सुंदरवन विश्वविख्यात मैंग्रोव डेल्टा
- जनवरी 05, 2013
संसार का सब से बड़ा मैंग्रोव डेल्टा - सुंदर वन डेल्टा
भारत एक विचित्रताओं का देश है और इन्ही में एक है बंगाल स्थित सुंदरवन का डेल्टा।
स्कूल की किताबों में पढ़ा भर था पर तब ना तो चित्र उपलब्ध थे ना विशेष जानकारी।
घुमक्कड़ो के लिए ऐसे स्थान विशेष आकर्षण रखते है।
एक दिन ईमेल चेक करते समय एक ऑफ़र आया waxpol resorts द्वारा संचालित
सुंदरवन टाइगर रिज़ॉर्ट में
जिसमें चार दिन तीन रात का पेकेज था।
पहला और दूसरा दिन
बस फिर दोस्तों से विचार विमर्श के बाद आठ लोग सुबह सात बजे की भोपाल हावड़ा एक्स. से निकल पड़े कलकत्ता की ओर। लगभग35 घंटे की उबाऊ यात्रा के बाद अगले दिन शाम को पहुँच गए।
हाजरा रोड स्थित महाराष्ट्र निवास में चेक इन किया। अगले दिन सुबह प्रिया सिनेमा से हमें लेने पिकअप वैन आने वाली थी।थकान भरीयात्रा के बाद रात को भरपूर विश्राम आवश्यक था।
तीसरा दिन
स्नान आदि दैनिक कार्यों से निवृत हो प्रिया सिनेमा पहुँचे जो निवास से पाँच मिनट की दूरी पर था।
कुछ ही समय में वैन में बैठ कर चल पड़े सुंदरवन की ओर जो कोलकाता से लगभग पचास किमी की दूरी पर था।
वैन में ही हमें नाश्ते के पेकेट्स दिए गए। स्वादिष्ट नाश्ता खातेहुए और बंगाल के गाँवों की दुर्दशा देखते हुएआगे बढ़ रहे थे।
सुंदरवन बंगाल प्रांत में स्थित संसार के सब से बड़े डेल्टा के रूप में जाना जाता है जिसका एक बड़ा भाग बांग्ला देश में है। गंगा यहाँहूगली के नाम से जानी जाती है और जब वो समुद्र में मिलती है तब सैकड़ों हिस्सों में बट कर एक विशाल डेल्टा का रूप ले लेती है।
सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान सुंदरवन डेल्टा का अहम भाग हैं, जोकि मैंग्रोव वन और बंगाल टाइगर्स की सबसे बड़ी आबादी के रूप में जानाजाता हैं। वर्ष 1987 में सुन्दर वन नेशनल पार्क यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया गया था।वर्ष 1966 के बाद से हीसुंदरवन एक वन्यजीव अभयारण्य के रूप में जाना गया हैं। लगभग 400 से अधिक रॉयल बंगाल टाइगर हैं और 30000 से अधिकचित्तीदार हिरण क्षेत्र में पाए गए थे। गंगा नदी एक आकर्षित डेल्टा बनाती हैं।
सुन्दरवन नेशनल पार्क के जानवर –
सुंदरवन नेशनल पार्क में जानवरों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमे से कुछ किंग क्रेब्स, बाटागुर बास्का, ओलिव रिडले और कछुएओकटोपस हैं। इन जंगलों में विशाल छिपकलियां, जंगली सूअर, चित्तीदार हिरण और मगरमच्छ भी देख सकते। सुंदरवन को विशेष रूपसे दुनिया में बाघों के लिए जाना जाता हैं। यहाँ पाए जाने वाले बाघों ने खुद को खारा पानी पीने के अनुकूल किया हैं। फिशिंग कैट्स, चीतल, जंगली सूअर,लेपर्ड कॉमन ओटर आदि पाए जाते हैं। नदी के पानी में दो प्रकार के डॉल्फ़िन गंगेटिक डॉल्फ़िन और इरावाडीडॉल्फ़िन पाये जाते है।
लगभग दो घंटे की यात्रा के बाद दस बजे हम सोनखली नाम के एक गाँव पहुँचे जो एक सुंदरवन की एक केनाल के किनारे बस हुआ था।यहाँ हमारी क्रूज़ बोट तैय्यार थी। अगले चार दिन इसी की सवारी कर पूरे क्षेत्र का आनंद लेना था। यहाँ आकर पता लगा की पेकेज मेंसिर्फ़ हम आठ लोग ही नहीं है बल्कि अन्य तीस लोग एक बस में सवार हो के पहले ही बोट पर बैठ चुके है। काफ़ी बड़ी डबल डेकर बोटथी जिसमें सब से ऊपर की डेक पर लगभग पचास लोगों के बैठने की व्यवस्था थी एवं नाश्ते भोजन के लिए मेज़ लगी हुई थी। पिछलेहिस्से में एक छोटा सा बार था जहां से लोग बीयर आदि ख़रीद सकते थे। सारी व्यवस्था देख कर मन प्रसन्न हो गया।
अब सफ़र शुरू हुआ कनाल्स से होते हुए रिज़ॉर्ट की तरफ़। हज़ारों की संख्या में छोटी बड़ी कनाल्स और उन्ही में से थोड़ी सी हमें देखनेको मिलने वाली थी अगले तीन दिन में। हाई टाइड का समय था अतः चारों ओर पानी ही पानी दिखाई दे रहा था पर जैसे जैसे आगे बढ़तेगए दोनो तरफ़ छोटे छोटे द्वीप दिखने लगे जिन में कुछ पर आबादी भी थी। पानी से बचाव के लिए घरों के आसपास ऊँची मेड़ बना दी गईथी। चारों तरफ़ इस उम्मीद में देखते रहे की कोई जलीय प्राणी दिखाई दे जाए। पर अफ़सोस ही रहा। बाद में पता लगा की हाई टाइड मेंकम ही दिखाई देते है।
लगभग एक बजे रिज़ॉर्ट पहुँचे और अपने टेंट में प्रवेश किया। कहने को टेंट थे पर अंदर अत्यंत सुंदर व्यवस्था उपलब्ध थी। अटैच टोईलेटबाथरूम /वाशबेसिन /साबुन /टोवेल।
लंच एरिया में वेज/नॉनवेज दोनो तरह का भोजन उपलब्ध था। अत्यंत स्वादिष्ट भोजन व अंत में डेज़र्ट।
तृप्त मन से भोजन उपरांत एक घंटे आराम करना था। तीन बजे बोट से टूर सफ़ारी पर निकलना था।
आराम कर के किनारे आए तो आश्चर्य लगा। सुबह भरी हुई कनाल में अब पानी इतना नीचे जा चुका था की सीढिया दिखाई दे रही थी।लो टाइड का परिणाम।लगभग बीस सीढ़ियाँ उतर के बोट में चढ़े ज्योतिरामपुर बर्ड senctuary देखने।
पक्षियों में किसी की कोई रुचि नहीं थी। सभी टाइगर के लिए आए थे। हाँ किनारे मगरमच्छ ज़रूर आराम करते दिखे पर जैसे ही बोट कीआवाज़ सुनते पानी में चले जाते।
दो घंटे में छोटी छोटी कई कनाल्स दिखी जिसमें से होकर टाइगर शिकार करते थे।
पाँच बजे लौटे। चाय और स्नैक्स इंतज़ार कर रहे थे। आगे आठ बजे डिनर का इंतज़ार करना था और अपना स्वयं का मनोरंजन करनाथा। जिसकी की व्यवस्था कर के ही निकले थे मित्रगण।
यहाँ सभी जगह रात को मुख्य द्वार बंद करने के साथ सभी पर्यटकों को सख़्ती से निर्देश है की रात को कोई कमरे से बाहर नहीं निकले। अक्सर बाघ रात को घुस के शिकार कर उठा ले जाते है। अनेक दुर्घटनाओं के बाद ये सरकार ने कठोर निर्देश जारी किए।
शानदार डिनर कर के दस तक सभी सो गए।
चौथा दिन।
सुबह दैनिक क्रियाओं से निवृत्त हो कर नाश्ता करने पहुँचे। स्वादिष्ट नाश्ता कर बोट पर चलके अपने लिए सब से अच्छी सीट्स चुन करबैठ गए। आज लंच बोट पर ही मिलने वाला था अतः पूरा दिन क्रूज़ बोट पे ही रहना था। आज प्राणियों के दर्शन होने की उम्मीद थी।विशेष कर बाघ की। सब लोगों के सवार होने पर बोट चल पड़ी। पहला पड़ाव सजनाखली वॉच टॉवर था। एक निर्जन द्वीप पर बना येटॉवर बाघ देखने की उपयुक्त जगह थी। घने मैंग्रोव जंगल के बीच लगभग एक किमी लम्बी ऊँचाई पर बनायी गई वॉच स्ट्रिप। घंटे भरका सफ़र था। बलखाती लहरों और अनेक कनाल्स के साथ साथ चलते रहे। हिरनो के झूँड दिख रहे थे। बंदरो की भरमार थी।किनारों परमगरमच्छ लेटें हुए। पानी में ऊदबिलाव डूबते उतराते। विभिन्न पक्षियों की चहचहाट से हो रहा शोर। स्थानीय मछलीमार नौकाओ कीपतवार आवाज़ करती हुई। एक अलग वातावरण में क्रूज़ आगे बढ़ रहा था।
बस बाघ नदारद।
जब वॉच टॉवर पर उतरे तब सन्नाटे से सामना हुआ। लगा बाघ कही आसपास ही होगा। आवाज़ ना करने की सलाह दी गई थी। सभीअत्यंत शांति से स्ट्रिप पर चलते हुए चारों तरफ़ ढूँड रहे थे पर श्रीमान टाइगर कही नज़र नहीं आ रहे थे।घंटे भर में सभी उकता गए थे।नाउम्मीदी से हुई निराशा सब के चेहरों पर स्पष्ट परिलक्षित हो रही थी। आख़िरकार वापस बोट पर आ गए।
बोट पर बार खुल चुका था और काफ़ी लोगों के साथ हमने भी अपने लिए एक एक बीयर ली। बोट अब अगले पड़ाव के लिए चलने कोतैय्यार थी और हमें लंच लेना था। बूफे पद्धति से सब ने अपनी रुचि अनुसार प्लेट में सामग्री ली और बीयर की चुस्कियों के साथ खानाशुरू किया।
किंतु सब की आँखे जंगल में खोजती हुई इधर से उधर देख रही थी। तब तक बोट एक अन्य द्वीप पर रुकी। यहाँ म्यूज़ीयम था जिसमेंइस क्षेत्र का विवरण था। मित्रों को विशेष रुचि ना होने से पाँच लोग नहीं उतरे। हम तीन ही देखने गए। कितना भी जान लो। घर आनेतक भी याद रह जाए तो बहुत।
अब बाघ भूलकर सुंदरवन का आनंद ही लेना था। और तब याद किया की हम ये विश्वविख्यात मैंग्रोव का आनंद लेने ही तो आए है।बाघ दिख जाए तो बोनस होगा।
फिर तो बचा समय बस चारों ओर का नजारा देखते है और पाँच बजे तो वापस रिज़ॉर्ट पहुँच गए। हल्का सा नाश्ता और चाय कॉफ़ी।
अगली सुबह तक कोई काम नहीं था।
डिनर तक आस पास के विभिन्न क्षेत्र देखते रहे।
पाँचवाँ दिन
आज भी चौथे दिन की पुनरावृत्ति ही थी। फ़र्क़ की एक दूसरे द्वीप सुधानयाखली वॉच टॉवर एवं एक ऊँचाई पर बना व्यू टावर।
बस क्रीक के चारों ओर घना जंगल।
दिन भर बोट की यात्रा के साथ छोटी मझोली क्रीक्स में आवागमन।
ये यात्रा में इन कनाल्स और पानी का उतार चढ़ाव देखना अपने आप में एक अनुभव है जो सम्भव है अधिक पर्यटकों को अरुचिकर लगे।
हम में से ही चार तो लगातार ऊपरी डेक पर बने रहे और इन विशिष्ट बनावट की क्रीक्स और कनाल्स का लुत्फ़ उठाते रहे और बाक़ी केचार नीचे की डेक पर ताश आदि खेलने में रम गए।
बीयर आज भी उपलब्ध थी। लंच भी बोट पर ही हुआ।
बीच में कही किसी मंदिर पर रुकते या किसी टापू पर mudwalk के लिए।
टाइगर के अलावा सारे प्राणी जगत के दृश्य थे।
January का महीना था ठंड काफ़ी थी। सुबह हाई टाइड में चढ़ते तो शाम होते होते पानी लगभग दस से पंद्रह फ़ुट नीचे उतर जाता।अविस्मरणीय था ये सब देखना।
शाम को रिज़ॉर्ट वापसी।
आज शाम हमारे लिए वहाँ के रहवासियो की एक नाट्य प्रस्तुति का आयोजन था जिसके द्वारा बाघों की उपस्थिति में उससे बचाव कामंचन किया गया। स्थानिक जब भी घरों से निकलते है एक नक़ली चेहरा सिर के पिछले भाग में लगा लेते है जिस से बाघ पीछे सेआक्रमण नहीं कर पाता। इसके बाद एक नृत्य प्रस्तुति भी हुई जिसमें बाघों की पूजा और संरक्षण सम्बंधित जानकारी थी। घंटा डेढ़ घंटाउसमें व्यस्त रहे और इनकी जीवनशैली देख पाए। भारत के अन्य भागो की तरह ग़रीबी यहाँ हर कदम पर दिखाई दी।
डिनर के बाद आज की यहाँ की अंतिम रात्रि की नींद लेने चले।
छठा दिन
आज आधे दिन की सफ़ारी थी।
सुबह निकले और एक स्थानीय गाँव पहुँचे।
गाँव वालों को हम में कोई उत्सुकता नहीं थी ना हम में से किसी को।
उसके बाद जंगल के एक हिस्से में mud walk करने का कार्यक्रम रद्द किया गया क्योंकि रात वही एक शिकार हुआ था एवं बाघ केलौटने का ख़तरा था।
आगे एक स्थानीय पूजास्थान था जहां भक्तों से ज़्यादा बंदर थे।
लगभग बारह बजे तो सफ़ारी में यहाँ वहाँ घूमते रहे। दोबारा शायद ही आना हो अतः सब आँखो में यादों में बसाने लगे थे।
लंच से पहले ही सामान पैक कर लिया।
दो बजे तक बोट से सोनखली के लिए रवाना होना था।
आयोजकों ने परम्परानुसार हमसे ट्रिप के बारे में विचार जाने।
चारों दिन टाइगर नहीं देख पाए इसलिए खेद भी प्रकट किया।
अंततः भारी मन से बोट पर सवार हुए।
जानते थे फिर शायद यहाँ कभी आना ना हो।
इस बार एक बड़ी सी क्रीक से होते हुए वापसी हो रही थी जिसके कारण स्थानीय निवासियों के आवागमनहेतु चलाई जा रही बोट्सदेखने का अवसर मिला और देख के दिल धक्क रह गया। एक एक बोट में क्षमता से कही अधिक लोग लदे फ़दे थे। किसी दुर्घटना कीस्थिति में भयंकर दृश्य होगा सोच कर मन काँप गया
अक्सर अखबारो में पढ़ते है और भूल जाते है। आज देखा तो सोच के रोंगटे खड़े हो गए। लोगों को भी जीविकोपार्जन के मजबूरीवशऐसी यात्रा करनी होती है
रोज़ रोज़।
यही सब देखते सोचते सोनखली पहुँचे। इस बार हमें भी अन्य पर्यटकों समान बस से ही यात्रा करनी थी।
आते समय दो घंटे लगे क्योंकि सुबह ट्रैफ़िक नहीं था। वापसी अत्यंत कष्टप्रद थी। बंगाल का अव्यवस्थित ट्रैफ़िक और आगे कोलकातापहुँच के वहाँ के ट्रैफ़िक की भीषण अव्यवस्था से पाला पड़ा। दो घंटे का सफ़र पाँच छः घंटे में पूरा हुआ। महाराष्ट्र निवास बुक था। वहाँमराठी भोजन ग्रहण कर थके माँदे सो गए।
अगले दिन सुबह हावड़ा भोपाल एक्स से वापसी थी।
सातवाँ दिन
ट्रेन का समय साड़े बारह था तो सोचा कोलकाता का प्रसिद्ध काली मंदिर के दर्शन किए जाए जो की निवास से पाँच मिनट दूर था।
यही भारत की एक और विसंगति दिखाई दी। ताँगे जैसी गाड़ी को घोड़ों की जगह इंसानो द्वारा खींचते हुए। मन भारी होता गया देख के।
पता नहीं इस पर अब तक रोक क्यों नहीं लगाई गई है।
मंदिर के अंदर भी अव्यवस्था अपने चरम पे थी।
पूर्व के अत्यंत समृद्ध सुशिक्षित बंगाल की दुर्दशा देख के मन बुरी तरह आहत हो गया। कहते है न व्यक्ति की तरह संस्कृतियों का भी अंतहोता है। ये बात बंगाल और चंद्रगुप्त चाणक्य की भूमि बिहार पर पूरी तरह लागु हो रही है।
कोलकाता का ट्रैफ़िक देख के समयपूर्व स्टेशन पहुँचना उचित जान पड़ा और हम लगभग दो घंटे पूर्व पहुँच गए।
ठीक साड़े बारह बजे ट्रेन चल भी दी।
आठवाँ दिन
पूरा दिन ट्रेन में। शाम साड़े छः बजे पहुँचने वाली रात साड़े ग्यारह बजे भोपाल पहुँची।
अब अगली यात्रा विवरण के साथ
धन्यवाद
संजीव जोशी
भोपाल