रात बिल्कुल भी अच्छी नही बीती। बहुत घुटन थी कमरे में। ज़रा सा भी दरवाजा खुला रखने पर बहुत ठंड लगने लगती थी और बन्द करने पर घुटन। अजीब सी स्थिति हो गई थी। इसलिये सुबह जल्दी तैयार हो के हम सब छत पर आ गये। खुली हवा में आकर राहत आई। धूप भी अच्छी खिली हुई थी। कैलाश मानसरोवर आना बिल्कुल भी आसान नही है। ऑक्सिजन की कमी की वजह से सांस लेने में तकलीफ होती है, हवा इतनी शुष्क है की अगर मास्क ना लगाओ तो नाक से खून भी आ जाता है। सिर और कान ना ढको तो उल्टी, सिरदर्द हो जाता है। सभी के सिरदर्द हो रहा था, ठीक से खाना भी नही खाया जा रहा था। इसलिये हम दोनो परिक्रमा के लिये नही गये। वरना हमारा दिल तो बहुत था। परिक्रमा में तो हमे और भी उँचाई पे जाना था।
हम तो यहां होटल में थे पर हमारे ग्रुप के 13 लोग जो कैलाश परिक्रमा के लिये गये थे वो कल रात डेरापुक रुके थे। डेरापुक यमद्वार से करीब 12 किमी हैं। ये चढ़ाई पैदल या घोड़ों से करते है। यहाँ से कैलाश का North- Face दिखाई देता है जो सबसे मनमोहक है। यहाँ से कैलाश को देखकर लगता है जैसे शिवजी गहरी तपस्या में बैठे हैं। डेरापुक में यात्रियों के लिये कई धर्मशाला है। चढ़ाई बहुत ही कठिन है, और अगर मौसम ठीक नही हो तो यहीं से वापस दारचीन base-camp आना पड़ता है। यहीं से गोल्डन कैलाश के भी दर्शन होते हैं। जब सुबह की पहली किरण कैलाश पर पड़ती है तो कैलाश पर्वत सोने की तरह चमकता है और इसी को गोल्डन कैलाश कहते हैं।
दुसरे दिन की 22 किमी की परिक्रमा सबसे कठिन हैं। डेरापुक से 7 किमी चढ़ाई के बाद डोल्मापास आता हैं, जो 18200 फीट की उँचाई पर है। इस स्थान पे पार्वती जी की पूजा स्थल हैं पर इतनी उँचाई होने के कारण ऑक्सिजन ना के बराबर होती हैं। यहां सांस लेने मे तकलीफ होती हैं इसलिये यहां किसी को भी रुकने नही दिया जाता हैं। थोड़ा आगे चलकर गौरी कुण्ड आता हैं। यहां से उतराई शुरू हो जाती हैं। दुसरे दिन का पड़ाव ज़ुथुलपूक पे होता हैं। कैलाश के दर्शन सिर्फ पहले दिन ही होते हैं। दुसरे ओर तीसरे दिन कैलाश दिखाई नही देते। तीसरे दिन सिर्फ 5 किमी ही चलना पड़ता हैं। ज़ुथुलपूक से जोन्गजेरबू 5 किमी है यहाँ से बस लेकर डेरापुक होटल आ जाते है।
आज भी हम लोग सारा दिन खूब घुमे और खरीदारी की तथा दारचीन से ही कैलाश के दर्शन किये।