हर युवा अपने लड़कपन में ये ख्वाब देखता है के वो अपनी बुलेट मोटर साइकिल पर लद्दाक का ट्रिप मारे। मैं भी उन में से ही एक था।
चार्टर्ड अकाउंटेंट की पढाई में कब लड़कपन जवानी में बदल गया पता ही नहीं चला| और जब चार्टर्ड अकाउंटेंट बने तब जवानी शुरू हो चुकी थी पर सपने अभी भी लड़कपन वाले थे ।सीऐ बनते ही नौकरी ढूंढनी शुरू की| मित्रों ने सहयोग दिया और मेरी नौकरी लग गयी| फिर लगा के शायद अब सपने पूरे होने का समय आ गया है तो सबसे पहले बड़े भाई को पटा के बुलेट खरीदी| अब बुलेट तो खरीद ली लेकिन जाएँ कहाँ? सुना है लद्दाक जाना मज़ाक नहीं है, टायर पंक्चर, बाइक ख़राब होना, सौ टंटे हैं, ऊपर से वज़न मेरा 100 के पार है यानि जोश मन में तो बहुत था लेकिन परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं थी |
ऊपर से नौकरी पर छुट्टी माँगो तो लगता है ऑफिस हमारे ही भरोसे चल रहा है। समय यूँ ही बीतता रहा और अगले बरस मैंने नौकरी छोड़ दी। सोच अपनी प्रैक्टिस करेंगे सीए की। प्रैक्टिस में आये तो अथाह समुन्दर था, बेस बनाने के लिए किसी के साथ जुड़ना ज़रूरी था तो हमने गुलिआ साहब का दामन थाम लिया। समय फिर भी मेहरबान नहीं हुआ। "कहते हैं ना वक़्त से पहले और किस्मत से ज़्यादा कुछ नहीं मिलता। इस बीच एक छोटा सा नीलकंठ का ट्रिप मारा मैंने तो पता चला के भाई बुलेट ट्रिप में जुनून के बहुत ज़रुरत है|
फिर एक दिन बुलेट ठीक करवाते हुए मुझे दीपक भाई मिला उसके पास भी बुलेट थी। उसने बताया के सच पास जा रहे हैं वो लोग लेकिन समय के आभाव के कारण फिर ना जा पाया| पर दीपक से अब निरंतर बात होने लगी, दीपक के लिए बाइक जीवन का एक अहम हिस्सा है| फिर एक दिन दीपक ने बताया के वो लोग जलोड़ी पास के ट्रिप पे जा रहे हैं छोटा ट्रिप था 4 दिन का तो घर वालों से लड़ के मैं ट्रिप पर निकल लिया| शादीशुदा हैं भाई तो ट्रिप पर जाने से पहले खुद से ज़्यादा बीवी और घर वालों को मनाना पड़ता है।
तो आखिरकार वो दिन आ ही गया जब मैं दीपक के साथ निकल पड़ा जलोड़ी पास के लिए। साथ में विजय और विकास कौशल भाई भी थे सब लोग मेरे जैसे ही स्वभाव के थे तो जल्दी ही घुल मिल गए। इस छोटे से ट्रिप पर बहुत कुछ सीखने को मिला, जैसे पहाड़ो में लम्बी राइड करना मोड़ पर बुलेट स्पीड में संभालना, पानी के नाले पार करना और एक अनजान टीम के साथ राइड करना और भी बहुत कुछ जो शब्दों में बयां करना थोड़ा मुश्किल है|
इसके बाद तो मानो मुझे पंख लग गए कुछ और राइड्स हमने की जिसमे कि बीर बिलिंग, गोवा( राइडर मेनिया) और स्पीति कि राइड्स थी| वैसे में बुलेट और गाड़ी दोनों से बराबर घूमता हूँ, हर राइड कुछ नया सिखाती है और लोगों को जाने का मौका मिलता हैं।
बहरहाल मुद्दा अब भी वहीं का वही है, लदाख का जो सपना देखा था बुलेट लेने से पहले वो अब भी अधूरा है।
देखते है मेरी बुलेट कब तक लद्दाख से दूर रह पाती है या ये सपना अधूरा ही रह जायेगा। इन सवालों का जवाब तो वक़्त ही देगा तब तक "घूमते रहिए और झूमते रहिए"