राय प्रवीण बुंदेल साम्राज्य की सबसे खूबसूरत नृत्यांगना। जिसे पारंपरिक नृत्य का बहुत अच्छा ज्ञान था। वह एक उच्च प्रतिभा की गायिका होने के साथ संगीतकार भी थी। यही वजह है कि उसकी खूबसूरती और अदाकरी की चर्चा पड़ोस के सभी राज्यों में थीं। बादशाह अकबर ने जब राय प्रवीण की खूबसूरती के बारे में सुना तो ये जानते हुए की राय प्रवीण ओरछा के राजकुमार की प्रेमिका है। अकबर ने राय प्रवीण को अपने दरबार में आने का फरमान जारी कर दिया। बादशाह का हुक्म था इसलिये कोई मना भी नही कर पाया, राय प्रवीण भी नही। वह बादशाह के दरबार गई और बहुत ही समझदारी से बातों बातों में उसने अकबर को एक दोहा सुनाया। जो राय प्रवीण की निर्भीकता और बुद्धिमत्ता का परिचय देती है।
“विनित राय प्रवीण की, सुनिये सो सुजान।
जुथि पातर भक्त हैं, बारी, ब्यास, हंस ”
इस दोहे का सीधा सा अर्थ है कि बादशाह क्या आप बुन्देल राजा की झूठन खाना पसन्द करोगे? झुठी पत्तल एक नौकर, कौआ या कुत्ता ही चाटता है।
बादशाह अकबर दोहे का अर्थ समझ गये। राय प्रवीण के इस सवाल ने अकबर को शर्मसार कर दिया था। अकबर के पास राय प्रवीण को वापिस भेजने के अलावा कोई मार्ग नहीं था। अकबर ने राय प्रवीण को सम्मान के साथ वापिस ओरछा भिजवा दिया।
यूँ तो ओरछा विख्यात है अपने राजा राम की सरकार के लिये, जहाँ भगवान राम को भगवान की तरह नही एक राजा या सरकार की तरह सम्मानित किया जाता है। दूसरा ओरछा अपने विशाल महलों और अपने वास्तुकला, शिल्पकला लिये जाना जाता है। और तीसरा जिसे बहुत कम लोग जानते अधूरी प्रेम कहानी के लिये, एक राजकुमार और उसकी नृत्यांगना प्रेयसी की कहानी, राजकुमार इंद्रजीत सिंह और राय प्रवीण की कहानी जो आज भी यहां मिसाल मानी जाती है।
सोलहवीं शताब्दी में ओरछा बड़ा और समृध्दि राज्य था। यहां के राजा के तीन पुत्रों में से एक थे इंद्रजीत सिंह। राजकुमार इंद्रजीत सिंह को कछुआ जागीर दी गई थी। एक बार राजकुमार इंद्रजीत अपनी जागीर में घूम रहे थे तब उसने एक 10-12 साल की लड़की पुनिया को नृत्य कर भजन गाते हुए सुना। राजकुमार ने पुनिया के पिता माधव से बेटी को शिक्षा दिलाने को कहा तो माधव ने गरीबी का वास्ता दिया। तब राजकुमार ने महल में ही पुनिया की शिक्षा का प्रबंध करवाया। यह खबर आग की तरह फैल गई कि गरीब पुनिया महल में संगीत-नृत्य की शिक्षा ले रही है। शिक्षा की जिम्मेदारी राज्य के प्रसिद्ध कवि केशवदास को सौंपी गई। पुनिया नृत्य-गायन में कुछ साल में ही निपुण हो गयी। राय प्रवीण बहुत अच्छी कवित्री भी थी। राजकुमार ने उसका नाम बदल कर राय प्रवीण रख दिया। राय प्रवीण बेहद सुन्दर थी। राजकुमार को उससे प्रेम हो गया। दोनो के प्रेम के किस्से और राय प्रवीण की खूबसूरती की चर्चा दूसरे राज्यों से होती हुई बादशाह अकबर तक भी पहुंच गई। तभी अकबर ने राय प्रवीण को अपने महल में बुलवा भेजा था।
राजकुमार इन्द्राजीत सिंह ने बेतवा नदी के पास राय प्रवीण के लिये तीन मंजिला महल बनवाया। महल के सामने काफ़ी बडा बगीचा बनाया गया है। घनी झाडियों और फूलों से महल घिरा हुआ है।
दूसरी मंजिल को भारतीय नृत्य की मुद्राओं से सजाया गया है। राजकुमार यहाँ राय प्रवीण का नाच-गाना सुनने आते थे। महल के अन्दर कई भित्ति चित्र है। जो यह दर्शाते है राय प्रवीण कैसी दिखती थी। महल में राजकुमार और नृत्य करती राय प्रवीण के बने चित्र इस प्रेम कहानी को जीवंत बनाए हुए हैं। राजकुमार ने राय प्रवीण से बेहिसाब प्रेम किया, लेकिन शाही परिवार से जुड़े होने के कारण चाहकर भी वह शादी नहीं कर सके। इसी दुख में राय प्रवीण सती हो गई। राजकुमार पागलों की तरह राय प्रवीण के लिए रोते रहे और इसी गम में राजकुमार ने भी एक साल में ही अपने भी प्राण त्याग दिए। ओरछा का ये महल राय प्रवीण और राजकुमार इन्द्राजीत की प्रेम कहानी का गवाह है।
यह कहानी ओरछा के इतिहास की सबसे सशक्त कहानियों में से एक है। ओरछावासी राय प्रवीण का नाम बहुत आदर और सम्मान से लेते है क्योंकि यही वो खूबसूरत और समझदार युवती थी जिसने बादशाह अकबर से बिना डरे सवाल किया था। अब इस कहानी पर एक हिन्दी फिल्म भी बनने जा रही है।