#सफ़र रांची (झारखंड) का---
#तो मित्रो आज का यह लेख गैर सामाजिक मुद्दों वाला होगा,स्थिति ऐसी बन भी गयी है,थोड़ा अलग जगह रुख करना ही बेहतर होगा,तो चलिए आज शुरू करते है एक नए सफर की कहानी,ज्यादा बड़ी तो नही होगी लेकिन रोचक जरूर होगी इसकी पूरी गारंटी है,तो बने रहिये...अंत तक------
#शुरू करते है बिना किसी देरी के "कहानी रांची की" दोस्तो पिछले वर्ष अगस्त का समय था,और एग्जाम जैसी कोई जल्दबाजी नही क्योंकि अभी तो सत्र अपना शुरू ही हुआ था,जब तक आजादी वाला दिन न बीत जाये, क्लासेस ठीक से नही चलती,इसी बीच मुझे एक कार्यशाला में जाने को कहा गया,चुकी हमारे उत्तराखंड से कोई जा नही रहा था 2,3 लोग थे वो भी अंत समय पर इंकार कर दिए,उसके पीछे कारण था दूरी,क्योंकि पहले दिल्ली जाना था,उसके बाद वहां से रांची इस दौरान ट्रेन में ही दिल्ली,यूपी,बिहार के बीच से होकर गुजरना था,तो जो जाने वाले थे,वो नही गए। लेकिन मेरी जाने की बहुत इच्छा थी,क्योंकि उसके 1 वर्ष पहले भी जाने का अवसर मिला था,लेकिन एग्ज़ाम की वजह से कई ट्रिप कैंसिल हो रही थी, इसलिए इस बार मैं मौका नही छोड़ने वा था।
मैनें बैगपैक कर लिया,और निकल गया दिल्ली,दिल्ली के लोग जो कहानी पढ़ रहे वो दिल्ली मेट्रो का मतलब समझ ही रहे होंगे,खैर अब हम पहुँच गए थे आनंद विहार रेलवे स्टेशन, उसके बाद एक यात्री की परंपरा पूरी करते हुए,स्टार्टिंग जर्नी का सेल्फी भी ले ही लिया, काफी समय से इंताजर था,रांची जाना है,और लीजेंड धोनी के शहर होने के वजह से थोड़ी उत्सुकता और भी थी। खैर समय हो गया था और मैं ट्रेन में बैठ चुका था। दोस्तो आपको पिछले रेल वाली कहानी में रेल का हमारे जीवन से क्या जुड़ाव है उसके बारे में बताया था,तो वही कार्य मैं खुद भी करते हुए विंडो सीट पर बैठ गया, उसके बाद सफर चलता गया,पंजाब के एक मित्र से दोस्ती हुए, काफी बात भी हुई,और फिलहाल हम लोग दोस्त भी है इस तरह से सफर अच्छा होता गया। अब ट्रेन को चले 13 घंटे से ऊपर हो गया था,और हम बिहार में आ गए थे,यहां एक बात बताना चाहूंगा ये बिहार झारखंड जितना आधुनिक संसाधनों से दूर है उतना ही परम्परागत संसाधनों से जुड़े हुए भी है और ये बात उन्हें खास बनाती है,इतिहास के दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह जगह तो खजानों की तरह है। खैर सफर चलता रहा,और हम डाल्टनगंज,पतरातू (ये वहां की प्रसिद्ध घाटी है जिसका सौंदर्य मसूरी के ज़िग ज़ैग रास्तो से तनिक भी कम नही है) मुरी होते हुए रांची पहुँच गए,और रांची में हमारा स्वागत भी बारिश से हुआ ऐसी बारिश जो लगातार 1 घंटे हुई और हमे 1 घण्टे स्टेशन पर ही रुकने पर मजबूर कर दिया,वहां प्लेटफार्म नंबर 1.पर एकदम सामान्य दाम में स्वादिस्ट रसगुल्ले मिलते है आप जब भी जाइयेगा उसे जरूर खाइएगा। अब मुझे रिसीव करने के लिए मित्र आते है और हम निकल जाते है रांची की सैर पर,रात का समय था,नम मौसम होने से शहर में घूमना काफी अच्छा लग रहा था,उसके बाद हमे जहाँ रुकना था उसके पास में ही रांची विश्विविद्यालय का कैंपस था,ग्रीनरी भरपूर थी और काफी शांत और खूबसूरत एरिया था वो,शाम को वहां एक टपरी पर पकोड़ी भी खाई वो ठीक वैसे ही थी जैसा घर पर होता है,मुझे इस टपरी पर जो सबसे अच्छा लगा वो बेचने वाली आंटी का व्यवहार,उसमे अपनापन और सम्मान महसूस हो रहा था। और अब मुझे रांची और भी अच्छा लगने लगा था।
#एक रात रांची में गुजर चुकी थी, अब हमें अपने मुख्य स्पॉट पर जाना था। मुख्य स्पॉट यानी कि जहाँ कार्यशाला था,वो जगह पता चला कि काफी अंदर और रास्ता भी काफी खराब है,मैं मन में सोच रहा था,क्या सोचकर कार्यक्रम रांची छोड़कर वहां रखा गया है,लेकिन यहां मैं पूरा फेल हो गया वो जगह मानो ऐसी थी कि हम एक वास्तविक जंगल मे आ गए हो,दरसल वो जगह थी "बिशुनपुर गुमला" ये वहाँ का आदिवासी जनजातीय क्षेत्र था। 3 दिन वही रहना था,और जगह वास्तव में सुंदर थी,वही पर पद्म श्री से सम्मानित श्रीमान अशोक भगत जी का आश्रम भी था,उनसे भी मिलना हुआ,उन्होंने अनुभव सांझा किया कि ये जगह शुरू में कितना दिक्कत से भरी थी, लेकिन गुमलावासियो से उनकी भरपूर तारीफ सुनी लोकल लोगो के लिए उन्होंने काफी कार्य भी किया है। और यह बातचीत का एक शानदार अनुभव था। इस तरह कार्यक्रम से जैसे टाइम मिलता हम घूम फिर लेते,एक शाम कार्यकम था,वो देश भर के सभी जगहों से आये लोगो के सम्मान का कार्यक्रम था,और ये शायद मेरे जीवन का सबसे खास लम्हों में से एक है,पूरा कार्यक्रम गाँव के आदिवासी क्षेत्र के बच्चों ने तैयार किया था अपने परम्परागत वेशभूषा और और परम्परागत गानो के साथ,उस समय महसूस हुआ कि विवेकानंद जी ने क्यों अपनी संस्कृति को अपनाने की वकालत की,ये शायद ऐसा पल था,जो शब्दो मे नही पिरोया जा सकता। दुख भी था ये प्रतिभावान बच्चे आखिर मुख्य धारा में कब आएंगे,मैने उन लोगो का, हम लोगो के प्रति प्रेम और सम्मान देखा ये वास्तव में मंत्रमुग्ध कर देने वाला था, जहाँ ठीक से लाइट नही जाती हो वहाँ के बच्चे कभी हमारे खाने में देरी नही होने देते थे। ये थी उनकी मेहमाननवाजी,गुमला में एक खास बात और दिखी वो थी अचार की वरायटी 100 से ज्यादा टाइप के अचार वहां घर के बने हुए मिल रहे थे,हमने उसे खरीदा भी ये वहां की खास चीज थी। उसके बाद सफर का अंतिम दिन आया।
#हम लोग आखिरी दिन गुमला से आगे नेतरहाट नाम की जगह पर सैर होना था,मैं यहां का वातारवरण देखकर समझ गया था,ये जगह मसूरी से कम नही है। पूरे रास्ते घनघोर बारिश के बीच सफर शानदार चलता रहा,और हम पहुच गए नेतरहाट वहाँ हम सभी लोगो को एक रिसोर्ट में निमंत्रण भी था,तो पहले वहाँ गए भोजन किए उसके बाद हम मेन स्पॉट पर पहुँच गए,ये जगह बहुत खास थी क्योंकि यहाँ सूर्य उदय और अस्त एक ही दिशा में होते है, और थोड़ा रिस्की भी था,क्योंकि वो बहुत ही अंदर आदिवासी क्षेत्र था,जहाँ वो अन्य का इन्टरफेयर बर्दास्त नही करते,लेकिन ऐसा हुआ नही उन्होंने हमें कोई नुकसान नही पहुँचाया,पर आप अपने साथ उचित सेक्यूरिटी के साथ ही जाए,और इस तरह से शाम के नजारे को देखते हुए ये सफर भी हमारा समाप्त हुआ। हम अपने स्पॉट पर वापस आ गए और अगले दिन निकलना था वापस,चूंकि सफर आने में थोड़ा अकेला टाइप था लेकिन जाते वक्त कई सारे लोग मिले,जिसमे सबसे खास थे हमारे श्याम जी गुरुग्राम वाले,हमने पूरा सफर मजे में बिताया,खाना पीना भी साथ किये,और सबसे शानदार बात रही कि श्याम जी आज भी हमसे जुड़े है। दिल्ली, मेरठ,कानपुर,हरियाणा के भी लोग थे तो इस तरह से सभी के साथ यात्रा का आनंद उठाते हुए हम वापस दिल्ली की ओर चल दिये। और इस तरह से झारखंड का शानदार सफर समाप्त हुआ। झारखंड के लोगो का प्यार हमेशा याद रहेगा ।
शानदार!❣️
#Jay Gupta-