एक कहावत है:- लखनऊ की शाम और बनारस की सुबह बहुत ही हसीन होती है
एक बहुत ही प्रशिद्ध शेर से हम अपने ब्लॉग की शुरुवात करते है
''लखनऊ है तो महज गुम्बद ओ मीनार नही
सिर्फ एक शहर नहीं कूच ओ बाज़ार नहीं
इसके आँचल में मोहब्बत के फूल खिलते हैं
इसकी गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं''
( इतिहास कार जनाब योगेश प्रवीन शाहब )
लखनऊ एक ऐसा शहर मैंने अभी तक अपने ट्रेवल कर्रिएर में नही देखा , जो लखनऊ के पास है शायद वोह और किसी भी शहर के पास नही है , हर एक शहर में कुछ ना कुछ मिस हो ही जाता , बहुत शहर देखे हमने, हमें लखनऊ सा शहर नही दिखा , यहाँ पर आप को हेरिटेज से लेकर शॉपिंग, खाना ,नाइटलाइफ़ , रात भर का घूमना, संस्कृति , बेहतरीन पार्क्स ,बेहतरीन पिकनिक स्पॉट्स।, वाटरपार्कस ,रूरल लाइफ , गांव की जिंदगी जीने का मौका इत्त्यादि,यह सब आप को 60 km के अंदर ही आप को मिल जायेगा
कैसे जाये :- लोकल टैक्सी, टम्पू, ,रिक्शा आदि
किराया कितना है :- चारबाग़ से शेयर टैक्सी का किराया करीब २०/- है
सफर कैसे करे :- लोकल ट्रांसपोर्ट बहुत ही सस्ता है , आप लोकल टैक्सी, टम्पू, ,रिक्शा आदि कर सकते है
हम अपने ब्लॉग की शुरुवात यहाँ के हेरिटेज जगहों से करते है
१-रूमी दरवाजा:-
प्रवेश शुल्क :- निशुल्क है
यह दरवाजा लखनऊ का प्रतीक भी माना जाता है , देखने में बहुत हे खूबसूरत इस दरवाजे में तीन गेट है जिसके अंदर से आज के वक़्त में बाइक टैक्सी और बसे एक तरफ से दुषरे तरफ जाती है यह दरवाजा तकरीबन 60 फ़ीट ऊचा है , इस दरवाजे का निर्माण सन १७८४ में नवाब आसफ -उद -दौला ने करवाया था यह द्वार अवधी सैली का बेहरीन नमूना है, अगर आप को रूमी दरवाजा देखना है तो एक बार आप दिन में इसका दीदार करिये फिर एक बार रात में भी , निहायत ही खूबसूरत लगने वाला यह दरवाजा आप की आँखों को ताजगी ठंढक देगा , आप अपना दिल खो बैठेंगे.
बड़ा इमामबाड़ा:-
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प्रवेश शुल्क :- 25/- Per Person
बड़ा इमामबाड़ा की एक बहुत हे प्रसिद्ध कहावत है की "जिसे न दे मौला उसे दे आसफूउद्दौला।" बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ की बहुत ही खूबसूरत दारोहरो में से एक है ,इसका निर्माण अवध के नवाब आसफ - उद - दौला ने 1784 में करवाया था इसे आसिफी इमामबाड़ा के नाम से भी जाना जाता है।, यह ईमारत विशाल गुम्बदनुमा हॉल 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है। यह इमारत बाहर से जितनी खूबसूरत है उससे कही खूबसूरत अंदर से है , कहा जाता है इसका निर्माण नवाब साहब ने एक अकाल राहत परियोजना की वजह से किया था , जिसमे लोगो को काम मिल सके , इसके निर्माण में उस वक़्त करीब ५ - १० लाख रुपए लगे थे इस ईमारत में एक बहुत बड़ी मस्जिद स्थित है जिसे अशफी मस्जिद के नाम से जाना जाता है इसके साथ साथ एक नवाब साहब के समय की शाही बावली (कुवा )भी है जो दिखने में बहुत ही खूबसूरत है इमामबाड़ा के साइड से भूलभुलैया के लिए रास्ता जाता है जो के बहुत के उत्साहित करने वाली जगह है यहाँ अगर आप जाते है तो आप जरूर गुम(भूल) हो जायेंगे। भूल भुलैया के ऊपर की तरफ बहुत सारे झरोखे बने हुए है जिससे बहार की रौशनी अंदर आ सके , इस के साथ साथ इसमें खिड़किया है जिससे आप बाहर का पूरा नज़ारा ले सकते है लेकिन बाहर बैठा हुआ आदमी आप को नही देख सकता। यह इसकी खासियत है
प्रवेश शुल्क :- 25/- Per Person
बड़े इमामबाड़ा जैसे ही आप निकलेंगे रूमी दरवाजा होते हुए सीधे आप टहलते हुए आगे बढ़ेंगे ५०० मीटर पर आप को छोटा इमामबाड़ा नज़र आने लगेगा। यह बाहर से देखने मे बहुत ही खूबसूरत इमारत दिखती है। लेकिन जैसे ही आप अंदर प्रवेश करेंगे वैसे ही आप को बहुत ही खूबसूरत झूमर से सजा हुआ एक मक़बरा दिखेगा। इसके अंदर जा कर के खूबसूरती का अंदाजा लगा सकते है गोला कार् गुम्बद सामने फौहारो से सजा हुआ रास्ता। और जब फौहारे चलते है तो खूबसूरत दिखने वाला मंजर होता है, अगर इसे इतिहास में जाया जाये तो कहा जाता है की इस इमामबाड़ा का निर्माण मोहम्मद अली शाह ने १८३७ में करवाया था लोगो का कहना है की जो मज़ार अंदर बानी हुई है वोह मुहम्मद अली शाह की ही है. मुहर्रम के महीने में शिया मुस्लिम यहाँ पर बहुत ही खूबसूरत सजावट करते है. जो के देखने में बहुत ही खूबसूरत लगता है
हुसैनाबाद क्लॉक टावर:-
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हुसैनाबाद क्लॉक टावर
प्रवेश शुल्क :- निशुल्क है
जैसे ही आप छोटा इमामबाड़ा बड़ा से बाहर कदम रखेंगे वैसे ही आप को एक बहुत ही ऊंची इमारत दिखेगी वोह हुसैनाबाद क्लॉक टावर है।जिसका निर्माण लखनऊ के नवाब नसीरुद्दीन हैदर ने सर जॉर्ज कूपर के आने पर उनके स्वागत के लिए करवाया गया था,इसका निर्माण १८८७ में किया गया था, सर जॉर्ज कूपर अवध प्रान्त के प्रथम लेफ्टिनेंट गवर्नर थे,यह इमारत चारो तरफ से पार्क से घिरी हुई है और चारो तरफ खेलने के लिए ग्राउंड और बैठने के लिए कुर्सियां लगी हुई है , यहाँ पर शाम को लोग आकर बैठते है और लखनऊ के खूबसूरती को निहारते है
टीले वाली मस्जिद:-
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प्रवेश शुल्क :- निशुल्क है
टीले वाली मस्जिद:- सफ़ेद रंग से रंगी यह मस्जिद आप को दूर से ही नज़र आ जाएगी , क्योकि यह मस्जिद गोमती नदी के किनारे पक्का पुल के एक छोर पर बनी हुई है , यह मस्जिद दूर से देखने पर बहुत ही खूबसूरत दिखती है , टीले वाली मस्जिद अपने आप मे एक अलग ही खूबसूरती का उदाहरण है इसमें बनी हुई नक्कासी और पेंटिंग बहुत ही खूबसुरत है , अगर आप को मस्जिद के अंदर जाने का मौका मिलता है तो आप गुम्बद के अंदर बनी हे पेंटिंग को देखिये, निहायत ही खूबसूरत पेंटिंग बनी हुई है, इसमें ३ गुम्बद है जिसमे से बीच का गुम्बद बहुत ही बड़ा बना हुआ है , जैसे ही आप मस्जिद बहार निकलते है वैसे ही आप के बाई तरफ शेख पीर मुहम्मद मज़ार भी दिखेंगे , अगर आप ज़ियारत करने चाहते है तो ज़ियारत कर सकते है ,
कैसे जाये :-
एयरपोर्ट :- अमौसी इंटरनेशनल एयरपोर्ट
रेलवे स्टेशन :- चारबाग़ रेलवे स्टेशन
मेट्रो :- लखनऊ मेट्रो रेल कारपोरेशन
बस स्टेशन :- आलमबाग बस अड्डा
लोकल ट्रांसपोर्ट :- बस,शेयर ऑटो , शेयर टैम्पो , शेयर रिक्शा , ओला , उबेर,रपिडो बाइक टैक्सी अदि