सलाम नमस्ते केम छु दोस्तों 🙏
ये उस वक्त की बात है जब मैं अपनी इंटर्शिप के लिए अलवर सिटी आया था वहीं अलवर सिटी जहां के मिल्क केक बहुत फेमस हैं। जब मैं यहां कुछ दिन रहा तो मेरे मित्र रवि से मुझे एक टेंपल के बारे में पता चला वैसे मैं आपको बता दू ये उसकी पसंदीदा जगहों में से एक हैं।उसकी ऐतिहासिक तथ्यों को जान कर मुझे खुजराहों की याद आ गई और मैं उस जगह को देखने के लिए काफी उत्साहित हो गया । फिर क्या था मेरे अंदर का घुमकरी इंसान जागा और मैं अपने दोस्तों के संग निकल गया नीलकंठ मंदिर देखने को और उसके बारे में और जानने को।
पता नहीं किस वर्ष में राजा अजयपाल ने नीलकण्ठ महादेव की स्थापना की। यह जगह मामूली सी दुर्गम है। जब भानगढ से अलवर की तरफ चलते हैं तो रास्ते में एक कस्बा आता है- टहला। टहला से एक सडक राजगढ भी जाती है। टहला में प्रवेश करने से एक किलोमीटर पहले एक पतली सी सडक नीलकण्ठ महादेव के लिये मुडती है। यहां से मन्दिर करीब दस किलोमीटर दूर है। धीरे धीरे सडक पहाडों से टक्कर लेने लगती है। हालांकि इस कार्य में सडक की बुरी अवस्था हो गई है कारें इस सडक पर चलना बहुत ही मुश्किल है, जीपें और मोटरसाइकिलें कूद-कूदकर निकल जाती हैं।
यहां एक छोटे से गांव से निकलते हुए हम मन्दिर तक पहुंचे। टहला से चलने के बाद पहाड पर चढकर एक छोटे से दर्रे से निकलकर एक घाटी में प्रवेश करते हैं। यह घाटी चारों तरफ से पहाडों से घिरी है, साथ ही घने जंगलों से भी।इस गांव का नाम भी नीलकंठ ही हैं।
जैसा कि हम जानते हैं कि सावन के माह में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए देश दुनिया में अलग अलग तरह से और भिन्न भिन्न मन्दिरों में शिव अराधना की गई हैं. राजस्थान में भी अलग अलग हिस्सों में विभिन्न शैलियों में बने मन्दिर और शिवलिंग विराजमान हैं जहां भक्तों की भीड़ पड़ती है। लेकिन अलवर में स्थित है राजस्थान का खजुराहो। जो नीलकण्ठ के नाम से जाना जाता है और 1000 साल से ज्यादा पुराना ये मन्दिर आज भी लोगों की आस्था का केन्द्र है. बताते हैं कि इस घाटी में कभी 360 मन्दिर हुआ करते थे। अब एक ही मन्दिर बचा हुआ है। बाकी सभी को मुसलमानों ने मटियामेट कर दिया। आखिरी को मटियामेट करते समय चमत्कार हुआ और यह बच गया। बचा हुआ ही नीलकण्ठ महादेव मन्दिर है। यहां सावन में श्रद्धालु हरिद्वार आदि स्थानों से गंगाजल लाकर चढाते हैं। ध्वस्त हुए मन्दिरों को देवरी कहते हैं।
इनके ध्वंसावशेष आज भी काफी संख्या में बचे हैं। इन्हें देखने से पता चलता है कि ये कितने बडे बडे मन्दिर हुआ करते थे। सभी मन्दिरों पर छैनी हथौडे का कमाल देखते ही बनता है। सभी देवरियों के अलग-अलग नाम हैं जैसे कि हनुमान जी की देवरी, गणेश जी की देवरी आदि। कुछ बडे ही विचित्र विचित्र नाम भी हैं, मैं भूल गया हूं। खेतों के बीच झाडियों से घिरी देवरियों तक पहुंचना बडा रोमांचकारी काम होता है। कैसे हाथ चला होगा इन मन्दिरों को तोडने समय?
इस घाटी में मोर बहुतायत में है। हर खेत में, हर पेड पर, हर छत पर, हर देवरी पर... सब जगह मोर ही बैठे मिलते हैं। हालांकि आदमी से दूर रहने का प्रयत्न करते हैं। घाटी के एक सिरे पर छोटी सी झील है। इसमें एक बांध बनाया गया है और इसकी आकृति ऐसी है कि पूरी घाटी का पानी यही आकर इकट्ठा होता रहता है।
बाकी आप इस मंदिर की सुंदरता फोटो के माध्यम से देख सकते हैं.....
अगर आप अलवर में नीलकंठ महादेव मंदिर घूमने जाने का प्लान बना रहे है तो नवंबर से मार्च नीलकंठ महादेव मंदिर व यहाँ के अन्य भागों की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय होता है क्योंकि रात में मौसम के दौरान तापमान 8 डिग्री और जबकि दिन का 32 डिग्री सेल्यियस होता है। जो अलवर की यात्रा के लिए सबसे अनुकूल समय होता है।
नीलकंठ मंदिर अलवर कैसे पंहुचा जाये
अगर आप नीलकंठ मंदिर अलवर घूमने का प्लान बना रहे है तो बता दे कि आप आप ट्रेन, सड़क या हवाई मार्ग से नीलकंठ महादेव मंदिर अलवर पहुच सकते हैं।
फ्लाइट से नीलकंठ मंदिर अलवर कैसे पहुँचे –
अलवर के लिए कोई सीधी फ्लाइट कनेक्टिविटी नहीं है। अलवर का निकटतम हवाई अड्डा दिल्ली में है जो अलवर से 165 किमी दूर स्थित है। तो आप भारत के किसी भी प्रमुख शहर से यात्रा करके दिल्ली हवाई अड्डा पहुंच सकते है और वहा से अलवर पहुंचने के लिए आप बस या टैक्सी किराए पर लेकर पहुंच सकते हैं, और फिर अलवर से टैक्सी या बस से नीलकंठ महादेव मंदिर पहुच सकते हैं।
सड़क मार्ग से नीलकंठ महादेव मंदिर अलवर कैसे जाये –
अगर आप सड़क मार्ग से यात्रा करके अलवर की यात्रा की योजना बना रहे है तो आपको बता दे की राज्य के विभिन्न शहरों से अलवर के लिए नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं। चाहे दिन हो या रात इस रूट पर नियमित बसे उपलब्ध रहती हैं। जयपुर, जोधपुर आदि स्थानों से आप अलवर के लिए टैक्सी या कैब किराए पर या अपनी कार से यात्रा करके नीलकंठ महादेव मंदिर अलवर पहुच सकते हैं।
ट्रेन से नीलकंठ महादेव मंदिर अलवर कैसे पहुँचे –
नीलकंठ मंदिर का सबसे निकटम रेलवे स्टेशन अलवर जंक्शन है जो शहर का प्रमुख रेलवे स्टेशन है जहां के लिए भारत और राज्य के कई प्रमुख शहरों से नियमित ट्रेन संचालित हैं। तो आप ट्रेन से यात्रा करके अलवर पहुंच सकते है और वहा से बस से या टैक्सी किराये पर ले कर नीलकंठ महादेव मंदिर पहुंच सकते हैं।
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