भारत दुनिया के उन खास देशों में शुमार है, जिसका इतिहास बेहद समर्द्ध रहा है। इस खूबसूरत देश में कई सालों तक कई महान राजवंशों के कई शक्तिशाली शासकों द्वारा शासन किया गया है। इसमें कोई शक नहीं कि, भारत के इतिहास को अगर ध्यान से देखा जाये तो आपके लिए कई कहानियां गढ़ते हैं, जिनसे आप अपने देश भारत की महानता और गौरव को समझते हैं।
इन्ही में से एक हैं चुनार, जिसका इतिहास बेहद समर्द्ध रहा है। यह किला मिर्जापुर के चुनार में स्थित है। एक समय इस किले को हिंदू शक्ति का केंद्र माना जाता था। यह किला लगभग 5 हजार वर्षों का इतिहास सहेजे हुए है। जिस पहाड़ी पर यह किला स्थित है उसकी बनावट मानव के पांव के आकार की है। इसलिए इसे चरणाद्रिगढ़ के नाम से भी जाना जाता है। बताया जाता है कि चुनार किले का इतिहास महाभारत काल से भी पुराना है।
बताया जाता है कि इस किले पर महाभारत काल के सम्राट काल्यवन, पूरी दुनिया पर राज करने वाले उज्जैन के प्रतापि सम्राट विक्रमादित्य, हिन्दु धर्म के अन्तिम सम्राट पृथ्वीराज चौहान से लेकर सम्राट अकबर और शेरसाह सुरी जैसे शासकों ने शासन किया है। यह किला कितना पुराना है उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके निर्माण काल का किसी को पता नहीं है। कोई नहीं जनता कि इस किले का निर्माण किस शासक ने कराया है। इतिहासकार बताते हैं कि महाभारत काल में इस पहाड़ी पर सम्राट काल्यवन का कारागार था
ऐसी भी कहानियां हैं जिसमें ये कहा गया है कि सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भाई राजा भतृहरि ने राजपाठ त्याग करने के बाद इसी पहाड़ी पर तपस्या की थी। राजा भतृहरि गुरु गोरखनाथ के शिष्य थे। राजा भतृहरि अपने गुरु गोरखनाथ से ज्ञान लेकर चुनारगढ़ आए और यहां तपस्या करने लगे। उस समय इस स्थान पर घना जंगल हुआ करता था। जंगल में हिंसक जंगली जानवर रहते थे। राजा भतृहरि के भाई सम्राट विक्रमादित्य ने योगीराज भतृहरी कि रक्षा के लिए इस पहाड़ी पर एक किले का निर्माण कराया ताकी उनके भाई भतृहरि की जंगली जानवरों से रक्षा की जा सके। दुर्ग में आज भी उनकी समाधि बनी हुई है। ऐसा माना जाता है कि योगीराज भतृहरी कि आत्मा आज भी इस पर्वत पर विराजमान है। हालांकि तमाम इतिहासकार इसे मान्यता नहीं देते हैं पर मिर्जापुर गजेटियर में इसका उल्लेख किया गया है।
कहा जाता है कि इस पर्वत पर कई तपस्वियों ने तप किए। यह पर्वत (किला) भगवान बुद्ध के चातुर्मास नैना योगीनी के योग का भी गवाह है। नैना योगीनी के कारण ही इसका एक नाम नैनागढ़ भी है। चुनारगढ़ के किले पर कई शासकों ने शासन किए। शेरशाह सूरी ने 1530 ई. में चुनार के किलेदार ताज खां की विधवा ‘लाड मलिका’से विवाह करके चुनार के शाक्तिशाली किले पर अधिकार कर लिया था।
1532 ई. में मुगल बादशाह हुमायूं इस किले पर कब्जा करने की कोशिश की। हुमायूं ने इस किले को चार महीने तक घेर कर रखा लेकिन उसके सफलता हाथ नहीं लगी। हुमायूं को मजबूरन शेरशाह से संधि करनी पड़ी और उसके इस किले को शेरशाह के पास ही रहने दिया। लेकिन बाद में हुमायूं ने अपने तोपों के दम पर धोखेबाजी से इस किले पर कब्जा जमा लिया। 1561ई. में अकबर ने चुनार को अफगानों से जीता और इसके बाद यह दुर्ग मुगल साम्राज्य का पूर्व में रक्षक दुर्ग बन गया। इस किलें को बिहार और बंगाल का गेट माना जाता था। तब से ले कर 1772 ई. तक चुनार किला मुग़ल सल्तनत के अधीन रहा। जिसके बाद मुगलों से ईस्ट इण्डिया कंपनी ने यह किला जीता लिया, उसके बाद से इस किले पर अग्रेंजो का कब्ज़ा हो गया। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस किले के निर्माण से लेकर अंग्रेजों के किलें पर कब्जे तक करीब 17 या 18 राजाओं नें इस किले पर राज किया। वर्तमान समय में
चंद्रकांता से नाता -
देवकी नंदन खत्री के उपन्यास पर आधारित 'चंद्रकांता' शो जब दूरदर्शन पर आता था, तो हर रविवार इसका बेसब्री से इंतजार किया जाता था। नौगढ़ और विजयगढ़ की फंतासी दुनिया वाली इस कहानी में आपने चुनारगढ़ का जिक्र भी सुना होगा। चुनारगढ़ का किला सिर्फ चंद्रकांता के लिए ही नहीं बल्कि कई और वजहों से भी कौतुहल का विषय रहा है।
ये हैं यहां के मुख्य आकर्षण
भर्तृहरि समाधि- यह महाराजा विक्रमादित्य के भाई भर्तृहरि का समाधि स्थल है। इसी के पास एक सुरंग भी है।
सोनवा मंडप- रानी का यह महल अपने गोल आकार, पानी के टैंक आदि के लिए प्रसिद्ध है। माना जाता है कि पुराने समय में इसमें सोना भरा हुआ था।
भवन खंबों की छतरी-यह एक खुला पैवेलियन है, जिसमें 52 खंबे बने हुए हैं। ये खंबे 52 राजाओं की याद में बने हुए हैं।
किला देखने का समय-
यह किला हर रोज सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है। अगर आप सुबह-सुबह यहां आ जाएं तो इत्मीनान से यहां के इतिहास के बारे में जानकारी लेते हुए यहां घूम सकती हैं।
किला देखने का बेस्ट टाइम-
अक्टूबर से मार्च के बीच इस किले को देखने में ज्यादा मजा आता है। यानी सर्दियों की गुनगुनी धूप में इस किले में घूमना आपको ज्यादा रास आएगा।
एंट्री फीस-
इस महल को घूमने के लिए किसी तरह की एंट्री फीस नहीं लगतीं। यहां आना पूरी तरह से फ्री है।
कैसे पहुंचे चुनारगढ़-
हवाई यात्रा - अगर आप फ्लाइट के जरिए यहां आना चाहती हैं तो यहां का नजदीकी हवाईअड्डा वाराणसी का लाल बहादुर शास्त्री हवाईअड्डा है।
रेल यात्रा - चुनार दूसरे बड़े शहरों से कनेक्टेड है। यहां आने के लिए कई ट्रेनें चलती हैं।
रोड - चुनार वाराणसी से 40 किमी दूर है, मिर्जापुर से 40 किमी दूर है और इलाहाबाद से 130 किमी दूर है।