कल मैं पुणे से ऋषिकेश पहुंची जिसके बारे में मैंने यहाँ लिख रखा है. आज सुबह मैं ऋषिकेश से एक सुन्दर से गाँव खिर्सू के लिए निकल पड़ी.
सुबह जल्दी उठकर मैं गंगा जी के किनारे टहलने निकल पड़ी थी. फिर सुबह १० बजे मैंने अपने होटल इंदिरा निकुंज, ऋषिकेश से चेक-आउट किया. जल्दी इस बात की थी की मुझे सूर्यास्त से पहले खिर्सू पहुंचना था. पांच घंटे का सफ़र था (१४० की.मी.)
ऋषिकेश से खिर्सू का सफ़र बड़ा ही रमणीय है. जगह-जगह पर सुन्दर दृश और मंदिर है, और क्यों न हो, आप देवभूमि में जो है!
इस यात्रा का मेरा लक्ष्य बद्रीनाथ मंदिर के दर्शन और माना गाँव ("भारत का आखरी गाँव") की सैर है. लेकिन इसके पहले की मैं बद्रिविशल के दर्शन प्राप्त कर सकू, मुझे खिर्सू (बसा होमस्टे) और जोशीमठ (श्री अजय भट्ट का हिमालयन अबोड) में रुकना होगा.
मैं यह यात्रा कोरोना के तालाबंदी के दौरान कर रही थी. इसीलिए रस्ते में मुझे खाने-पीने की कोई दूकान खुली नहीं दिखी. देवप्रयाग संगम देखने की मेरे मन की इच्छा बढती जा रही थी.
देवप्रयाग मतलब अठखेलियां करती हुई अलकनंदा और शिव जी की जटाओं से बहती भागीरथी का मिलाप; जिसके संप्रवाह से इसके आगे से यह जलधारा पूज्य पवित्र "गंगा" माँ कहलाती है.
नीच घाट पर रघुनाथ जी का प्रसिद्ध मंदिर है. देवप्रयाग नक्षत्र वेद शाला के लिए भी प्रसिद्ध है जो पंडित चक्रधर जोशी जी ने सन १९४५ में स्थापित की थी. यह वेदशाला ज्योतिष शास्त्र एवं खगोल विज्ञान का अपूर्व स्थान है. यहाँ दूरबीन और हजारो पुस्तके भी रखी हुई है.
इस सुंदर दृश्य को निहारते कब समय निकल जाता है पता भी नहीं चलता. दौड़ती-भागती नदियों की आवाज़ और पहाड़ो की महकी हुई शुद्ध हवाएं आपको निरंतर स्पर्श करती रहती है. लेकिन मुझे आगे खिर्सू पहुंचना है...
खिर्सू और वहां के बसा होमस्टे के बारे में मैं आगे लिखूंगी. चलते-चलते, एक सेल्फी :)
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