मन्दसौर जहाँ होती है रावण की पूजा

Tripoto
15th Apr 2020
Photo of मन्दसौर जहाँ होती है रावण की पूजा by Naresh Lalwani

Hello guys !

दशहरे पर देशभर में रावण के पुतलों का दहन करने की परंपरा है। वहीं मंदसौर में रावण की पूजा-अर्चना कर दशहरा मनाया जाता है और प्रतीकात्मक वध किया जाता है।

आज हम आपको ले जाते हैं हमारे नजदीक ही स्थान जहाँ होती है लंकापति रावण की पूजा ! जी हाँ, अपने सही सुना यहा पर रावण को भगवान की तरह पूजा जाता है जानते हैं ऐसा क्यों ।

मन्दसौर मध्य प्रदेश में स्थित है और यहाँ का निकटतम रेलवे स्टेशन रतलाम है जो 80 कि.मी. दूर है। वहाँ से आपको पूरे भारत की ट्रेन मिल जायँगी । रतलाम से आप ट्रेन के ज़रिए आ सकते हैं, जिसका किराया ₹40 या बस से जिसका किराया ₹80 है, जहाँ से उतर कर आपको टैक्सी मिल जायगी जो आपको ₹20 में खानपुरा छोड़ देगी । यहाँ पर और भी घूमने लायक स्थान है जैसे अष्टमुखी पशुपतिनाथ महादेव, तेलिया तालाब, नालछा माता मंदिर, देव डूंगरी माता जी मंदिर, जो काफी आनन्दमय है |

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खानपुरा क्षेत्र में लगभग 400 वर्षों से नामदेव समाज रावण को जमाई राजा मानकर पूजता चला आ रहा है। मंदसौर का असली नाम दशपुर था, और यह रावण की धर्मपत्नी मंदोदरी का मायका था। इसलिए इस शहर का नाम मंदसौर पड़ा। चूंकि मंदसौर रावण का ससुराल था, और यहाँ की बेटी, रावण से ब्याही गई थी, इसलिए यहाँ दामाद के सम्मान की परंपरा के कारण रावण के पुतले का दहन करने की बजाय उसे पूजा जाता है। समाज के लोग ढोल बाजे के साथ धूमधाम से रावण प्रतिमा के सामने पहुँचते हैं और फिर पूजा-अर्चना कर पैर में लच्छा बांधते हैं। शाम को माफी मांगकर प्रतीकात्मक वध भी करते हैं। मंदसौर के खानपुरा क्षेत्र में रूंडी में रावण की मूर्ति बनी हुई है, जिसकी पूजा की जाती है।

प्रतिमा का इतिहास - नामदेव समाज के बुजुर्ग रामनारायण बघेरवाल बताते हैं कि मंदोदरी को समाज जन बहन मानते हैं और इसी रिश्ते से रावण को जमाई माना जाता है। समाज के ही लोगों ने लगभग 400 वर्ष पहले रावण की प्रतिमा का निर्माण कराया था। प्रतिमा की ऊँचाई लगभग 42 फीट है। इसके पहले बनी दो प्रतिमाएँ प्राकृतिक कारणों से क्षतिग्रस्त हो गई थी। दूसरी बार बनी लगभग 200 वर्ष पुरानी प्रतिमा पर 1985-86 में बिजली गिरने से एक हाथ टूट गया था। उसके बाद फिर 1998-99 में प्रतिमा पर बिजली गिरी तो वह पूरी तरह जमींदोज हो गई। वर्ष 2002 में नगर पालिका ने प्रतिमा का पुनर्निर्माण शुरू कराया। इसका लोकार्पण 2005 में हुआ। तब से वर्तमान में यही प्रतिमा है।

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