बस की खिड़की से देखता वो महल मुझे आज भी याद है।

Tripoto
5th Oct 2020
Photo of बस की खिड़की से देखता वो महल मुझे आज भी याद है। by Yadav Vishal
Day 1

सलाम नमस्ते केम छू दोस्तों 🙏

दोस्तों बात है 2019 मई की जब मै पहली बार कोटा शहर जा रहा था अपनी नई जॉब पर बहुत ही उत्साह के संग। जयपुर से मैंने कोटा के लिए बस लिया,बस इसलिए क्यों कि बस का सफर मुझे हमेशा ही लुभाता है।मेरा मानना है सड़क के सफर से हमें प्रकृति के बहुत ज्यादा करीब होने का मौका मिलता हैं।

Photo of बस की खिड़की से देखता वो महल मुझे आज भी याद है। by Yadav Vishal

बस की खिड़की पे बैठ कर प्रकृति का मज़ा लेने का मज़ा ही कुछ और है। कोटा जाते वक्त भी मेरे संग यही हुआ मै रास्ते का लुप्त उठा ही रहा था कि मेरे सामने आचनक से एक महल आ गया।उसका स्ट्रक्चर देख के और आस पास का लोकेशन देख के  "वो हमारे बिहार में बोलते हैं ना साट मर देहल्स" मतलब मैं आचंभित हो गया था। 

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उस वक्त ही मैंने सोच लिया था कि मै यहां आऊंगा पर किसी कारणवश मुझे यह मौका प्राप्त नहीं हुआ।जब मैं कोटा से जयपुर आता था तो भी मुझे उसके दीदार का इंतजार रहता था मै एक टक खिड़की पे नज़र गराए उस महल को देखता रहता था और जब वहा से बस आगे जाती थी तो विकिपीडिया पे उसके बारे में पढ़ता था।ऐसा मेरे संग छः से सात बार हुआ पर मुझे कभी मौका नहीं मिला उसको अंदर से देखने का। मेरे और उस महल का रिलेशनशिप ऐसा हो गया था कि मुझे लगता था मै यहां बहुत बार आया हूं उसकी ईटे उसके पत्थर उसका पानी सबसे से मुझे प्यार सा हो गया था। वैसे ही प्यार जैसा सिर्फ तुम में हीरो को हेराइन से हुआ था।चलिए फिर आपको उस जगह और उस महल के बारे में बताते हैं।

बूँदी, कभी राजस्थान का गढ़ कहा जाता था यह ज़िला, अपने आप में संपूर्ण। बड़े-बड़े पैलेस जहाँ इसकी शान हैं, तो वहीं क़िले, बाउली और पानी के टैंक होने से कभी पानी की कमी नहीं होती थी यहाँ के रेतीले टापुओं पर। लेकिन जहाँ जैसलमेर, उदयपुर और जयपुर जैसी जगहों ने राजस्थान के मैप पर अपनी एक अलग जगह बना ली, वहीं बूंँदी कहीं पीछे छूट गया। लेकिन इसके बाद भी राजस्थान के पर्यटन में अब ये ज़िला धीरे-धीरे अपना नाम बना रहा है। कारण है यहाँ पर घूमने के हिसाब से ढेरों जगहें, जो यहाँ के सफर को मज़ेदार बना देती है। तो चलिएआज आपको राजस्थान के नए रंग से मिलाते हैं।

इतिहास, बूँदी और राजपूतों का

बूँदी का ऐतिहासिक महत्त्व बहुत दिलचस्प है। राजपूत ख़ानदान की शान कहा जाता था बूँदी को। उसको ये नाम भी यहाँ के ही राजा बूँदा मीणा से मिला है। 1624 में जहाँगीर इसको दो हिस्सों में तोड़ने में कामयाब हो गया। अन्ततः बूँदी दो ज़िलों, बूँदी और कोटा में टूट गया। 1947 तक अपने आप में यह ज़िला स्वतंत्र रहा, अंग्रेज़ों पर इसका आधिपत्य नहीं था। अंग्रेज़ों के जाने के बाद यह हिस्सा भारत में आया।

घूमने के लिए आकर्षक जगहें

1. तारागढ़ क़िला- 16वीं सदी में बना यह क़िला राजस्थान के सबसे प्रसिद्ध क़िलों में एक है। इसके साथ ही यहाँ का आर्किटेक्चर शानदार और उससे भी ज़्यादा प्रसिद्ध यहाँ की पेंटिंग्स हैं, जिनको देखने के लिए आपको ज़रूर आना चाहिए।

Photo of बस की खिड़की से देखता वो महल मुझे आज भी याद है। by Yadav Vishal

2. गढ़ पैलेस एवं चित्रशालाः दोनों पैलेस एक दूसरे के आमने-सामने हैं। दोनों में ही पेंटिंग्स को बेहतरीन तरह से सजाया गया है। यहाँ पर आने के लिए आपको थोड़ी सी चढ़ान पार करनी होगी, क्योंकि कभी ये पैलेस पुराने आर्किटेक्चर के उपयोग से बनाए जाते थे, जहाँ ये चढ़ान ही बड़े-बड़े हाथियों से इसकी रक्षा करती थी।

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3. बाउलियाँ- यहाँ पर गर्मियों के मौसम में पानी की बहुत कमी हो जाया करती थी, तो लोगों के लिए राजा ने ढेर सारी बाउलियाँ बनवाईं। आज ये बाउलियाँ पानी तो बचाती ही हैं, साथ ही पर्यटन का कोना भी बन गई हैं। लगभग 50 बाउलियाँ बूँदी में मौजूद हैं। इनमें रानी जी की बाउली आपको ज़रूर देखनी चाहिए।

Photo of बस की खिड़की से देखता वो महल मुझे आज भी याद है। by Yadav Vishal

4. झीलें- जैत सागर और नवल सागर नाम की दो झीलें वाकई देखने लायक हैं। जैत सागर के पास कभी राजा लोग शिकार किया करते थे। वहीं नवल सागर की झील ढेर सारी बाउलियों का स्रोत है। यहाँ का पानी ही कई सारी बाउलियों में जाता है।

Photo of बस की खिड़की से देखता वो महल मुझे आज भी याद है। by Yadav Vishal

5. चौरासी खम्भों की छतरी- जैत सागर झील के पास ही मौजूद है चौरासी खम्भों की छतरी। 17वीं सदी के राजा की याद के तौर पर इस मेमोरियल को बनवाया गया था।

जाने का सही समय

जैसा मैंने पहले बताया कि गर्मियों के  मौसम में रेगिस्तान से सटा ये इलाक़ा आपको परेशान तक कर सकता है। अप्रैल से जून के महीनों में तो बिल्कुल भी मत जाएँ। एक उत्सव होता है यहाँ पर कजली-तीज महोत्सव, अगस्त में होने वाले इस महोत्सव में शामिल होने आप आ सकते हैं। अगर इस महोत्सव में नहीं आते, तो अक्टूबर से फ़रवरी के सर्द मौसम में यहाँ आने का प्लान बनाएँ। चूँकि इलाक़ा राजस्थान का है, इसलिए यहाँ सर्दी काफ़ी होती है।

कैसे पहुँचें

हवाई मार्गः उदयपुर और जयपुर यहाँ के सबसे नज़दीकी हवाई अड्डे हैं। उदयपुर से यह जगह 270किमी0 दूर है। वहाँ से आपको टैक्सी या बस की सुविधा मिल जाएगी।

ट्रेन मार्गः सबसे क़रीबी रेलवे स्टेशन बूँदी का है। दिल्ली से बूँदी पहुँचने में क़रीब 8 घंटे का समय लगेगा। स्लीपर किराया ₹400 रु. और 3rdएसी किराया ₹1000 रु. तक होगा।

बस मार्गः कोटा से यह जगह बस 40 किमी0 दूर है। बैठे और सीधा बूँदी। दिल्ली से बस का किराया लगभग ₹1000 होगा और पहुँचने में क़रीब 8 घंटे का समय लगेगा।

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