मध्य प्रदेश में यूँ तो ऐतिहासिक, धार्मिक और प्राकृतिक पर्यटन स्थलों की कमी नहीं है। लेकिन कुछ ऐसे पर्यटन स्थल भी है जिनके बारे में स्थानीय लोगों के अलावा बाहर ज्यादा किसी को पता नहीं है। ऐसे ही कुछ स्थानों के बारे में बताने के लिए कुछ पोस्ट लिखूँगा जो अपेक्षाकृत कम जानी पहचानी और स्थानीय स्तर पर प्रसिद्ध है।
ऐसी ही एक जगह है – सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला में स्थित बीजागढ़ महादेव मंदिर। सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला मध्य भारत की एक प्रमुख पर्वत श्रृंखला है जो गुजरात से नागपुर के पठार तक फैली हुई है। सात पहाड़ियों की श्रृंखला होने से इसे सतपुड़ा पर्वत के नाम से जाना जाता है। मध्य प्रदेश में यह मुख्यतः बुरहानपुर, खंडवा, खरगोन और बडवानी जिलों में फैली है।
मैं मध्य प्रदेश के खरगोन जिले की एक ऐतिहासिक नगरी ऊन का रहने वाला हूँ। यहाँ 10 वीं शताब्दी के परमार कालीन खजुराहो शैली के प्राचीन मंदिर स्थित है। मेरे गाँव के बारे में विस्तृत जानकारी बाद में सिलसिलेवार लिखूँगा। अभी चलते है सतपुड़ा पर्वत की गोद में बसे गाँव जलालाबाद और बीजागढ़ महादेव मंदिर की सैर को। गाँव के सबसे पास यही एक प्राकृतिक पर्यटन स्थल होने से हम लोग साल में 3-4 बार यहाँ घुमने आ जाते है। वैसे महाशिवरात्रि पर यहाँ मेला लगता है तब तो अनिवार्यत: दर्शन के लिए आना होता है।
बीजागढ़ मंदिर और गाँव खरगोन जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर खंडवा बडौदा राज्यमार्ग के दक्षिण में 20 किलोमीटर अन्दर स्थित है। यहाँ जाने के लिए ऊन और तलकपुरा कस्बे से खंडवा बडौदा राज्यमार्ग से अन्दर दक्षिण दिशा में मुड़ना पड़ता है। पर्सनल व्हीकल से जाना ज्यादा ठीक होता है क्योंकि यहाँ आम दिनों में सिर्फ 2 बसें ही खरगोन के लिए चलती है जिनके टाइम फिक्स है बडौदा यहाँ रुकने की भी कोई व्यवस्था नहीं है इसलिए दिन में ही जाकर शाम से पहले लौट आना ज्यादा ठीक रहता है।
सतपुड़ा पहाड़ के अंचल में एक छोटी सी गुफा में शिव मंदिर स्थित है जो कि लगभग 200 साल पुराना है। बीजागढ़ - प्राचीन निमाड़ प्रदेश की राजधानी थी। शायद इसलिए इस महादेव मंदिर का नाम बीजागढ़ महादेव मंदिर पड़ गया। यह गुफा मात्र 6 फीट गहरी और 3 फीट ऊँची है। जिसमें 2 शिवलिंग की स्थापना की हुई है। इसके पास ही पानी का एक छोटा सा प्राकृतिक कुंड है जिसमें पहाड़ी से रिसकर पानी आता है। इससे दाहिने तरफ एक झरना है जो बारिश के दिनों में पहाड़ी से आने वाले नाले से बनता है। बारिश के दिनों में इस जगह का प्राकृतिक सौन्दर्य देखने लायक होता है। पहले यहाँ घना जंगल होता था जो अब धीरे-धीरे घटता जा रहा है।
मुख्यतः यहाँ सागौन, सागवान, टेमरू, महुआ के पेड़ ज्यादा है। पास के आदिवासी गाँव जलालाबाद में थोड़े से टपरे है। मंदिर के ऊपर पहाड़ी पर पर और आस पास बहुत से फलिए है जहाँ आदिवासी लोग अपने खेतों में ही घर बनाकर रहते और खेती करते है।
बीजागढ़ मंदिर के पास झरने के ऊपर क्या है इस उत्सुकता में हम दोस्त लोग जगदीश, मनोज और मैं ऊपर गए। जब पहाड़ी पर चढ़ रहे थे तो हमें वहाँ से पैदल आते हुए 2 लोग मिले जो ऊपर ही फलिए में रहते है। उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि हम लोग ऊपर खेत में ही घर बनाकर रहते है। खाने पीने की अधिकतर चीजे हम लोग यही उगा लेते है जैसे गेहूँ, मक्का, ज्वर और दालें। दूध के लिए गाय पालते है। बहार से सिर्फ हम नमक और तेल खरीद कर लाते है। पहले तो यहाँ लाइट भी नहीं थी लेकिन अब नीचे मंदिर से कुछ पोल ऊपर तक आये है वहाँ से हमने अपने घर तक लाइन डालकर लाइट लेकर आये है। कही जाना भी होता है तो 5-6 किलोमीटर चलकर जलालाबाद गाँव तक जाना होता है वहाँ से सुबह एक बस मिलती है, वही रत को वापस आती है। ऊपर खेत और फलिए बने हुए है। ऊपर से पहाड़ी का नजारा देखने का अलग ही मजा है।
बीजागढ़ महादेव मंदिर का इतिहास
सेगांव तहसील मुख्यालय से 25 किमी सतपुड़ा पर्वत के बीच बीजागढ़ स्थित महादेवजी का मंदिर है यहां मौजूद शिलालेख व ताम्रपत्र के आधार पर यह मंदिर 200 साल से ज्यादा पुराना है। महाशिवरात्रि पर यहां पांच दिनी मेला लगता है। महाशिवरात्रि पर्व पर बीजागढ़ स्थित भगवान भोलेनाथ के दर्शन-पूजन के लिए गुजरात, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश सहित अन्य राज्यों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
होल्कर स्टेट के तहत निमाड़ क्षेत्र में बीजागढ़ सरकार द्वारा व्यवस्थाओं को देखा जाता था। जिला मुख्यालय पर बने पांच से ज्यादा किलों में से दो किले आज भी हैं। बाकी किले पूर्णरूप से ध्वस्त हो चुके हैं।
1857 में लगती थी कचहरी: बीजागढ़ से ही समूचे निमाड़ क्षेत्र का संचालन होता था। उस समय यहां कचहरी लगती थी। बाद में उसे बरूड़ स्थानांतरित किया गया। इसके बाद जिला मुख्यालय खरगोन में संचालित हुई। महंत मुन्ना बाबा के अनुसार 1857 तक बीजागढ़ सरकार संचालित होती थी। पिछले 125 सालों से यहां एक दिनी मेला महाशिवरात्रि पर्व पर लगता था, धीरे-धीरे पिछले 10 साल से पांच दिनी मेले का आयोजन किया जा रहा है।
बीजागढ़ महादेव मंदिर के अलावा सतपुड़ा की पर्वत श्रृंखलाओं के बीच यहां सात तालाब स्थित हैं, जो सेलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। बीजागढ़ सरकार के समय यहां किला हुआ करता था, लेकिन इस पुरातात्विक धरोहर को सहेजने के लिए शासन द्वारा कोई प्रयास नहीं किए गए। इससे किला खंडहर में तब्दील हो गया।
संदर्भ दैनिक भास्कर, खरगोन, 24-2-2017
बीजागढ़ सतपुड़ा पर्वत में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र राज्य की बॉर्डर पर स्थित है इसलिए सामरिक दृष्टी से भी ये महत्त्वपूर्ण स्थान था इसलिए पहले राजाओं ने और बाद में अंग्रेजो ने यहाँ के पहाड़ी पर बने किले को छावनी की तरह इस्तेमाल किया। पहाड़ी पर इसी छावनी में 7 तालाब कुछ प्राकृतिक और मानव निर्मित स्थित है जो कि उस समय सेना की पानी की आपूर्ति के काम आते थे। अब भी आखिरी गुप्त तालाब यहाँ रहने वाले लोगो और तपस्या करने वाले साधू सन्यासियों के काम आता है। यह तालाब किले से उतारते समय पहाड़ी पर बनी एक गुफा के अन्दर स्थित है इसलिए बाहर से देखने पर कोई इसे पहचान नहीं पाता इसलिए इसे गुप्त तालाब कहते है। पुरानी मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि पर लोग बीजागढ़ महादेव मंदिर के दर्शन कर इन 7 तालाबों की परिक्रमा भी करते थे। अब भी बहुत से लोग इस परिक्रमा पर जाते है। मैंने भी 3-4 बार परिवार और दोस्तों के साथ यहाँ की परिक्रमा की हुई है।
महाशिवरात्रि के अवसर पर मेरे पापा स्व. श्री हरलाल मधुकर हर साल हमें यहाँ लेकर आते थे। पापा जब शिक्षक थे तो महाशिवरात्रि मेले पर उनके स्कूल से स्काउट के बच्चों को लेकर आते थे जो यहाँ दर्शनार्थियों के लिए व्यवस्था बनाने में सहयोग करते थे। खरगोन जिले के भगवानपुरा ब्लॉक में 2000 से 2005 तक पापा स्व. श्री हरलाल मधुकर विकासखंड शिक्षा अधिकारी रहे। बीजागढ़ और जलालाबाद का क्षेत्र मेरे पापा के कार्यक्षेत्र में ही आता था। जब भी हम यहाँ आते थे तो पापा के विभाग की और से हमें कुछ सुविधाएँ मिल जाती थी। और पापा के विभाग की स्कूलों और होस्टल का दौरा भी हो जाता था। सावन में महीने में हरियाली अमावस्या को भी आस पास के चालीस पचास गाँव से लोग पैदल यात्रा करके यहाँ दर्शन करने आते है। मैं भी 2-3 बार इस तरह दोस्तों के साथ मेरे गाँव से 35 किलोमीटर पैदल चलकर यहाँ आया हूँ।
मंदिर से नीचे वापस आने पर बीजागढ़ वाले बाबा के नाम से प्रसिद्ध एक संत का आश्रम भी है जो कि अभी स्वर्गवासी हो गए है। लेकिन उनके पुत्र जो की स्वयं भी गृहस्थ सन्यासी है वो आश्रम और मंदिर की देख रेख करते है। मंदिर के बाद आश्रम में बाबा के दर्शन करके ही लोग आगे बढ़ते है। बाबा भी इस सुनसान क्षेत्र में श्रद्धालुओं का यथासंभव सत्कार करते है।
बीजागढ़ से 20 किलोमीटर दूर ही नागलवाड़ी का नाग देवता का शिखर मंदिर है जो सतपुड़ा पहाड़ियों में ही है। उसके बारे में दूसरी पोस्ट में बताऊंगा।
- कपिल कुमार
02-05-2020