लेह और लद्दाख का ट्रिप तो हर किसी के लिए सपना होता है. इंस्टाग्राम तो पैन्गोंग त्सो झील और नुब्रा वैली की तस्वीरों से पटी होती है. हमारा भी कोई दोस्त जब लेह लद्दाख के ट्रिप से लौटता है तो महीनों तक वो फेसबुक और इंस्टाग्राम पर लेह लद्दाख की इतनी तस्वीरें अपलोड करता है कि बिना गए ही हम लेह और लद्दाख के चप्पे चप्पे से वाकिफ हो चुके होते हैं. लेकिन अब लेह और लद्दाख के आकर्षण को भूल कुछ नया ट्राय करने का वक़्त आ गया है. मैं बात कर रहा हूँ सियाचिन ग्लेशियर की. जी हाँ, सियाचिन ग्लेशियर को अब पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है.
सियाचिन ग्लेशियर
सियाचिन ग्लेशियर की पहचान अब तक धरती के सबसे ऊँचे युद्धस्थल के रूप में रही है. करीब 76.4 किलोमीटर लम्बे सियाचिन ग्लेशियर के एक तरफ POK का बाल्टिस्तान और शक्स्गाम वैली (पाकिस्तान ने बतौर तोहफा चीन को दे दिया) है तो दूसरी तरफ चीन के कब्जे वाली अक्साई चिन. अब आप सामरिक रूप से इसके महत्त्व को तो समझ ही गए होंगे. 36 साल पहले 1984 में ऑपरेशन मेघदूत के जरिये भारतीय सेना ने इसपर कब्ज़ा किया था और तब से ये भारतीय सेना के कब्जे में ही है. सियाचिन ग्लेशियर से भारतीय सेना चीन और पाकिस्तान दोनों की हरकतों पर नज़र रखती है.
सियाचिन ग्लेशियर में सबसे ऊँचा पॉइंट इसका स्रोत इंदिरा कोल है जिसकी समुद्र तल से उंचाई लगभग 5,753 मीटर है जबकि सबसे निचला पॉइंट इसका छोर है जिसकी ऊंचाई 3,620 मीटर है. सैन्य रूप से बहुत ही महत्वपूर्ण होने की वजह से और बहुत ही ठंडा होने की वजह से यहाँ आम नागरिकों का पहुँचना और सर्ववाइव करना बहुत ही मुश्किल काम है. सर्दियों में यहाँ का तापमान माइनस 50 डिग्री तक पहुँच जाता है. लेकिन अब सेना ने सियाचिन ग्लेशियर को पर्यटकों के लिए खोल दिया है. जहाँ जाने की अनुमति सेना देगी. पर्यटकों द्वारा अप्लाई किये जाने पर सेना द्वारा परमिट जारी किया जाएगा.
लेह से दूरी
लेह से सियाचिन बेस कैम्प की दूसरी करीब 225 किलोमीटर है. अभी यह खारदुंग ला और नुब्रा नदी किनारे बनी ब्लैक टॉप रोड से जुड़ा है. बेस कैंप करीब 12,000 फीट की ऊंचाई पर है. सियाचिन के अलावा कुमार पोस्ट को भी पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है. कुमार पोस्ट की उंचाई 15 हज़ार फीट है. कुमार पोस्ट भी सियाचिन बेस कैम्प पहुँच कर ही जाया जा सकता है. इसे खोलने का फैसला तो अक्टूबर 2019 में ही हो चुका था. लेकिन अब इसे लागू किया जा रहा है.
कैसे पहुंचे
सबसे पहले तो आप लेह पहुंचे. लेह पहुँचने के लिए देश के कई बड़े शहरों से सीधी हवाई सेवा है. अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहते हैं तो मनाली होते हुए लेह पहुंचे. लेह पहुँचने के बाद आपको नुब्रा वैली का परमिट लेना होगा. जो पहले लेह जा चुके हैं उन्हें पता है कि परमिट कैसे लेना है. लेकिन अगर आप कभी नहीं गए तो आपको बता दूँ कि आप नुब्रा वैली का परमिट ऑनलाइन भी ले सकते हैं. ऑनलाइन परमिट लेने के लिए इस वेबसाईट पर क्लिक करें. या फिर आप लेह पहुँच कर DC ऑफिस से ऑफ़लाइन परमिट ले सकते हैं.
उसके बाद आप लेह से जायेंगे खारदुंगला. खारदुंगला पार करने के बाद आप पहुंचेंगे खलसर. खलसर से पेनामिक होते हुए आप पहुचेंगे वारसी और फिर वहां से सियाचिन बेस कैम्प. वारसी से सियाचिन बेस कैम्प की दूरी है 23 किलोमीटर.
कहाँ ठहरे
सियाचिन बेस कैम्प से 23 किलोमीटर पहले जो वारसी गाँव पड़ता है वहां पर होमस्टे उपलब्ध है. Mountain Homestay. हालाँकि इस साल का सीजन तो बीत चुका. अगले साल यानी 2021 में ही कोई जा पायेगा. जब टूरिस्ट का पहला ग्रुप पहुंचेगा तभी सबको मालूम चल पायेगा कि कैसी व्यवस्था है. जब पर्यटक पहुँचने शुरू हो तो वारसी में बहुत ज्यादा संख्या में होमस्टे खुल जाए. अब तक सिर्फ सेना के जवान ही जाते थे तो होमस्टे उस तरह से नहीं है जैसे बाकी पर्यटन स्थलों पर होते हैं.