दिन ९ श्री टपकेश्वर मंदिर देहरादून
बर्थडे खत्म हो गया था। लेकिन यात्रा अभी बाकी थी। हम 3 दिन ऋषिकेश में रुकने वाले थे। इसलिए मैंने आज देहरादून घूमने का फैसला किया। हम शंभो से शुरू करने के लिए टपकेश्वर मंदिर आए। बहुत ही सुंदर गुफा मंदिर है। नाम ही इस मंदिर का वर्णन करता है। पौराणिक मान्यता है कि आदिकाल में भगवान शंकर ने यहां देवताओं की प्रार्थना से प्रसन्न होकर उन्हें देवेश्वर के रूप में दर्शन दिए थे।
ऐसी मान्यता है कि इसी जगह को द्रोणपुत्र अश्वत्थामा की जन्मस्थली व तपस्थली माना गया है, जहां अश्वत्थामा के माता-पिता गुरु द्रोणाचार्य व कृपि की पूजा-अर्चना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। जिसके बाद ही उनके घर अश्वत्थामा का जन्म हुआ था।
एक बार की बात है कि अश्वत्थामा ने अपनी माता कृपि से दूध पीने की इच्छा जाहिर की, जब उनकी यह इच्छा पूरी न हो सकी तब अश्वत्थामा ने घोर तप किया। जिससे प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने वरदान के रूप में गुफा से दुग्ध की धारा बहा दी।
तब से ही यहां पर दूध की धारा गुफा से शिवलिंग पर टपकने लगी, जिसने कलियुग में जल का रूप ले लिया। इसलिए यहां भगवान भोलेनाथ को टपकेश्वर कहा जाता है। मान्यता यह भी है कि अश्वत्थामा को यहीं भगवान शिव से अमरता का वरदान मिला। उनकी गुफा भी यहीं है जहां उनकी एक प्रतिमा भी विराजमान है।
एक लोक मान्यता यह भी है कि गुरू द्रोणाचार्य को इसी स्थान पर भगवान शंकर का आर्शीवाद प्राप्त हुआ था। स्वयं महादेव ने आचार्य को यहां अस्त्र-शस्त्र और पूर्ण धनुर्विद्या का ज्ञान दिया था।
लेकिन अब थोड़े रंग के साथ हमें कुछ और आधुनिक मंदिर देखने को मिलेंगे। हम ऋषिकेश से 7 बजे निकले। तो नाश्ता नहीं किया था। मुंबई छोड़कर सभी जगह मुझे लोग आलसी ही लगते है। 9 बज चुके थे पर कुछ चालू था। भूख लग गई थी। फिर हमारे ड्राइवर के वजह से हमें एक बढ़िया सा ढाबा मिल। जहां हमने छोले कुलचे से पेट पूजा की। और आगे के सफर के लिए निकले।
देहरादून से सात कि.मी. की दूरी पर टपकेश्वर मंदिर स्थित है। ये मंदिर देहरादून सिटी मे होने के कारण आप।आसानी से यह आ सकते है।