मैं और मेरे कुछ दोस्त प्रायः सूर्य मंदिर जो गलता जी,जयपुर के पास ही पहाड़ी पर स्थित है वहाँ शाम बिताने जाते हैं। वहाँ से कुछ दूर एक और पहाड़ी है जिस पर एक भवन जैसा कुछ बना है, जब भी वो भवन दिखाई देता तो वहाँ जाने की सोचते पर जा नहीं पाते, हमेशा लगता जैसे वो पहाड़ी हमें अपनी ओर खींच रही है,अंततः एक दिन सभी ने तय किया कि वहाँ चला जाये।
जहाँ से घाटी में जाने का रास्ता है वहाँ एक वन विभाग की चौकी बनी हुई है तो मित्र अभिलाष जी और पवन जी ने वहाँ के स्थानीय चायवाले से आधारभूत जानकारी जुटायी जैसे वहाँ क्या है, पहले क्या हुआ करता था और भी बहुत कुछ।मैं, दीपक,अभिलाष,पवन और भल्ला सब साथ ही थे,मैंने और दीपक ने दोनों से पूछा कि क्या जानकारी हाथ लगी तो दोनों एक स्वर में बोले कि ऊपर पुरानी इमारत और मंदिर है तथा वहां से आसपास का नज़ारा बड़ा अच्छा आता है लेकिन वन विभाग वालों से छुपकर चलना पड़ेगा। ये बात मुझे कुछ खटकी लेकिन अभिलाष ने इसे मज़ाक में टाल दिया और हम पांच दोस्त रवाना हो गए मंज़िल की तरफ।
शूरुआत में तो वहाँ सीढिया बनी हुई थी तो एक चौथाई रास्ते में तो कोई परेशानी नहीं हुई लेकिन कुछ दूर चलते ही सीढियां गायब और सीढियों की जगह ले ली थी बकरियों द्वारा बनाई गई पगडंडी ने। अब हम रास्ते को लेकर तय नहीं थे क्योंकि रास्ता झाड़ियों और पेड़ों से घिरा था और ये जानना तो नामुमकिन था कि क्या ये रास्ता वाकई ऊपर ले जाएगा,लेकिन हम उसी रास्ते पर आगे बढ़ते गए हंसी मजाक चलती रही और बातों ही बातों में ऊपर पहुँच गए। ऊपर से नज़ारा वाकई देखने लायक था वो पहाड़ी हर तरफ से पहाड़ियों से घिरी हुई थी तो खूबसूरती देखते ही बनती थी,दूर पहाड़ी पर सूर्य मंदिर भी दिखाई दे रहा था।
हमने कुछ छायाचित्र खिंचे और वहां बनी पुरानी हवेली की तरफ जाने लगे। अभिलाष ने बताया कि ये हवेली पुराने समय में चोरों का ठिकाना हुआ करती थी, जयपुर शहर में चोरी करने के बाद सभी यहाँ आते और चोरी किये गए माल का बंटवारा यहीं किया जाता और उस जगह को देखकर इस बात पर यकीन करना मुश्किल भी नहीं था क्योंकि वो जगह बिल्कुल सुनसान थी हम 5 दोस्तों के अलावा उस पहाड़ी पर और आसपास की किसी भी पहाड़ी पर कोई नहीं था।
अभिलाष और पवन ने सावधानी बरतने के लिए कहा और बोले कि हाथ में कोई लकड़ियां ले लो जंगली जानवर हो सकते हैं, हमें भी उनकी बात सही लगी और लकड़ियों के साथ हम हवेली में चले गए खैर वहां सब सही था कोई जानवर नहीं था। हवेली थी दो मंज़िल की,हम दूसरी मंजिल पर गए और वहां बहुत से छायाचित्र खिंचे।
अब हम छत पर गए, वहाँ से नज़ारा बहुत अच्छा था और हवा भी काफी अच्छी चल रही थी तो सब वहाँ बैठे,जलपान किया।
वापस से नीचे वाली मंज़िल पर आए और कुछ ही देर हुई होगी कि अचानक सभी वहाँ से निकलने की बोलने लगे मैंने भी महसूस किया कि वहाँ से निकल जाना ही ठीक है,किसी को समझ नहीं आया कि क्या था लेकिन वहाँ बडा ही अजीब सा डर था जो सबने महसूस किया और जैसे ही वहाँ से बाहर आये तो सब ठीक।
अब हम वहां से मंदिर वाली इमारत की तरफ गए जहां कोई नहीं था और अब मंदिर भी नहीं था बस वो जर्जर इमारत थी जैसे ही उसके पास पहुंचे फिर से पवन और अभिलाष बोले कि सावधानी से और हाथ में लकड़ी ले लो, मुझे कुछ शक हुआ की आखिर ये बार बार सावधान रहने को क्यों बोल रहे हैं लेकिन सब आगे बढ़े अंदर कुछ नहीं था तो हम छत पर चले गए और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने लगे ।
पीछे की तरफ गलता जी भी दिखाई दे रहा था तो हम सब कुछ देर वहीं बैठे रहे और दीपक किसी से फ़ोन पे बात करते हुए थोड़ी दूर निकल गया।अचानक उसने सबको आवाज़ दी हम वहां गए और देखा पीछे की तरफ बकरी का कंकाल पड़ा है जो कि मुश्किल से 4-5 दिन पुराना रहा होगा,अब मेरे दिमाग की घंटी बजने लगी ।
अभिलाष और पवन पहले भी जंगली जानवर से सावधानी के लिए बोल रहे थे और अब बकरी का कंकाल तो मैंने दोनों से जोर देकर पूछा कि सच क्या है बताओ तब उन्होंने बोला कि ये तेंदुआ का इलाका है। इतना सुनना था कि मेरे और दीपक के पैरों तले जमीन खिसक गईं और हमने बोला कि अब बिना देर किए यहाँ से निकल लेते हैं क्योंकि शाम होने थी और रोशनी भी कम होने लगी थी तो इससे पहले की तेंदुआ हममे से किसी को अपना शिकार बनाये निकल जाने में ही भलाई समझी। अब कोई भी बीच मे रुक नहीं रहा था,न कोई छायाचित्र ले रहा था,सब बस जल्दी से नीचे पहुंचना चाहते थे और लगातार बिना रुके नीचे पहुंचकर ही रुके।भगवान को धन्यवाद दिया कि सब लोग सही सलामत थे और अभिलाष जी और पवन जी से जानकारी जुटाने वाला काम छीन लिया गया।तय किया गया कि भविष्य में किसी भी जगह जाने पर जानकारी जुटाने का काम अब मेरा और दीपक का होगा।