हुमायूॅं का मकबरा
हुमायूँ का मकबरा मुगल वास्तुकला से प्रेरित मकबरा स्मारक है।दीनापनाह जोकि पुराने किले के निकट निज़ामुद्दीन पूर्व क्षेत्र में मथुरा मार्ग के निकट स्थित है। गुलाम वंश के समय में यह भूमि किलोकरी किले में हुआ करती थी और नसीरुद्दीन के पुत्र तत्कालीन सुल्तान केकूबाद की राजधानी हुआ करती थी| यह समूह विश्व धरोहर घोषित है,(World Heritage) एवं भारत में मुगल वास्तुकला का प्रथम उदाहरण है। इस मक़बरे में वही चारबाग शैली (Charbag Style) है, जिसने भविष्य में ताजमहल को जन्म दिया।
यह मकबरा हुमायूँ की विधवा बेगम हमीदा बानो बेगम के आदेशानुसार 1572 में बना था। इस भवन के वास्तुकार सैयद मुबारक इब्न मिराक घियाथुद्दीन एवं उसके पिता मिराक घुइयाथुद्दीन थे जिन्हें अफगानिस्तान के हेरात शहर से विशेष रूप से बुलवाया गया था। मुख्य इमारत लगभग आठ वर्षों में बनकर तैयार हुई और भारतीय उपमहाद्वीप में चारबाग शैली का प्रथम उदाहरण बनी। यहां सर्वप्रथम लाल बलुआ पत्थर का इतने बड़े स्तर पर प्रयोग हुआ था। 1939 में इस इमारत समूह को युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।
इस परिसर में मुख्य इमारत मुगल सम्राट हुमायूँ का मकबरा है। हुमायूँ की कब्र के अलावा उसकी बेगम हमीदा बानो तथा बाद के सम्राट शाहजहां के ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह और कई उत्तराधिकारी मुगल सम्राट जहांदर शाह ,फर्रुख्शियार ,रफी उल-दर्जत , रफी उद-दौलत एवं आलमगीर द्वितीय आदि की कब्रें स्थित हैं।
ये मकबरा मुगलों द्वारा इससे पूर्व निर्मित हुमायुं के पिता बाबर के काबुल स्थित मकबरे बाग ए बाबर से एकदम भिन्न था। बाबर के साथ ही सम्राटों को बाग में बने मकबरों में दफ़्न करने की परंपरा आरंभ हुई थी। अपने पूर्वज तैमूर लंग के समरकंद (उज़्बेकिस्तान) में बने मकबरे पर आधारित ये इमारत भारत में आगे आने वाली मुगल स्थापत्य के मकबरों की प्रेरणा बना। ये स्थापत्य अपने चरम पर ताजमहल के साथ पहुंचा।
Site
यमुना नदी के किनारे मकबरे के लिए इस स्थान का चुनाव इसकी हजरत निजामुद्दीन (दरगाह) से निकटता के कारण किया गया था। संत निज़ामुद्दीन दिल्ली के प्रसिद्ध सूफ़ी संत हुए हैं व इन्हें दिल्ली के शासकों द्वारा काफ़ी माना गया है। इनका तत्कालीन आवास भी मकबरे के स्थान से उत्तर-पूर्व दिशा में निकट ही चिल्ला-निज़ामुद्दीन औलिया में स्थित था।
दिल्ली से अपने विदा होने को बहादुर शाह ज़फ़र ने इन शब्दों में बांधा है:
“जलाया यार ने ऐसा कि हम वतन से चले
बतौर शमा के रोते इस अंजुमन से चले...”
—बहादुर शाह ज़फ़र
स्थापत्य
*बाहरी रूप
निर्मित विशाल इमारत में प्रवेश के लिये दो 16 मीटर ऊंचे दुमंजिले प्रवेशद्वार पश्चिम और दक्षिण में बने हैं। इन द्वारों में दोनों ओर कक्ष हैं एवं ऊपरी तल पर छोटे प्रांगण है। मुख्य इमारत के ईवान पर बने सितारे के समान ही एक छः किनारों वाला सितारा मुख्य प्रवेशद्वार की शोभा बढ़ाता है।
मकबरे का विशाल मुख्य गुम्बद भी श्वेत संगमर्मर से ही ढंका हुआ है। मकबरा 6 मीटर ऊंचे मूल चबूतरे पर खड़ा है, 12000 वर्ग मीटर की ऊपरी सतह को लाल जालीदार मुंडेर घेरे हुए है। इस वर्गाकार चबूतरे के कोनों को छांटकर अष्टकोणीय आभास दिया गया है। इस चबूतरे की नींव में 58 कोठरियां बनी हुई हैं, जिनमें 100 से अधिक कब्रें बनायी हुई हैं। यह पूरा निर्माण एक कुछ सीढियों ऊंचे चबूतरे पर खड़ा है।
फारसी वास्तुकला से प्रभावित ये मकबरा 6 मी. ऊंचा और 300 फीट चौड़ा है। इमारत पर फारसी बल्बुअस गुम्बद बना है, जो सर्वप्रथम सिकन्दर लोदी के मकबरे में देखा गया था। यह गुम्बद 72.5 मीटर के ऊंचे गर्दन रूपी बेलन पर बना है। गुम्बद के ऊपर ६ मीटर ऊंचा पीतल का किरीट कलश स्थापित है और उसके ऊपर चंद्रमा लगा हुआ है, जो तैमूर वंश के मकबरों में मिलता है।
*आंतरिक बनावट
बाहर से सरल दिखने वाली इमारत की आंतरिक योजना कुछ जटिल है। इसमें मुख्य केन्द्रीय कक्ष सहित नौ वर्गाकार कक्ष बने हैं। इनमें बीच में बने मुख्य कक्ष को घेरे हुए शेष आठ दुमंजिले कक्ष बीच में खुलते हैं। मुख्य कक्ष गुम्बददार (हुज़रा) एवं दुगुनी ऊंचाई का एक-मंजिला है और इसमें गुम्बद के नीचे एकदम मध्य में आठ किनारे वाले एक जालीदार घेरे में द्वितीय मुगल सम्राट हुमायुं की कब्र बनी है।
इस सफर नामा में इतना ही लेकिन कहते है ना जिससे जितना जाना चाहिए उतने राज होते है | हुमायूं के मकबरे में कितने राज दफन हैं उससे फिर कभी जानेंगे | इसबार आप भी आपने परिवार के सदस्यों को हुमायूं का मकबरा घुमाएं |
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