कहाँ हैं हम
किस ख्याल में हैं
इसके सारे जवाब
इसी सवाल में है
तो ख़याली दुनिया से परे, कुछ ऐसी भी जगहं हैं वहां जाना जैसे किसी ख्याल से कम नहीं| मैं जम्मू में अपने एक दोस्त के घर कल ही रात ट्रैन का सफर करके पहुंचा था दिल्ली से जम्मू का सफर करना थका तो गया था मुझे पर रोमांचक था अलग अलग लोगो से परिचित हुआ| वैसे मेरा दोस्त मेरी तरह ही एक ट्रैवलर है हमारे बीच यह कहा सुनी लगी रहती है की कौन अच्छा है कौन बुरा| उसने मुझे जम्मू इसी मकसद के लिए बुलाया था| अगले दिन हमने अपना ट्रैकिंग बैग कंदे पे उठाया और निकल गए अपनी राह तलाशने को| मैं आपको अपने बारे में बताना भूल गया की मैं एक लेखक भी हूँ छोटी मोटी कवितायें लिखता हूँ और कलाकार का आपको पता ही है वो अपनी प्रेरणा के लिए कहीं भी निकल पड़ते हैं| जहाँ हम जा रहे थे उसकी जम्मू से दूरी लगबग 176 किलोमीटर थी| हमने जम्मू से राजौरी तक की गाड़ी ली| दोस्त ने बताया था की राजौरी के बाद लगबग 35 किलोमीटर लगेंगे अपनी मंज़िल तक पहुंचने में | राजौरी से हमको ऑटो मिलगया और आखिर हम अपनी मंज़िल पे पहुंच ही गए ||
आखिर मज़िल थी कहाँ?
मैं जिस मंज़िल की बात कर रहा हूँ वो शाहदरा शरीफ़ दरगाह के नाम से विख्यात है अगर इतिहास से जायें तो शाहदरा का असल नाम सीं दर्रा’ (शेर दर्रा) था जो बाद में शाहदरा के नाम से प्रचलित हो गया है
शाहदरा शरीफ का इतिहास
बताया जाता है कि समय के बीतने के साथ साथ अगार खान जो रानी ने बाबा गुलाम शाह से मन्नतें करके माँगा था और बाबा ने कहा था की अगर यह गलत रस्ते पे चला तो इसका भी विनाश हो जाएगा, वो भी बड़ा होता चला गया और गद्दी पाने के उपरांत उसका दिमाग सातवें आसमान पर चढ़ गया। कहा जाता है कि उसके इसी व्यवहार का लाभ उसके मंत्रियों ने उठाया और उसे पंजाब के राजा महाराजा रंजीत सिंह को कर देने से बंद करने के लिए उकसाया जिस पर जब उसने अमल किया तो महाराजा रंजीत सिंह ने राजौरी पर हमला करने के लिए अपनी फौज भेज दी। इस फौज में एक डोगरा सिपाही गुलाबु भी शामिल था हालाँकि गुलाबु सिपाही ने अपने काफी सिपाहियों को खो दिया| उन्हें पता चला की यहाँ को माने गए बाबा है तो उनसे मिलने चला गया| जब बाबा ने उन्हें देखा तो मुस्कुराये , तो गुलाबु सिपाही ने उनसे उनकी मुस्कराहट का कारण पूछा तो उन्होंने कहा जहाँ सबसे ऊँची पहाड़ी से जाकर देखो जितने राज्य तुम आँखों से देख पा रहे हो तुम एक दिन उनपर राज करोगे| बाद में गुलाब सिंह बाबा की कृपया से जम्मू कश्मीर का राजा बन गया क्योंकि बाबा से उसने वायदा किया कि अगर उसे राज्य मिल जाता है तो वह उनके घर (वर्तमान स्थान) से छेड़छाड़ करने की इजाजत किसी को भी नहीं देगा।
बाबा ने अगार खान के छुपने के स्थान की जानकारी देकर उसे महाराजा गुलाब सिंह के हाथों गिरफ्तार करवा दिया और इस तरह से जब महाराजा रंजीत सिंह की नजरों में उनकी इज्जत बढ़ी तो उन्होंने महाराजा गुलाब सिंह को जम्मू का राज सौंप दिया। जबकि बाद में अमृतसर संधि के अंतर्गत महाराजा गुलाब सिंह ने कश्मीर को 75 लाख रूपयों में खरीदा और लद्दाख पर फतह पाई।
वहां कुछ दुकाने थी तो हमने दरगह पे चढ़ाने के लिए कुछ सामान खरीदा और फिर सीढ़ियां से ऊपर जाते हुए नज़ारे का आनंद लिया| ठंडी ठंडी हवायें चल रही थी ऐसा लग रहा था जैसे जैसे ऊपर जा रहा हूँ खुद को जायदा महसूस कर पा रहा हूँ सबसे पहले जाकर हमने वहां माथा टेका और कुछ बहार आकर "सदा फल " के नीचे बैठ गए |
सदा फल का इतिहास
यह कहा जाता है की बाबा साहिब जलती हुई लकड़ियों के सामने बैठे थे उसमे से एक लकड़ी जल नहीं पा रही थी तो बाबा साहिब ने गुस्से में कह दिया की अगर तू जल नहीं सकती तो हमेशा के लिए फल देने लग जा| फिर जैसे तो चमत्कार हो गया वो लकड़ी एक पेड़ में बदल गयी जो हर मौसम फ़ल देने लगा| उस पर संत्री या पीले रंग के फल लगते हैं और उन्हें तोड़ने की अनुमति नहीं है जबकि अगर फल खुद किसीकी झोली में घिर जाये तो वो ले जा सकता है लोग घंटो इस पेड़ के नीचे बैठते हैं " निगाहे-वाली में वो तासीर देखी बदलती हज़ारों की तक़दीर देखी "
कुछ देर वहां बैठने के बाद हमने परशाद पाया जो लंगर में मिल रहा था| फिर हम वहीं कुछ देर के लिए वादियों का आनंद लेते रहे|
शाम हो गयी थी तो अब रात के लिए कहीं रहना का भी इंतज़ाम करना था तो हमने वहीं किसी से पूछा तो बताया यहीं पास में एक होटल है आप वहां रात को कमरा लेकर रह सकते हैं तो फिर क्या अपने मोबाइल पर तस्वीर खींचते खींचते निकल पड़े|
मानो न मानो नईं नईं बातें जान कर और उनको महसूस करके अलग ही मज़ा आता है वैसे यहाँ काफी यात्री आते हैं श्रीनगर एयरपोर्ट से 164 किलोमीटर का रास्ता होगा जितना हमने ट्रेवल किया उससे कम ही | अगले दिन हम जिस तरिके से आये थे उसी तरिके से वापिस निकल पड़े|