श्री माता वैष्णो देवी [ जम्मू और कश्मीर ]
[ 28 - 07 - 2019 ]
सुबह हम 7.00 तक जम्मू तवी रेलवे स्टेशन पहुंचे। वहां से हम चल दिए बस अड्डे कि तरफ जहां से हमें कटरा के लिए बस पकड़नी थी। बस की सवारी पुरी होते ही हम चल दिए कटरा की तरफ जहां से माता वैष्णो देवी कि यात्रा शुरू होती है। बस पहाड़ों और छुटी सुरंगों से होती जा रही थी। हल्की हल्की बारिश हो रही थी। जिससे मौसम काफी सुहाना था। बस हम थोड़ी ही देर मैं ही कटरा पहुंचने वाले थे कि हमारी बस ख़राब हो गई। बहार अभी भी बारिश हो रही। बस वाले ने हमें दुसरी बस मैं बिठा दिया।
जब हम कटरा पहुंचे तो बारिश बहुत तेज हो रही थी। जिसकी वजह से हमें वही रुकना पड़ा। जिसे काफी समय ख़राब हो गया था बारिश हल्की होने पर हमने होटल में जा कर दो कमरे बुक कर लिये। नहाने और खाना खाने तक तकरीबन 3.00 चुके थे।हमने फैसला किया की अब हम रात को यात्रा शुरू करेंगे। मेरे प्रोग्राम के अनुसार हमें दोपहर मैं ही यात्रा शुरू करनी थी। परन्तु सब के थके होने कि वजह से रात को यात्रा का फैसला करना पड़ा। परन्तु हम यात्रा पर्ची लेना भुल गए। जब तक याद आया तब तक पर्चीश्राइन बोर्ड कार्यालय बंद हो चुका था। आपको बता दें कि देश और दुनिया से माता वैष्णो देवी मंदिर में प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते है माता के दर्शन के लिए प्रत्येक श्रद्धालु को कटरा स्थित श्राइन बोर्ड कार्यालय से पर्ची कटवा कर ही यात्रा शुरू करनी होती है. इसके बाद यात्रियों को बाण-गंगा के रास्ते 14 किलोमीटर की यात्रा शुरू करनी होती है.
[ 29 -07 - 2019 ]
आज सुबह जल्दी उठकर सब तैयार हो गए। जल्द हम श्राइन बोर्ड कार्यालय पहुंचे। यात्रा पर्ची ली। और चल दिए माता वैष्णोदेवी की यात्रा के लिए।
श्री माता वैष्णो देवी
कहते हैं पहाड़ों वाली माता वैष्णो देवी सबकी मुरादें पूरी करती हैं। उसके दरबार में जो कोई सच्चे दिल से जाता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है। ऐसा ही सच्चा दरबार है श्री माता वैष्णो देवी का।
माता का बुलावा आने पर भक्त किसी न किसी बहाने से उसके दरबार पहुँच जाता है। हसीन वादियों में त्रिकूट पर्वत पर गुफा में स्थित श्री माता वैष्णो देवी का स्थान हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु माँ के दर्शन के लिए आते हैं।
माता वैष्णो देवी के दरबार में नवरात्रि के नौ दिनों में प्रतिदिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। कई बार तो श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या से ऐसी स्थिति हो जाती है कि पर्ची काउंटर से यात्रा पर्ची देना बंद करनी पड़ती है।
एक प्रसिद्ध प्राचीन मान्यता के अनुसार माता वैष्णो के एक परम भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर माँ ने उसकी लाज रखी और दुनिया को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया। एक बार ब्राह्मण श्रीधर ने अपने गाँव में माता का भण्डारा रखा और सभी गाँववालों व साधु-संतों को भंडारे में पधारने का निमंत्रण दिया।
पहली बार तो गाँववालों को विश्वास ही नहीं हुआ कि निर्धन श्रीधर भण्डारा कर रहा है। अपने भक्त श्रीधर की लाज रखने के लिए माँ वैष्णो देवी कन्या का रूप धारण करके भण्डारे में आई। श्रीधर ने भैरवनाथ को भी अपने शिष्यों के साथ आमंत्रित किया गया था। भंडारे में भैरवनाथ ने खीर-पूड़ी की जगह मांस-मदिरा का सेवन करने की बात की तब श्रीधर ने इस पर असहमति जताई।
भोजन को लेकर भैरवनाथ के हठ पर अड़ जाने के कारण कन्यारूपी माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को समझाने की कोशिश की किंतु भैरवनाथ ने उसकी एक ना मानी। जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब वह कन्या वहाँ से त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और उस कन्यारूपी वैष्णो देवी ने एक गुफा में नौ माह तक तपस्या की।
इस गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने पहरा दिया। आज इस पवित्र गुफा को 'अर्धक्वाँरी' के नाम से जाना जाता है। अर्धक्वाँरी के पास ही माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था।
कहते हैं उस वक्त हनुमानजी माँ की रक्षा के लिए माँ वैष्णो देवी के साथ ही थे। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर एक बाण चलाकर जलधारा को निकाला और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा 'बाणगंगा' के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से भक्तों की सारी व्याधियाँ दूर हो जाती हैं।
जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान आज पूरी दुनिया में 'भवन' के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थान पर माँ काली, माँ सरस्वतीऔर माँ लक्ष्मी पिंडी के रूप में गुफा में विराजित है, जिनकी एक झलक पाने मात्र से ही भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इन तीनों के सम्मिलित रूप को ही माँ वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है।
भैरवनाथ का वध करने पर उसका शीश भवन से 8 किमी दूर जिस स्थान पर गिरा, आज उस स्थान को भैरवनाथ के मंदिर' के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने माँ से क्षमादान की भीख माँगी। माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे, जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।
सबसे पहले हम पहुंचे 'बाण गंगा' चैक पॉइंट पर पहुंच और वहाँ सामान की चैकिंग कराने के बाद हमने चढ़ाई प्रारंभ करी। हमने बच्चों के लिए ट्रोली बुक कर ली।
कटरा से माता के भवन तक की दुरी लगभग 14 कि. मि. की है जिसे यात्री अपनी इच्छा अनुसार पैदल, घोड़ी-खच्चर या पालकी के द्वारा तय कर सकते हैं। ज्यादातर श्रद्धालु पैदल ही माँ के दरबार तक जाते है। चढ़ाई के रास्ते में सीढ़िया भी बानी हुई है परन्तु चढ़ने के लिए सीढ़ियों के स्थान पे पैदल चलना ज्यादा आराम दायक है। हमने भी पैदल यात्रा करी।
जय माता दी !! जय माता दी !! के नारों की गूंज मन में एक जोश और उत्साह भर देती है। माता रानी अपने भक्तो को खुद हिम्मत और ताकत देती है ताकि भक्त ऊँचे पहाड़ों को लांघ के माता के दर्शनों के लिए पहुँच सकें। ऐसा माना जाता है की माता वैष्णो देवी पैदल यात्रा करने वालो को खुद हिम्मत देती है। इस यात्रा को पूर्ण करने की। मन में माता के दर्शनों की आस लिए भक्त चलते जाते है शाम तक हम दरबार में पहुंचे और स्नान करने के बाद दर्शन करें मंदिर में अधिक भीड़ नहीं थी।
हमने रात को ही नीचे उतरने का फैसला किया।
[[ 30 - 7 - 2019 ]]
सुबह 4.00 बजें तक पहुंच। सब लोगों काफी थक गये थे। आज पुरे दिन हमें यहीं रूकना था। रात को दिल्ली वापसी कि हमारी ट्रेन थी। इसलिए हमने काफी देर तक आराम किया। दोपहर को हम पास में एक पार्क देखने गये।
आज जो मेरे प्रोग्राम के हिसाब से हमें शिव खोड़ी जाना था परन्तु साथ के लोगों के ढुलमुल रवैये और आलस्य पन की वजह से हम शिव खोड़ी नहीं जा सके। रात को रेलवे स्टेशन जाते समय काफी बारिश हुई।