सत्यम शिवम सुन्दरम्
"कैलाश"- नाम भी लो तो सांसो में उतर जाये। देख लो तो जीवन तर जाये। सम्मोहन हैं इसमें। 'सत्यम शिवम सुन्दरम' ये शब्द यहीं चरितार्थ होते हैं। और आज हम उस पर्वत के दर्शन करने जायेंगे जहाँ शिव रहते हैं। विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि यहां आना आसान नही है। आर्थिक और शारीरिक संपन्नता के साथ-साथ इच्छा शक्ति भी जरुरी है। पर सबसे जरुरी हैं बाबा का आशीर्वाद। उनकी इच्छा के बिना हम उनकी जमीन पे खड़े भी नही हो सकते। अजीब सा आकर्षण है शिव में।
कैलाश-पर्वत की परिक्रमा करीब 50 किमी की है जो तीन दिन में पूरी होती हैं। ये परिक्रमा यमद्वार से शुरू होती हैं, जो दारचीन से लगभग 15 किमी दूर है। हमारे ग्रुप से केवल 13 लोग ही परिक्रमा करेंगे बाकी यहीं से वापिस जाकर तीन दिन दारचीन होटल में ही रुकेंगे। हम सभी सुबह करीब 8.00 बजे यमद्वार के लिये निकल पड़े। आधे घन्टे में हम यमद्वार पहुंच गये। यमद्वार छोटा सा मन्दिरनुमा घर जैसा लग रहा रहा था। माना जाता है कि जो यमद्वार के बीच से निकलकर परिक्रमा करता है उसके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते है। तिब्बती लोग यहां पर बलि देते हैं। यमद्वार कब और किसने बनाया, इसका कोई प्रमाण नहीं है। यमद्वार के सामने कैलाश पर्वत हैं।
सभी ने यमद्वार की परिक्रमा की और दूसरी तरफ आकर हमने भी धूप-बत्ती जलाकर पूजा-अर्चना की। घर से सभी ने हमें नाग-नागिन का जोड़ा चढ़ाने के लिये दिये थे। इसलिये हमने सभी के नाम से पूजा की। यहां पत्थरों और प्रार्थना झंडों पर शुभ चिन्ह, प्रार्थना और मंत्रों के साथ अंकित किए गए हैं, जो आसपास के क्षेत्र में सुख, लंबी आयु और समृद्धि के लिए होते हैं।
आज आसमान में बादल थे। इसलिये कैलाश बादलो के पीछे छुपे हुए थे। हम सब वहीं घास पर बैठ गये। वहां बैठकर मेरा ध्यान और नज़र सिर्फ कैलाश पर ही थी। पता नही नज़र इधर-उधर हो और कहीँ कुछ छूट जाये। मैं जी भर के कैलाश का नज़ारा देख लेना चाहती थी। कैलाश तो नज़र नहीं आ रहे थे पर भोले बाबा की लीला नज़र आ रही थी। एक छोटा सा शिवलिंग तो दिख ही रहा था। और उस शिवलिंग के पीछे बादल कभी ओम बना रहे थे तो कभी शेषनाग। आज भी इस पर्वत पर भगवान भोले साक्षात अपने परिवार के साथ रहते हैं। तभी तो आजतक कोई भी इसपर चढ़ाई नही कर पाया है। जबकी एवरेस्ट जो दुनिया का सबसे ऊँचा पर्वत है, उसे लगभग 7000 बार फतह कर चुके है पर कैलाश पर्वत जिसकी उँचाई 6638 मीटर हैं। जो एवरेस्ट से लगभग 2000 मीटर कम है पर फिर भी कई बार कोशिश करने के बाद भी आजतक कोई सफल नही हो पाया है।
करीब 2 घन्टे हम वहीं रुके। कैलाश और आसपास का नज़ारा बेहद खूबसुरत था। बाकी के 13 सदस्य आगे परिक्रमा के लिये निकल चुके थे। हम 12 लोग यहीं से दारचीन होटल लौट आये। थोड़ा मायूस थे कि हमें वहां से कैलाश के दर्शन नही हुए थे।
लंच करने के बाद विनय और मैं बाहर घुमने आ गये। मौसम खुल गया था। चटक धूप निकल आई थी। तभी मेरी दूर सामने नज़र गई तो देखा सामने कैलाश पर्वत चांदी की तरह चमक रहा था। अजेय, मुस्कुराता हुआ। मानो हमसे कह रहा हो उदास मत होना मैं साथ ही हूँ, पास ही हूँ, सामने ही हूँ। हमारी तो खुशी का ठिकाना ही ना रहा। खूब दर्शन किये। जी भर के दर्शन किये। सफल हो गया था जीवन और सफल हो गई थी यात्रा।