सलाम, नमस्ते, केम छो दोस्तो🙏
परसों की बात हैं। सुबह सुबह मैं जब चाय पी रहा था और सोच रहा था कि काफी वक्त गुजर चुका हैं और मैं एक सिम्पल ड्राइव पर भी नहीं निकला। यही सोच के मैंने अपनी बाइक उठाई और निकल गया लखनऊ हाईवे पर।
अभी मैं कुछ दूर ही पहुचा था कि मुझे एक ख्याल आया क्यों ना मगहर चला जाएं। हमारा आधा बचपन तो कबीर जी के बारे में ही पढ़ते पढ़ते निकल गया क्यों ना आज इसका आंखो देखा दीदार किया जाएं। मगहर से अच्छा तो कोई जगह हो ही नहीं सकता। क्योंकि जितनी रहस्यमय, ज्ञानपूर्ण और प्रेरणादयक जगह ये हैं दूसरी कोई हो ही नहीं सकती।
कबीर के कदमों की ओर
तो मैंने अपनी बाइक एक टी स्टॉल पर रोकी और गूगल बाबा से वहा की जानकारी लेने लगा।
गूगल बाबा से पूछा तो पता चला की यहां से 31 किलोमीटर है मगहर । तो फिर मैंने भी अपने इयर फोन में रे कबीरा मान जा गाना लगाया और निकल पड़ा अपने यात्रा पर। चलो मैं वहां के बारे में आपको कुछ बताता हूं कि मैंने इस जगह को रहस्यमय, ज्ञानपूर्ण और प्रेरणादयक क्यों कहा।
मगहर के नाम को लेकर ही कई किंवदंतियां हैं। जिसमें एक कहानी के अनुसार प्राचीन काल में बौद्ध भिक्षु इसी मार्ग से होते हुए कपिलवस्तु, लुंबिनी, कुशीनगर जैसे प्रसिद्ध बौद्ध स्थलों के दर्शन के लिए जाया करते थे।इन भिक्षुओं से इसी इलाके में अक्सर चोरी और लूट जैसी घटनाओं को अंजाम दिया जाता था। यही वजह रही कि इस रास्ते का नाम 'मार्गहर' यानी मगहर पड़ गया।
जबकि एक दूसरी कहानी के अनुसार, यहां से गुज़रने वाला व्यक्ति हरि यानी भगवान के पास ही जाता है।लिहाजा, इस इस इलाके का नाम मगहर पड़ा।
कबीर साहेब जी कौन थे?
कबीर जी को लेकर कई दंत कथाएं प्रचलित हैं। उनको 15वीं शताब्दी में महान संत तथा कवि के रूप में जाना जाता था। वह बहुत पढ़े-लिखे नहीं थे परंतु उनको वेदों का पूर्ण ज्ञान था। उन्होंने जातिवाद का पुऱजोर से खंडन किया।
कबीर साहेब का प्राकट्य
कबीर जी का जन्म सन् 1398 (विक्रमी संवत् 1455) ज्येष्ठ मास सुदी पूर्णमासी को ब्रह्ममूहूर्त (सूर्योदय से लगभग डेढ़ घण्टा पहले) में काशी में हुआ। परंतु कबीर साहेब ने मां के गर्भ से जन्म नहीं लिया अपितु अपने निजधाम सतलोक से सशरीर आकर बालक रूप बनाकर लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर विराजमान हुए। इस दिन को कबीर साहेब के जन्म दिवस के उपलक्ष में कबीर पंथी हर साल जून के महीने में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।
मगहर स्थान का कबीर जी से क्या संबंध है?
कबीर साहेब पूर्ण परमात्मा हैं जो हर युग में आते रहे हैं जिसकी गवाही हमारे धर्म ग्रंथ भी देते हैं। उनका मगहर से गहरा नाता है। उन्होंने समाज में व्याप्त अन्धविश्वास, पाखण्ड, मूर्ति पूजा, छुआछुत तथा हिंसा का विरोध किया। साथ ही हिन्दू -मुस्लिम में भेदभाव का पुरजो़र खंडन किया। इसी तरह इस अन्धविश्वास को मिटाने के लिए कि आखिरी समय में मगहर में प्राण त्यागने वाला नरक जाएगा, अपने अंत समय में काशी से चलकर मगहर आए। जिसके बाद सबकी धारणा बदल गई।
कबीर जी काशी से मगहर कब और क्यों गए?
कबीर साहिब जी ताउम्र काशी में रहे। परंतु 120 वर्ष की आयु में काशी से अपने अनुयायियों के साथ मगहर के लिए चल पड़े। 120 वर्ष के होते हुए भी उन्होंने 3 दिन में काशी से मगहर का सफर तय कर लिया। उन दिनों काशी के कर्मकांड़ी पंडितों ने यह धारणा फैला रखी थी कि जो मगहर में मरेगा वह गधा बनेगा और जो काशी में मरेगा वह सीधा स्वर्ग जाएगा।इस गलत धारणा को कबीर परमेश्वर लोगों के दिमाग से निकालना चाहते थे। वह लोगों को बताना चाहते थे कि धरती के भरोसे ना रहें क्योंकि मथुरा में रहने से भी कृष्ण जी की मुक्ति नहीं हुई। उसी धरती पर कंस जैसे राजा भी डावांडोल रहे।
मुक्ति खेत मथुरा पूरी और किन्हा कृष्ण कलोल,
और कंस केस चानौर से वहां फिरते डावांडोल।
इसी प्रकार हर किसी को अपने कर्मों के आधार पर स्वर्ग या नरक मिलता है चाहे वह कहीं भी रहे। अच्छे कर्म करने वाला स्वर्ग प्राप्त करता है और बुरे, नीच काम करने वाला नरक भोगता है, चाहे वह कहीं भी प्राण त्यागे, वह दुर्गति को ही प्राप्त होगा।
कबीर साहेब जी के शरीर की जगह मिले थे फूल
अपनी आखिरी समय में परमेश्वर चादर पर लेट गए। दूसरी चादर ऊपर ओढ़ी और सन 1518 में परमेश्वर कबीर साहिब सशरीर सतलोक गमन कर गए। थोड़ी देर बाद आकाशवाणी हुई “उठा लो पर्दा, इसमें नहीं है मुर्दा”।
वैसा ही हुआ कबीर परमात्मा का शरीर नहीं बल्कि वहां सुगन्धित फूल मिले, दोनों धर्मों के लोग आपस में गले लग कर खूब रोए। परमात्मा कबीर जी ने इस लीला से हिंदू-मुस्लिम मुस्लिम दोनों धर्मों का वैरभाव समाप्त किया । मगहर में आज भी हिंदू मुस्लिम धर्म के लोग प्रेम से रहते हैं।
We plan our journey but fact is that journey plan think's for us"
क्योंकि सुबह 6 बजे उठ के इस ट्रिप पर आना मेरा प्लान नहीं था, मेरे घर में काष्ठकला का काम चल रहा है फिर अचानक से मेरा मगहर जाना प्लान नहीं था, वहा 1 घंटा सोच के 4 -5 घंटा रुकना प्लान नहीं था किसी ने सही कहा हैं हम जर्नी प्लान नहीं करते जर्नी हमें प्लान करती हैं।
सोलो ट्रैवलिंग सुनने में कितना कूल लगता हैं ना 😎आप और आपके साथ रिवर,हिल, हाईवेज, ट्रीस, टेंपल, वादिया उफ्फ........ सो एक्साइटिंग 😍 पर मैंने एक चीज जाना आप सोलो ट्रिप पर कभी भी सोलो ट्रैवल नहीं करते🥴।
मैं यहां दो अजनबियों से मिला उनका फर्स्ट टाइम विजिट था मगहर में तो फिर क्या था हम तीनो ने साथ मगहर का दर्शन किया। पूरे ट्रिप पर उन्होंने मुझे अकेले रहने का मौका ही नहीं दिया 😟 उन्हें मगहर के बारे में जादा कुछ नहीं पता था तो मुझे वहां हीरो बनने का पूरा मौका मिला, ऐसा मुझे लगा की मैं हीरो हूं, ये भी जानता हूं वो भी जानता हूं पर एक्चुली में मैं एक ट्रैवल गाइड का काम कर रहा था 🙄 उनके लिए वो भी फ्री ऑफ कॉस्ट पर जो भी हो मज़ा आया उनके साथ🤗।
जब मैं अन्दर गया मैं आपको बता दू, अन्दर इतना पॉजिटिविटी था। वहा लोग पूरे संगीत के साथ कबीर दोहा गा रहे थे और भी बहुत कुछ गा रहे थे। वहा का दृश्य बिल्कुल किसी हिन्दी फ़िल्म की तरह था मुझे लगा कोई शूटिंग चल रही है मुझे ये नज़ारा देख के बजरंगी भाई जान का वो गाने का दृश्य याद आ गया "भर दो झोली मेरी......."🤭। बहुत ही अदभुत दृश्य था वो मेरे लिए।
जिज्ञासा अपने पूरे उफान पर था मुझे और भी चीज देखने और जाने की इच्छा हुई मैं आस पास सब जगह घूमने लगा। सबसे पहले मैं अन्दर पूरी तरह घुमा फिर वहा से निकल के मैं घाट की तरफ गया और वहा घंटो बैठा मौसम बहुत शानदार था। ऐसा ही बिल्कुल नज़ारा मैंने एक बार हरिद्वार के घाट पर देखा था☺️।
जाते जाते कबीर जी की एक बात मुुुुझे याद आ रहा है जो मैंने बचपन में पढ़ा था वो शेयर करता हूं आप से....
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ: बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।
वहा ये बोर्ड लगा था क्यों कि वहा पर सुंदरीकरण का कुछ काम चल रहा है तो जो भी आप हेल्प कर सको या जो कर सकता है उस तक ये बात पहुंचा दो तो काफी मदद हो सकती हैं वहा के लोगों की और सरकार की भी।
अगर आपको किसी नयी जगह की सैर पर जाना हैं तो अपना सामान पैक करें और रुख करें मगहर की ओर। यहाँ आप कबीर की समाधि और मज़ार पर एक ऐसी शांति महसूस करेंगे, जिसकी खोज में आप बरसों से थे। क्योंकि यहां आने के बाद मेरा अनुभव तो यही कहता हैं।