मिस्र के पिरामिड, रोम का कालीज़ीयम या चीन की दीवार, ज्यादातर हमने इन सब को ही मानव द्वारा बनाई गई विशाल सरंचनाओं के रूप में जाना है। पर ऐसा नहीं है भारत में ऐसी विशाल अद्भुत संरचनाओं का निर्माण नहीं हुआ। भारत में ऐसे कई प्राचीन मंदिर मौजूद हैं जिसकी वास्तुकला और बनावट किसी आश्चर्य से कम नहीं।
हिंदू धर्म में भगवान और मंदिरों का बड़ा महत्व है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि भगवान ही इस सृष्टि का संचालन करते हैं। उनकी ही इच्छा से धरती पर सबकुछ होता है। वैसे तो हिंदू धर्म की मान्यता है कि भगवान हर जगह मौजूद हैं, लेकिन भारत की संस्कृति ही ऐसी है कि यहां जगह-जगह आपको अलग-अलग देवताओं के मंदिर मिल जाएंगे। ऐसा सदियों से चला आ रहा है कि लोग अपनी श्रद्धा से मंदिरों का निर्माण करवाते हैं। आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो किसी अजूबे से कम नहीं है। कहते हैं कि इस मंदिर को बनने में 100 साल से भी ज्यादा का समय लगा था।
यह मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित एलोरा की गुफाओं में है, जिसे एलोरा के कैलाश मंदिर के नाम से जाना जाता है। 276 फीट लंबे और, 154 फीट चौड़े इस मंदिर की खासियत ये है कि इसे केवल एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है। ऊंचाई की अगर बात करें तो यह मंदिर किसी दो या तीन मंजिला इमारत के बराबर है।
कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण में करीब 40 हजार टन वजनी पत्थरों को काटा गया था। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसका रूप हिमालय के कैलाश की तरह देने का प्रयास किया गया है। कहते हैं कि इसे बनवाने वाले राजा का मानना था कि अगर कोई इंसान हिमालय तक नहीं पहुंच पाए तो वो यहां आकर अपने अराध्य भगवान शिव का दर्शन कर ले।
महाराष्ट्र के औरंगाबाद में खड़ा कैलाश मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा विशाल मंदिर जिसे एक ही चट्टान को काटकर (मोनोलिथिक) बनाया गया है। यह पूरी संरचना द्रविड़ शैली का एक अनूठा उदाहरण है। आगे हमारे साथ जानिए यह ऐतिहासिक मंदिर पर्यटन के लिहाज से आपके लिए कितना खास है।
मंदिर का इतिहास
10वीं शताब्दी में लिखी गई एक किताब “कथा कल्पतरू ” में एक लोक-कथा दी गई है। उस लोक-कथा के मुताबिक़ 8वीं शताब्दी में राष्ट्रकुट राजवंश के राजा ऐलू की रानी ने प्रण लिया था कि वह, जब तक भग्वान शिव का आलीशान मंदिर नहीं बन जाता तब तक वह खाना नहीं खायेंगी। रानी ने सपने में मंदिर का शिखर देखा था। रानी को वैसा ही मंदिर चाहिये था।
राजा ने कई शिल्पकारों को आमंत्रित किया लेकिन उनमें से कोई भी रानी की इच्छा पूरी नहीं कर सका। अंत में पैंठण से कोकासा नाम का एक शिल्पकार आया और उसने, मंदिर निर्माण के लिये चट्टान को ऊपर से नीचे की तरफ़ तराशने कर मंदिर बनाने की सलाह दी।
मंदिर तराश ने का ज़्यादातर काम, 8वीं शताब्दी में,राष्ट्रकुट वंश के राजा कृष्णा-प्रथम के समय में हुआ था। 753 सी.ई. में,बादामी वंश के चालुक्या शासकों को पराजित करके ही राष्ट्रकुट वंश ने दक्कन में अपना शासन स्थापित किया था। उन्होंने कर्नाटक के गुलबर्गा शहर को अपनी राजधानी बनाया था। यही वजह है कि कैलाश मंदिर में द्राविड-कला अर्थात दक्षिण भारत के मंदिरों की तर्ज़ की शिल्पकारी मिलती है। इस तरह यह माना जा सकता है कि मंदिर निर्माण में चालुक्या और पल्लव कलाकारों का भी योगदान रहा होगा। शोध-कर्ताओं का मनना है कि 757 से 773 सी.ई. तक शासन करवाले कृष्णा-प्रथम के ज़माने में ही मंदिर के मुख्य ढ़ांचे यानी बड़े हिस्से का निर्माण हो चुका था।
मंदिर का निर्माण
यह पूरा कैलाश मंदिर 276 लंबी और 154 चौड़ी चट्टान को काटकर बनाया गया है। अगर आप इसकी संरचना को बारीकी से देखें तो आपको पता लगेगा कि इसका निर्माण ऊपर से नीचे की ओर किया गया है। मंदिर के निर्माण के दौरान लगभग 40 हजार टन वजनी पत्थरों को पहाड़नुमा चट्टान से हटाया गया था।
जिसके बाद इस पहाड़ को बाहर और अंदर से काटकर 90 फुट ऊंचे मंदिर का निर्माण किया गया। मंदिर की दीवारों पर खूबसूरत नक्काशी की गई है। इसके अलावा मूर्तियों से अलंकृत किया गया है।
वास्तुकला और मूर्तिकला
कैलाश मंदिर उन 34 मठों और मंदिरों में से एक है जो एल्लोरा गुफाओं को एक अद्भुत रूप प्रदान करते हैं। जिन्हें सह्याद्री पहाड़ियों की बेसाल्ट चट्टान की दीवारों के किनारे लगभग 2 किमी के क्षेत्र में खोदकर बनाया गया है। मंदिर गुफा संख्या नं 16 में पल्लव शैली के प्रमाम मिलते हैं। जहां वास्तुकला और मूर्तिकला द्रविड़ शैली से प्रभावित लगते हैं।
भगवान शिव को समर्पित है यह मंदिर
भगवान शिव को समर्पित इस विशाल मंदिर का निर्माण 8 वीं शताब्दी में राष्ट्रकूट राजा कृष्ण आई द्वारा करवाया गया था। लेकिन कैलाश मंदिर में कई प्रतीक जैसे देवताओं की मूर्तियां, खंभे और जानवरों की आकृतियां किसी अज्ञात अतीत की ओर इशारा करती हैं। माना जाता है इनका निर्माण 5वीं और 10 वीं शताब्दी के आसपास किया गया होगा।
कैलाश मंदिर की विशेषता
कई प्राचीन हिन्दू मंदिरों की तरह इस मंदिर में कई आश्चर्यजनक बातें हैं जोकि यहाँ आने वाले सभी दार्शनिक को हैरान करती हैं |
शिव जी का यह दो मंजिल वाला मंदिर पर्वत की ठोस चट्टान को काटकर बनाया गया है।
एलोरा का कैलाश मन्दिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले में प्रसिद्ध ‘एलोरा की गुफ़ाओं’ में स्थित है।
यह मंदिर दुनिया भर में एक ही पहाड़ की शिला से बनी हुई सबसे बड़ी मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है।
इस मंदिर को तैयार करने में क़रीब 150 वर्ष लगे और लगभग 7000 मज़दूरों ने लगातार इस पर काम किया।
कैलाश मंदिर के खुलने और बंद होने का समय –
सप्ताह के सभी दिन मंगलवार को छोड़कर: सुबह 7:00 – शाम 6:00 बजे
कैलास मंदिर का प्रवेश शुल्क
कैलास मंदिर या एलोरा की गुफाओं में प्रवेश के लिए भारतीयों को प्रवेश शुल्क के रूप में 10 रूपये देने होंगे वही विदेशियों के लिए 250 रूपये इसका शुल्क भुगतान करना होगा।
कैलाश मंदिर घूमने जाने का सबसे अच्छा समय
अगर आप कैलास मंदिर की यात्रा करने की योजना बना रहा हैं तो आपके मन में ख्याल आएगा कि यहां जाने के लिए सबसे अच्छा समय कौनसा है ? तो बता दें कि यह गुफाएं पर्यटकों के लिए पूरे साल खुली रहती हैं। लेकिन अक्टूबर से फरवरी के दौरान अच्छी जलवायु और ठंडे मौसम होने की वजह से यहां आने वाले पर्यटकों की उपस्थिति पूरे साल की अपेक्षा काफी ज्यादा होती है। मार्च से जून तक गर्मी का मौसम होता है जिसमें यहां दिन के समय का तापमान 40 ° C से अधिक हो जाता है। इसके बाद जून के अंत से अक्टूबर मानसून का मौसम रहता है।
कैलाश मंदिर महाराष्ट्र कैसे जाये –
कैलास मंदिर एलोरा की 16 वी गुफा में स्थित है और यहाँ घूमने जाने के लिए आप फ्लाइट, ट्रेन और बस में से किसी का भी चुनाव कर सकते हैं।
फ्लाइट से
अगर आप हवाई मार्ग द्वारा कैलास मंदिर यात्रा करने का सोच रहे हैं, तो बता दें कि इस मंदिर तक पहुंचने के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा औरंगाबाद का है। यहां से एलोरा की गुफाओं की दूरी लगभग 35 किलोमीटर है। औरंगाबाद हवाई अड्डे पर पहुंचने के बाद आप किसी भी बस या टैक्सी की मदद से गुफाओं तक पहुंच सकते हैं। औरंगाबाद के लिए आपको मुंबई और दिल्ली जैसे प्रमुख शहरों से सीधी उड़ाने मिल जाएंगी। इन दोनों हवाई अड्डों की भारत में सभी महत्वपूर्ण शहरों से अच्छी कनेक्टिविटी है।
ट्रेन से
यदि आपने कैलास मंदिर जाने के लिए रेल मार्ग का चुनाव किया हैं तो हम आपको बता दें कि औरंगाबाद रेलवे स्टेशन मुंबई और पुणे से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। जलगांव रेलवे स्टेशन एलोरा के सबसे निकटतम स्टेशन हैं। यहां से आप बस या टैक्सी के रूप में विकल्प चुन सकते हैं।
बस से
यदि आपने कैलास मंदिर जाने के लिए सडक मार्ग का चुनाव किया हैं तो हम आपको बात दें कि औरंगाबाद अजंता से केवल 100 किमी और एलोरा से 30 किमी कि दूरी पर है। अजंता एलोरा की गुफाएं तक पहुंचने के लिए आप स्थानीय टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या राज्य परिवहन द्वारा संचालित कि जाने वाली बसों से अपना सफर कर सकते हैं।