'आज मैं ऊपर आसमान नीचे' टाइप अद्भुत अहसास कराने वाली जादूई जगह- हरिश्चंद्र गढ़

Tripoto
25th Dec 2020
Photo of 'आज मैं ऊपर आसमान नीचे' टाइप अद्भुत अहसास कराने वाली जादूई जगह- हरिश्चंद्र गढ़ by रोशन सास्तिक

मैं एक दिन गूगल की गलियों में यूं ही सनसेट की तस्वीरें देख रहा था। इसी दौरान मेरी नजर एक ऐसी तस्वीर से जा टकराई जिसपर नजर पड़ने के बाद मैं उसे देर तक टकटकी लगाए देखता रह गया। इसी बीच अचानक अंदर से आवाज़ आई- नेक्स्ट ट्रिप यहीं की करनी है। और इस आवाज़ को अंजाम तक पहुंचाने के लिए मैंने फ़ोटो वाली जगह के बारे में पता लगाना शुरू किया। पता चला कि जिस जगह की तस्वीरों को देखकर मैं मोहित हुआ हूं, वो मेरे घर से करीब 200 किलोमीटर दूर स्थित हरिश्चंद्र गढ़ की हैं। और अधिक गूगल करने पर मेरी हाथ यह जानकारी लगी कि पुणे, ठाणे और अहमदनगर जिले के बॉर्डर पर स्थित करीब 4600 फिट की ऊंचाई वाले हरिश्चंद्र गढ़ पर 3 प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। एक 11वीं सदी में बनकर तैयार हुआ हरिश्चंद्र गढ़ मंदिर, दूसरा किसी सांप की तरफ फन काढ़े खड़ा चट्टान कोंकण कड़ा और तीसरा 'आज मैं ऊपर आसमान नीचे' टाइप फीलिंग देने वाला तारामती शिखर।

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Photo of Kokankada कोकणकडा, Konkan Kada Trek Path, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक
Photo of Kokankada कोकणकडा, Konkan Kada Trek Path, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

अब जब जाने का तय हो गया। तब इसके लिए मैंने अपने दोस्तों को तैयार करना शुरू किया। हरिश्चंद्र गढ़ की तस्वीरों को देखकर शुरुआत में तो 10-12 लोग तैयार हो गए थे। लेकिन बात जब ट्रैकिंग की आई तो मेरे आलसी दोस्तों ने एक-एक कर दगा देना शुरू कर दिया। ख़ैर, अंत में मेरे साथ मेरे 3 दोस्त हरिश्चंद्र गढ़ एडवेंचर का मजा लूटने और उसके लिए जरूरी मेहनत करने के लिए तैयार हो गए। 25 दिसंबर की सुबह करीब 8 बजे मैं और मेरे दोस्त कल्याण से हरिश्चंद्र गढ़ के बेस विलेज पाचनाई के लगभग 200 किलोमीटर लंबे सफर के लिए निकल गए। प्लान के मुताबिक हमें 9 बजे तक 30 किलोमीटर दूर बारवी डैम और फिर 11 बजे तक 90 किलोमीटर दूर मालशेज घाट पहुंचना था। प्लान के ही मुताबिक हम 9 बजे तक बारवी डैम पहुंच भी गए। डैम की अथाह-अनंत जलराशि को देखकर ऐसा भ्रम हो रहा था कि जैसे नीला आसमान जमीन पर उतर आया हो। हमने धरती पर उतर आए आसमान और उसके चारों तरफ फैले जंगल की हरियाली को देखते हुए चाय की चुस्कियों का आनंद लिया। इसके बाद हम बढ़ चले बारवी जगंल से होते हुए मुरबाड रोड की ओर। मुरबाड रोड हम लोगों को सीधे मालशेज घाट तक लेकर जाने वाला था।

Photo of Harishchandragad, Maharashtra by रोशन सास्तिक
Photo of Harishchandragad, Maharashtra by रोशन सास्तिक

मुंबई और उसके आसपास के इलाकों में दिल्ली जितनी ठंड तो नहीं पड़ती। लेकिन उस दिन जितनी भी ठंड थी, वो हम लोगों को ठिठुरने पर मजबूर कर देने के लिए काफी थी। मालशेज घाट पर पहुंचने के लिए हमें एक ही रोड पर एक ही रफ्तार से 60 किलोमीटर तक आगे बढ़ते रहना था। हमारे इस सफर को जिस्म से टकराती ओंस में डूबी हुई ठंडी हवाएं, आंखों में कैद होती दूर-दूर तक फैली हरियाली और दोस्तों के हंसते-मुस्कुराते, खेलते-खिलखिलाते चेहरे सुहावना बना रहे थे। हम 4 में से 3 लोग तो अब तक कई मर्तबा मालशेज से मुलाकत कर चुके थे। लेकिन एक दोस्त जो पहली बार मालशेज के रास्तों से गुजर रहा था- उसके चेहरे पर उत्साह, उमंग और उल्लास का अद्भुत संगम देख हम तीनों को भी अपने पुराने दिन आ गए।

Photo of Harishchandragad - Ghatghar Natural Reserve, Paachnaichi Vaat Path, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक
Photo of Harishchandragad - Ghatghar Natural Reserve, Paachnaichi Vaat Path, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

हम प्लान से थोड़ा लेट यानी 11:30 तक अहमदनगर को ठाणे जिले से जोड़ने वाले प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मालशेज घाट पर पहुंच गए। और क्योंकि हमारे साथ एक दोस्त ऐसा भी था, जो पहली बार मालशेज आया था। इसलिए हमने यहां आधा घंटा ठहरकर उसे भी जी भरकर मालशेज को जीने का मौका दिया। और खुद भी इस काम में पीछे नहीं रहे। हमने मिलकर यहां ढेर सारी तस्वीरें ली और साथ ही पहाड़ पर पसरे सोने से सुनहरे घास के मैदानों पर बाइक दौड़ाने के लम्हों को भी कैमरे में कैद किया। कसम से, दोपहर की ठंडी धूप में नहाए पहाड़ों का भूरापन मन को इतना ज्यादा भा रहा था कि मन ही नहीं कर रहा था आगे जाने का। लेकिन, हम सभी को इस बात का एहसास था कि मालशेज हमारी मंजिल नहीं बल्कि मंजिल तक पहुंचने के लिए जरूरी सफर का एक खूबसूरत हिस्सा भर है। इसलिए 12 बजे तक मालशेज से अपनी मेमोरेबल मीटिंग को खत्म कर हम मंजिल की तरफ चल दिए।

Photo of Malshej Ghat, Maharashtra by रोशन सास्तिक
Photo of Malshej Ghat, Maharashtra by रोशन सास्तिक

मालशेज से निकलने और जुन्नर में एंट्री करने तक सब कुछ तयशुदा प्लान के मुताबिक ही चल रहा था। लेकिन फिर अचानक गूगल बाबा के बताया कि पाचनाई गांव तक पहुंचने के लिए दो रास्ते हैं। एक रास्ता हाइवे से होते हुए और एक उससे पहले अंदर के रास्ते पहाड़ों के बीच से गुजरता हुआ था। पहाड़ से होकर गुजरने वाले रास्ते से बेस विलेज पाचनाई गांव की दूरी हाइवे वाले रास्ते की तुलना में 15 किलोमीटर कम थी। करीब 100 किलोमीटर राइड करने के बाद आगे 95-100 की बजाय हमने 80-85 किलोमीटर राइड करने का ऑप्शन चुना और फिर ओतुर तक जाने की बजाय उदापुर से शॉर्ट कट वाला रास्ता ले लिया। अब शुरू में तो सब कुछ सही चल रहा था। हम पहाड़ों पर बने रास्तों से गुजरते हुए समतल जमीन के अभाव में पहाड़ों पर बने छोटे-छोटे गांव और सीढ़ीनुमा खेतो को हर्ष मिश्रित आश्चर्य के साथ देखते हुए आनंदित मन के साथ मंजिल की तरफ रफ्तार से अग्रसर हो रहे थे।

Photo of Harishchandragad Ballekilla, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक
Photo of Harishchandragad Ballekilla, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

लेकिन एक बार फिर मेरी नजर गूगल मैप पर गई। मोबाईल स्क्रीन देखकर मुझे एकदम से एकसाथ 2 झटके लगे। अव्वल तो यह कि हम रास्ता भटक गए थे और दूसरा यह कि नेटवर्क भी चला गया था। जिस रास्ते को सही समझकर हम सीधे चले जा रहे थे, वो हमें मंजिल के नजदीक ले जाने की बजाय किसी दुर्गम इलाके में ले जा रहा था। इस बात की भनक लगते ही हमने किसी से रास्ता पूछने की सोची। अच्छा, इस दौरान एक और बुरी बात यह हुई कि सुहाने सफर के सुरूर में पता ही नहीं चला कि कब हमारे 2 साथी आउट ऑफ संपर्क हो गए। मुसीबत का असली सबब यह था कि उन दोनों को यह नहीं पता था कि हमें जिस गांव जाना है, उसका नाम पाचनाई है। यही कारण था कि लोगों से सही रास्ता पूछते वक्त मेरे दिमाग में यह चल रहा था कि वो लोग अगर किसी से रास्ता पूछेंगे भी तो बताएंगे क्या कि कहां जाना है। सच में, यह सब सोच-सोचकर मुझे तेज सिरदर्द होने लग गया।

Photo of Harishchandragadh trek Route, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक
Photo of Harishchandragadh trek Route, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

मेरे दोस्तों को मैं अपनी जिम्मेदारी पर ट्रैकिंग के लिए लेकर जा रहा था। इसलिए अब मुझे खुद से ज्यादा उन दोनों की चिंता हो रही थी। क्योंकि हम जिस रास्ते पर थे वो न सिर्फ गलत था बल्कि बहुत ज्यादा खतरनाक भी था। तेज और तीखी ढलान-चढ़ान उसपर रास्ते के नाम पर कहीं-कहीं सिर्फ बिखेरे हुए बड़े-बड़े पत्थर। इसमें कोई शक नहीं कि जब तक पहाड़ी राहों से घूमते हुए हमें अपने गुमराह होने का अहसास नहीं था, तब तक सब कुछ स्वर्ग-सा सुंदर लग रहा था। लेकिन जैसे ही हमारा इस असलियत से सामना हुआ कि हम पहाड़ियों पर बने टेढ़े-मेढ़े रास्तों की राह में भटक गए हैं, तब अचानक से सब कुछ एकदम नारकीय हो गया। प्लान के मुताबिक हमें 3-4 बजे तक पाचनाई गांव पहुंच जाना था। लेकिन पहाड़ों की भूलभुलैया में हम कुछ ऐसे भटके की दोबारा हाइवे पर आने में ही शाम के 4 बज गए। हालांकि 3 घंटे की जद्दोजहद के बाद अंततः 2 अच्छी चीज हुई। हमें न सिर्फ सही रास्ता मिल गया बल्कि किसी फ़िल्मी कहानी की तरह एक मोड़ पर हमारा इंतजार करते हमारे दोनों साथी भी नजर आ गए।

Photo of Harishchandragad Trek Hotel, Akole, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक
Photo of Harishchandragad Trek Hotel, Akole, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

3 घंटे के अंतराल पर एक दूसरे को देखने के बाद हमें खुशी तो ही रही थी। लेकिन साथ ही घड़ी की सुइयों पर नजर पड़ने के बाद माथे पर चिंता की लकीरें भी उभर आईं थी। क्योंकि, अब भी पाचनाई गांव हमारी पहुंच से 2 घंटे दूर था। हम सुबह 8 बजे से घर से निकले थे। इसलिए शाम के 4 बजे तक हम सभी को बेहद तेज भूख भी लग गई थी। पेट की भारी डिमांड और समय की भारी कमी के बीच संतुलन साधते हुए हमने हाइवे पर स्थित होटल में एक प्लेट चिकन फ्राइड राइस ऑर्डर किया और फिर चार लोगों ने मिलकर छट-पट काम चलाऊ पेट पूजा कर ली। और फिर इसके बाद अगले दो घंटे नॉन स्टॉप बाइक चलाते हुए हम आखिरकार पाचनाई गांव पहुंच ही गए। सोचिए, सुबह 8 बजे घर से निकलने के बाद 250 किलोमीटर का रास्ता तय करते-करते पूरा दिन निकल गया। इस देरी का सबसे बड़ा खामियाजा यह हुआ कि कोंकण कड़ा की जिस सनसेट वाली फ़ोटो को अपनी आंखों से देखने का सपना संजोया था, वो ढलती शाम के साथ स्वाहा हो गया।

Photo of 'आज मैं ऊपर आसमान नीचे' टाइप अद्भुत अहसास कराने वाली जादूई जगह- हरिश्चंद्र गढ़ by रोशन सास्तिक
Photo of 'आज मैं ऊपर आसमान नीचे' टाइप अद्भुत अहसास कराने वाली जादूई जगह- हरिश्चंद्र गढ़ by रोशन सास्तिक

पाचनाई गांव से हमारे कैंप हरिश्चंद्र गढ़ मंदिर तक करीब 90 मिनट की चढ़ाई की शुरुआत में हमारे दिमाग में रास्ते भर निम्नलिखित बातें चल रही थी। पहली तो यह कि 250 किलोमीटर लंबे और थकाऊ सफर को झेलने के बावजूद कोंकण कड़ा के किनारे बैठकर सनसेट देखने की इच्छा अधूरी रह गई। और दूसरा दुख इस बात का कि दिन की रौशनी में पहाड़ चढ़ते हुए नजर आने वाले दिलकश नजारें भी नसीब नहीं हुए। इसके अलावा पहली बार रात में घने जंगल से घिरे किसी पहाड़ पर चढ़ने का खतरा अलग। लेकिन, आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि शाम की रौशनी जैसे-जैसे मंद होते जा रही थी, सफर का रोमांच वैसे-वैसे बढ़ता चला जा रहा था। आगे के सफर में लगभग सब कुछ हमारी उपर्युक्त आशंकाओं के उलट ही हुआ।

Photo of 'आज मैं ऊपर आसमान नीचे' टाइप अद्भुत अहसास कराने वाली जादूई जगह- हरिश्चंद्र गढ़ by रोशन सास्तिक
Photo of 'आज मैं ऊपर आसमान नीचे' टाइप अद्भुत अहसास कराने वाली जादूई जगह- हरिश्चंद्र गढ़ by रोशन सास्तिक

बड़े बुजुर्गों ने सही ही कहा है कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। क्योंकि शाम के ढलने और रात के चढ़ने के बाद हमने खुद को अनगिनत टिमटिमाते तारों से भरे आसमान के तले पाया। सर्द रात में दूध से ज्यादा सफेद और चांदी से कहीं अधिक चमकदार चांद के दर्शन मात्र से हमारे सनसेट न देख पाने का गम न जाने कब और कहां गुम हो गया। हम शहर में रहने वालों को गर्मियों के महीने में भी बड़ी मुश्किल से तारों को देखना नसीब होता है। लेकिन हरिश्चंद्र गढ़ की चढ़ाई करते वक्त आसमान में इतने सारे और इतने करीब से जगमगाते तारों पर नजर जाने के बाद आसमान से आंखों हटाने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ रही थी। ऐसे दिल निहाल कर देने वाले नजारों को देखने के बाद दिमाग में यह ख्याल आया कि अच्छा हुआ जो लेट हो गए। क्योंकि पहाड़ से घाटी का नजारा तो अगले दिन सुबह सूरज की मेहरबानी से भी देख ही लेंगे। लेकिन आज अगर सब कुछ समय के हिसाब से होता तो फिर चांद की मेहरबानी से उसकी रौशनी में नहाए पहाड़ की नायाब खूबसूरती नयनों को नसीब नहीं हो पाती।

Photo of 'आज मैं ऊपर आसमान नीचे' टाइप अद्भुत अहसास कराने वाली जादूई जगह- हरिश्चंद्र गढ़ by रोशन सास्तिक
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इतना ही नहीं। शुरुआत में रात में ट्रैकिंग को लेकर हमारे मन में जो भी शंका थी, वो भी बहुत ही जल्दी फुर्र हो गई। क्योंकि, सफर की शुरुआत में ही हमें यह अनुभूति हुई कि रात के अंधेरे में पहाड़ चढ़ने का काम उतना खतरनाक नहीं है जितना हम सोच रहे थे। मोबाइल के टॉर्च की कामचलाऊ हल्की रोशनी में भी हम बड़े आराम से अपने रास्ते पर आगे बढ़ते चले जा रहे थे। एक बार भी ऐसा कोई पड़ाव नहीं आया, जहां हमें दिन के उजाले की कमी खली हो। चांद की दूधिया रौशनी से नहाई हुई रात ने हमारे सफर को उम्मीद से कहीं ज्यादा रोमांच से भर देने का काम दिया। रात के अंधेरे में डरने की बजाय हम 4 दोस्तों की चौकड़ी ने बहुत धमाल मचाया। शायद ही हम दिन में रास्ते को रात जितना एन्जॉय कर पाते। रात के सुनसान अंधेरे में हम कभी कुत्ते की आवाज निकालते तो कभी भेड़िए की भाषा में चीखने लग जाते। और जब इन सबसे भी मन नहीं भरता तो सीधे भूतों को सामने आने का चैलेंज दे बैठते। हमारे लाख इनविटेशन के बावजूद भूत तो नहीं आए, लेकिन हां- मजा बहुत ज्यादा आया।

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तो इस तरह उछलते-कूदते और हँसते-खेलते हम अपने कैंप साइट हरिश्चंद्र गढ़ मंदिर तक पहुंच गए। यहां हमारा स्वागत गरमागरम चाय और जायकेदार पोहे के साथ हुआ। रात की ठंडक में चाय की गर्मी ने एक अलग ही सुकून देने का काम किया। इसके अलावा नींबू के खट्टे रस से नहाए पोहे ने मन और पेट दोनों को एक साथ भर दिया। इसके बाद हमने रात के अंधेरे में करीब 2 घंटे के कैंप के अलग-बगल ही चक्कर लगाया। इस दौरान हम आपस में कभी अपने सफर की बात करते, कभी स्कूल के दिनों को याद करने लग जाते, कभी कल क्या करेंगे कि प्लानिंग पर डिस्कस करते और फिर एकदम से शांत होकर आसमान में नजर आ रहे तारों को एकटक और देर तक देखते रह जाते। इन सब में कामों में ही रात के करीब 10 बज जाते हैं। 2 घंटे की वॉक के बाद हमारे पेट के कमरे खाली हो जाते हैं और उसे फिर से भरने के लिए हम कैंप की तरफ लौट आते हैं। रात के खाने में स्वादिष्ट और सात्विक थाली पेट की सच में पूजा करने वाला एहसास दिलाती है।

Photo of 'आज मैं ऊपर आसमान नीचे' टाइप अद्भुत अहसास कराने वाली जादूई जगह- हरिश्चंद्र गढ़ by रोशन सास्तिक
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खाना खत्म होने के बाद हम कुछ देर तक अलाव के समीप बैठकर अपना समय बिताते हैं और फिर अगले दिन जल्दी उठने के लिए कैंप में सोने के लिए चले जाते हैं। कोंकण कड़ा से सनसेट देखने का सुनहरा मौका गवांने के बाद हम सनराइज़ को लेकर किसी तरह का खतरा उठाने की स्थिति में नहीं थे। इसलिए सोने से पहले हम सब ने निश्चय किया कि कल सूरज चाहे पश्चिम दिशा से निकल जाए, लेकिन हमें तड़के सुबह 5:30 से पहले तारामती शिखर के लिए कैंप से निकल जाना है। हमारे कैंप से शिखर तक पहुंचने के लिए हमें करीब 30 मिनट की चढ़ाई चढ़नी थी। इसलिए सुबह हम वक्त पर उठ गए और तारामती शिखर की तरफ तेज गति से बढ़ चले। हम जैसे-जैसे ऊपर की तरफ बढ़ते जा रहे थे, वैसे-वैसे रात का अंधकार भी उलटे पैर अपने घर लौट रहा था।

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सुबह का सूरज अपने आगमन की पूर्व सूचना आसमान के एक छोर पर सुर्ख लाल रंग बिखेर कर दे रहा था। शुरू से लेकर अंत के करीब तक की चढ़ाई के दौरान सब कुछ सेफ और सरल ही था। बस तारामती शिखर पर कदम रखने से जस्ट पहले एक ऐसी खड़ी चट्टान थी, जिससे पार पाने के चक्कर में मेरे शरीर के प्राण निकल गए। एक वक्त को डर के मारे मेरा शरीर न सिर्फ कांपने लग गया बल्कि भय इतना भारी हुआ कि करीब-करीब रोना तक निकल गया। सामने खड़ी-सीधी चट्टान और पीछे गहरी खाई को देखकर पहली बार आगे कुआं-पीछे खाई वाली कहावत का असल मतलब समझ आया। पहले लगा कि कहीं मैंने गलती तो नहीं कर दी, लेकिन इतनी ऊंचाई पर आने के बाद वापस लौटने का कोई ऑप्शन नहीं था। इसलिए फिर मैं थोड़ी और हिम्मत जुटाते हुए दोस्तों के सहारे किसी तरह उस चट्टान को चढ़ने में कामयाब हो गया।

Photo of 'आज मैं ऊपर आसमान नीचे' टाइप अद्भुत अहसास कराने वाली जादूई जगह- हरिश्चंद्र गढ़ by रोशन सास्तिक
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इसके अगले ही पल मैंने जो देखा, उसे मैं अपने जीवन के किसी पल में नहीं भुला पाऊंगा। जी हां, मैं तारामती शिखर पर था और यहां से मुझे आसमान के पूर्वी छोर पर छाई सूरज की लालिमा को देखकर ऐसा लग रहा था मानों किसी सुंदर महिला ने अपने होठों पर चटक लाल लिपस्टिक लगा ली हो। और उसकी खूबसूरती में 4 चांद सॉरी 4 सूरज लग गए हो। तारामती शिखर पर चट्टान के किनारे बैठ सैकड़ों की संख्या में लोग दम साधे सूरज के आसमान के गर्भ से निकलने का इंतजार कर रहे थे। इंतजार के इन लम्हों पर उस वक्त विराम चिन्ह लग गया, जब सभी ने सूरज का एक सिरा बाहर निकलते हुए देखा। सूरज का नजर आया वो पहला हिस्सा एकदम गाढ़ा और सुर्ख लाल था। उस वक्त समझ आया कि क्यों बाल हनुमान खुद को सूरज को खाने से नहीं रोक पाए थे। क्योंकि अगर हमारे पास भी सुपर पावर होती तो हम सब भी सूरज के उस सम्मोहित कर देने वाले स्वरूप के और करीब जाने के लिए एक पल गवांए बगैर उस तक छलांग लगा चुके होते।

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तारामती शिखर पर अपने जीवन के अब तक के सबसे सुनहरे सुबह को जी भरकर जीने के बाद हम अपने दूसरे डेस्टिनेशन यानी कोंकण कड़ा की ओर चल दिए। कोंकण कड़ा की तरफ कदम बढ़ाते वक्त मेरे पूरे शरीर में एक्साइटमेंट का कीड़ा दौड़ रहा था। क्योंकि यही वो जगह थी जिससे जुड़ी तस्वीरों की तरफ मोहित होकर हरिश्चंद्र गढ़ आने का ख्याल मेरे दिमाग में आया था। यही वो जगह थी, जहां से सनसेट न देख पाने का गम कल शाम हमें सबसे ज्यादा खल रहा था। यही वो जगह थी, जहां के सांप के फन के आकार की चट्टान से नीचे झांकने की कल्पना ने ही रोम-रोम को रोमांच से भर देने का काम किया था। जी हां, बस 20-25 मिनटों में ही मैं अपने दोस्तों के साथ कोंकण कड़ा पहुंच गया था। यहां से 3 तरफ से घिरी पहाड़ियों के बीच से पूर्व में चौथी तरफ नजर आ रहा दूर-दूर तक खुला हुआ मैदान मन को मोहने का काम कर रहा था। ऐसा लग रहा था, जो नजर आ रहा है उसे बस देखते ही रहा जाए। वक्त थम जाए और सब कुछ अपनी जगह पर एक दम से जम जाए। ताकि जो जैसा नजर आ रहा है, वो वैसा ही नजर आता रहे। तब तक... जब तक हमारा मन न भर जाए।

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कोंकण कड़ा पर सुबह की मीठी और ठंडी धूप के साये में बैठकर चाय की चुस्कियों का आनंद लिया। और साथ ही किनारे पर बैठ करीने से पहाड़ों से घाटी तक और फिर घाटी से मैदान तक पसरे झरनों के अवशेषों का मुवायना किया। और ऐसा करते वक्त हमनें एक-दूसरे की आंखों में देखते हुए ही कोंकण कड़ा से मॉनसून में मिलन का प्लान भी बना लिया। कोंकण कड़ा पर करीब एक घंटा बिताने के बाद हम अपने अंतिम पड़ाव हरिश्चंद्र गढ़ मंदिर की तरफ चल दिए। यहां आकर हमने सबसे पहले ठंडे पानी के कुंड में अपने चलकर, चढ़कर और थककर चूर हो चुके पैरों को डुबोया। ठंडे पानी ने देखते-ही-देखते अपना जादू दिखाना शुरू किया और पैरों का सारा दर्द गायब कर दिया। इसके साथ ही तालाब में मौजूद छोटी-छोटी मछलियों ने फ्री में ही हमारी पेडीक्योर कर दी। इसके बाद हमने महादेव के मंदिर जाकर दर्शन लिए और साथ ही बेहद प्राचीन शिवलिंग को देखने का अवसर भी मिला। हालांकि, हमारे पहुंचने से पहले ही 30-35 लोगों का झुंड उसपर कब्जा जमाए हुए था। इसलिए हम पानी के अंदर नहीं उतरे।

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अब तक सुबह के 11 बज गए थे। हम सबको इस बात की खबर थी कि कल हमारे साथ क्या हुआ और यहां तक आने में कितना समय लगा। इसलिए अब वापस घर जाने के लिए भी हमें जल्द निकलना था। तो हमने ज्यादा समय व्यर्थ न गवांते हुए नीचे उतरने की तैयारी शुरू कर दी। हमने चाय पीते हुए अपना बोरिया बिस्तर समेटना शुरू कर दिया। और कुछ ही देर में हमने नीचे उतरना शुरू कर दिया। देखते ही देखते हम जल्दी-जल्दी पहाड़ को पीछे छोड़ पाचनाई गांव के करीब पहुंचने लगे। इस दौरान हम सब उन सभी जगहों को याद कर रहे थे, जिन्हें हमने रात के अंधेरे में देखा था। रात की ब्लैक एंड वाइट तस्वीरों को दिन में अनगिनत रंगों से नहाए देखने का अनुभव बेहद अनुठा और अनोखा था। रास्ते भर हम अपने अब तक के सफर को याद करते हुए और राह में नजर आ रहे नजारों को नजरों में संजोते हुए पाचनाई गांव पहुंच गए। यहां से हमने अपनी-अपनी बाइक्स स्टार्ट की और घर की ओर चल दिए।

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12 बजे शुरू हुई वापसी यात्रा के दौरान हमने शुरुआत में ही तय कर लिया कि हम इस बार कोई शॉर्टकट नहीं लेंगे और 50-50 किलोमीटर के 4 स्टॉप ही लेंगे। खुशकिस्मती से इस बार शुरू से लेकर अंत तक सब कुछ तयशुदा प्लान के मुताबिक ही हुआ। हम सूरज ढलने से पहले मालशेज घाट तक पहुंच गए थे। यहां आकर हम एक ढाबे पर रुक गए और फिर हमने भरपेट स्वादिष्ट खाने का लुत्फ उठाया। ढाबे से निकलने के बाद हमने देखा कि इस दौरान सूरज भी अपने घर निकल चुका था। यानी रात हो चुकी थी। रात के अंधेरे में हमें मालशेज घाट को पार करना था। जो कि खतरनाक काम तो था लेकिन इस जोख़िम भरे काम को हम पहले भी अंजाम दे चुके थे। इसलिए इस काम को अंजाम देने में हमें कोई खास दिक्कत नहीं हुई। और हम बड़े आराम से ठंड़ी हवाओं को बाहों में भरते और रात के अंधेरे को चीरते हुए देखते ही देखते घाट से नीचे उतर आए। और फिर यहां से रात 10 बजे से पहले ही हम हमारे शहर कल्याण पहुंच गए। और इस तरह हमारा 2 दिन का सफर समाप्त हो गया। वो अलग बात है कि इस दौरान हमने जिन हजार लम्हों को जिया और यादों को संजोया... वो जीवन भर हमारे साथ बने रहेंगे।

तो कैसा लगा मेरा ट्रेवल ब्लॉग? मजा आया ना? मजा आया हो, तो फिर कमेंट बॉक्स में अपना फीडबैक देना मत भूलिएगा। वैसे अगर मेरा यह मजेदार किस्सा पढ़ते-पढ़ते आपको अपना भी कोई किस्सा लिखने का मन हो गया हो, तो फिर देर किस बात की। शुरू हो जाइए...

- रोशन सास्तिक

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