रूपकुंड: बर्फ़ीले पर्वतों के बीच नर कंकालो की दुनिया का ट्रेक

Tripoto
4th Nov 2020
Photo of रूपकुंड: बर्फ़ीले पर्वतों के बीच नर कंकालो की दुनिया का ट्रेक by Pankaj Mehta Traveller
Day 1

  सुबह सुबह का समय था 2 oct 2020 मैं अपने गाँव अल्मोड़ा में था. आज हम 3 लोगों को निकालना था रूपकुंड ट्रेक के लिए वैसे तो ये ट्रेक एक बार पहले मई के महीने मैं कर चुका था लेकिन उस समय बर्फबारी की वजह से वो नजारे देखने को नहीं मिल पाए जिसके लिए रूपकुंड ट्रेक विख्यात है.

   9 बजे हम लोग बाइक से चल दिए और मौसम बहुत सुहाना था. नज़रों से नज़ारों का मजा लेते हुए चल दिए आज के पड़ाव लोहाजंग की ओर. गरूड पहुँच कर हमने एक ब्लू टूथ स्पीकर खरीदा जो हमको बहुत काम आने वाला था.

Photo of रूपकुंड झील by Pankaj Mehta Traveller

   बाइक से चलने का मजा ही कुछ और था कौसानी शुरू होते ही हिमालय श्रखंला दिखनी शुरू हो गई थी और मैंने अपने दोनों साथियों को वहाँ से ही बताना शुरू कर दिया था की वो रहा त्रिशूल पर्वत और हमको उसके ठीक नीचे ही जाना है.

कौसानी

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शाम को करीब 6 बजे हम लोग अपनी आज की मंजिल लोहाजंग पहुंच गये.

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Day 2

  मैंने जिंदगी में जितने भी ट्रेक आज तक किए थे वो किसी भी कंपनी के साथ नहीं किए थे बल्कि खुद ही किए थे. लेकिन ये पहला ऐसा ट्रेक था जिसको मैंने किसी कंपनी के सानिध्य में किया क्यू की ये ट्रेक मुझे बहुत ही अराम से मजे लेते हुए करना था.
 
   सुबह सुबह ब्रीफिंग के बाद हम अपने आज के पड़ाव दिदना गाँव के लिए चल दिए. लोहाजंग की हाइट 7800 फिट है सुबह का मौसम बहुत ही सुहाना था. नंदा घूंटी का अद्भुत दृश्य दिखाई दे रहा था.

लोहाजंग से नंदा घूंटी

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  आज का ट्रेक छोटा ही था 8 km का. लोहाजंग से होते हुए हम पैदल पहुँचे कलिंग गाँव जो बहुत ही सुंदर बसा हुआ गाँव था. वहाँ से खेतों का नजारा बहुत ही अच्छा दिख रहा था.

कलिंग गाँव

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  कलिंग गाँव से अब नीचे उतर कर नदी पार करनी थी और फिर वहाँ से करीब 5 km की चडाई कर के जाना था दिदना गाँव. नदी के पास पहुंच कर सारे लोगों ने रेस्ट किया और नदी के पानी से बहुत खेला. हम लोगों का पूरा ग्रुप 20 लोगों का था जो देश के अलग अलग हिस्से से थे.

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    कुछ समय रुकने के बाद चल दिए जैसे जैसे दिदना गाँव पास आ रहा था सुंदरता बढ़ते जा रही थी. खेत इतने सुन्दर दिख रहे थे जैसे स्वर्ग.

दिदना गाँव

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  आज का हमारा रुकना दिदना गाँव में एक होमस्टे में था. शाम को आक्सीजन लेबल और पल्स चेक हुई रात को खाना खा कर सभी लोग जल्दी सो गए लेकिन मुझे एक कॉल आ गया था और पता था कल से तो नेटवर्क मिलेंगे नहीं तो ठण्डी रात मैं बाहर तारो के नीचे टहल टहल कर 11 बजे तक फोन में बात की और ठण्ड का आनंद लिया.

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Day 3

  आज का दिन शुरू हुआ सुबह 7 बजे से नाश्ता कर के चलना शुरू किया. आज हमको आली बुग्याल पार कर के अरीन खर्क तक जाना था जो करीब 10 km का ट्रेक था. अब मुझे पता था आज से हिमालय और बुग्याल के सुंदर मनमोहक दृश्य दिखने शुरू हो जाएंगे और मैं उन दृश्यों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहता था. इसलिए आज जल्दी जल्दी अपनी आदत की तरह चलना शुरू कर दिया.

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करीब 3 घण्टे चलने के बाद हम लोग पहाड़ के टॉप पर थे. हम तीन लोग मैं हर्षित भाई और जगदीश दा आज चीते की चाल से चल रहे थे हम एक छोटे से बुग्याल में आराम से लेट गए और मोबाइल निकाल के वीडियो बनाने लग गये वहाँ से चौखंबा, केदारडोम और नीलकंठ पर्वत दिख रहा था. मतलब हम वहाँ से केदारनाथ से ले कर बद्रीनाथ तक का पूरा नज़ारा देख पा रहे थे.

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  वहाँ करीब 1 घंटे रुकने के बाद हम लोग चल दिए आली बुग्याल. वहाँ पर हम लोग करीब 2 घण्टे रुके और बहुत डांस और मस्ती की. वहाँ से नंदा घूंटी पर्वत बहुत सुंदर दिख रहा था.

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3 बजे हम लोग अपनी आज की मंजिल में पहुंच चुके थे और टेंट में जा कर चाय पी कर मैं और हर्षित चल दिए बकरी चराने वाले के पास. वो बकरी वाला भेड़ के बाल से ऊन बना रहा था.

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उसके बाद आली बुग्याल घूमने गए और कुछ और फोटो ले कर टेंट में आ गए.

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रात को आग के चारो ओर सारे ग्रुप ने बहुत डांस किया और फिर खा कर सो गये

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Day 4

रात बहुत ठंडी थी और सुबह धूप का सबको इंतजार था. सुबह धूप बहुत खुशनुमा थी. आज नाश्ता किया और फिर से चल दिए आज की मंजिल थी भगवाबसा. मतलब ये था आज हिमालय और ज्यादा करीब से देखने को मिलेगा. भगवाबसा की हाइट 14700 फिट है.

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  हिमालय में मौसम 10 बजे के बाद बदलना शुरू हो जाता है ये बात हम 3 अच्छे से जानते थे तो आज भी कुत्तों की तरह भागना शुरू कर दिया. सब जगह पहले ही पहुंच कर दिल को छू लेने वाले नजारे मिले. बेदनी बुग्याल के उप्पर से बहुत ही सुंदर दिखाई देने वाला दृश्य था.

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घोड़ा लौटानी से भी त्रिशूल और नंदा घूंटी बहुत ही शानदार दिख रहा था

घोड़ा लौटानी

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2 बजे हम कलवा विनायक में थे लेकिन तब तक हिमालय बादलों से ढक गया था. जो नज़ारा कलवा विनायक से दिखता है वो पूरे ट्रेक का सब से बेस्ट नज़ारा होता है उसको देखने से हम वंचित रह गये लेकिन हमारे पास वापस लौटते हुए एक मौका और था

कलवा विनायक

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कुछ देर बाद हम आज के पड़ाव भगवाबसा में थे. बाकी लोग हमसे 3 घंटे देर में पहुंचे.

Day 5

आज सुबह 4 बजे उठ गए. फ्रेश हो कर आज सुबह 5 बज कर 10 मिनट पर चलना शुरू किया. आज मैंने अपने दोनों साथियों को समझा दिया था की आज का दिन बहुत ही खास है आज के दिन के लिए ही मैं दोबारा यहाँ आया हूँ. आज जल्दी जा कर सब नजारे लेने है और अगर समय रहा तो जूनारगली पास क्रॉस कर के शीला समुद्र तक जाना है.

   थोड़ा चलने पर ही हमको ब्रह्मकमल की भरमार दिखाई दी.

ब्रह्मकमल

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चडाई अच्छी खासी थी 3 km में ही भगवाबसा से रूपकुंड 14700 फिट से 15700 फिट जाना था. पिछले बार ये चडाई पूरी बर्फ में पार की थी लेकिन इस बार बर्फ बिल्कुल नहीं थी इसलिए आसान लग रहा था. हमारे साथ जो जगदीश दा थे उनकी उम्र 47 थी लेकिन वो हमारे साथ बिल्कुल जवान लड़के की तरह चल रहे थे इसके उल्टा जो ग्रुप में जवान लड़के लडकियाँ थे वो चल ही नहीं पा रहे थे.

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5 बज कर 40 मिनट में हम 3 लोग रूपकुंड में थे.

रूपकुंड (कंकाल झील)
  एक हिम झील है जो अपने किनारे पर पाए गये पांच सौ से अधिक मानव कंकालों के कारण प्रसिद्ध है। यह स्थान निर्जन है और हिमालय पर लगभग 5029 मीटर (16499 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। इन कंकालों को 1942 में  रेंजर एच. के. माधवल, ने पुनः खोज निकाला, यद्यपि इन हड्डियों के बारे में आख्या के अनुसार वे 19वीं सदी के उतरार्ध के हैं।इससे पहले विशेषज्ञों द्वारा यह माना जाता था कि उन लोगों की मौत महामारी भूस्खलन या बर्फानी तूफान से हुई थी। 1960 के दशक में एकत्र नमूनों से लिए गये कार्बन डेटिंग ने अस्पष्ट रूप से यह संकेत दिया कि वे लोग 12वीं सदी से 15वीं सदी तक के बीच के थे।

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रूपकुंड में फैनकमल भी बहुत लगे हुए थे.

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6 बज कर 50 मिनिट पर हम रूपकुंड से जूनारगली की ओर चल दिए जो करीब 17000 फिट की ऊंचाई पर है 7 बज कर 3 मिनिट पर हम जूनारगली मैं थे वहाँ बहुत समय फोटोशूट
करने के बाद मैं और हर्षित चल दिए शीला समुद्र की ओर.

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शीला समुद्र की ओर जाते हुए हमको नील कमल भी दिखाई दिए.

नील कमल

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ब्रह्म कमल

ब्रह्म कमल, इसे स्वयं सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी का पुष्प माना जाता है। हिमालय की ऊंचाइयों पर मिलने वाला यह पुष्प अपना पौराणिक महत्व भी रखता है। इस फूल के विषय में यह माना जाता है कि मनुष्य की इच्छाओं को पूर्ण करता है। यह कमल सफेद रंग का होता है जो देखने में वाकई आकर्षक है, इसका उल्लेख कई पौराणिक कहानियों में भी मिलता है। ब्रह्म कमल से जुड़ी बहुत सी पौराणिक मान्यताएं हैं, जिनमें से एक के अनुसार जिस कमल पर सृष्टि के रचयिता स्वयं ब्रह्मा विराजमान हैं वही ब्रह्म कमल है, इसी में से कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई थी। इस कमल से संबंधित एक बहुत प्रचलित मान्यता कहती है कि जो भी व्यक्ति इस फूल को देख लेता है, उसकी हर इच्छा पूर्ण होती है। इसे खिलते हुए देखना भी आसान नहीं है क्योंकि यह देर रात में खिलता है और केवल कुछ ही घंटों तक रहता है। यह फूल 14 साल में एक बार ही खिलता है, जिस कारण इसके दर्शन अत्यंत दुर्लभ है।
फेन कमल

फेन कमल (सौसुरिया सिम्पसोनीटा) हिमालयी क्षेत्र में 4000 से 5600 मीटर तक की ऊंचाई पर जुलाई से सितंबर के मध्य खिलता है। इसका पौधा छह से 15 सेमी तक ऊंचा होता है और फूल प्राकृतिक ऊन की भांति तंतुओं से ढका रहता है। फेन कमल बैंगनी रंग का होता है।
दुर्लभ नील कमल

नील कमल (जेनशियाना फाइटोकेलिक्स) है। जो समुद्रतल से 3500 मीटर से लेकर 4500 मीटर तक की ऊंचाई पर मिलता है। जानकारी के अभाव में कम ही पर्यटक नील कमल को पहचान पाते हैं। प्रसिद्ध हिमालयी फोटोग्राफर 63-वर्षीय गुलाब सिंह नेगी बताते हैं कि फेन कमल, कस्तूरा कमल और ब्रह्मकमल तो आसानी से दिख जाते हैं, लेकिन नील कमल काफी दुर्लभ है।

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शीला समुद्र में कुछ देर रुक कर फोटो ली और वापसी की वापसी में हमको मोनाल का एक झुंड भी दिखाई दिया.

शीला समुद्र

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2 बजे तक हम लोग वापस भगवाबसा आ गए थे तब भी कुछ लोग रूपकुंड पहुंचे थे.

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सब के आने तक हमने एक सो गये. सब के आने के बाद लंच कर के चल दिए कलवा विनायक की ओर लेकिन उस समय भी त्रिशूल के ऊपर बादल लगे हुए थे अब हम प्लान बनाने लग गये की अब इस व्यू के लिए हमको कल फिर पातर नचनिया से वापस सुबह सुबह आना पड़ेगा

थोड़ी देर में मौसम ने रंग बदला और त्रिशूल का व्यू साफ़ हो गया

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कुछ फोटो लेने के बाद हम पातर नचनिया पहुंच गये. रात को वहाँ ही रुकना हुआ.

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Day 6

अगले दिन हम वेदनी बुग्याल पहुंचे वहाँ बहुत देर रुकना हुआ

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वेदनी से होते हुए हम जंगलों से गुजरते हुए पहुंचे गैरोली पाताल. वहाँ हमने लंच किया.

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वहाँ से लाटू देवता के मदिर के दर्शन करते हुए पहुंचे वाण गाँव. लाटू देवता मंदिर के कपाट साल में सिर्फ एक दिन ही खुलते हैं. वाण से गाड़ी में बैठ कर चल दिए लोहाजंग इस तरह ये शानदार ट्रेक का अंत हुआ.

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