ओरछा किला - भव्यता और दोस्ती का प्रतीक

Tripoto
Photo of ओरछा किला - भव्यता और दोस्ती का प्रतीक by Kalpana Srivastav

मध्य प्रदेश के झांसी जिले से लगभग 15 किलो मीटर दूर बेतवा नदी के पास एक शहर है जिसका नाम है ओरछा, जो अपने किलों और उससे जुड़े किस्सों के लिए मशहूर है। कारीगरों की कलाकारी हो या वास्तुकला, हजारों साल पहले बने ये किले आज भी अपनी और बुंदेल राजवंश की भव्यता और सुंदरता के लिए जाने जाते है। यहां के हर महल के साथ जुडी है एक दिलचस्प कहानी।

अपने पिछ्ले ब्लॉग में मैंने राय प्रवीण और उनके महल की रोचक जानकारी दी थी।

आज बात करते हैं ओरछा किले की। ओरछा का किला मुख्यतः दो भागों में है। एक राजा महल या राजा का महल दूसरा जहाँगीर महल।

राजा महल जिसे ओरछा के सबसे प्राचीन स्मारकों में से एक माना जाता है। इस भव्य किले का निर्माण वर्ष 1501 ई. में राजा रुद्र प्रताप सिंह ने शुरू करवाया था। इसके बाद जिसने भी ओरछा पर शासन किया उसने इस किले की सुन्दरता को बढाने में अपना पूरा सहयोग दिया। अन्त में राजा मधुरकर सिंह ने इस किले का काम पूरा किया। बुंदेला शाशन के अन्त तक राजा रानियों ने इसी महल में निवास किया। बहु-मंजिला ये किला बाहर से जितना साधारण दिखता है, अंदर से बहुत ही खूबसूरत और विशाल हैं। महल के आंतरिक कक्ष को देवताओं (खासकर भगवान विष्णु के सभी अवतार), पौराणिक जानवरों और लोगों के सामाजिक और धार्मिक विषयों के भित्ति चित्रों से सजाया गया है। चित्रों में भरे रंग आज भी स्पष्ट दिखाई देते है। इस महल की खास बात ये है कि ये मौसम के अनुसार अन्दर के तापमान को बनाये रखता है।

अन्दर चलें ?

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किले के अन्दर

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एक कोना ये भी....

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झरोके

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झरोके

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रंग बिरंगी

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एक रंग ये भी

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बातें छोड़ो...ऊपर छत्त देखो...

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यहां से वहां तक

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पीछे की नक्काशी देखिये

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भित्ति चित्र

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विष्णु अवतार

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जीवन शैली

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👌🏻

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वास्तुकला

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जहाँगीर महल, इस किले का सबसे खूबसूरत हिस्सा है। 1605 ई. में बीर सिंह देव ने यह महल मुगल सम्राट जहाँगीर के सम्मान में बनवाया था। लगभग सौ कमरों का ये महल भारतीय और मुगल वास्तुकला शैली का अद्भूत मिश्रण है। जिसमें महराबदार कमरे, रंगमंच, जाली वाली खिड़कियां, चित्र, और एक छोटा-सा पुरातात्विक संग्रहालय भी मौजूद है। वनस्पति रंगों से दीवारों और छत पर बेहतरीन चित्रकारी की गई हैं। इस महल को 'one night palace' भी कहते है क्योंकि बादशाह जहाँगीर इस महल में सिर्फ 1 रात के लिए रुके थे। यह महल बीर सिंह देव और जहाँगीर की दोस्ती का प्रतीक भी है। इसके प्रवेश द्वार पर पत्थर से बने दो हाथी वास्तुकला का नायाब नमूना है।

छत्तरीयां

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महल का आँगन

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लगभग सौ कमरों का जहाँगीर महल

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वास्तुकला

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महल की भव्यता

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छ त्त री

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महल का

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कारीगरी

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जालीदार झरोके

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छत्त पे छत्तरीयां

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जहाँगीर महल का पृष्ठ भाग

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विशाल दरवाज़ा और दोनों तरफ पत्थर के हाथी

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नायाब कारीगरी

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बाहर से

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महल के चारों ओर

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पलाश के फूलों से लदे पेड़

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पलाश

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चलते चलते

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एक ही रास्ता 🙂

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पलाश

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फूल खिले हैं डाली डाली

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ओरछा जाने के लिये अक्टूबर से मार्च तक का समय सबसे उत्तम है। दशहरे के समय यहां की रौनक अलग ही होती हैं क्योंकि यह शहर भगवान राम के राज्य के रुप में भी जाना जाता है। त्योहारों की गर्मी और सर्दी का मौसम यहां की रौनक को चार चांद लगा देता है। अत्यधिक तापमान होने के कारण गर्मियों मे यहां आने से बचना चाहिये। महलों की इस नगरी में आपको रुकने के लिये फाईव स्टार से लेकर साधरण होटल और खूबसूरत रिसोर्ट भी मिलेंगे। शीश महल, जो राजा उदित सिंह के लिए बनाया गया था और एक शाही आवास था। इसे अब एक होटल में तब्दील कर दिया गया है। इस भवन के भव्यता अतिथि को रॉयल्टी का एहसास दिलाते हैं।

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