वेनिस अपने नहरों के लिए विश्वविख्यात है,जहाँ इन नहरों पर तैरती नौकाओं की यात्रा करने का आनंद लेने विश्व भर के लोग जाते हैं पर क्या आपको पता है कि एक वेनिस हमारे देश में भी है..!! जी हाँ, हम बात कर रहे हैं 'पूर्व के वेनिस' के रूप में विख्यात अलेप्पी या अलापुझा की।
केरल का अलापुझा अपने बैकवाटर्स के लिए मशहूर है। शांति और फुरसत के पल बिताने के लिए पाम के पेड़ों से घिरे ये सुन्दर जलभराव एक बेहतरीन जगह हैं।और इन बैकवाटर्स में मचलते हाउसबोट और नौकाओं में सफर इन पलों को और खूबसूरत बनाते हैं।
अलेप्पी में ही हर साल नौकायन रेस प्रतियोगिता की नेहरू ट्रॉफी का आयोजन होता है।इस खेल के विजेता को ट्रॉफी देने की शुरुआत जवाहर लाल नेहरू ने की थी इसीलिए इस ट्रॉफी को नेहरू ट्रॉफी कहते हैं। यह प्रतियोगिता अगस्त महीने के दूसरे सोमवार को आयोजित की जाती है।
अलेप्पी जाने का सबसे उपयुक्त समय मानसून है परंतु अक्टूबर से फरवरी के बीच का समय उत्तर भारतीयों के लिए सर्वाधिक अनुकूल है। हमने भी अपनी अलेप्पी की यात्रा दिसम्बर महीने में ही की थी।
साफ पानी, चमकती रेत, शोर मचाती समुद्री लहरें और उन लहरों के पार सूर्योदय और सूर्यास्त के नजारे अलेप्पी बीच को यादगार बनाते हैं। चूंकि हम थोड़ा लेट पहुंचे तो हमें सूर्योदय देखने का मौका तो नहीं मिला पर फिर भी यहां समुद्र का किनारा बहुत ही सुंदर है। यहाँ की सबसे खास बात यह है कि यह एक साफसुथरा बीच है और यहाँ भीड़भाड़ भी कम है तो आप यहाँ अच्छे से मस्ती कर सकते हैं।
अलेप्पी बीच के पास ही है अलापुझा लाइटहाउस। हमने अपने जीवन में पहली बार लाइटहाउस देखा। अभी तक केवल किताबों में ही लाइटहाउस के बारे में पढ़ा था। और जो चीज आप केवल जानते हों और कभी देखा न हो तो उन चीजों को एक्सप्लोर करने का मजा ही कुछ और होता है। सन् 1860 में यह लाइटहाउस पुर्तगालियों ने बनवाया था। 30 मी. ऊंचे इस लाइटहाउस में 100 खड़ी चढ़ाई वाली लकड़ी की घुमावदार सीढ़ियाँ हैं जो एक स्वस्थ मनुष्य की सांसों को तेज करने के लिए काफी हैं। लेकिन यकीन मानिए ऊपर जाने पर जो खुबसूरत नजारे दिखाई देते हैं वो दिल को एक ठंडी राहत पहुँचाने वाले होते हैं। ऊपर से अलेप्पी बीच और आसपास के नजारे बहुत ही मनमोहक दिखाई पड़ते हैं। यहाँ एक छोटा सा संग्रहालय भी है जहाँ इस लाइटहाउस की जीवनयात्रा की एक झलक देखी जा सकती है।
अलेप्पी के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में श्री कृष्ण मंदिर एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। 15वीं शताब्दी में केरल की वास्तुकला शैली में बना यह मन्दिर भगवान कृष्ण को समर्पित है जो कि दक्षिण के द्वारका के नाम से प्रसिद्ध है।
आखिर में हम उस जगह पहुंच गए जिसके लिए अलेप्पी संसार भर में प्रसिद्ध है और जहाँ विश्व भर से पर्यटक खिंचे चले आते हैं- बैकवाटर्स ।
हमारे ड्राइवर ने हमें शहर के बीच एक बैकवाटर के किनारे ड्रॉप किया जहाँ से नावों की बुकिंग होती है। आप चाहे तो एक हाउसबोट की बुकिंग भी कर सकते हैं जहाँ आपको थोड़े ज्यादा पैसों में हाउसबोट में ही रहने,खाने और घूमने की सुविधा मिल जाएगी। चूंकि हम होटल में रूके थे तो हमने तीन घंटे की सैर के लिए एक नौका बुक कराई और निकल पड़े बैकवाटर्स की सैर पर।
एक छोटी नहर में से शहर के बीच में से होते हुए हम धीरे-धीरे पानी पर चले जा रहे थे। आगे जाने पर यह नहर बड़ी होती जा रही थी। बैकवाटर्स के दोनों तरफ सड़कें, घर, दुकानें और गेस्ट हाउस आदि बसे हुए हैं। हमारे लिए यह एक अलग ही दुनिया थी पर यहाँ के लोगों के लिए ये बैकवाटर्स और नावें इनकी लाइफलाइन हैं। आगे बढ़ने पर ये नहरें एक विशाल झील का रूप ले लेती हैं जिसको वेम्बानद झील के नाम से जाना जाता है। झील में जाने पर हमने बहुत सी नावें और हाउसबोट तैरते हुए दिखाई दिए। पहले यह जगह जलीय मार्ग, मछली पकड़ने और खेती करने के लिए जानी जाती थी परंतु आजकल यह एक बहुत अच्छे पर्यटन स्थल के रूप में परिवर्तित हो चुका है। 2000 वर्ग किमी. में फैली यह विशाल झील 96 किमी. लम्बी और 14किमी चौड़ी है। इस झील की नौकायात्रा एक अलग ही एहसास कराती है। इस झील में कुछ द्वीप भी हैं जिनपर गाँव बसे हुए हैं जहाँ झील किनारे लोगों ने छोटे रेस्त्रां और ढाबे खोल रखे हैं। तो ऐसे में कभी भी आपको कुछ चाय कॉफी या स्नैक्स खाने का मन करे तो बस नाव किनारे लगाइए और आवाज दिजिए और थोड़ी ही देर में आपका आर्डर हाजिर। हमने भी कॉफी की चुस्की ली और बढ़ चले आगे। नाव में एकदम आगे चोंच वाली जगह पर अपने साथी के साथ बैठकर अथाह झील को निहारना, बगल से बड़ी नावों और हाउसबोटों को गुजरते हुए देखना और उनके द्वारा ढकेले गए पानी के लहरों में अपनी नाव का हिलते हुए महसूस करना, बीच में उठे द्वीपों पर पाम के झुके पेड़ों को देखना,उनपर चहचहाती चिड़ियों को सुनना और स्थानीय लोगों को पर्यटकों की आवभगत करना एक स्वर्ग सा अहसास कराता है। यह हमारा आजतक का सबसे सुंदर अनुभव था जो हमें जीवन भर याद रहेगा।
यह वेम्बानद झील में स्थित एक छोटा सा द्वीप है जो 100 से ज्यादा दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों का बसेरा है। पाथिरमनल का अर्थ है 'आधी रात की रेत'। अलेप्पी से 13 किमी. की दूरी पर यह द्वीप स्थित है जहाँ नाव से 1.5 घंटे में पहुँचा जा सकता है।
इस प्रकार हमने अपनी अलेप्पी की यात्रा पूरी की। अलेप्पी में बिताया ये एक दिन कैसे खत्म हो गया, पता ही नहीं चला। और यकीन मानिए ऐसे खुबसूरत अनुभव हमें ताउम्र याद रहते हैं।