दिनांक ०४/०३/२०२०
दुसरे दिन हमारी योजना हर की पौड़ी की और ऋषिकेश की यात्रा की थी इसलिए हम सुबह जल्द ही उठे। हमें कभी पहाड़ों में सुबह देर तक नहीं सोना चाहिए नहीं तो सुबह के सूर्योदय के समय पहाड़ों की खूबसूरती का आनंद हम नहीं प्राप्त कर पाते है. वैसे हरिद्वार पर्वतीय कम मैदानी इलाका ज्यादा है इसलिए यंहा पर्वतीय खूबसूरती के ज्यादा दीदार नहीं होते पर हर की पौड़ी का सुबह का नजारा भी कम आकर्षक नहीं होता. उठते ही हम नित्य कर्म से जल्द ही निवृत्त होकर हर की पौडी में स्नान के लिए चल दिए।
हर की पौड़ी में स्नान
सुबह का समय होने के कारण पानी काफी ठंडा था और भक्तों की भीड भी थी। करीब एक घंटा स्नान का आनंद लेने के पश्चात घाट पर मां गंगा की पूजा सम्पन्न की। यंहा मां गंगा का जल निर्मल और शीतल था वर्ना हमारे कानपुर और उन्नाव में तो गंगा जी इतनी दूषित हो गयी है कि यंहा का जल भूरे रंग का नजर आता है और कभी-कभी इससे बदबू भी आती है. फिर हमने वहीं थोड़ी दूरी पर स्थित दुकान में नाश्ता किया। हर की पौड़ी पर अगर आप अन्न दान करना चाहते है तो यंहा बनी हुई पूड़ी सब्जी खरीद कर कर सकते है जिसकी जगह जगह दुकाने है. हर की पौड़ी के बारे में अधिक जानकारी यंहा क्लिक कर प्राप्त करें. यंहा एक घंटा घूमने और फोटोग्राफी करने के पश्चात हम ऋषिकेश के लिए निकल पडे।
ऋषिकेश की यात्रा
हम स्थानीय परिवहन के साधनों के द्वारा ऋषिकेश पहुंचे। ऋषिकेश में हम त्रिवेणी घाट के पास उतरे। वंहा से सीधे हम त्रिवेणी घाट पर पहुंचे। त्रिवेणी घाट यंहा के प्रमुख घाट मे एक है। यंहा शाम की गंगा आरती काफी प्रसिद्ध है। काफी धूप होने के कारण हम वापस आकर वहीं पास मे ही होटल में कमरा लिया और थोडी देर आराम किया। यंहा से हम टेम्पों द्वारा लक्ष्मण झूला पहुंचे।
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लक्ष्मण झूला
लक्ष्मण झूला का निर्माण लक्ष्मण जी ने जूट की रस्सियों से किया था जो समय के साथ ध्वस्त हो गया। कलकत्ता के एक धनिक व्यक्ति के द्वारा इसका पुनः निर्माण हुआ तब यह लोहे और अन्य सामग्री से मिलकर बना था। समय के साथ यह भी ध्वस्त हो गया। फिर सन १९३९ में यह वर्तमान पुल निर्मित हुआ। इस पर पैदल चलने पर यह झूलता हुआ जान पडता हैै जिससे शुरुआत में थोडा भय लगता है। नीचे देखने पर मां गंगा की अविरल धारा का प्रवाह देखते ही बनता है।
लक्ष्मण झूला पार कर हम नीलकंठ महादेव मंदिर जाने के लिए निकल पडे। यह मंदिर ऋषिकेश से लगभग ३२ किमी की दूरी पर है के दर्शन के लिए निकल पड़े। नीलकंठ महादेव मंदिर समुद्र तल से लगभग ५००० किमी की ऊंचाई पर पौड़ी गढवाल में स्थित है। मान्यता है कि इसी स्थान पर महादेव जी ने समुद्र मंथन से निकला विष पीया था। मंदिर जाने का रास्ता काफी संकरा और घुमावदार है जिससे यह रास्ता काफी जोखिम भरा है। जिसके कारण यंहा की स्थानीय टैक्सी ही अधिकतर जाती है।
टैक्सी स्टैंड पहुंच कर पता चला कि सुबह ही सारी गाड़ियां शेयरिंग सवारी लेकर निकल गयी है। उस समय सिर्फ हम दो लोग ही थे जिसके कारण सिर्फ निजी टैक्सी बुक कर जाना ही संभव था। निजी टैक्सी का किराया १५०० रुपए है और शेयरिंग का किराया प्रति व्यक्ति १२० रूपये है। अगले दिन सुबह आने का सोचकर हम आगे बढ़ गए।
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भूतनाथ महादेव मंदिर
आगे ७ मंजिल का भूतनाथ महादेव मंदिर स्थित था जिसके दर्शनों के लिए हम चल पड़े। मंदिर ऊंचाई पर स्थित है। मान्यता है कि शिव जी सती से विवाह के लिए जाते समय यहीं रूके थे। सभी मंजिल चढ़कर ऋषिकेश और मां गंगा के अद्भुत दर्शन होते है। यंहा पारद शिवलिंग स्थापित है। यंहा सावन में मेला भी लगता है। यह तीन ओर से राजाजी नेशनल पार्क से घिरा हुआ है। यंहा आने में अच्छी खासी मेहनत लगती है।
फिर पैदल ही घूमते हुए स्वर्ग आश्रम पहुंचे। स्वर्ग आश्रम में गीताप्रेस का आश्रम स्थित है जो काफी व्यवस्थित और साफ सुथरा है।गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा संचालित है। यंहा गीता प्रेस की औषधि इकाई द्वारा निर्मित कई गुणवत्तायुक्त औषधि आप खरीद सकते है। मैने बालों के लिए एक तेल, भृंगराज चूर्ण खरीदा। गीता भवन के अंदर एक मंदिर भी स्थित है जो दर्शनीय है। इसके बाद हम परमार्थ निकेतन आश्रम पहुंचे जिसकी चर्चा अगले चिट्ठे में होगी।
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