
महान चमत्कारिक और रहस्यमयी गुरु गोरखनाथ को गोरक्षनाथ भी कहा जाता है। इनके नाम पर एक नगर का नाम गोरखपुर और एक जाति का नाम गोरखा है। गोरखपुर में ही गुरु गोरखनाथ समाधि स्थल है। यहां दुनियाभर के नाथ संप्रदाय और गोरखनाथजी के भक्त उनकी समाधि पर माथा टेकने आते हैं। इस समाधि मंदिर के ही महंत अर्थात प्रमुख साधु है महंत आदित्यनाथ योगी।



गोरखनाथ मंदिर का निर्माण :-
गोरक्षनाथ मंदिर गोरखपुर में अनवरत योग साधना का क्रम प्राचीन काल से चलता रहा है। ज्वालादेवी के स्थान से परिभ्रमण करते हुए 'गोरक्षनाथ जी' ने आकर भगवती राप्ती के तटवर्ती क्षेत्र में तपस्या की थी और उसी स्थान पर अपनी दिव्य समाधि लगाई थी, जहाँ वर्तमान में 'श्री गोरखनाथ मंदिर (श्री गोरक्षनाथ मंदिर)' स्थित है।यह मंदिर सफेद संगमरमर का बना हुआ है। भगवान की भी सफेद संगमरमर की प्रतिमा मंदिर में स्थापित है।
क़रीब 52 एकड़ के सुविस्तृत क्षेत्र में स्थित इस मंदिर का रूप व आकार-प्रकार परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर बदलता रहा है। वर्तमान में गोरक्षनाथ मंदिर की भव्यता और पवित्र रमणीयता अत्यन्त कीमती आध्यात्मिक सम्पत्ति है। इसके भव्य व गौरवपूर्ण निर्माण का श्रेय महिमाशाली व भारतीय संस्कृति के कर्णधार योगिराज महंत दिग्विजयनाथ जी व उनके सुयोग्य शिष्य वर्तमान में गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ जी महाराज को है, जिनके श्रद्धास्पद प्रयास से भारतीय वास्तुकला के क्षेत्र में मौलिक इस मंदिर का निर्माण हुआ।
बाबा गोरक्षनाथ ने त्रेता युग में तपस्या की थी। ज्वाला देवी के स्थान से खिचड़ी की भिक्षा मांगते हुए वह गोरखपुर के अचिरावती नदी (राप्ती) पहुंचे थे। यहां वह साधना में लीन हो गए। उनके नाम पर ही इस शहर का नाम गोरखनाथ पड़ा।





गुरु गोरखनाथ का जन्म :-
गोरक्षनाथ के जन्मकाल पर विद्वानों में मतभेद हैं। राहुल सांकृत्यायन इनका जन्मकाल 845 ई. की 13वीं सदी का मानते हैं। गुरु गोरखनाथ के जन्म के विषय में प्रचलित है कि एक बार भिक्षाटन के क्रम में गुरु मत्स्येन्द्रनाथ किसी गांव में गए। किसी एक घर में भिक्षा के लिए आवाज लगाने पर गृह स्वामिनी ने भिक्षा देकर आशीर्वाद स्वरूप पुत्र की याचना की। गुरु मत्स्येन्द्रनाथ सिद्ध तो थे ही। अतः गृह स्वामिनी की याचना स्वीकार करते हुए उन्होंने एक चुटकी भर भभूत देते हुए कहा कि इसका सेवन करने के बाद यथासमय वे माता बनेंगी। उनके एक महा तेजस्वी पुत्र होगा जिसकी ख्याति चारों और फैलेगी।
आशीर्वाद देकर गुरु मत्स्येन्द्रनाथ अपने भ्रमण क्रम में आगे बढ़ गए। बारह वर्ष बीतने के बाद गुरु मत्स्येन्द्रनाथ उसी ग्राम में पुनः आए। कुछ भी नहीं बदला था। गांव वैसा ही था। गुरु का भिक्षाटन का क्रम अब भी जारी था। जिस गृह स्वामिनी को अपनी पिछली यात्रा में गुरु ने आशीर्वाद दिया था, उसके घर के पास आने पर गुरु को बालक का स्मरण हो आया। उन्होंने घर में आवाज लगाई। वही गृह स्वामिनी पुनः भिक्षा देने के लिए प्रस्तुत हुई। गुरु ने बालक के विषय में पूछा।गृहस्वामिनी कुछ देर तो चुप रही, परंतु सच बताने के अलावा उपाय न था। उसने तनिक लज्जा, थोड़े संकोच के साथ सब कुछ सच सच बतला दिया। उसने कहा कि आप से भभूत लेने के बाद पास-पड़ोस की स्त्रियों ने राह चलते ऐसे किसी साधु पर विश्वास करने के लिए उसकी खूब खिल्ली उड़ाई। उनकी बातों में आकर मैंने वह भभूत को पास के गोबर से भरे गड्डे में फेंक दिया था। गुरु मत्स्येन्द्रनाथ तो सिद्ध महात्मा थे। उन्होंने अपने ध्यानबल देखा और वे तुरंत ही गोबर के गड्डे के पास गए और उन्होंने बालक को पुकारा। उनके बुलावे पर एक बारह वर्ष का तीखे नाक नक्श, उच्च ललाट एवं आकर्षण की प्रतिमूर्ति स्वस्थ बच्चा गुरु के सामने आ खड़ा हुआ। गुरु मत्स्येन्द्रनाथ बच्चे को लेकर चले गए। यही बच्चा आगे चलकर गुरु गोरखनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) थे।






त्रेतायुग के समय से यहाँ जल रही ज्योति, कभी नहीं सूखता सरोवर का जल:-
मंदिर में त्रेतायुग के समय से जल रही अखंड धूना और ज्योति आज तक नहीं बुझी। यह अखंड ज्योति श्री गोरखनाथ मंदिर के अंतरवर्ती भाग में स्थित है।वहां मौजूद भीम सरोवर का जल भी कभी नहीं सूखता। मान्यता है कि इस सरोवर में सभी प्रमुख नदियों का पानी है। कहा जाता है कि पांडवों द्वारा किए जा रहे राजसूय यज्ञ का निमंत्रण लेकर महाबली भीमसेन यहां आए। बाबा को तपस्या में लीन देख वे यहां कुछ देर आराम करने लगे। वे जब जगे तो वहां एक सरोवर बन गया था।






मकर संक्रान्ति के मौके पर लगता है विशाल 'खिचड़ी मेला':-
प्रतिदिन मंदिर में भारत के सुदूर प्रांतों से आये पर्यटकों, यात्रियों और स्थानीय व पास- पड़ोस के असंख्य लोगों की भीड़ दर्शन के लिए आती है। मंगलवार को यहां दर्शनार्थियों की संख्या ख़ासी होती है। मंदिर में गोरखबानी की अनेक सबदियां संगमरमर की भित्ति पर अर्थ सहित जगह-जगह अंकित हैं और नवनाथों के चित्रों का अंकन भी मंदिर में भव्य तरीके से किया गया है। मकर संक्रान्ति के अवसर पर यहाँ विशाल मेला लगता है जो खिचड़ी मेला के नाम से प्रसिद्ध है।
कहा जाता है कि गुरु गोरखनाथ हिमाचल स्थित कांगड़ा में ज्चाला देवी के दरबार पहुंचे तो देवी ने उन्हें अपने वहां भोजन के लिए आमंत्रित किया। तब गुरु गोरखनाथ ने कहा कि देवी मैं योगी हूं। भिक्षाटन करके जो लेकर आता हूं, उसे ही बनाकर खाता हूं।उन्होंने आगे कहा कि यहां पर बलि दी जाती है। यहां पर वह भोजन नहीं कर सकता हूं। आप पानी गरम कीजिए मैं खिचड़ी मांग कर लाता हूं। यह कह कर गुरु गोरखनाथ वहां से निकले और चलते हुए यहां आ गए, यहां पर उस समय चारों तरफ जंगल था। गुरु गोरखनाथ ने यहां पर धूनी रमा दी।



शैक्षिक व सामाजिक महत्त्व :-
मंदिर प्रांगण में ही गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ है। इसमें विद्यार्थियों के लिए नि:शुल्क आवास, भोजन व अध्ययन की उत्तम व्यवस्था है। गोरखनाथ मंदिर की ओर से एक आयुर्वेद महाविद्यालय व धर्मार्थ चिकित्सालय की स्थापना की गयी है। गोरक्षनाथ मंदिर के ही तत्वावधान में 'महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद्' की स्थापना की गयी है। परिषद् की ओर से बालकों का छात्रावास प्रताप आश्रम, महाराणा प्रताप, मीराबाई महिला छात्रावास, महाराणा प्रताप इण्टर कालेज, महंत दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय, महाराणा प्रताप शिशु शिक्षा विहार आदि दो दर्जन से अधिक शिक्षण-प्रशिक्षण और प्राविधिक संस्थाएं गोरखपुर नगर, जनपद और महराजगंज जनपद में स्थापित हैं।
गोरखनाथ मंदिर में लेजर लाइट और साउंड शो है मुख्य आकर्षण:-
मंदिर परिसर में लगे लेजर लाइट और साउंड शो ने इस मंदिर की शोभा में चार चांद लगा दिए हैं। । मंदिर के अंदर कृत्रिम झील बनाई गई है, विशेष वाटर स्क्रीन के साथ इसमें साउंड और लेजर प्रोजेक्टर के साथ वॉटर शो दिखाया जा रहा है। इस खास म्यूजिक और लाइट शो के जरिए गोरखपुर शहर के बसने की कहानी दिखाई जा रही है। इस लेजर लाइट साउंड शो में आप महाभारत में वॉइस ओवर करने वाले दिग्गज कलाकार हरीश भिमानी की आवाज सुनाई पड़ रही है। हरीश ने धारावाहिक महाभारत में सूत्रधार 'समय' को आवाज दी थी। 'मैं समय हूं' से वॉइस ओवर शुरू करने वाले हरीश भिमाने देश भर में सबसे ज्यादा मशहूर आवाज के रूप में जाने जाते हैं। इस शो को देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं।इस शो को एक साथ 300 लोग बैठ कर देख सकते हैं।शो की अवधि 40 मिनट की है।30 फीट के वॉटर स्क्रीन पर यह शो दिखाया जाता है।







