पूरी दुनिया में लाखों झील (LAKE) हैं। हर झील की अपनी-अपनी खासियत होती है। एक ऐसी ही LAKE है जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं । ये झील आधे से ज्यादा वक्त बर्फ से ढकी रहती है। इतना ही नहीं ये LAKE एक दिन में पांच बार रंग भी बदलती है। तो आइए जानते है Pangong Tso Lake से जुड़े रहस्यों के बारे में।
विश्वास करना कठिन हो रहा था कि पानी अपने रंग को बदल रहा है, लेकिन दुनिया के आठवें आश्चर्य को अपनी आंखों से देखते हुए कभी कभार यूं लगता कि आंखें भी धोखा खा रही हैं। लेकिन यह सब अक्षरशः सच था कि पानी ने अपना रंग बदला था और वह भी उस समय जब सूर्य या आदमी अपने आप को हिलाता था।
इस दुनिया के आठवें आश्चर्य को देखने के लिए आदमी को भारत-चीन सीमा पर स्थित इस झील के किनारे किनारे आगे पीछे होना पड़ता था ताकि वह विश्वास न किए जाने वाले तथ्य पर भी विश्वास करने को मजबूर हो जाए।
यह सब महज एक सपना या जादू नहीं है बल्कि हकीकत है कि सात रंगों में अपने पानी को बदलने वाली झील भी इस दुनिया में मौजूद है और सतरंगी झील का प्यारा का नाम है-पैंगांग सो। (सो-को लद्दाखी भाषा में झील कहा जाता है।) एक और आश्चर्यजनक पहलू इस झील का यह है कि यह विश्व की सबसे ऊंचाई पर स्थित नमकीन पानी की झील भी है, जिसे देख आदमी स्वर्ग की छटा को भी भूलने को मजबूर हो सकता है।
पूरी तरह से प्राकृतिक तौर पर बनी विश्व की सबसे ऊंचाई पर स्थित इस झील का क्षेत्रफल भी कम नहीं है बल्कि यह एक समुद्र के समान है, जिसकी लंबाई 150 किमी के लगभग है। हालांकि आधिकारिक रिकॉर्ड में यही लंबाई दर्ज है मगर आम लोगों (जो उसके आसपास के गांवों में रहते हैं) के अनुसार यह 138 किमी लंबी है और चौड़ाई भी कुछ कम अचंभित करने वाली नहीं है। 700 फुट से लेकर 4 किमी की चौड़ाई लिए यह झील समुद्रतल से 14256 फुट की ऊंचाई पर स्थित है, जो बर्फीले रेगिस्तान लद्दाख की राजधानी लेह से करीब 160 किमी की दूरी पर है।
समुद्र रूपी इस झील का सफर कोई आसान नहीं है। कई ऊंचे ऊंचे दर्रों को पार करना पड़ता है जिसमें सबसे ऊंचा दर्रा 17350 फुट की ऊंचाई पर है। ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ ऊंचे दर्रे ही इसकी राह में हैं बल्कि मन को लुभाने वाले रेतीले और पथरीले पहाड़ भी नजर आ जाते हैं। सितम्बर के दूसरे सप्ताह में ही इन पर्वतों पर बर्फ अपनी चादर बिछा देती है।
वैसे इस सतरंगी झील की गहराई आज तक मालूम नहीं हो पाई है। पूरी तरह से प्राकृतिक तौर पर नमकीन पानी की सबसे ऊंचाई पर स्थित सबसे बड़ी झील की निकासी का कोई द्वार भी नहीं है और यही कारण है कि इसका पानी बहुत ही खारा है। इस झील का एक दुखद पहलू यह है कि इसका 87 प्रतिशत भाग चीन के अवैध कब्जे में है, जहां पर उसने अपनी नौसेना तैनात की हुई है।
दिन में कई बार बदलता है अपना रंग:-
लगता तो अविश्वसनीय सा है सात रंगों के बारे में मगर जब इंसान अपनी आंखों से उन्हें देखता है तो वह यह महसूस करता है कि दुनिया का आठवां आश्चर्य उसके सामने है। सूर्य की गति के साथ-साथ कोई भी बड़ी आसानी के साथ इसके बदलते रंगों को अपनी नंगी आंखों से देख सकता है जो सफेद, आसमानी, नीला, हरा, भूरा, संतरी तथा काला होता है।
अब इस झील को भारतीय तथा विदेशी पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है जबकि पहले इसका दौरा करने के लिए जिला मैजिस्ट्रेट की अनुमति लेकर आना पड़ता था। वैसे झील की खूबसूरती अवर्णनीय है ही, उसके किनारे के नंगे ऊंचे बर्फ से ढंके रहने वाले पहाड़ भी कम मनोहारी नहीं हैं भले ही उन पर कोई पेड़-पौधा नहीं है। 14256 फुट की ऊंचाई पर स्थित इस झील पर तापमान्य शून्य से भी कई डिग्री नीचे रहता है। वैसे इन पहाड़ों की बदकिस्मती यह है कि इसके पीछे की भूमि पर चीन का अवैध कब्जा है और भारत सरकार ने आज तक इस मामले को निपटाने की कोशिश नहीं की।
कभी-कभार झील की खोमाशी को साईबेरियाई पक्षियों को तोड़ते हुए देखा जा सकता है। जो इन क्षेत्रों में कभी-कभार ही दिखाई पड़ते हैं। आसपास कोई जीवन नहीं है सिवाय सीमांत चौकियों के तथा बंकरों के भीतर बैठे भारतीय सैनिकों के। हालांकि भारतीय सेना मोटरबोट से इस झील में गश्त करती रहती है।
झील का पानी अंदर-बाहर नहीं होता है क्योंकि कोई निकास द्वार ही नहीं है झील का, इसी कारण से इसका पानी बहुत ही नमकीन है। झील के किनारे जमी नमक की परतें इस बात को दर्शाती हैं कि चंद्रमा के घटने बढ़ने के साथ ही उसका पानी भी ज्वार-भाटा की शक्ल धारण करता होगा। झील के किनारों पर मात्र पत्थर ही मिलते हैं जिन पर नमक की तहें जमी होती हैं। कहा जाता है कि झील में कई खनिज पदार्थ छुपे हुए हैं क्योंकि बर्फ के पिघलने के कारण वे इसमें जमा हो जाते हैं। वैसे इसे विश्व का ऊंचाई पर स्थित समुद्र भी कहा जा सकता है क्योंकि जितना क्षेत्रफल इसका है वह किसी समुद्र से कम नहीं है और ठीक समुद्र की ही तरह इसमें भी खनिज पदार्थ छुपे पड़े हैं।
पांगोंग झील का इतिहास
लद्दाख में स्थित 14256 फुट की ऊंचाई पर बसा पैंगोंग लेक पर तापमान्य शून्य से भी कई डिग्री नीचे रहता है। प्राकृतिक खूबसूरती के चलते यहां सैलानियों का जमावड़ा रहता है, लेकिन लेक में बोटिंग करने की परमिशन नहीं है। माना जाता है कि सन् 1684 में लद्दाख और तिब्बत के बीच तिंगमोसमांग की संधि हुई थी, जिसके मुताबिक यह झील लद्दाख और तिब्बत के बीच सीमा रेखा का कार्य करती थी। यह संधि लद्दाख के तत्कालीन राजा देलदान नामग्याल और तिब्बत के रीजेंट के बीच खलसी के बीच हुई थी। तब इस झील को दो देशों के बीच सीमा के रूप में स्वीकार किया गया था।
वहीं, पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, यह झील यक्ष राज कुबेर का मुख्य स्थान है। ऐसा माना जाता है कि भगवान कुबेर की ‘दिव्य नगरी’ इसी झील के आसपास कहीं स्थित है, जिसका उल्लेख रामायण और महाभारत में मिलता है।
कैसे पहुँचे
पैंगोंग झील लेह से 140 किलोमीटर दूर है। पैंगोंग झील चीन- भारतीय वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पड़ती है, और इस खूबसूरत झील की यात्रा के लिए आपको इनर लाइन की अनुमति लेनी होती है। वहीं, पैंगोंग झील सीमा के बहुत करीब है, ऐसे में आपको केवल एक निश्चित क्षेत्र तक ही जाने की अनुमति होती है। जब भी यहां की यात्रा करने की सोचे तो बहुत सारे सर्दियों के कपड़े रख कर ले जाएं, क्योंकि यहां पर पारा माइनस में रहता है।
यहां पर अगर आप ठहरना चाहते है तो आपके लिए टेंट ही एकमात्र विकल्प है। हालांकि आप Lunkug और Spangmik में होटल तलाश सकते हैं। वहीं आप लेह में स्थित तांगत्से गांव जो की पैंगोंग 34 किलोमीटर दूर है वहां पर भी बजट होटल तलाश सकते हैं।
आप लेह- लद्दाख के कुशो बकुला रिनपोचे एयरपोर्ट से आ सकते है, इसके बाद आप वहां से कार या बस से आगे की यात्रा कर सकते हैं। वहीं दूसरा विकल्प आप ट्रेन का चुन सकते हैं, आप जम्मू तक ट्रेन से आ सकते हैं । तीसरा विकल्प श्रीनगर और मनाली से कार लेकर पैंगोंग झील तक पहुंच सकते हैं।
रोचक तथ्य:-
ये फेमस टूरिस्ट स्पॉट होने की वजह से यहां पर कई बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग भी हुई है…लेकिन, मूवी ‘3 इडियट्स’ के एक सीन से यह जगह सबसे ज्यादा फेमस हुई है।।