ये यात्रा ॐ पर्वत की है जो पहले दिन धानचुली भीमताल से टेम्पो ट्रेवलर जो कि धारचूला के लिए हल्दवानी (उत्तराखंड)से आती है जिसमे मेरी पहले से सीट आरक्षित थी उससे शुरू हुई पहला दिन इसी सफर में गुजरा की जैसा कई वर्षों के प्रयास से मुझे आदत थी करीब शाम के 6 बजे मै धारचूला पहुँचा ओर अपने रोज के होटल को छोड़ के धारचूला बाजार में स्थित शिवम होटल में रुकने का निश्चय किया जो सस्ता था 400 रु में कमरा मिल गया थका था धारचूला भारत और नेपाल की सीमा में बसा भारतीय शहर है जो समुद्र तल से 700 मीटर पे स्थित है कमरे में नहा के क्युकी धारचूला में बरसात के समय गर्म होता है या महाकाली नदी घाटी में है यहाँ चारो ओर विशाल काय हिमालय के पहाड़ आप का मन मोह लेते है फिर मेने भोले की भक्ति में जाने का निश्चय किया और चिलम में काली घाटी का प्रसाद जो कि होटल में प्रवेश के साथ ही मेने ले लिया था क्युकी यदि आप नशा आदि करते है तो अत्तर का नशा करे जो पूरी तरह से हिमालय की इन घाटियों में हर्बल है तरह से लाखों सालों से उगता है इससे हिमालय आपको को इस शरीर की निर्थकता का बोध करता है महान हिमालय का बोध कराता है ये स्वयं का अनुभव है जो नशा प्रकति का नशा करते है उन्हें इसकी आवश्यकता नही है
मित्रो दिन की शुरुवात करीब 3.45 पे हुवी शौचालय जा के नित्य कर्म करने के बाद स्नान करके भगवान का ध्यान लगाने के लिए फिर मेने चिलम को चेतन किया और कैलाश पति भगवान सदा शिवः की शरण मे गया करीब सुबह 9 बजे से इनर लाइन परमिट बनाने के लिए तहसील परिसर अस्पताल और पुलिस थाने में लगभग दिन का 1 बज गया आपको ये बता दु की तिब्बत ओर नेपाल की सीमा पे स्थित होने के कारण यहाँ इनर लाइन परमिट की आवश्यकता होती है हालांकि ये उत्तराखंड के लोगो पे लागू नही होना चाहिए पर नियम है इसी जगह से कैलाश यात्रा भी होती है और आज कल जब मै धारचूला में हु तब भी चल रही है उसके बाद शुरू हुआ महान हिमालय की यात्रा मुझे आगे की यात्रा के 3 साथी और मिल गए जिनका परिचय आप से भी करा रहा हु पहले थे 60 साल से भी ज्यादा के चाचा जी जो हिमांचल प्रदेश से आये थे उनका नाम भूल गया हूं दूसरे थे दीपक भाई जो देहरादून से थे तीसरे थे संदीप भाई जो आज भी सम्पर्क है जो अम्बाला पंजाब से आये थे हम सब ने टेक्सी जो नजग तक स्थानीय लोगो के आने जाने एक मात्र साधन है तब ये रोड नही तैयार थी पूरी तरह से 2020 मई में सरकार ने इसके पूरा होने की घोषणा कर दी है पर तब है पूरी नही हुई थी और हमारे साथी कई स्थानीय युवा और लोग बने हम करीब 4बजे नजग पहुचे मै मानसिक रूप से नजग तक के लिए ही तैयार था पर संदीप भाई और एक स्थानीय युवक विरेन्दर जिसे छियालेख जाना था जो bro के साथ काम करता था के कहने पर पैदल माँ काली नदी के बगल से पैदल चल पड़े यहाँ से पैदल यात्रा का रोमांच शुरू हुआ जो बेहद रोमांचक भी था भयानक भी इसने मुझे भय से लड़ना और मानसिक रूप से मजबूत भी बनाया और लमारी में बुंदियाल जी के सादे ओर सरल यात्री विश्राम गृह में रात करीब 8 बजे पहुचे इस पैदल यात्रा लगभग 10 किलोमीटर की थी पर कही रास्ते ही नही थे मालपा के बाद रोड नही थी उसके बाद जहाँ से उतर के नदी के बगल से पुराने रास्ते पे पहुँचे जिसे स्थानीय नागरिक प्रियोग करते है पर ये बरसातों के समय बड़ा ही खतरनाक हो जाता है रोड कटिंग की वजह से ये ओर भयानक हो जाता है यात्रा का ये दिन पूरी यात्रा में सबसे यादगार ओर रोमांचकारी रहा
ॐ पर्वत यात्रा दूसरा दिन
तीसरा दिन सुबह से आराम का मन मेरे पांव के तंतु टूट गए थे क्युकी मेरी योजना में लमारी 3 दिन पहुचना था पर में उसे पहले दिन कर चुका था इसलिए इसलिए मै रुक गया और संदीप भाई लोग यात्रा पे निकल गए यहाँ से में ओर मेरा साथी जिसे मेने मार्गदर्शन के लिए बुक किया था वो रुक गए लमारी का दिन आराम से गुजरा शाम को तिब्बती चकती के साथ भोजन किया और सो गए
आज मौसम थोड़ा बंद था हम लमारी से बूंदी ग्राम के लिए निकले जो लगभग 4 km का सफर था सुबह 9 बजे हम यहाँ पहुँच गए दूसरे दिन की उस यात्रा ने मेरे पूरे शरीर को तोड़ दिया था तो 4 दिन भी आराम कर के बिता पांव के दर्द के लिए चकती का पेय किया और कीड़ा जड़ी को गर्म पानी मे डाल कर पिया ये दिन भी शांत था
ये यात्रा शुरू होती है सुबह 7 बजे जो हमे छियालेख के लिए शुरू की ये यात्रा खड़ी चढ़ाई वाली यात्रा करीब 10 किलोमीटर की ये यात्रा आपकी पूरी परीक्षा लेती है और आप इस परीक्षा को पास करते है तो आप की यात्रा सरल हो जाती है अब शायद आप इस यात्रा में आये तो आप सीधे गाड़ी से गूंजी पहुँच जाए हम करीब 10.30 बजे छियालेख पहुँचे चाय की चुस्कियों के साथ धूम्रपान किया फिर गूंजी के लिए यात्रा प्रारंभ की यहाँ itbp के दुवारा आपके इनर परमिट की जांच की जाती है उसके बाद गर्बियाग पहुचे जो लगभग 6km का सफर है उसके बाद करीब 4 बजे गूंजी पहुँचे यहाँ के यात्री विश्राम गृह में रुके के सफर करीब 24 km का सफर था
आज के दिन ॐ पर्वत की ये यात्रा गूंजी से कालापानी ओर नाभीढांग के लिए शुरू हुई जो लगभग 18 km की है हम करीब 10 बजे कालापानी पहुँचे वहां माँ काली के मंदिर से माता का आशीर्वाद लिया ये ये काली नदी का उदगम स्थल है यहाँ से एक आर्मी की जिप्सी में नाभीढांग का सफर किया यही ॐ पर्वत के दर्शन का ओर यात्रा का आखरी पड़ाव है इसके बाद आगे की यात्रा कैलाश मानसरोवर जाने वाले यात्री करीब रात 2 बजे से आरम्भ कर दी जाती है उन्हें तिब्बत की सीमा में पहुँचना होता है यहाँ kmvn के यात्री विश्राम गृह में रुका ॐ पर्वत के आगे मेघ लगे थे पूरा दिन ॐ पर्वत के दर्शन नही हुए फिर रात्रि विश्राम करने के लिए चले गए
सुबह 5 बजे ॐ पर्वत के प्रथम दर्शन हुवे वो श्नन अद्भुत था मुझे 18 घंटे के बाद भगवान शिवः के ॐ रूप के दर्शन हूवे पर ये थोड़ी देर चला और धुन्ध में ॐ पर्वत मेरी आँखों से ओझल हो गया फिर 7 बजे भगवान शिवः ने अद्भुत दृश्य के साथ नाग पर्वत ,ॐ पर्वत ,योग की नाभि के अदभुत अकल्पनीय दर्शन हुवे और मुझे एक ऊर्जा का श्रमण हुवा उसे बता पाना या शब्दो मे कहे पाना कठिन है