सलाम नमस्ते केम छू दोस्तों 🙏
आपने अपने जीवन में कभी ना कभी सागर मंथन के विषय में अवश्य पढ़ा अथवा सुना होगा। सागर मथने के लिए रस्सी के स्थान पर सर्प का प्रयोग किया गया था। इस सर्प का नाम था वासुकी। इसी वासुकी का एक मंदिर है जो गंगा के समीप स्थित है।
ये उस वक्त की बात है जब हमारा प्यारा प्रयागराज इलाहाबाद हुआ करता था। इलाहाबाद मेरे दिल के पास हमेशा ही रहेगा और वहा के दोस्त भी❤️, मैंने लगभग एक साल इलाहाबाद में बिताया है। मैंने वहा पे बहुत सारे नए नए चीज और जानकारी हासिल किए है और उन जानकारियों में से हैं ये एक मंदिर "नागवासुकी मंदिर"।
ना जाने ज़िन्दगी में कितने बार हमने अपने बड़ों से समुंदर मंथन के बारे में सुना होगा पर कभी आपके बड़ों ने मंथन में हुए उस सर्प का नाम या उसकी कहानी नहीं बताई होगी मुझे भी नहीं बताई थीं। ये बात मुझे इलाहाबाद में जा के मालूम हुआ और जब मुझे पता चला और इस मंदिर का दृश्य देखा तो सोचा कि ये जानकारी आप तक मुझे पहुंचना चाहिए।
इलाहाबाद शहर में दारागंज मोहल्ले के उत्तर और पूर्व के कोण में गंगा के किनारे नाग वासुकी मंदिर की स्थापना हुई है। जिसकी स्थापना हजारों साल पहले ब्रह्मा के मानस पुत्र द्वारा की गई थी। इस मंदिर का वर्णन पुराणों में भी है।
बताते हैं, कि जब समुद्र मंथन हुआ था तब मंदराचल पर्वत में नाग वासुकी को रस्सी बनाकर देव और दानवों ने समुद्र में मंदराचल पर्वत की मथनी से मंथन किया था। पर्वत के उबड़-खाबड़ पत्थरों की वजह वह घायल हो गए थे।
उनकी हालत देखकर भगवान विष्णु ने उन्हें सलाह दिया, कि वह प्रयाग चले जाएं और वहां पर सरस्वती नदी में स्नान कर वही आराम करें। भगवान विष्णु के कहने पर ही नाग वासुकी प्रयाग आए थे और दारागंज के उत्तरी पूर्वी छोर पर रह कर आराम कर रहे थे।
यहां रहने के दौरान ही वाराणसी के दिवोदास जी महाराज ने नाग वासुकी को प्रसन्न करने के लिए 60 हजार साल तक तपस्या की थी। स्वस्थ होने के बाद जब नाग वासुकी यहां से जाने लगे देवताओं ने उन्हें रोकने की कोशिश की। तब नाग वासुकी ने यह शर्त रखी थी, ''यदि मैं प्रयाग में रुकूंगा तो संगम स्नान के साथ श्रद्धालु के लिए मेरा दर्शन अनिवार्य होगा और दूसरा सावन की पंचमी के दिन तीनों लोकों में एक साथ मेरी पूजा होगी।'' जब देवताओं ने उनकी इन मांगों को स्वीकार कर लिया। तब नाग वासुकी जी को ब्रह्माजी के मानस पुत्र द्वारा वहीं पर स्थापित किया गया।
मंदिर के गर्भगृह में आते हैं नाग वासुकी
मंदिर के पुजारी अंशुमान त्रिपाठी ने कहा, "मंदिर के अंदर स्थित गर्भगृह में प्रतिदिन शाम को भोजन आरती के बाद बिस्तर लगाया जाता है। सुबह जब मंदिर के कपाट खुलते हैं तो बिस्तर का चद्दर अस्त-व्यस्त होता है। जैसे उस पर कोई लेट हो। मान्यता है कि नाग वासुकी प्रतिदिन बिस्तर पर आराम करते हैं।"
मंदिर परिसर के भीतर मध्यकालीन शैली में निर्मित एक छोटा सा मंदिर है जिसका शिखर सुन्दर है। इस मंदिर के उत्तर-पूर्वी कोने में असि- माधव का मंदिर है। असि-माधव प्रयागराज के १२ माधवों में से एक हैं। ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहाँ से गंगा एवं उसके घाटों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। मंदिर की भित्तियों एवं सीड़ियों पर बने मनमोहन भित्तिचित्र अत्यंत प्रभावित करते हैं।
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