आज हम आपको ले चलते है देवी भूमि हरिद्वार जहाँ से पतित पावनि, पाप नाशनि गंगा पर्वतो को छोड़ धरती पर आती है। इस शहर की हवा में सोंधी सी खुशबू है। दूर से दिखते अडिग पर्वत, कल-कल कर के बहती पवित्र गंगा, दूर दूर से आए श्रद्धालु और चारो ओर गूंजते गंगा मईया के जय कारे। ये रमणीय दृश्ये आँखों के द्वार से होता हुआ सीधा मन में बस जाता है। वैसे मैं हरिद्वार दो साल पहले गई थी। आज अचानक हरिद्वार दर्शन के कुछ चित्रओ को देख कर यादे ताजा हो गई। तो क्यों ना इस यात्रा की कुछ यादे और तस्वीरें आप सभी के साथ साझा की जाए। तो आइए जानते है, दो साल पहले मैंने और मेरे दोस्तो ने उत्तराखंड दर्शन का विचार बनाया। वैसे मैं और मेरे दोस्त मूल्य रूप से हरिद्वार की ओर आकर्षित हुए, एकमात्र अपने मन में चल रहे रिवर राफ्टिंग के ख़यालो को पूरा करने के लिए ,🤭🤭😂😂😂 पानी से डरते हुए भी मैं अपने दोस्तो के साथ रिवर राफ्टिंग के लिए इस ट्रिप पे जाने को तैयार हो गई ,, 🙈🙈🙈मेरे अंदर भी ये शौक अपने दोस्तो को देख कर ही आ गया था।,,🤭😂😂जिसके कारण हम ने अपना ट्रिप प्लान किया। और हम निकाल पड़े अपने मंजिल कि ओर, 💁हमने अपनी यात्रा अलवर से शुरू की। हमने अलवर से ट्रेन ली और हमारे एक दोस्त ने दिल्ली से हमारे ट्रिप को ज्वाइन किया। और हम सब निकाल पड़े देवी भूमि हरिद्वार के लिए। ट्रेन लेट होने की वजह से हम शाम को चार बजे के करीब हरिद्वार पहुंचे। फिर क्या था स्टेशन पहुंचते ही हम सब ने होटल की तलाश की और अपना काफी समय होटल को फाइनल करने में लगा दिया क्योंकि किसी होटल में कुछ कमी निकाली हमने किसे में कुछ। 😎😎😎😛,, मुझे ऐसा लग रहा था कि हम घूमने नहीं रहने के लिए घर की तलाश कर रहे है। 🤔🤭😂😂,,,पर फाइनली जों भी होटल हमने सेलेक्ट किया वो हमे पसंद आया क्योंकि वो गंगा घाट के काफी करीब था। हम सभी तुरंत तैयार हुए और गंगा घाट के लिए निकाल पड़े। हम घाट पहुंचे मेरे दोस्तो ने स्नान किया। पर मैं स्नान नहीं कर पाई क्योंकि मुझे पानी से काफी डर लगता है पर मैंने कोशिश की, 😀पर पानी का बहाव इतना तेज था मानो मैं पैर पानी में डालते ही बह जाउगी☹️☹️☹️☹️☹️,,लेकिन कोई बात नहीं वो कहते है ना ईश्वर की पूजा या उनके दर्शन के लिए स्नान की कोई आवश्यकता नहीं होती, अगर मनुष्य का मन और हृदय साफ हो तो🙏🙂👍,,,पर मेरे दोस्तो ने काफी आनंद से गंगा जी में डुबकी लगाई, और फिर हम सभी शाम की अदभुत आरती में शामिल हुए। हम सब ने गंगा घाट पर काफी समय बिताए। काफी अदभुत दृश्य था।
चारो तरफ एक अलग ही अदभुत शांति प्रिय दृश्य था। हम कह सकते है यहां हर रोज़ एक त्यौहार जैसा होता है। मानो माँ गंगा का त्यौहार!! हर रोज़ हज़ारो श्रद्धालु देश के कोने कोने से यहाँ गंगा दर्शन के लिए आते हैं ,,,💁 तो आइए जानते है देव भूमि हरिद्वार के बारे में।
हरिद्वार का इतिहास (HISTORY OF HARIDWAR)
हरिद्वार का इतिहास बहुत ही पुराना और रहस्य से भरा हुआ है। “हरिद्वार” उत्तराखंड में स्थित भारत के सात सबसे पवित्र स्थलों में से एक है।यह बहुत प्राचीन नगरी है और उत्तरी भारत में स्थित है। हरिद्वार उत्तराखंड के चार पवित्र चारधाम यात्रा का प्रवेश द्वार भी है। यह भगवान शिव की भूमि और भगवान विष्णु की भूमि भी है। इसे सत्ता की भूमि के रूप में भी जाना जाता है। मायापुरी शहर को मायापुरी, गंगाद्वार और कपिलास्थान नाम से भी मान्यता प्राप्त है। और वास्तव में इसका नाम “गेटवे ऑफ़ द गॉड्स” है । यह पवित्र शहर भारत की जटिल संस्कृति और प्राचीन सभ्यता का खजाना है हरिद्वार शिवालिक पहाडियों के गोद में बसा हुआ है।
पवित्र गंगा नदी के किनारे बसे “हरिद्वार” का शाब्दिक अर्थ “हरी तक पहुचने का द्वार” है।
हरिद्वार चार प्रमुख स्थलों का प्रवेश द्वार भी है। हिन्दू धर्मं के अनुयायी का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। प्रसिद्ध तीर्थ स्थान “बद्रीनारायण” तथा “केदारनाथ” धाम “भगवान विष्णु” एवम् “भगवान शिव “ के तीर्थ स्थान का रास्ता (मार्ग) हरिद्वार से ही जाता है।इसलिए इस जगह को “हरिद्वार” तथा “हरद्वार” दोनों ही नामों से संबोधित किया जाता है।
महाभारत के समय में हरिद्वार को “गंगाद्वार” नाम से वयक्त किया गया है।
हरिद्वार का प्राचीन पौराणिक नाम “माया” या “मायापुरी” है। जिसकी सप्तमोक्षदायिनी पुरियो में गिनती की जाती है। हरिद्वार का एक भाग आज भी “मायापुरी” के नाम से प्रसिद्ध है। यह भी कहा जाता है कि पौराणिक समय में समुन्द्र मंथन में अमृत की कुछ बुँदे हरिद्वार में गिर गयी थी। इसी कारण हरिद्वार में “कुम्भ का मेला” आयोजित किया जाता है। बारह वर्ष में मनाये जाने वाला “कुम्भ के मेले ” का हरिद्वार एक महत्वपूर्ण स्थान है।
अब आगे बढ़ती हूं अपनी यात्रा में कि आगे क्या हुआ। पवित्र गंगा नदी के दर्शन के बाद हम सभी लौटते वक्त वहां के बाजार में दुकानों का भ्रमण किया। यहां के बाजार बड़े लुभावने है। हर तरफ रोशिनी है, रौनक है। खाने के शौंकीन लोगों को हरिद्वार बिलकुल भी निराश नहीं करता, यहाँ स्वादिष्ट पकवानो की खूब सुन्दर दुकाने सुबह ही सज जाती है।
और यहां पूजा की सामग्री व हिन्दू धार्मिक किताबो की भी बहुत सी दुकाने हैं। बाजार का भ्रमण कर हम सभी अपने होटल की ओर निकाल पड़े। सच कहूं तो हम सभी को काफी भूख लग चुकी थी। 😋,,, हम सभी ने होटल से खाना ऑर्डर किया। खाना खाने के बाद हम सभी ने आराम किया। और फिर अगली सुबह उठ कर हम निकाल पड़े अपनी आगे की यात्रा पर। वो कहते है ना के सुबह की शुरुआत ईश्वर के नाम से करते है तो हम सब भी निकाल पड़े मनसा देवी मंदिर व चंडी देवी मंदिर दर्शन के लिए। हरिद्वार की शिवालिक पहाड़ियों की बिल्व पर्वत पर स्थित है माता मनसा का यह मंदिर। हर की पौड़ी से कुछ 800 मीटर की दुरी पर मनसा देवी अपने भक्तो की मनोकामनाएं पूरी करने के लिए सुशोभित है। मनसा देवी जाने के दो रास्ते है, एक पैदल यात्रा का और दूसरा उड़न खटोले के द्वारा।
तो फिर क्या था मैंने तुरंत बोला के उड़न खटोले से चलते है मेरे दोस्त मुझे देखने लगे ,,,😀मेरे लिए यह मेरा पहला अनुभव था कि मैं उड़न खटोला (Rope way) पर बैठ रही थी।😎😎 ,,, फिर हम सभी उड़न खटोला से माता मनसा देवी मन्दिर पहुंचे और माता के दर्शन किए।मनसा देवी मंदिर से 3 कि. मी. दूर स्थित है चंडी देवी मंदिर है यह मंदिर माँ शक्ति के चण्डिका रूप को समर्पित है। देवी के इन दोनों ही मंदिरों में दर्शन श्रद्धालुओं की लम्बी कतारे लगती हैं।
उड़न खटोला की टिकट 233/- रूपये मात्र की थी इस टिकट में दोनों देवियों के उड़न खटोले द्वारा दर्शन, उड़न खटोले द्वारा वापिसी, मनसा देवी से चंडी देवी ट्रांसपोर्ट शुल्क तथा चंडी देवी से वापिसी का ट्रांसपोर्ट शुल्क सम्मिलित थे।
कुछ महत्वपूर्ण बातें –
वैसे तो हरिद्वार में श्रद्धालु हर मौसम, हर महीने में आते है पर गर्मियों की छुट्टियों में, सावन के महीने में व कुम्भ के मेले के दौरान यहाँ काफी भीड़ रहती है।
हरिद्वार देश के सभी मुख्य शहरों द्वारा रेल और बस द्वारा जुड़ा हुआ है।
सबसे नज़दीक हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा, देहरादून है।
हरिद्वार में रहने के उचित प्रबंध है। अनेक धर्मशाला, लॉज व होटल है जिनमे आराम से रहा जा सकता है। यात्री अपने खर्चे के अनुसार जगह ढूँढ सकते है।
हर की पौड़ी पर महिलाओं के लिए अलग घाट बना हुआ है। यह एक निशुल्क घाट है जिसका रख रखाव गंगा सभा की ओर से किया जाता है।
मनसा देवी व चंडी देवी जाने के लिए उड़न खटोला एक अच्छा मार्ग है। मनसा देवी मंदिर के उड़न खटोला की टिकट लेते समय चंडी देवी में टिकट की कतार में लगने से बचने के लिए मनसा देवी, चंडी देवी, व मनसा देवी से चंडी देवी तक जाने की ट्रांसपोर्ट की सयुंक्त टिकट लें। मनसा देवी मंदिर और चंडी देवी मंदिर प्रांगण में खाने पीने की उचित व्यवस्था है।
एक आग्रह –
गंगा को साफ रखने में अपना सहयोग दें और ऐसा कोई कार्य न करे जिस से हमारे धर्म की व गंगा की पवित्रता भंग हो। हर हर गंगे !! जय माँ गंगे !!
तो इस प्रकार हमारे देव भूमि हरिद्वार का दर्शन पूर्ण हुआ और हम निकले अपनी अगली मंज़िल की ओर। यानी कि ऋषिकेष !!!
ऋषिकेष की यात्रा का वर्णन हम अपने नेक्स्ट ब्लाॅग में करेगें…….
मेरी यात्रा का वर्णन आप सभी को कैसा लगा। अपने विचार अवश्य व्यक्त करे। अभी तक के लिए इतना ही तो मिलते है फिर अगले ब्लॉग में।