देवभूमि हिमाचल, जहाँ आपको देवी-देवताओ के प्रसिद्ध मंदिर मिलेगें। कुछ मंदिरों के बारे ऐसी कहानी है की जिन्हें सुनकर बड़ी हैरानी होती है। आज हम ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बात करते है। कहते हैं कि मरने के बाद इस मंदिर में आना ही पड़ता है। इस मंदिर में मरने के बाद आपके कर्मो के हिसाब से फैसला लिया जाता है की आप को स्वर्ग मिलेगा या नर्क मिलेगा।
हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले में भरमौर में स्थित है, लगभग 1400 साल पहले बनाए गए है चौरासी मंदिरों का समूह। चौरासी अर्थात हिन्दी के 84 नम्बर से है। यहाँ मुख्य देवी-देवता, देवी लक्ष्मणा, भगवान गणेश और भगवान मनिमहेश के मंदिर हैं। इन मंदिरों में वर्मन साम्राज्य की वास्तुकला देखने को मिलती है। मंदिर की भीतरी और बाहरी दीवारों पर खूबसूरत नक्काशी की गई है। मंदिर के बाहरी दरवाजे पर लकड़ी की उत्कृष्ट नक्काशी देखते ही बनती है।
यहीं पर स्थित है संसार का एकमात्र मंदिर जो मौत के देवता अर्थात यमराज को समर्पित है। जहाँ लोग मंदिर के अन्दर जाने में घबराते है। लोग कहते है की ये मंदिर यमराज महाराज के लिये ही बनवाया गया है। इसलिये उनके अलावा कोई और इसमे प्रवेश नही कर सकता है। मान्यता है कि धर्मराज के इस मंदिर में मरने के बाद हर किसी की आत्मा सबसे पहले यहीं आती है, चाहे वह आस्तिक हो या नास्तिक। हर किसी की आत्मा को अपनी उपस्थिति लगानी पड़ती है। बाकायदा कचहरी लगती है और आपके जीवन के कर्मों के हिसाब से सज़ा भी मिलती है। यमराज महाराज का फैसला आने के बाद ही तय होता है कि आत्मा को स्वर्ग जाना है या नर्क।
मंदिर के साथ में एक खाली कमरा है जिसे चित्रगुप्त का कमरा कहते है। चित्रगुप्त यमराज के सचिव हैं। जो सभी आत्माओ का लेखा-जोखा एक किताब में रखते है और ये किताब इसी कमरे में रहती है।
कहते है जब किसी की मृत्यु होती है तब यमराज के दूत उसकी आत्मा को पकड़कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। चित्रगुप्त उस आत्मा को उसके कर्मो का पूरा ब्योरा देते है। इसके बाद चित्रगुप्त के कमरे के सामने आत्मा को ले जाया जाता है। इसको यमराज की कचहरी कहा जाता है। यहां पर आत्मा के उल्टे पांव भी दिखाये गए है। यहां पर यमराज उस आत्मा को उसके कर्मों के अनुसार अपना फैसला सुनाते है। इस मंदिर में चार अदृश्य द्वार हैं जो सोने, चांदी, तांबा और लोहे के बने हैं। यमराज का फैसले के बाद यमदूत आत्मा को इन्हीं द्वारों से स्वर्ग या नरक में ले जाते हैं।
भरमौर यात्रा करने का सबसे अच्छा समय अप्रैल से जून तक होता है। इस समय यहां ज्यादा ठंड नहीं पड़ती है। अगर आप बर्फबारी देखना चाहते है, तो दिसम्बर से फरवरी के दौरान यहां की यात्रा कर सकते है। इस समय यहां का तापमान -10 डिग्री सेल्सियस तक रहता है।
भरमौर पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले चंबा पहुंचना होगा। चंबा से निजी वाहन या बस के माध्यम से आप 60 किमी दूर भरमौर पहुंच सकते हैं।
यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट है। जहां से चंबा की दूरी 120 किमी दूर है।
धर्मशाला का कांगडा हवाई अड्डा भरमौर शहर के सबसे करीब है। यह लगभग 180 किमी की दूरी पर है।