राट की सलीम चिश्ती में बहुत श्रद्धा थी, इन्हीं के आशीर्वाद से उनके घर में पुत्र पैदा हुआ था, जिसका नाम भी उन्होंने सलीम चिश्ती के नाम पर "सलीम" रखा था, जो आगे चलकर जहांगीर बन गया। तो बहुत सारी बातें थीं जिसकी वजह से अकबर ने इस जगह को चुना, निर्माण शुरू हुआ, लाल पत्थरों और शानदार नक्काशी से निर्मित खूबसूरत भवनों ने बहुत जल्दी ही पूरे नगर को भर दिया। जोधाबाई का महल, सलीमा सुल्तान का महल, पंचमहल, दीवाने- खास, अनूप सरोवर और शेख सलीम चिश्ती की दरगाह, बादशाही मस्जिद जैसी शानदार इमारतों ने नगर की प्रसिद्धि दुनिया भर में फैला दी, मुगल सल्तनत ने गुजरात विजय के बाद बुलंदियों को छुआ था, तो फतह मतलब विजय, तो इस नगर का नाम फतेहपुर रखा गया और इसका पुराना नाम सीकरी भी जुड़ा रहा। कश्मीर से लेके महाराष्ट्र तक सिर्फ मुगलों का राज्य फैल गया था, तो मुगलों की आवाज बुलंद करता नगर के द्वार पर भव्य और विशालकाय दरवाजा बनवाया गया, जिसका नाम रखा गया "बुलंद दरवाजा"। दुनिया के सबसे विशालतम दरवाजों में से एक है ये दरवाजा। इसका अलावा इस नगर में की गई जल निकासी की व्यवस्था, गर्मी से बचने के उपाय के वैज्ञानिक तकनीक से अकबर की दूरदर्शिता देखते ही बनती है। लेकिन कुछ सालों बाद प्रकृति अकबर से रुठ गई, नगर में पानी की भारी कमी हो गई, सूखे ने नगर की भव्यता को छीन लिया, और अकबर को वापस अपनी पुरानी राजधानी आगरा लौटना पड़ा। यूरोपीय इतिहासकार वर्नियर मुगल काल में भारत आया था, उसने इस नगर को पेरिस जैसा खूबसूरत बताया था उस जमाने में। लेकिन समय चक्र ने इसे पतन की तरफ धकेला और मुगलों की चमक के साथ इस नगर की चमक भी जाती रही।
कैसे पहुंचें: आगरा शहर से फतेहपुर सीकरी ज्यादा से ज्यादा 40 मिनट की दूरी पर है। बड़ी आसानी से टैक्सी, आटो या बस से पहुंचा जा सकता है।