Dakshin Bharat Yatra : Rameswarma Temple
दक्षिण भारत का सुहाना और धार्मिक सफर
[[ O2-04-2016 ]]
हिंदू धर्म में तमिलनाडु के रामनाथपुरम में स्थित रामेश्वरम ज्योतिर्लिग एक विशेष स्थान रखता है। यहां स्थापित शिवलिंग बारह द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि उत्तर में जितना महत्व काशी का है, उतना ही महत्व दक्षिण में रामेश्वरम का भी है जो सनातन धर्म के चार धामों में से एक है। रामेश्वरम चेन्नई से करीब 425 मील दूर दक्षिण-पूर्व में स्थित एक सुंदर टापू है, जिसे हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी चारों तरफ से घेरे हुए हैं। प्राचीन समय में यह टापू भारत के साथ सीधे जुड़ा हुआ था। बाद में धीरे-धीरे सागर की तेज लहरों ने इसे काट दिया, जिससे यह टापू चारों ओर से पानी से घिर गया। फिर अंग्रेजों ने एक जर्मन इंजीनियर की मदद से रामेश्वरम् को जोड़ने के लिए एक रेलवे पुल का निर्माण किया।जितना प्रसिद्ध दक्षिण का रामेश्वरम मंदिर है उतना ही इसका पुराना इतिहास है। कहते हैं कि भगवान श्रीराम ने ब्रम्हा हत्या के पाप से मुक्ति के लिए ऋषियों के आग्रह से ज्योतिर्लिग स्थापित करने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने हनुमान से अनुरोध किया कि वे कैलाश पर्वत पर जाकर शिवलिंग लेकर आएं लेकिन हनुमान शिवलिंग की स्थापना की निश्चित घड़ी पास आने तक नहीं लौट सके। जिसके बाद सीताजी ने समुद्र के किनारे की रेत को मुट्ठी में बांधकर एक शिवलिंग बना डाला। श्रीराम ने प्रसन्न होकर इसी रेत के शिवलिंग को प्रतिष्ठापित कर दिया। यही शिवलिंग रामनाथ कहलाता है। बाद में हनुमान के आने पर उनके द्वारा लाए गए शिवलिंग को उसके साथ ही स्थापित कर दिया गया। इस लिंग का नाम भगवान राम ने हनुमदीश्वर रखा है रामेश्वरम का मंदिर भारतीय वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर एक हजार फुट लम्बा, छ: सौ पचास फुट चौड़ा है। चालीस-चालीस फुट ऊंचे दो पत्थरों पर चालीस फुट लंबे एक पत्थर को इतने सलीके से लगाया गया है कि दर्शक आश्चर्यचकित हो जाते हैं। विशाल पत्थरों से मंदिर का निर्माण किया गया है। माना जाता है कि ये पत्थर श्रीलंका से नावों पर लाये गये हैं श्री रामेश्वरम में 24 कुएं है, जिन्हें 'तीर्थ' कहकर संबोधित किया जाता है। बस 9:30 पर चल पड़ीं जब हम मंदिर पहुंचे तो मंदिर बंद ही होने वाला था इसलिए जल्दी जल्दी दर्शन करें जिससे मेरी माता जी को काफी तकलीफ़ हुई क्योंकि उनको दिल कि बीमारी थी और समय कम था मंदिर जल्द ही बंद होने वाला था इस बात का मुझे सदा ही अफसोस रहेगा कि मंदिर हम अच्छे से नहीं देखा सकें फिर आसपास के मंदिर देखें फिर चल दिए मदुरै कि तरफ रस्ते में बस पंबन ब्रिज पर रूकी जो काफी सुंदर बना हुआ है
हम सभी ने ट्रेन के सफर का मजा लिया होगा, खिड़की वाली सीट पर बैठने की जिद की होगी ताकि बाहर के नजारे का आनंद उठा सके। मगर जब इस रेलवे पुल से ट्रेन गुजरती है तो लोग डर से कांप उठते हैं, कोई अनहोनी ना हो जाए इसके लिए आंखें मूंद कर प्रार्थना करते हैं, क्योंकि यहां सिर्फ दुर्घटना नहीं बल्कि भीषण दुर्घटना होने का अंदेशा बना रहता है और इसीलिए शायद इसे भारत का सबसे खतरनाक पुल कहा जाता है। मगर वो कहते हैं न, डर में भी एक अलग तरह का रोमांच होता है और इसके दीवानों के लिए तो पामबन पुल से होकर गुजरना जीवन भर के लिए एक अनुठा अनुभव होगा।यह पुल ही अनुठा है, तमिलनाडु में स्थित यह भारत का ऐसा पुल है जो समुद्र के ऊपर बना हुआ है और साथ ही प्रकृति को खूबसूरती को अपने में समेटे हुए है। यूं कह सकते हैं कि यह प्रकृति और तकनीक का बेजोड़ मेल है।वहीं ऐतिहासिक भी है, पामबन पुल का निर्माण ब्रिटिश रेलवे द्वारा 1885 में शुरू किया गया था। ब्रिटिश इंजीनियरों की टीम के निर्देशन में गुजरात के कच्छ से आए कारीगरों की मदद से इसे खड़ा किया गया था और 1914 में इसका निर्णाम कार्य पूरा हुआ था। यानि यह करीब 100 साल पुराना हो चुका है, मगर अब भी ज्यों का त्यों बना हुआ है।यह पुल बीच में खुलता भी है। हालांकि कंक्रीट के 145 खंभों पर टिके इस पुल को समुद्री लहरों और तूफानों से ख़तरा बना रहता है। पहले यह देश का सबसे बड़ा समुद्र पुल हुआ करता था जिसकी लम्बाई 2.3 किमी. है। मगर अब मुंबई बांद्रा कुर्ला पुल सबसे बड़ा है।तमिलनाडु का यह पुल रामेश्वरम से पामबन द्वीप को जोड़ता है।
ऐसे में अगर आप रामेश्वरम जाना चाहते हैं तो अपने सफर को रोमांचक बनाने के लिए पामबन पुल से होकर जा सकते हैं। समुद्र की लहरों के बीच सफर का रोमांच...सिर्फ इसकी कल्पना करके भी देखेंगे तो आपको जरूर रोमांच का एहसास होगा। आते आते शाम हो गई रस्ते में एक मेला लगा था हम सब वहां उत्तर गाये जहां मेरे पिता जी गुम हो गये जिसे हम काफी परेशान हुए रात कि ट्रेन थी हम जल्दी होटल पहुंचे और फिर रेलवे स्टेशन पहुंचे