सोमनाथ मंदिर [ गुजरात ]
11 -10-2019
आज सुबह हम वेरावल रेलवे स्टेशन पहुंचे। सुबह तकरीबन 6:30 बज रहे थे। जैसे हम स्टेशन से बाहर आए तो ओटो वालों की लाइन लगी हुई थी। जो सोमनाथ मंदिर जाने के लिए सवारी को अपने ओटो में बैठा रहे थे। हमने भी ओटो कर लिया। वेरावल रेलवे स्टेशन सोमनाथ का सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन है।
ओटो चल दिए सोमनाथ मंदिर की तरफ अभी ऑटो थोड़ा सा ही आगे बढ़ा था कि मछलियों की गंध आने लगी थोड़ा और आगे चलने के बाद में मछली की गंध अत्यधिक तेज हो गई समुद्र पास होने की कि वजह यहां पर मछली का व्यापार अत्यधिक होता है। जल्दी हम सोमनाथ मंदिर के पहुंच गए वहां जाकर हमने होटल लिया और नित्य कर्म करने के बाद चल दिए सोमनाथ मंदिर की तरफ होटल से मंदिर बिल्कुल नजदीक ही था तो हम पैदल ही चल दिये मंदिर के लिए मंदिर के बाहर ही क्लॉक रूम की सुविधा है जहां आप अपने मोबाइल कैमरे वगैरह रख सकते हैं। मंदिर में मोबाइल कैमरा ले जाना प्रतिबंध है इसलिए हमने अपने मोबाइल कैमरा क्लॉक रूप में जमा कर दिए।
सोमनाथ मंदिर
गुजरात प्रदेश के वेरावल बंदरगाह के पास प्रभास पाटन में स्थित, संसार भर में प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत, स्कन्द पुराण और ऋग्वेद में वर्णित है।दक्ष प्रजापति की 27 कन्याएं थीं। उन सभी का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था। किंतु चंद्रदेव का प्रेम उनमें से केवल रोहिणी के प्रति ही रहता था। उनके इस कृत्य से दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं बहुत दुःखी रहती थीं। उन्होंने अपनी यह व्यथा-कथा अपने पिता को सुनाई। दक्ष प्रजापति ने इसके लिए चंद्रदेव को अनेक प्रकार से समझाया। परंतु चंद्रदेव नहीं माने और गुस्से में आकर दक्ष प्रजापत उन्हें 'क्षयग्रस्त' हो जाने का शाप दे दिया। शाप से मुक्ति पाने कि लिए ब्रह्मा जी के कहने पर चंद्रदेव ने पवित्र प्रभासक्षेत्र में महादेव कि पूजा की जिससे वह शाप मुक्त हो गये। चंद्रमा का एक नाम सोम भी है उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहाँ तपस्या की थी।
अतः इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है इसके दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप नष्ट जाते हैं। वे भगवान् शिव और माता पार्वती की कृपा का पात्र बन जाते हैं। मोक्ष का मार्ग उनके लिए सहज ही सुलभ हो जाता है पश्चिम में अरब सागर के तट पर स्थित ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ महादेव मंदिर की छटा ही निराली है। मंदिर पर अनेक आक्रमण हुए कहते हैं कि सोमनाथ के मंदिर में शिवलिंग हवा में स्थित था। यह एक कौतुहल का विषय था। जानकारों के अनुसार यह वास्तुकला का एक नायाब नमूना था। इसका शिवलिंग चुम्बक की शक्ति से हवा में ही स्थित था। कहते हैं कि महमूद गजनबी इसे देखकर हतप्रभ रह गया था।
सर्वप्रथम इस मंदिर के उल्लेखानुसार ईसा के पूर्व यह अस्तित्व में था। इसी जगह पर द्वितीय बार मंदिर का पुनर्निर्माण 649 ईस्वी में वैल्लभी के मैत्रिक राजाओं ने किया। पहली बार इस मंदिर को 725 ईस्वी में सिन्ध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद ने तुड़वा दिया था। फिर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका पुनर्निर्माण करवाया।
इसके बाद महमूद गजनवी ने सन् 1024 में कुछ 5,000 साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी संपत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। तब मंदिर की रक्षा के लिए निहत्थे हजारों लोग मारे गए थे। ये वे लोग थे, जो पूजा कर रहे थे या मंदिर के अंदर दर्शन लाभ ले रहे थे और जो गांव के लोग मंदिर की रक्षा के लिए निहत्थे ही दौड़ पड़े थे।
महमूद के मंदिर तोड़ने और लूटने के बाद गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। 1093 में सिद्धराज जयसिंह ने भी मंदिर निर्माण में सहयोग दिया। 1168 में विजयेश्वर कुमारपाल और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मंदिर के सौन्दर्यीकरण में योगदान किया था।
सन् 1297 में जब दिल्ली सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने गुजरात पर हमला किया तो उसने सोमनाथ मंदिर को दुबारा तोड़ दिया और सारी धन-संपदा लूटकर ले गया। मंदिर को फिर से हिन्दू राजाओं ने बनवाया। लेकिन सन् 1395 में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह ने मंदिर को फिर से तुड़वाकर सारा चढ़ावा लूट लिया। इसके बाद 1412 में उसके पुत्र अहमद शाह ने भी यही किया।
बाद में मुस्लिम क्रूर बादशाह औरंगजेब के काल में सोमनाथ मंदिर को दो बार तोड़ा गया- पहली बार 1665 ईस्वी में और दूसरी बार 1706 ईस्वी में। 1665 में मंदिर तुड़वाने के बाद जब औरंगजेब ने देखा कि हिन्दू उस स्थान पर अभी भी पूजा-अर्चना करने आते हैं। तो उसने वहां एक सैन्य टुकड़ी भेजकर कत्लेआम करवाया। जब भारत का एक बड़ा हिस्सा मराठों के अधिकार में आ गया तब 1783 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई द्वारा मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा-अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव का एक और मंदिर बनवाया गया।
भारत की आजादी के बाद
सरदार वल्लभभाई पटेल ने समुद्र का जल लेकर नए मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया। उनके संकल्प के बाद 1950 में मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ। 6 बार टूटने के बाद 7वीं बार इस मंदिर को कैलाश महामेरू प्रासाद शैली में बनाया गया। इसके निर्माण कार्य से सरदार वल्लभभाई पटेल भी जुड़े रह चुके हैं। इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने बनवाया
हम चल दिए सोमनाथ महादेव के दर्शन करने के लिए मंदिर की अनोखी छटा देखकर हमारा मन प्रसन्न हो गया मंदिर कि सुंदरता देखते ही बनती है। मंदिर की सुंदरता का वर्णन शब्दों में करना बहुत ही मुश्किल है। सोमनाथ महादेव के दर्शन पूजा अर्चना करने के बाद हमने मंदिर के पीछे वाले हिस्से से समुंदर को निहारा जो काफी सुंदर लग रहा था। काफी देर रुकने के बाद हम मंदिर से बाहर आ गए बाहर आकर हमने चाय नाश्ता किया।
फिर हम चल दिए सोमनाथ के साईड सीन देखने के लिए सब साईड सीन पास में ही थे। परन्तु ओटो वाले ऐसे बताते हैं कि सब साइड सीन स दूर दूर है परन्तु वह सब पास में ही है जिन्हें आप पैदल भी चल कर देखा जा सकता है परन्तु क्या करें हम तो गलती कर चुके थे। जल्द ही ऑटो वाले ने थोड़ी दूर पर ओटो रोक दिया वहां एक समुंद्ररी तट था। जो देखने में तो अच्छा था लेकिन वहां गंदगी थी।
थोड़े देर में ही उसने ओटो पर रोक दिया बस उसके आसपास में सारे साइड सीन थे।
सारे साइड सीन देखने के बाद हम चल दिए है भालका तीर्थ की तरफ जिसके लिए हमने ऑटो कर लिया
भगवान कृष्ण ने भालका तीर्थ में त्यागी थी देह, तीर लगने से हुई थी मृत्यु सोमनाथ मंदिर से करीब 5 किलोमीटर दूर गुजरात के वेरावल में स्थित है जिसका नाम भालका तीर्थ स्थल है। मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में श्री कृष्ण नें अपनी का देह त्याग किया था। लोगों का मानना है कि भगवान कृष्ण यहां आने वालों की सभी मुरादें पूरी करते हैं। इस स्थान पर एक परपल का पेड़ भी है जो करीब 5 हजार साल पुराना है और अभी तक हरा-भरा है। यहां आने वाले लोग इस पेड़ की भी पूजा करते हैं।
लोक कथाओं के अनुसार महाभारत युद्ध खत्म होने के बाद 36 साल बाद तक यादव कुल मद में आ गए। आपस में लड़ने लगे। इसी कलह से परेशान होकर कृष्ण सोमनाथ मंदिर से करीब सात किलोमीटर दूर वैरावल की इस जगह पर विश्राम करने आ गए।
ध्यानमग्र मुद्दा में लेटे हुए थे तभी जरा नाम के भील को कुछ चमकता हुआ नजर आया। उसे लगा कि यह किसी मृग की आंख है और बस उस ओर तीर छोड़ दिया, जो सीधे कृष्ण के बाएं पैर में जा धंसा।
जब जरा करीब पहुंचा तो देखकर भगवान से इसकी माफी मांगने लगा। जिसे उसने मृग की आंख समझा था, वह कृष्ण के बाएं पैर का पदम था, जो चमक रहा था। भील जरा को समझाते हुए कृष्ण ने कहा कि क्यों व्यर्थ ही विलाप कर रहे हो, जो भी हुआ वो नियति है।
बाण लगने से घायल भगवान कृष्ण भालका से थोड़ी दूर पर स्थित हिरण नदी के किनारे पहुंचे। कहा जाता है कि उसी जगह पर भगवान पंचतत्व में ही विलीन हो गए। जब हम भालका तीर्थ पहुंचे तो वहां आरती हो रही थी। हम आरती में शामिल हो गए। मंदिर ज्यादा बड़ा नहीं है। मंदिर दर्शन के बाद हम चल दिए वापस अपने होटल
होटल पहुंचकर शाम 5:30 तक हमने विश्राम किया उसके बाद हम चल दिए सोमनाथ मंदिर की आरती में शामिल होने के लिए। वहां पहुंच कर पता चला कि पास में ही एक बीच है जो काफी सुंदर है जब हम वहां पहुंचे तो देखा वाक्य में ही बीच काफी सुंदर है वहां काफी भीड़ थी और ऊंट की सवारी भी हो रही थी हमने भी ऊंट की सवारी करी जिसमें काफी मजा आया।
ऊंट की सवारी करने के बाद हम जल्दी से चल दिए मंदिर की तरफ मंदिर कि आरती में शामिल होने मंदिर में काफी भीड़ थी दर्शन आरती के बाद हम चल दिए लाइट शो देखने के लिए परंतु वहां जाकर पता चला कि लाइट शो बंद है बारिश की वजह से रात को मंदिर काफी सुंदर लग रहा था रंग बिरंगी रोशनी के बीच में फिर हम आ के अपना होटल पर सो गए काफी थके होने की वजह से हमें जल्दी नींद आ गई।