ये ट्रिप किसी और जगह जाने की नहीं थी, ये ट्रिप थी मेरे अपने शहर को खोजने की। आप लोगों ने जयपुर का नाम तो सुना ही होगा और जयपुर का नाम आते ही जेहन में आमेर महल की तस्वीर उभर आती है लेकिन ये ट्रिप वहां की नहीं बल्कि आमेर महल के सामने की तरफ, सड़क के उस पार पहाड़ी पर बनी दीवार पर जाने की है जो आमेर महल की सुरक्षा के लिए बनाई गई थी। बड़ी वीरान सी है ये पहाड़ी, केवल कुछ बुर्ज हैं इस पर और कुछ नहीं, मगर सुना है कि वहां से नजारा बड़ा अच्छा आता है।
तो इस जगह को देखने की तमन्ना हुई, मैने सभी मित्रो के सामने वहां जाने का प्रस्ताव रखा और खुली बाहों से स्वागत हुआ इस विचार का। तीन मोटरसाइकिलो पर हम छः लोग निकले और गुलाबीनगरी की गलियों को चीरते हुए, सर्पनुमा सड़कों से होते हुए जा पहुँचे आमेर महल के सामने।
अब किसी को रास्ता पता नहीं है कि शुरुआत कहाँ से करें तो जरूरी सामान जिसमे सबसे जरूरी धूम्रपान डंडिका और पानी खरीदने के साथ ही स्थानीय दुकानदार से रास्ते के बारे में पता किया और हम चल पड़े अपनी मंज़िल की ओर। ये सीढिया असामान्य रूप से ऊंची थी, बीस सीढिया ही चढ़ी होंगी के सालों से किये धूम्रपान ने अपना असर दिखाना शुरु किया और सबकी सांस फूलने लगी तो आगे वाले चबूतरे पे आराम करने का निश्चय किया और आगे बढ़े। जैसे ही वहां आराम करने के लिए पीछे मुड़कर सीढ़ियों पर बैठे तो सबकी नजरें जैसे ठहर सी गयी ,सामने आमेर महल था और मावठे में उसकी परछाई। आमेर महल तो कई बार देखा था पर इस नज़र से नहीं, महल की खूबसूरती चार गुना बढ़ गयी थी यहां से।
ये दृश्य देखकर सबमे नई ऊर्जा का संचार हुआ और सोचा कि अब ऊपर पहुचकर ही रुकेंगे। लेकिन सबके सब 20 सीढिया और चढ़ने के बाद फिर पस्त तो इस बार मैंने सबको रोका और सुट्टा लगाया ,10 मिनट विश्राम करने के बाद फिर से सब चल पड़े पहाड़ चढ़ने।
इसी क्रम में लगभग 5 बार रुकने के बाद मैंने खुद को ऐसी जगह पाया जहां सीढिया खत्म हो गयी थी अब मैं सांस ले रहा था यहाँ हवा का वेग इतना था कि 2 मिनट में ही सारे पसीने सुख गए पीछे मुड़कर देखा तो मैं हतप्रभ था , नज़ारा ऐसा था कि सूर्य लगभग अस्त होने के कगार पर था और उसकी किरणे आमेर महल की खूबसूरती में चार चांद लगा रही थी। आसमान में लालिमा छायी थी महल का पीला रंग मावठे के नीले पानी मे अलग ही दमक रहा था।
कुछ देर तक सब तेज चलती हवा के साथ इस नज़ारे को देखते रहे फिर थोड़ी दूर एक बुर्ज दिखाई दिया तो सब उसी ओर चल पड़े वहाँ हवा भी ज्यादा तेज थी सब पैर लटका कर वहीं बैठ गए और महल को देखने लगे।
अब अंधेरा होने लगा था और आमेर के घरों में जलते बल्ब तारों समान टिमटिमाते प्रतीत हो रहे थे ,ठंड बढ़ने लगी थी तो अलाव जला लिया और इस नज़ारे के साथ सब आग सेकने लगे।
अचानक से ही महल पर लाइट एंड साउंड शो सुरु हो गया और महल रंगबिरंगी लाइटों में दुल्हन की तरह सजा सा लगने लगा हम सब बस महल को देख रहे थे कोई भी एक पल के लिए भी नज़रे हटाना नहीं चाहता था।
खैर हमने वहीं 2 घण्टे और बिताये दोस्तों की हंसी मजाक में पता ही नहीं चला कब रात के 11 बज गए थे तो वापस घर जाने का निश्चय करके नीचे उतरने लगे। नीचे आते समय सबके मन मे यही चल रहा था कि यहाँ वापस आएंगे, चढ़ाई तो प्राणघातक है लेकिन जो मनभावन नजारा देखने को मिलता है वो संजीवनी सा असर करता है।