महाराष्ट्र के माउंट एवरेस्ट 'कलसुबाई' का कभी न भूलाए जा सकने वाला एक यादगार सफर

Tripoto
20th Jul 2019
Photo of महाराष्ट्र के माउंट एवरेस्ट 'कलसुबाई' का कभी न भूलाए जा सकने वाला एक यादगार सफर by रोशन सास्तिक

मेरे लिए सफर कहीं पहुंचना नहीं है बल्कि इसके ठीक उलट मेरे लिए सफर कहीं से निकलना है। अपनी जगह और अपने कंफर्ट से कहीं दूर। किसी एकदम बेगानी और अनजानी जगह। मेरे लिए सफर का मतलब ओवररेटेड मंजिल को सर माथे से लगाने की बजाय उस तक पहुंचने के लिए तय किए गए सफर को आंखों के जरिए रोम-रोम में भर लेना और फिर खुद को पूरी तरह खाली कर देना है। तो खुद को खाली कर देने के अपने पसंदीदा ख्याल को अमलीजामा पहनाने के लिए मैंने अपने दोस्त गुंजन के साथ महाराष्ट्र का "माउंट ऐवरेस्ट" कहे जाने वाले 'कलसुबाई शिखर' को फतह करने का प्लान बनाया।

Photo of Kalsubai Peak, Indore, Maharashtra by रोशन सास्तिक

जुलाई का महीना था। सुबह के 6 बजे हम दोनों घर(कल्याण) से निकले। घर से निकलने से पहले तक सब कुछ ठीक था। लेकिन फिर 'घर से निकलते ही, कुछ दूर चलते ही' हुआ यह कि आसमान से बारिश किसी आफत की तरह हम पर टूट पड़ी। इतनी मूसलाधार बारिश कि हमें न चाहते हुए भी गाड़ी को सड़क किनारे लगाकर रुकना पड़ गया। गाड़ी खड़ी करने के बाद हम दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और आंखों ही आंखों में एक दूसरे से सवाल किया- भाई, बारिश तो कुछ ज्यादा ही हो रही है। आज जाना कैसिंल कर दें क्या? इसके तुरंत बाद ही दोनों के सूरत पर जवाब भी छप आया कि देख भाई, प्लान तो किसी भी सूरत में कैंसिल नहीं होगा। अब जब घर से निकल ही गए हैं तो फिर मंजिल की सूरत देखकर ही दम लेंगे।

Photo of Kalsubai Trek, Bhandardara - Ghoti Road, Rajur, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

दरअसल, गूगल की गलियों में टहलते-टहलते जिस दिन हमारे हाथ यह जानकारी लगी थी कि हमारे घर से महज 150 किलोमीटर दूर ही महाराष्ट्र की सबसे ऊंची चोटी है, उसी दिन हमने यह तय कर लिया था कि अगली ट्रिप कलसुबाई की ही होगी। और सौभाग्य से महज एक हफ्ते के बाद ही हम दोनों समुद्रतल से करीब 5500 फीट ऊंची कलसुबाई की चोटी को फतह करने अपनी सवारी(Pulser 150) पर निकल पड़े थे। लेकिन कमबख्त बारिश ने हमारा साथ निभाने की बजाय खेल बिगाड़ने का इंतजाम कर दिया था। लेकिन जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि हम दोनों भी तय कर चुके थे कि आज तो किसी भी सूरत में हमें महाराष्ट्र की सबसे ऊंची चोटी को फहत करने का चरमसुख भोगना ही है।

Photo of kalsubai Treking And Camping, Bhandardara - Ghoti Rd, Bari, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

इसलिए पहले तो हमने कुछ देर तक बारिश के थम जाने का दम साधे इंतजार किया। लेकिन जब सब्र का फल नसीब न होता दिखा तो फिर हमने बारिश से ही दो-दो हाथ करने की ठान ली और चल पड़े अपनी मंजिल की ओर। कुछ ही देर में हम कल्याण शहर की सीमा से बाहर निकल मुंबई-नासिक नेशनल हाइवे 160 की राह पकड़ चुके थे। अब हमें अगले 100 किलोमीटर तक इसी सड़के के साथ अपने सफर को जारी रखना था। यहां चलते-चलते मैं एक बात बताता चलूं कि मैं जब भी सफर करता हूँ, तब मेरी कोशिश बाहर देखने की बजाय अपने अंदर झांकने की होती है। सफर का सुकून मुझे वो मौका देता है, जब मैं इत्मीनान से अपने अंदर का सफर कर पाता हूँ।

Photo of Kalsubai Temple, Ahmednagar, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

सफर के दौरान मैं अक्सर खुद कहीं गुम हो जाने के लालच में रहता हूँ। मुझे चलते-चलते और सोचते-सोचते कहीं गुम हो जाना बहुत पसंद है। अपने इसी शौक को पूरा करते हुए हम देखते ही देखते खड़वली, आसनगांव और खर्डी जैसे इलाके पार करते हुए करीब 2 घंटों में मुंबई शहर में रहने वाले बाशिंदों के सबसे फेवरेट वीकेंड टूरिस्ट प्लेस कसारा घाट पहुंच गए। और भाई साहब, कसारा घाट पहुंचकर यहां के नजारों ने हमें अपनी थकान मिटाने का बेहद खूबसूरत मौका दिया। हमारे भीगे हुए बदन पर बहती हवा के टकराने से शरीर में छूट रही कंपकंपी को कंट्रोल करने लिए गुंजन ने रामबाण इलाज 'चाय' के लिए यहां-वहां नजर दौड़ाई और तुरंत ही उसे एक टपरी नजर आ गई। सड़क किनारे टपरी पर गर्म चाय की चुस्कियां लेते-लेते घाट से बहते झरनों को देखने का एहसास ऐसा कि सारा दिन इन्हीं दृश्यों को एकटक देखते ही गुजर जाए।

Photo of kalsubai Peak, Bari, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

लेकिन क्योंकि कसारा घाट सफर का एक बेहद दिलकश हिस्सा भर था, मंजिल नहीं। इसलिए घाट पर अपना करीब आधा घंटा खर्च करने के बाद हम दोनों एक बार फिर अपनी मंजिल 'महाराष्ट्र के माउंट एवरेस्ट' की तरफ बढ़ चले। यहां से हमारी मंजिल हमसे महज 50 किलोमीटर ही दूर रह गई थी। हमें लगा था कि हाईवे ऐसे ही हवा-हवाई रहा तो हम 1 घंटे में ही कलसुबाई के बेस विलेज पहुंच जाएंगे। लेकिन 'घोटी' में नेशनल हाइवे 160 से जब हमारी बाइक ने स्टेट हाइवे 44 की तरफ रूख किया, तब एकदम से वक्त और हालात दोनों ही बदल गए। कुछ देर पहले तक हवा से बात करते हुए जा रहे हम अचानक खुद को गड्ढों से भरी सड़क में संघर्ष करते हुए पाते हैं। गड्ढों से भरी सड़क पर बगैर बैलेंस गवाएं आगे बढ़ते रहने की जद्दोजहद में काफी वक्त जाया हो जाने के चलते कलसुबाई ट्रेक के बेस विलेज़ 'बारी गांव' तक पहुंचते-पहुंचते करीब 12 बज गए।

Photo of Bhandara, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक
Photo of Bhandara, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

यानी करीब 6 घंटे के एक लंबे सफर के बाद हम आखिरकार वहां पहुंच गए जहां से हमें अपनी असली यात्रा शुरू करनी थी। 'बारी गांव' में हमनें 30 रुपए देकर अपनी बाइक पार्क की और फिर माउंट एवरेस्ट के करीब पांचवे हिस्से जितनी ऊंची चोटी को फतह करने निकल पड़े। गुंजन और मैं दोनों पहली बार इतनी ऊंची चढ़ाई चढ़ने जा रहे थे इसलिए जोश तो बहुत ज्यादा था। लेकिन मुश्किल से आधे घंटे की ही चढ़ाई चढ़ने के बाद हमें एहसास होने लगा कि 5500 फीट की ऊँचाई से दमदार नजारों को देखने के चक्कर में हमारा काफी दम निकल जाएगा। चूंकि थोड़ी-थोड़ी देर पर आसमान से पानी की बौझार हो रही थी, इसलिए शरीर को पानी की जरूरत तो कुछ खास महसूस नहीं हुई। लेकिन बॉडी कुछ ऐसे चीज की डिमांड करने लगा जिससे एनर्जी लेवल एकदम से लल्लनटॉप हो जाए। किस्मत से हमनें कसारा घाट पर ही एक दर्जन केले खरीद लिए थे। इसलिए 6-6 केले दबा लेने के बाद शरीर में भी ऊर्जा का भरपूर संचार हो गया।

Photo of Bhandardara Lake camping, dam, Bhandardara, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक
Photo of Bhandardara Lake camping, dam, Bhandardara, Maharashtra, India by रोशन सास्तिक

मैं अब तक यह बात कई मर्तबा दोहरा चुका हूं और इसके बावजूद मैं एक बार फिर यह दोहराना चाहूंगा कि कलसुबाई को महाराष्ट्र का माउंट एवरेस्ट कहा जाता है। जिसका बड़ा सीधा का कारण यह है कि महाराष्ट्र में समुद्र तल से 1646 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कलसुबाई शिखर से ऊपर और कुछ भी नहीं है। और इस बात को बार-बार दोहराने का भी यही एक कारण है कि इसकी यही खासियत पर्यटकों को यहां खींच लाती है। ट्रेकिंग के शौकीन हर एक घुम्मकड़ के दिल में यह चाह रहती है कि एक दिन वह खुद को महाराष्ट्र के सबसे ऊंचे शिखर पर खड़ा पाए। यही वजय है कि साल के बारहों महीने अहमदनगर जिले के अकोला तालुका में स्थित राज्य के इस सर्वोच्च शिखर पर अपने कदम रखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते रहते हैं।

Photo of महाराष्ट्र के माउंट एवरेस्ट 'कलसुबाई' का कभी न भूलाए जा सकने वाला एक यादगार सफर by रोशन सास्तिक
Photo of महाराष्ट्र के माउंट एवरेस्ट 'कलसुबाई' का कभी न भूलाए जा सकने वाला एक यादगार सफर by रोशन सास्तिक

कलसुबाई शिखर की चढ़ाई तो काफी लंबी है लेकिन हर थोड़ी देर पर सुस्ताने और पेट पूजा के लिए खाने-पीने की दुकानों की अच्छी-खासी व्यवस्था होने की वजह से नौसिखिए भी 3-4 घंटे में चढ़ाई चढ़ सकते हैं। कलसुबाई शिखर पर कलसुबाई माता का मंदिर होने की वजह से यहां नवरात्रि जैसे त्यौहारों के दौरान बड़े पैमाने पर श्रद्धालुओं का भी आना-जाना लगा रहता है। इसलिए उन सभी को ध्यान में रखते हुए रास्ता भी काफी बेहतर बना हुआ है। हम दोनों भी इन्हीं रास्तों से होते हुए और जगह-जगह कुछ न कुछ खाते-पीते अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते चले जा रहे थे। बारिश के मौसम में बादलों की गिरफ्त में होने की वजह से नए लोग यह अंदाजा नहीं लगा पाते हैं कि अभी और कितनी चढ़ाई चढ़ना बाकी रह गई है। इसी वजह से आप जैसे-जैसे चढ़ाई चढ़ते जाते हैं, वैसे-वैसे आपको बादलों में छुपा हुए नए-नए शिखर नजर आते रहते हैं। जो आपको मुँह चिढ़ाते हुए कहेंगे कि- अभी कहां, अभी तो और चढाई बाकी है।

Photo of महाराष्ट्र के माउंट एवरेस्ट 'कलसुबाई' का कभी न भूलाए जा सकने वाला एक यादगार सफर by रोशन सास्तिक
Photo of महाराष्ट्र के माउंट एवरेस्ट 'कलसुबाई' का कभी न भूलाए जा सकने वाला एक यादगार सफर by रोशन सास्तिक

करीब आधे से कहीं अधिक चढाई चढ़ने के बाद हमने पाया कि हम बादलों से ऊपर निकल आए हैं। जमीन से इतनी ऊंचाई पर से जमीन को देखने का एहसास शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। इतने ऊपर आने के बाद जब आप नीचे देखते हैं तो छोटे-छोटे दिखाई पड़ रहे चीजों को देखने के बाद एकाएक आपको अपनी सूक्ष्मता का अहसास होता है। इतनी ऊंचाई पर आने के बाद दिखाई पड़ने वाले नजारों को निहारने के बाद हम जैसे शहर की चारदिवारी में कैद रहने वाले लोगों की बड़े होने की गलतफहमी पलक झपकते ही गायब हो जाती है। वैसे तो हम बहुत ज्यादा तक गए थे लेकिन हमने अनुभव किया कि जैसे जैसे ऊपर चढ़ रहे हैं, नजरों से नजर आने वाले नजारे वैसे-वैसे और ज्यादा खूबसूरत होते जा रहे हैं। बस इसी बात से प्रेरित होकर हम दोनों एक बार फिर उठ खड़े हुए और चल दिए शिखर की ओर।

Photo of महाराष्ट्र के माउंट एवरेस्ट 'कलसुबाई' का कभी न भूलाए जा सकने वाला एक यादगार सफर by रोशन सास्तिक
Photo of महाराष्ट्र के माउंट एवरेस्ट 'कलसुबाई' का कभी न भूलाए जा सकने वाला एक यादगार सफर by रोशन सास्तिक

जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि ट्रेकिंग का रास्ता तो काफी आसान था। लेकिन इस रास्ते में 3 पड़ाव ऐसे आते हैं, जहां ज्यादातर लोगों के पसीने छूट जाते हैं। जी हां, इस रास्ते में 3 जगह चढाई के लिए आपको लोहे की खतरनाक सीढ़ियों से होकर गुजरना पड़ता है। पहली वाली सीढ़ी तो मैं हल्की हिम्मत दिखाकर पार कर गया। लेकिन दूसरी सीढ़ी से गुजरते वक्त कुछ ऐसा हुआ कि मेरी सांस अटक गई। दरअसल, इधर मैं बारिश की वजह से फिसलन भरी सीढ़ियों पर जैसे-तैसे बैलेंस बनाकर चढ़ने में लगा था, तभी सामने से बंदरों की एक टोली आ गई। अब मेरी समझ में नहीं आया कि मैं करूँ तो करूँ क्या? जब तक बंदर रास्ते से हटेंगे नहीं, तब तक मैं आगे बढ़ पाऊंगा नहीं। लेकिन अगर बंदर को रास्ते से हटाने के लिए मेरे किसी हरकत से बंदर भड़क कर हमलावर हो गए तो मेरे रस्ते लग जाएंगे।

Photo of महाराष्ट्र के माउंट एवरेस्ट 'कलसुबाई' का कभी न भूलाए जा सकने वाला एक यादगार सफर by रोशन सास्तिक
Photo of महाराष्ट्र के माउंट एवरेस्ट 'कलसुबाई' का कभी न भूलाए जा सकने वाला एक यादगार सफर by रोशन सास्तिक

ऐसे संकट के समय में मैंने संयम से काम लेने की सूझबूझ दिखाई। और कुछ देर तक कुछ भी नहीं करने का फैसला किया। नतीजतन बंदरों का झुंड खुद ब खुद वहां से कहीं और चला गया। इस दौरान मैं डर तो बहुत गया था लेकिन कहते है ना कि डर जितना ज्यादा होता है मजा भी उसी अनुपात में मिलता है। पहली और दूसरी सीढ़ी को पार कर लेने के बाद तीसरी और आखिरी सीढ़ी मंजिल के मुहाने पर मिलती है। लगभग 60 डिग्री एंगल में खड़ी सीढ़ी की खस्ता हालत देखने के बाद किसी की भी हालत खराब हो जाएगी। मेरे लिए इस सीढ़ी पर चढ़ना इतना ज्यादा डरावना था कि हिम्मत जुटाने के लिए मैं करीब आधे घंटे तक वहीं खड़ा रहा। वैसे उम्मीद के एकदम उलट गुंजन बड़ी आसानी से सीढ़ियों से होते हुए मुझसे पहले कलसुबाई शिखर पर पहुंच गया। लेकिन मेरे लिए एक वक्त यह काम इतना ज्यादा मुश्किल हो गया था कि मैंने अपनी मंजिल से महज 20 फीट की पहले ही उसे अलविदा कहने का मन बना लिया था। लेकिन फिर पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि मेरे अंदर अचानक हिम्मत का ऐसा गुबार फूटा कि मैं एक-एक कदम बढ़ाते हुए मंजिल की सीढ़ियां चढ़ने लग गया।

Photo of महाराष्ट्र के माउंट एवरेस्ट 'कलसुबाई' का कभी न भूलाए जा सकने वाला एक यादगार सफर by रोशन सास्तिक
Photo of महाराष्ट्र के माउंट एवरेस्ट 'कलसुबाई' का कभी न भूलाए जा सकने वाला एक यादगार सफर by रोशन सास्तिक

और फिर आखिरकार, जी हां आखिरकार मैं वहां पहुंच ही गए जहां पहुंचने के लिए सुबह 6 बजे घर से निकला था। दोपहर के करीब 3 बज रहे थे। लेकिन कलसुबाई शिखर पर अचानक ही मौसम ने ऐसा विकराल रूप धारण किया कि मुझे डर लगने लगा कि कहीं हवा मुझे उड़ा न ले जाए। क्योंकि सीढ़ी से ऊपर आने के बाद ही हमने पाया कि कलसुबाई शिखर पर हवाएं तूफान-सी तेज गति से बह रह थी। और ऊपर से आसमान भी भयानक नजर आ रहा था। बादलों की गड़गड़ाहट, बिजली की चमक और उसपर जोरदार प्लस शोरदार बरसात को देखकर ऐसा लगा जैसे अब किसी भी पल प्रलय आने ही वाला है। यही वजह रही कि मैं जब तक टॉप पर रहा तब तक मैंने एन्जॉय कम किया और खौफ़ ज्यादा खाया। हालांकि, शिखर पर खुद को संभालते हुए यह ख्याल बार बार रोम-रोम को रोमांच से भर दे रहा था कि वक्त के इस पल में हम अपनी मातृभूमि महाराष्ट्र की एक ऐसी ऊंचाई पर खड़े हैं, जिससे ऊंचा राज्यभर में दूसरा और कोई स्थान नहीं है। कुल मिलाकर दिमाग में एक ही गाना चल रहा था कि आज मैं ऊपर और सारा महाराष्ट्र नीचे।

Photo of महाराष्ट्र के माउंट एवरेस्ट 'कलसुबाई' का कभी न भूलाए जा सकने वाला एक यादगार सफर by रोशन सास्तिक

कलसुबाई शिखर पर हमने करीब आधा घंटा बिताया। और यकीन मानिए, उस आधे घंटे के दौरान हर एक पल को हमने इतना जिया... जितना उससे पहले शायद ही कभी जिया हो। पहले तो हम ऊपर से नजर आ रहे खूबसूरत नजारों को अपनी आंखों और कैमरे में नजरबंद करते हुए अपनी भावनाएं एक-दूसरे के साथ साझा कर रहे थे। लेकिन फिर एक वक्त ऐसा आया कि हम दोनों देर तक खामोश हो गए। चुपचाप बस नंगी आंखों से नजर आ रही हर एक चीज को देखे जा रहे थे। ऐसा लग रहा था मानों कितना कुछ है जो इन आँखों ने कभी देखा ही नहीं। दूर-दूर तक फैली मन को तरंगित करती हरियाली, पहाड़ों से जहां-तहां से गिरते मन मोह लेने वाले झरने, बरसात का मीठा पानी लेकर अपनी मस्ती में बहती जा रही नदियां और भी न जाने कितना कुछ था जो आंखों को अथाह सुख की अनुभूति करवा रहे थे। उस वक्त हम दोनों को न अपने बीते हुए कल की कोई बात याद आ रही थी और न ही आने वाले कल की कोई चिंता ही सता रही थी। हम दोनों बस अपने आज और अभी को जी-भरकर जी रहे थे। कलसुबाई शिखर पर हम दोनों इतना जिंदा हो गए कि सांस अंदर लेने और बाहर छोड़ने की क्रिया तक को किसी कला की तरह एन्जॉय कर रहे थे।

Photo of महाराष्ट्र के माउंट एवरेस्ट 'कलसुबाई' का कभी न भूलाए जा सकने वाला एक यादगार सफर by रोशन सास्तिक

करीब आधा घंटा स्वर्ग में बिता लेने के बाद जब हमारी नजर घड़ी पर पड़ी तो देखा की देखते-देखते शाम के 4 बज चुके हैं। वक्त ने बताया कि वक्त हो चला है अब घर लौटने का। अगर इससे ज्यादा देर हुई तो फिर घर लौटने में दिक्कत हो जाएगी। हम नहीं चाहते थे कि इतने खूबसूरत दिन का अंत किसी तरह की परेशानी में फंस कर खराब कर दिया जाए। इसलिए न चाहते हुए भी हम दोनों ने भारी दिल के साथ कलसुबाई शिखर को अलविदा कहकर नीचे उतरना शुरू किया। हम दोनों चाह रहे थे कि काश, हम शिखर पर शाम बिता सकते। तो महाराष्ट्र के सबसे ऊंचे स्थान से सूर्यास्त देखने का सुनहरा मौका हाथ से नहीं जाता। लेकिन खैर, जैसा कि 'स्कॉलर नैना' ने कहा था- तुम कितना भी समेटने की कोशिश करो बनी, लाइफ में कुछ न कुछ तो छूटेगा ही। इसलिए हम भी 'फिर कभी देख लेंगे' कहकर जल्दी-जल्दी नीचे उतरने लग गए। शाम 6 बजे तक अंधेरा होने से पहले हम बारी गांव पहुंच गए। यहां से हमने अपनी बाइक उठाई और अपने घर के लिए लौटने लगे।

Photo of महाराष्ट्र के माउंट एवरेस्ट 'कलसुबाई' का कभी न भूलाए जा सकने वाला एक यादगार सफर by रोशन सास्तिक
Photo of महाराष्ट्र के माउंट एवरेस्ट 'कलसुबाई' का कभी न भूलाए जा सकने वाला एक यादगार सफर by रोशन सास्तिक

गुंजन बाइक चला रहा था। और मैं पिछली सीट पर बैठ तेज रफ्तार से पीछे छूटते चले जा रहे कलसुबाई शिखर को बड़े अफ़सोस के साथ अलविदा कहते जा रहा था। राह के नजारों को बाह में भर लेने का और साथ घर ले जाने का मन कर रहा था। लेकिन जिस जीवन को हम अपना कहते हैं उस जीवन में अपने मन की चीजें आखिर हम कर ही कितनी बार पाते हैं। खैर, सफर में कुछ जुड़ने और कुछ छूटने का सिलसिला चलता रहता है। कहीं पहुंचने पर कुछ नया जुड़ जाता है और कहीं से निकलने पर कुछ पुराना वहीं छूट जाता है। कलसुबाई आने से पहले वाले रोशन का कितना कुछ होगा जो कलसुबाई में ही छूट गया होगा। और कलसुबाई से जाने वाले रोशन में कितना ही कुछ नया जुड़ गया होगा। वो दिन जो आज सुबह 6 बजे शुरू हुआ था, शाम के 6 बजने के बाद वो तेजी से अपने समापन की ओर अग्रसर हो रहा था। गणित के हिसाब से तो इस दिन के साथ हमारा साथ 12 घंटों का ही था। लेकिन महज 12 घंटों में ही इस दिन ने हमें इतना कुछ दे दिया कि हमारे दिल में यह दिन एक लंबे अरसे तक अपनी जगह बनाए रखेगा।

- रोशन सास्तिक

Further Reads