
आप सभी ने पहाड़ों की खूबसूरती ज्यादातर उत्तराखंड या हिमाचल प्रदेश में देखी होगी। पहाड़ी इलाकों का नाम लेते ही केवल शिमला मनाली ही याद आते हैं। लेकिन हम आप को बताना चाहेंगे कि पहाड़ की सुंदरता आपको केवल यहीं नहीं बल्कि झारखंड में इससे ज्यादा देखने को मिलेगी। झारखंड एक बेहद ही खूबसूरत राज्य है लेकिन ज्यादा लोगों को इस राज्य की खूबसूरती के बारे में नहीं पता है, लेकिन इस लेख में आज हम आपको झारखंड की सैर कराएंगे।
(इस जगह के कुछ फोटो गूगल से लिए गए हैं)
झारखंड में एक जगह है नेतरहाट। इस जगह के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। नेतरहाट में आदिवासियों की संख्या ज्यादा है और इसके अधिकतर हिस्से में घने जंगल का फैलाव है। इस घने जंगल में आपको साल, सागवान, सखुआ और बांस के पेड़ ज्यादा मिलेंगे। यहां की जो भाषा है उसमें नेतरहाट का मतलब होता है बांस का बाजार। बांस के पेड़ के बारे में तो आप जानते ही होंगे यह लंबे खुशबूदार पेड़ होते हैं। कहते हैं कि इस जगह को प्रकृति ने बहुत ही खूबसूरत ढंग से संवारा है। यह समुद्र सतह से 3622 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।



ये ट्रिप का पूरा श्रेय हमारे भाई अनुपम नाग को जाता हैं।प्लानिंग से ले कर ट्रिप की पूरी जिम्मेदारी अनुपम नाग की थी जिसे उन्होंने बखूबी निभाया।

हम लोगो निकल चुके थे एक ऐसे सफर में जिसे शब्दों में वर्णन कर पाना थोड़ा मुश्किल सा है ।आप लोग 'रॉय मूवी' तो नहीं देखी होगी परन्तु उसमे एक गाना है ''तू है कि नहीं" यथार्थ वैसे ही था।मौसम बादलो वाला जिसमे धुप की कोई किरण नहीं थी, पेड़ो से घिरी हुई सड़क बिलकुल वैसे ही जैसे उस गाने में दिखाया गया था।




इतनी लम्बी और सुन्दर बाइक ट्रिप इससे पहले मैंने कभी अनुभव नहीं किया था । आगे चल के जंगल का घनत्व बढ़ता चला गया, पलास के लम्बे-लम्बे पेड़ों ने नजारों को रूमानी बना दिया, ये पलास के पेड़ ही तो झारखण्ड की शान हैं। ऐसा लगता है की किसी ने इन्हें कतारबद्ध तरीके से लगे हो। साथ ही बांस की झाड़ियों ने भी एक खूबसूरत समां बाँधने में कोई कसर न छोड़ी। सर्वत्र हरियाली! कुछ समय बाद ये रास्ते पहाड़ियों पर चढ़ने लगे, बिल्कुल हिमालयी रास्तों की तरह घुमावदार-वक्रदार, विश्वास ही नहीं हुआ की ये झारखण्ड है। फर्क सिर्फ इतना की हिमालय की तरह इनमें बर्फ नहीं है। हालाकिं झारखण्ड के ये पठारी हिस्से भूस्खलन या लैंडस्लाइड के जोखिम से काफी सुरक्षित हैं। इन टेढ़े-मेढ़े डगर पर लगभग एक घंटे का सफ़र तय करने के बाद 3700 फीट की ऊंचाई पर बसा नेतरहाट आ गया।





नेतरहाट शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजी के नेचर्स हार्ट या Nature’s Heart शब्द से हुई है, जो अंग्रेजों द्वारा दिया गया था। बाद में स्थानीय लोगों ने इस नाम का अपभ्रंश बना कर ‘नेतरहाट’ कर दिया। एक हिल स्टेशन होने से भी ज्यादा नेतरहाट को जिस कारण प्रसिद्धि मिली, वो है नेतरहाट आवासीय स्कूल। राज्य सरकार द्वारा चलाये जा रहे इस स्कूल से प्रतिवर्ष अनेक टॉपर निकलते है।


नेतरहाट की वादियां धरती पर स्वर्ग देखने का एहसास दिलाती है। एक बार जो नेतरहाट चला गया, वह नेतरहाट को जिंदगी भर नहीं भूल सकता। मैगनोलिया प्वाइंट, नासपाती बगान, अपर घघरी, लोअर फॉल, शैले हाउस, पलामू बंगला, नेतरहाट स्कूल आदि की सुंदरता नेतरहाट की खूबसूरती में चार चांद लगा देती है।
वहीं, यहां से ऊंची-ऊंची चोटियों व खाइयों से विहंगम दृश्यों की सुंदरता देखते ही बनती है। यहां की वादियों में चलने वाली ठंडी हवा मन के तार को बरबस ही छेड़ने लगती है।






इसी बीच हम लोग नेतरहाट पहुंच कर सबसे पहले होटल में एक बड़ा सा रूम लिया जिसमे सारे लोग आ गए। हम लोगो ने वहा खाना खाया और अपर घघरी फॉल के लिए निकल गए जो की पास था ।वाटर फॉल में पानी कम होने की वजह से हमे ज्यादा आनंद नहीं आया और हम लोग वहाँ से मैगनोलिया प्वाइंट की ओर रवाना हुए ।

नेतरहाट की इन खूबसूरत नजारों के अलावा यहां एक अंग्रेज ऑफिसर की बेटी व नेतरहाट के चरवाहे की अधूरी प्रेम कहानी का जीता-जागता उदाहरण है। नेतरहाट में एक अंग्रेज अधिकारी की बेटी व चरवाहे की प्रतिमा स्थापित है, जो दोनों की प्रेम कहानी की गवाही देती है। बताते है कि एक अंग्रेज ऑफिसर को नेतरहाट बहुत पसंद था। वह सपरिवार नेतरहाट घूमने आया और वहीं रहने लगा। उसकी एक बेटी थी। उसका नाम मैगनोलिया था ।
नेतरहाट गांव में ही एक चरवाहा था, जो सनसेट प्वाइंट के पास प्रतिदिन आता था ।अपने मवेशियों को चराता था. मवेशी चराने के दौरान वह सनसेट प्वाइंट पर बैठ जाता था। इसके बाद वह मधुर स्वर में बांसुरी बजाता था। इसकी चर्चा आसपास के कई गांवों में होती थी।



नेतरहाट की इन खूबसूरत नजारों के अलावा यहां एक अंग्रेज ऑफिसर की बेटी व नेतरहाट के चरवाहे की अधूरी प्रेम कहानी का जीता-जागता उदाहरण है। नेतरहाट में एक अंग्रेज अधिकारी की बेटी व चरवाहे की प्रतिमा स्थापित है, जो दोनों की प्रेम कहानी की गवाही देती है। बताते है कि एक अंग्रेज ऑफिसर को नेतरहाट बहुत पसंद था। वह सपरिवार नेतरहाट घूमने आया और वहीं रहने लगा। उसकी एक बेटी थी। उसका नाम मैगनोलिया था
चरवाहे की बांसुरी की मधुर आवाज ने मैगनोलिया के दिल को छू लिया। मन ही मन वह बांसुरी बजाने वाले से प्रेम करने लगी। उसकी दीवानगी में मैगनोलिया भी सनसेट प्वाइंट के पास आने लगी। फिर दोनों धीरे-धीरे घुल-मिल गये। मैगनोलिया घर से भाग कर हर दिन सनसेट प्वाइंट के पास चली जाती। यहां चरवाहा उसे बांसुरी बजा कर सुनाता था। कुछ दिनों बाद इसकी जानकारी मैगनोलिया के पिता अंग्रेज ऑफिसर को हो गयी। अंग्रेज अधिकारी आग बबूला हो गया। पहले तो अंग्रेज अधिकारी ने चरवाहा को समझाया। उसे मैगनोलिया से दूर रहने की नसीहत दी। लेकिन, प्यार में डूबे चरवाहा ने मैगनोलिया से दूर जाने से मना कर दिया। गुस्से में आकर अंग्रेज अधिकारी ने चरवाहा की हत्या करवा दी। इसकी जानकारी मैगनोलिया को हुई, तो वह रो पड़ी। उसका दिल बार-बार चरवाहे को खोजता रहा. चरवाहे की मौत से आहत मैगनोलिया घोड़े के साथ सनसेट प्वाइंट के पास पहुंची और घोड़ा सहित पहाड़ से कूद गयी। उसकी मौत हो गयी।
नेतरहाट में वह पत्थर आज भी मौजूद है, जहां बैठकर चरवाहा बांसुरी बजाता था। प्रशासन ने इस स्थल को बेहद खूबसूरती से सजाया है। यहां मैगनोलिया व चरवाहे की प्रतिमा लगायी गयी है। महुआडांड़ के देवनंदन प्रसाद ने बताया कि अधूरी प्रेम कहानी का गवाह है, नेतरहाट का पहाड़। यहां भारत के कोने-कोने से लोग आते हैं ।
तो ये था पूरा इतिहास मैगनोलिया प्वाइंट का।

अगले सुबह जब हम लोग होटल से सनराइज पॉइंट के लिए निकलने वाले थे। उस समय रूम में चाय आया इतनी सुबह 5 बजे चाय का आना आश्चर्य की बात थी। सूर्योदय से पहले हल्की रौशनी थी, हम लोग बालकनी में खड़े होके चाय पी रहे थे जिससे हिल स्टेशन का फील आ रहा था। उसके बाद हम लोग सूर्योदय देखने के लिए पहुंचे। नेतरहाट में, यदि आप उगते सूरज का सबसे शानदार दृश्य का आनंद लेना चाहते हैं, तो आपको पर्यटक बंगला, होटल प्रभातविहार के सामने सनराइज पॉइंट पर होना चाहिए।


यह नेतरहाट बस स्टैंड से एक किमी की दूरी पर स्थित है। जैसा कि आप सूरज के साथ उस यादगार मुलाकात के लिए प्रत्याशा में प्रतीक्षा करते हैं, आप अचानक पहाड़ियों और पेड़ों को क्लीयर क्षितिज के खिलाफ अंधेरे छाया-आकृति के रूप में दिखाई देते हैं। आपके आस-पास की प्रकृति धीरे-धीरे एक लाल रंग की छटा में डूबी हुई है ।फिर जैसा कि आप जीवंत लाल रंग और नारंगी के गुजरते हुए रंगों को देखते हैं।

जब हम लोग सनराइज पॉइंट पर पहुंचे तब सूर्योदय नहीं हुआ था हम लोगो ने तक़रीबन 10 मिनट प्रतीक्षा किया । प्रतीक्षा करने के उपरांत सूर्योदय हुआ अब सुबह का रंग बदलने लगा था। सूरज के आसपास नारंगी रंग फैला था। एक के बाद एक पहाड़ दूर तक नजर आ रहे थे। लोगों का ध्यान सब तरफ से हटकर सूरज की ओर था। आसमान साफ था, सो हम आराम से देख पा रहे थे कि कैसे सूरज के आसपास लालिमा बढ़ती जा रही है और गहरे होते आसमान में सूरज कितना खूबसूरत लगने लगा था।

हमने वहाँ कुछ तस्वीरें ली उसके तुरंत बाद ही सूर्य बादलो में छिप गए और तुरंत घना कोहरा छा गया ये अद्भुत नज़ारा पहले किसी ने नहीं देखा था । हम लोगो ने तुरंत बाइक लिया और वापसी के लिए रवाना हो गए।







नेतरहाट कैसे पहुंचें-
नेतरहाट रांची से 144 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रांची के लिए देश के सभी प्रमुख शहरों से रेल व वायु सेवाएं निरंतर उपलब्ध रहती हैं। रांची से नेतरहाट के लिए बस या टैक्सी द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।