देवताओं के शिल्पकार थे,
या स्वयं ईश्वर मूर्तिकार थे,,
यहां पहुंचा तो चकराया,
ये कौन से कलाकार थे।
पत्थरों पर तराशी गई जीवित कल्पनायें देखनी है? खजुराहो के आश्चर्य में डाल देने वाले ये मन्दिर, सम्पूर्ण पृथ्वी पर मानव द्वारा रची गई सबसे कलात्मक रचनाओं में से एक है। दसवीं शताब्दी में चंदेल राजवंशियों ने मानव जीवन के सभी पहलुओं को मूर्तियों में जीवंत उतारा है। कामसूत्र की पुस्तक से लेकर खजुराहो के मंदिरों तक हमारे पूर्वजों ने अपनी खुली सोच का परिचय दिया है, काम जैसे विषयों पर उनकी वैज्ञानिक सोच विश्व के कथित आधुनिक देशों से कहीं आगे थी। खजुराहो के ये मंदिर हमें जीवन के हर प्रसंग को सहर्ष भाव से एक तार्किक विमर्श में लाने का प्रयास करते हैं।
इतिहास के पन्नों में खजुराहो: इन मन्दिरों का निर्माण काल 930 ईस्वी से 1048 ईस्वी के बीच है। चंदेल राजवंशियों ने खजुराहो को अपनी राजधानी बनाया था, और यहां लगभग 85 मन्दिरों का निर्माण करवाया, जिनमें से अभी सिर्फ 22 मंदिर शेष बचे है। कहते है इस स्थान पर खजूर का एक विशाल बाग था, जिस कारण इसे खजुराहो कहा जाने लगा। खजुराहो को प्राचीन काल में 'खजूरपुरा' और 'खजूर वाहिका' के नाम से भी जाना जाता था। कहते है चंदेल राजाओं कालखंड के बाद खजुराहो के ये मन्दिर गुमनामी में चले गए थे, सैकड़ो वर्षों में ये स्थान एक घना जंगल बन गया था। उसके बाद सन् 1838 में एक अंग्रेज अफसर कैप्टन टी एस बर्ट शिकार खेलने के दौरान रास्ता भटक कर यहां पहुंच गया, जब उसने एक साथ इतने सारे भव्य मंदिरों का समुह देखा, तो आश्चर्यचकित रह गया। अपनी रिपोर्ट में वो इसे खजाना बताता है।
आखिर क्यों बनी है कामुक मूर्तियां: इन भव्य मंदिरों में कामक्रीड़ा को इतनी बारीकी और प्रमुखता से दर्शाती इन अद्भुत मूर्तियों के बनाए जाने के कई कारण बताये जाते है, जिनमें से प्रमुख है;
पहला कारण: सनातन हिन्दू धर्म ने जिंदगी को 4 पुरुषार्थों के हवाले किया है- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। एक-एक सीढ़ी और एक-एक सफलता और इन चारों पुरुषार्थों का समन्वय है खजुराहो के मंदिरों में। मूर्तियां यहां अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष के सिद्धांत का हिस्सा हैं। इस विषय में यह भी कहा जाता है कि ये प्रतिमाएं भक्तों के संयम की परीक्षा का माध्यम हैं।
दूसरा कारण : मंदिर निर्माण के कारणों में एक तर्क यह भी दिया जाता है कि उक्त काल में जैन धर्म के प्रभाव के चलते गृहस्थ धर्म से विमुख होकर अधिकतर युवा ब्रह्मचर्य और सन्यास की ओर अग्रसर हो रहे थे। उन्हें पुन: गृहस्थ धर्म के प्रति आसक्त करने के लिए ही देशभर में इस तरह के मंदिर बनाए गए और उनके माध्यम से यह दर्शाया गया की गृहस्थ रहकर भी मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
तीसरा कारण : कहा जाता है कि चंदेल राजाओं के काल में इस क्षेत्र में तांत्रिक समुदाय की वाममार्गी शाखा का वर्चस्व था, जो योग तथा भोग दोनों को मोक्ष का साधन मानते थे। ये मूर्तियां उनके क्रिया-कलापों की ही देन हैं। वात्स्यायन के कामसूत्र का आधार भी प्राचीन कामशास्त्र और तंत्रसूत्र है।
खजुराहो के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कामसूत्र के आसनों में दर्शाए गए स्त्री-पुरुषों के चेहरे पर एक अलौकिक और दैवी आनंद की आभा झलकती है। इसमें जरा भी अश्लीलता या भोंडेपन का आभास नहीं होता। ये मंदिर और इनका मूर्तिशिल्प भारतीय स्थापत्य और कला की अमूल्य धरोहर हैं। इन मंदिरों की इस भव्यता, सुंदरता और प्राचीनता को देखते हुए ही इन्हें विश्व धरोहर में शामिल किया गया है।
कैसे पहुंचे:
खजुराहो मे अपना एक हवाई अड्डा (IATA कोड: HJR / HJR) है जो दिल्ली, आगरा, वाराणसी और मुंबई को सेवाएं प्रदान करता है।
खजुराहो मंदिर खजुराहो रेलवे स्टेशन और छतरपुर रेलवे स्टेशन के माध्यम से रेलवे से जुड़ा है, जो 45 किमी है। खजुराहो से यह दिल्ली, उदयपुर, झांसी से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
मंदिर इसके जिला केंद्र छतरपुर से लगभग 50 किमी दूर हैं। यह भारत के विभिन्न शहरों जैसे दिल्ली, भोपाल की सड़कों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग 86 इसे राज्य की राजधानी भोपाल से जोड़ता है।