तीन पहाड़ियों से घिरा पुष्कर शहर बेहद शांत है। सामान्य दिन पर इस शहर में बड़े आराम से पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देती है। इस शहर में लगभग 400 मंदिर हैं और विश्व में ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर भी यहां स्थित है। राजस्थान के इस शहर को रोज़ गार्डन के नाम से जाना जाता है क्योंकि पुष्कर गुलाब के फूलों का दुनिया में सबसे बड़ा निर्यातक है। पुष्कर के फूलों की महक मन में कई दिनों तक बस जाती है, पुष्कर में घूमते हुये महसूस होता है कि समय की यहाँ कोई बंदिश नही, जितना भी समय हो, यहाँ कम पढ़ जाता है, क्यूंकि यह शहर तो हर बदलते पल के साथ एक नये रंग के साथ आपके सामने आता है, यदि मुख्य सड़क से घाट तक आप गये तो एक रंग, वापिस लौटे तो बिलकुल बदला हुआ रंग, दिन में दस बार गुजरिये, दस भिन्न प्रकार के रंगो से आपका सामना होगा,
इतनी विलक्षणता !
परन्तु समन्वय भी इतना कि हर रंग दूजे में गुंठा ही मिलेगा, हर बार !
जयपुर से करीब 140 किमी तथा अजमेर से लगभग 12-13 किमी दूर, धरा के इस भू-भाग पर एक अलग ही रंग का हिन्दुस्तान बसता है, एक ऐसा हिंदुस्तान जिसे केवल देखने नही, बल्कि महसूस करने, इसे जीने और इसकी आध्यात्मिकता में डूबने, दुनिया भर से लोग इसकी तरफ खिंचे चले आते हैं | हो सकता है, आप इसे सिर्फ इस वज़ह से जानते हों कि यहाँ ब्रह्मा जी का एक मन्दिर है जो दुनिया में इकलौता ही है, वैसे मैंने सुना है कि एक मन्दिर बाली (इंडोनेशिया) में भी है, मगर आम हिन्दुस्तानी लोगों की पहुँच में तो यह ही एक मन्दिर है, सो उनका आना तो लाजिमी है और समझ में भी आता है, मगर किस कारण से और किसकी तलाश में, इतने रंग-बिरंगे, विदेसी लोग जाने कहाँ-कहाँ से यहाँ आते हैं और फिर, आते हैं तो ठहर ही जाते हैं, महीनों-महीनों भर ! और फिर जिन जगहों पर ठहरते हैं वहाँ कुछ अपनी ऐसी यादें छोड़ जाते हैं कि जब उनका कोई और करीबी यहाँ आता है तो उसी होटल, गेस्टहाउस या धर्मशाला का वही कमरा माँगता हैं, जिसमे उसका कोई संगी, कोई साथी या देशवासी कुछ समय गुजार कर गया था | शहर तो आप ने अनेकों देखे होंगे, अनेकों जगहों पर कुछ दिन गुजारे भी होंगे, पर क्या कभी आपने किसी स्थान के प्रति ऐसी आसक्ति दिखाई कि जिस जगह को मेरा परिचित जिस हाल में छोड़ कर गया था, मुझे वही कमरा, उसी हालत में चाहिये, उसी रंग में पुती दीवालें, वो उघड़ा हुया दीवाल का प्लास्टर, वही टूटे हुए कांच वाली खिड़की, वो पंखें का तिरछा ब्लेड, जो उसके किसी पूर्ववर्ति साथी ने अपने ध्यान के कुछ अदभुत क्षणों में किसी एक खास दिशा में मोड़ दिया था, वो दीवाल पर लिखी इबारत, और अगले आने वाले के लिए एक संदेशा, जिस वजह से जगह का मालिक सालों-साल चाह कर भी सफेदी नही करवा पाता, कि कब इसका कोई दूसरा मित्र आयेगा और मुझसे वही दरों-दीवार मांगेगा, तो फिर, मैं कैसे वो उसे ला कर दे पाऊंगा ! मालिक, मालिक ना हो कर केवल एक रखवाला (केयर टेकर) बन जाये, वो भी किसी दबाव या जबरदस्ती से नही, अपनी ही ख़ुशी से… ये इस शहर के मिज़ाज़ का एक ज़़ायका है !
एक बेहद छोटा सा शहर, जिसे एक छोर से दूसरे छोर तक आप पैदल ही माप सकते हैं, मगर अपने आप में पूरी सृष्टि का रहस्य समेटे, एक निहायत ही अलग सी दुनिया ! कुछ ऐसी दैवीय शक्तियाँ, कुछ आध्यात्मिकता, और निश्चित रूप से बहुत सा प्रकृति का वरदहस्त अपने ऊपर लिये हुये, नाग पहाड़ी, प्रकृति द्वारा अजमेर और पुष्कर के बीच खींची गयी एक भौगोलिक सीमा रेखा है | ये शहर तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है, और इनके मध्य है, कुछ-कुछ वलयाकार सी आकृति लिए हुये यह बेतरतीब सा सरोवर, जो इसकी सम्पूर्ण आध्यात्मिकता और दर्शन का आधार है | कितने हाथ गहरा है, ये तो हम नही जानते मगर इसका होना ही अपने आप में महत्वपूर्ण है | पुष्कर के साथ जो भी दँत-किवँदतिया, कहानियाँ और चमत्कार जुड़े हुये हैं, यूँ लगता है जैसे इसी सरोवर की कोख से ही उपजें हों | इस सरोवर की उत्पत्ति के साथ जो मिथक जुड़े हैं, वो भी कुछ कम दिलचस्प नही, कहते हैं, जब दानव वज्रनाभ ने ब्रह्मा जी की संतानों का वध कर दिया तो उसे मारने के लिए उन्होंने अपना अस्त्र, जो कि कमल है, चलाया | उस कमल के फूल की एक पंखुड़ी छिटक कर इस रेगिस्तानी धरती पर गिरी, जिससे इस धरती पर पानी का श्रोत्र फूट पड़ा, जिसने एक झील का रूप ले लिया और आज, यह एक सरोवर के रूप में हमारे सामने है | ब्रह्मा जी के नाम का सरोवर, बीच झील में एक मन्दिर नुमा इमारत है, पर उसमे कहीं कोई मूर्ती नही, कभी देखा सुना नही कोई ऐसा मन्दिर जिसमे उसके देवता की मूर्ती ही ना हो ! सुना है, ब्रह्मा जी ने इस जगह पर यज्ञ करवाया परन्तु उनकी पत्नी सावित्री ने हार-श्रृंगार में बहुत अधिक समय लगा दिया और इधर आहुति का समय निकला जा रहा था तो उन्होंने यहीं की एक स्थानीय महिला ‘गायत्री’ को अपनी पत्नी की जगह बिठा, सभी विधियाँ पूरी कर ली, पर जैसे ही सावित्री उस जगह पहुंची और अपनी जगह किसी और महिला को पत्नी के आसन पर बैठे देखा तो ब्रह्मा जी को श्राप दिया और स्वयं पास ही के रत्नागिरी के जंगल में चली गयी जिस वजह से इस जगह पर ब्रह्मा का मन्दिर तो है पर इस मंदिर में उनकी कोई मूरत नही, क्योंकि एक श्रापित देवता की मूर्ती की स्थापना शास्त्र सम्मत नही |
पुष्कर आने का सही समय
पर्यटकों को इस पवित्र शहर में नवंबर से मार्च के बीच आना चाहिए। सर्दी के मौसम में इस शहर में घूमना बेहद अच्छा लगता है। इस मौसम में रेगिस्तान सफारी का लुत्फ जरूर उठाएं। ठंड के मौसम में पुष्कर शहर में कई मेलों और उत्सवों का आयोजन किया जाता है। गर्मी में यहां चिलचिलाती धूप पड़ती है तो वहीं मॉनसून में खूब बारिश होती है। इस दौरान यहां बहुत कम पर्यटक आते हैं।
पुष्कर पहुंचने के माध्यम
रेल मार्ग : पुष्कर में एक रेलवे स्टेशन है। हालांकि, अजमेर इसका नज़दीकी रेलवे स्टेशन है।
बस द्वारा : पुष्कर के लिए रोज़ बसें चलती हैं।
वायु मार्ग द्वारा : पुष्कर के लिए निकटतम हवाई अड्डा किशनगढ़ हैं। यहां से पुष्कर 45 किमी दूर है।
पुष्कर झील पुष्कर के आकर्षित स्थल पुष्कर में हिंदुओं की पवित्र झील पुष्कर झील स्थित है। राजस्थान में ये झील मुख्य आकर्षण है। माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने इस झील में धार्मिक संस्कार किया था। उन्होंने इस जगह पर कमल का फूल गिराया था और आज यहां पुष्कर झील है।
ब्रह्मा मंदिर भारत में ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर राजस्थान के पुष्कर में स्थित है। इस वजह से भी पुष्कर शहर खास महत्व रखता है। इश शानदार में मंदिर में प्रवेश से पूर्व पुष्कर की पवित्र नदी में स्नान जरूर कर लें। इससे मन, मस्तिष्क और आत्मा शुद्ध हो जाती है।
सावित्री मंदिर सावित्री, ब्रह्मा जी की पहली पत्नी हैं। रत्नागिरि पर्वत की चोटि पर ये मंदिर स्थित है। देवी सावित्री के इस मंदिर को ब्रह्मा जी पर नज़र रखने के लिए बनाया गया था। ब्रह्मा जी ने अन्य महिला से विवाह कर लिया था जिस वजह से सावित्री जी क्रोधित हो गईं थीं। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आधे घंटे का ट्रैक करना पड़ता है।
पुष्कर मेला इस प्रसिद्ध मेला दुनियाभर के पर्यटकों को आकर्षित करता है। ग्रामीण इस मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते हैं। इस उत्सव की धूम देखने लायक होती है। पुष्कर नदी के तट पर पुरुष पशु, घोड़े और मवेशियों का व्यापार करने आते हैं। इसके अलावा मेले में और भी कई चीज़ें होती हैं।
यदि बात पुष्कर की हो रही हो तो, यहाँ एक बात का जिक्र और कर लें कि यहाँ बन्दर बहुत है और उनमे भी ख़ास तौर पर उनकी एक प्रजाति लंगूर का तो वर्चस्व है, पुष्कर आने वाले रास्ते से लेकर घाट तक, हर जगह आप इन्हें पा सकते हैं और हमारे जैसे तो अपने घर से निकलते ही अपने सामान के साथ-साथ गुड और चना जरूर रखते हैं इनके लिये, बीच राह कहीं कार किनारे पर लगा, इन्हें कुछ खिलाने पर एक अजब सी संतुष्टि मिलती है | चलिए, अब लगे हाथ यहाँ कार्तिक मास में लगने वाले उन दो मेलों का जिक्र भी कर लें जिनके कारण पुष्कर देश विदेश में जाना जाता है, पहला मेला पूरे तौर पर धार्मिक है जो 5 दिन चलता है और इस दौरान आने वाले श्रद्धालु इस ब्रह्म सरोवर में स्नान कर के मोक्ष की कामना करते हैं और दूसरा पुष्कर के ही बाहरी भाग में लगने वाला पशु मेला है, जिसमे पूरे राजस्थान और आस-पास के राज्यों से लोग अपने जानवरों जैसे ऊँट, गाय, भैंस, बकरी, गधा, भेड़ आदि बेचने-खरीदने आते है और अब तो यह मेले अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बना चुके हैं, और इन्हें देखने हजारों विदेशी पर्यटक भी आते हैं | आध्यात्मिकता और धार्मिकता के इस अनूठे मेल में रंगे हुये इस क्षेत्र का ये भी एक अनूथा ही रंग है | धार्मिकता से थोड़ा इतर मगर हिन्दुस्तान की परंपरागत कृषि आधारित अर्थव्यवस्था और उसमे पशु धन के महत्व को रेखांकित करता हुआ एक पर्व !
यहाँ से निकलने की इच्छा तो नही, परन्तु व्यवहारिकता, दार्शनिकता पर हावी हो जाती है और फिर हम इस शहर के तिलिस्म और आध्यात्मिकता से बाहर निकल, एक बार फिर से जयपुर का रास्ता पकड़ लेते है, यूँ ही बीच राह एक ख्याल आता है जब भी आप एक स्थान में कुछ समय गुजार कर जाते हो तो फिर अकेले वापिस नही जा पाते ! या कम से कम उन भावों के साथ नही जा पाते, जिनके साथ आये थे ! वो शहर, उसकी दार्शनिकता, उसके वासी, सब स्मृतियाँ बनकर जुड़ जाती हैं आपके अंतर्मन में, और फिर वो आपके अवचेतन का एक हिस्सा बनकर आपके साथ वापिस जाता है |