कुछ तो बात है पहाड़ की वादियों में,
ना चाहते हुए भी खिचे चले जाते हैं हम.......
बड़ी मशक्कत के बाद इस बार पतिदेव को दीवाली की लम्बी छुट्टी मिली तो सोचा इस बार त्यौहार का ज्यादा मजा आएगा, नहीं तो हर बार भैया दूज करके भागे फिरते थे. लेकिन किसे पता था की हमारा घुम्मक्कड़ मन फिर हमें पहाड़ की ओर ले जाएगा. बहुत सोचने और विचार करने के बाद मुनस्यारी जाने का प्लान बनाया गया. इस बार हमारे साथ एक और मेंबर भी चल रहा था, हमारी ननद रानी आयुषी. शुरुआत हुई टनकपुर से, लोहाघाट, चम्पावत, घाट होते हुए पहले दिन हमने चौकोड़ी रुकने का मन बनाया. क्योंकि सच कहूं तो मेरी बेटी नंदिनी भी साथ थी जिसकी वजह से मै सोच रही थी की ज्यादा ठंडी जगह ना जाएँ तो अच्छा रहेगा.
चौकोड़ी पहुचे, शाम लगभग 4 बज गए थे. रास्तेे मे आते हुए खूब बर्फीले पहाड़ दिखे. मुझे याद है बचपन मे जब भी हम पहाड़ जाते थे तो हर बर्फीले पहाड़ को हिमालय ही कहते थे. मगर अब घुम्मकड़ पति के मिलने के बाद नयी नयी पर्वत श्रंखलाओं के नाम भी पता लग रहे हैं. रास्ते मे आते हुए पंचाचूली, नंदा देवी की पूरी श्रंखला ने खूब हमारा मन मोहा. इनको देखते देखते कब रास्ता चौकोड़ी आ के रुक गया पता ही नहीं चला. मगर कोरोना की वजह से दिक्कत ना हो ऐसा कैसे होगा. K.M.V.N मे रुकने का बड़ा मन था, क्योंकि वहां से बहुत अच्छा व्यू मिलता है. मगर कोरोना बाबा की वजह से वहां isolation ward बने हुए थे. खैर उसी के पास वाला दूसरा होटल लिया, होटल हिमशिखर. वो नहीं तो उसके जैसा ही सही सोच के. वहां पहुंच के मस्त पहाड़ के ठन्डे मौसम मे चाय पकोड़े का आनंद लिया और अपनी ही गप्पों मे रात बिता डाली.
सुबह हुई तो फिर से मन मे मुनस्यारी का कीड़ा रेंगने लगा. मना तो मै कर ही रही थी मगर फिर भी कहीं ना कहीं चाह तो मै भी रही थी जाने को, फिर धीरे धीरे मन पक्का किया और फाइनली निकल ही गए मुनस्यारी के लिए. रास्ते मे मशहूर और बेहद ऊंचा बिर्थी फॉल भी पड़ा तो लगे हाथ वहां भी रुक के दो चार फोटोज खींचा डाली. मुनस्यारी पहुंचते पहुंचते पंचाचूली की शिखाओं ने ऐसा जादू बिखेरा की मन के डर की जगह एक अलग ही आनंद और उत्साह ने ले ली. यहाँ कोरोना का ज्यादा असर नहीं दिख रहा था, या लोग कुछ ज्यादा ही बेफिक्र थे, पता नहीं. खैर वहां जाकर विजय माउंट व्यू रिसोर्ट मे रुकने का मन बनाया. लेकिन सच मे मुनस्यारी की सर्दी इतनी जानलेवा थी की रूम हीटर से भी कुछ असर नहीं पड़ रहा था. तब तो सच मे यही ख्याल आ रहे थे की अरे यार टनकपुर ही ठीक थे, क्या वहां से इतनी दूर ठन्डे मे आ गए. लेकिन जिस नंदिनी की वजह से मै आना नहीं चाह रही थी वो तो रजाई मे टिक ही नहीं रही थी. तीन साल का बच्चा ठण्ड झेल जा रहा था और यहाँ हम बड़ों की बैंड बजी हुई थी. शायद यहीं अंतर होता है बचपन और बुढ़ापे मे 😂. रात ही रात मे हम सबने खलिया टॉप ट्रैक पे जाने का प्लान बनाया. पर मेरी गाड़ी फिर वहीँ नंदिनी पे आके अटक गयी. चलिए खलिया टॉप गए या नहीं ये किसी और दिन बताएंगे. अभी तो मुनस्यारी ही घूम लीजिये हमारे साथ. नंदा देवी का सुन्दर, मनोरम मंदिर देखा, जो मंदिर से ज्यादा व्यू पॉइंट था हम लोगो के लिए और नंदिनी के लिए उसका पार्क. इतनी ऊंचाई पर माँ नंदा के मंदिर पहुंच के एक अलग ही लेवल का सुकून मिला.
मुनस्यारी मे हमने दो रातें बितायी. बेहद ठन्डे और जमा देने वाले मौसम मे घूमने मे क्या मजा है, ये बात तो कोई घुम्मकड़ ही समझ सकता है. तब तक आप फोटोज के जरिये ही घूमिये. लेकिन हाँ,,, जो तस्वीरें हमारी आँखों ने कैद करी हैं उसके लिए तो दुनिया मे कोई लेंस और कैमरा बना ही नहीं है आजतक...