दक्षिण भारत के राज्य केरल को यूं ही 'भगवान का अपना देश' नहीं कहा जाता, यहाँ की धरती को भगवान ने सच में अपने हाथों से गढ़ा है। पेरियार नेशनल पार्क इसकी गवाही देता प्रतीत होता है।
पेरियार राष्ट्रीय उद्यान केरल के इडुक्की जिले से 60 km दूर थेक्कडी में इलायची हिल्स की पहाड़ियों के बीच स्थित है। इस उद्यान की स्थापना 1950 ई. में की गयी थी और 1978 में इसे टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। 1998 से इसे 'हाथी संरक्षण परियोजना' के अंतर्गत भी रखा गया है। 305 वर्ग किमी में फैला यह उद्यान बायोडायवर्सिटी का एक अच्छा उदाहरण है।
पेरियार नेशनल पार्क जाने के लिए जैसे ही हम पार्क के मेन गेट के पास पहुंचे तो हमें पता चला कि हम हम अपनी गाड़ी पार्क के अंदर नहीं ले जा सकते । अंदर जाने के लिए वहीं मेन गेट के पास बने टिकट काउंटर से टिकट लेना होगा जिसमें पार्क का एंट्री फीस और साथ में पार्क की बस का किराया भी था जो हमें मेन गेट से पार्क के अंदर तक ले जाने वाली थी। हमने अपने ड्राइवर को इंतजार करने को बोला और चल पड़े केरल के सबसे बड़े नेशनल पार्क की सैर करने....
बस हमें लगभग 20 मिनट में पार्क के अंदर तक ले गयी। नेशनल पार्क के अंदर घुसते ही एक अजीब सी खामोशी छायी हुयी थी। हमें केवल बस के इंजन की आवाज ही सुनाई दे रही थी। चूंकि यह हमारी किसी भी टाइगर रिजर्व की पहली यात्रा थी तो हम थोड़ा डर के साथ साथ रोमांचित भी हो रहे थे। हमें लगता था कि यह एक टाइगर रिजर्व है तो शायद कहीं से भी टाइगर निकल आए लेकिन यह हमारा भ्रम था केवल और कुछ नहीं। बस हमें निर्धारित स्थान पर छोड़कर वापस चली गयी। भीड़ बहुत ज्यादा नहीं थी। अब हमारे सामने थी पेरियार टाइगर रिजर्व के बीचोंबीच स्थित पेरियार झील जिसमें हमें बोटिंग करनी थी और झील किनारे पानी पीते या धूप सेंकते जानवरों खासकर टाइगर को देखना था। यहाँ भारतीय पर्यटकों के साथ साथ कुछ विदेशी सैलानी भी थे। पार्क के अंदर जाने पर एक बात का ध्यान रखना है कि यहाँ बंदर बहुतायत में हैं और अगर आपके पास खाने पीने की चीजें हैं तो ये बहुत मुश्किल है कि आप उनसे बच सकें। चूंकि इस बारे में हमारे ड्राइवर ने हमें पहले ही बता रखा था तो हम पहले से ही सचेत थे।
बोटिंग के लिए हमने टिकट लिया जिसका मूल्य लगभग 250 रू था। फिर हमें थोड़ा इंतजार करना पड़ा बोट के लिए। कुछ समय के बाद एक डबल डेकर बोट आयी और हम उसपर सवार हुए और उसके बाद सारी सवारियों को पहनने के लिए लाइफ जैकेट दिए गए और अपने सीट से न उठने की सख्त हिदायत दी गयी। बोट चल पड़ी और अब हमारा रोमांच चरम पर था। झील के बीच में कुछ लकड़ी के लठ्ठे गाड़े गए हैं जिनपर विभिन्न प्रकार के पक्षियों ने घोंसले बनाए हुए थे। बोट तो सैलानियों से भरी थी लेकिन माहौल एकदम शांत था। सभी लोग एकटक झील के किनारे पर अपनी निगाहें जमाए हुए थे क्योंकि सबको टाइगर देखना था।
थोड़ा आगे बढ़े तो एक जगह पानी के किनारे झुरमुटों में थोड़ी हलचल हुई लेकिन ध्यान से देखा तो एक हिरन दिखाई दिया। मन थोड़ा उदास हुआ पर सोचा यहां नहीं तो आगे तो दिख ही जाएगा। काफी दूर एक दूसरे छोर पर कुछ हाथी अठखेलियां करते दिखाई दिए पर वो चीज नहीं दिखाई दी जिसे देखने हम आए थे। वापस लौटते वक्त भी केवल कुछ छोटे मोटे जानवर ही दिखाई पड़े।
कहते हैं कि जंगल में आप सौभाग्यशाली होंगे तभी टाइगर दिखाई देगा क्योंकि टाइगर हमारे चाहने से नहीं बल्कि जबतक वो खुद न चाहे कि आप उसे देखें,आप उसे नहीं देख पाएंगे।हमारी जंगल के राजा को देखने की हसरत अधूरी रह गई। यूं तो चिड़ियाघर में आपने बहुत से टाइगर देखे होंगे लेकिन खुले वातावरण में उसके खुद के घर में आजादी से उसे स्वच्छंद घूमते हुए देखने का रोमांच कुछ और ही है।
हमें मायूस होकर लौटना पड़ा। बस ने जहाँ हमें छोड़ा था वहीं से वापस उद्यान के गेट तक ले गई। बस का लगभग बीस मिनट का वह रास्ता बहुत बोझिल लग रहा था लेकिन अपने मन को ढांढस बंधाया कि आज नहीं तो कल सही, यहाँ नहीं तो कहीं और सही, मुलाकात तो जरूर होगी जंगल के राजा से उसके अपने ही घर में......।