अनचाहा सफर

Tripoto
13th Apr 2020
Photo of अनचाहा सफर by Jay Gupta

मेरा अनचाहा सफर

नमस्कार मित्रो,
आज मैं जो कहानी आप लोगो के बीच लेकर आया हूँ,वो मेरे जीवन का न सिर्फ एक सीख देने वाला बल्कि जीवन मे संयम और धैर्य को सिखाने वाले अध्यायों में से एक है।

    कहानी उस समय की है,जब मैं स्नातक के प्रथम वर्ष में था। इसके पहले भी घर से बहुत बार निकला था,और 4,5 राज्यो का सफ़र भी कर चुका था। यात्राओं से मेरा भटक खुल चुका था,औऱ अब मुझे सफ़र बहुत ही मनोरंजक लगने लगे थे। हर बार ऐसा महसूस होता था,मानो जीवन का एक नया पहलू देख लिया हो। बहरहाल मेरा स्नातक का प्रथम वर्ष था,और मैं अपने घर से 900 किमी दूर अपनी पढ़ाई करने आया था। शुरुआत में कुछ अच्छा नही लग रहा था,2 महीने ही बीते थे कि दुर्गापूजा का त्यौहार आ गया था,मैं अपने घर बहुत ही ख़ुसी मन से निकला। 1 हफ्ते बाद अपनी छुट्टियां मनाकार वापस आ गया,लेकिन 15 दिन बाद ही दीपावली आ गया। अब मैं असमंजस में था कि अभी कुछ दिन पहले तो घर से आया हूँ ,चूंकि घर भी 900 किमी दूर जाने से पहले भी 2 बार सोचना पड़ता था।

उस समय मेरी तबियत काफी ख़राब थी,मुझे घर की याद आ रही थी। मैंने प्लान बना लिया घर जाऊंगा। मैं घर जाऊंगा ऐसा घर पर भी लोगो को सूचित कर दिया। चूंकि अचानक का प्लान था,तो टिकेट भी स्लीपर की नही मिली।शाम 4 बजे की हरिद्वार से ट्रेन थी। मैं स्टेशन पहुँच गया,और पहुँचते ही धक्का लगा,पता चला कि ट्रेन 9 घण्टे विलम्ब से चल रही है। अब मैं करता भी क्या घर भी टाइम से पहुँचना था। मैं हरिद्वार से मोरादाबाद की बस लिया,चूंकि सफ़र का अनुभव था तो मैंने किलोमीटर से अंदाजा लगा लिया कि 5 घण्टे में पहुँच जाएंगे। रात 10 या 11 बजे तक,उस दिन किस्मत यहाँ भी खराब रुट डाइवर्ट होने से मैं पहुँचा रात 1 बजे मोरादाबाद।अब वहाँ से लखनऊ की बस 2 घण्टे बाद थी,मैं इंतजार नही करना चाहता था,फिर मोबाइल निकाला ट्रैन देखा,तो पता चला कि एक ट्रेन आ रही है,वो लखनऊ ही जाएगी। फिर क्या था बैठ गया जगह लेकर ट्रैन में औऱ सो गया। सुबह उठा तो मैं अगल बगल सुना कि अम्बाला अभी क्रॉस हुआ है। अब मेरा दिमाग घुमा,की लखनऊ के रूट पर ये कहाँ से,मैं बगल में पूछा कि आगे क्या है उन्होंने बोला लुधियाना आएगा।
         आप अंदाजा लगा सकते है आप निकले यूपी के लिए हो और पहुंच पंजाब गए हो,तो टेंशन किस लेवल की होगी।खैर मुझे पता था लुधियाना जंक्शन है तो वहां से शायद ट्रैन मिले। जैसे ही लुधियाना उतरता हूँ,तो बाहर लोग मिलते है पूछते है "किथे जाना पुत्तर",मैं बोला लखनऊ तो जवाब मिला वो तो 13,14 घण्टे लगाएगी। मैं परेशान मोबाइल भी बंद होने वाली थी 2 परसेंट बैटरी थी,तो मैंने सोचा पंजाब आ ही गए है तो स्टेशन के साथ एक सेल्फी हो जाये। तो इस तरह से सेल्फी लेते ही मोबाइल बंद। अब बस कैसे भी लखनऊ जाना था,किस्मत से सामने एक ट्रेन थी। मैंने पूछा कहाँ जाएगी ये,उन्होंने बोला लखनऊ उस वक्त मेरे खुसी का ठिकाना नही था,वो चलने वाली थी मैं बिना टिकेट की फिक्र किये बोला भैया बस खड़ा होने की जगह दे दो। मैं जैसे तैसे घुस के खड़ा हो गया और बिना पानी बिना कुछ खाये मैं 14 घंटे वैसे ही खड़ा रहा।

लखनऊ पहुंचते ही बाटी चोखा खाया। अब वहां से अपने शहर की यानी कि मऊ की बस ली। रात के 11 बज रहे थे,11 घंटे या 12 घंटे लगते है मऊ पहुँचने मे। सुबह हुई उठा तो 9 बजे बस खराब हो गयी। पूरी तरह से किस्मत से लड़ाई चल रही थी। मैं वहाँ 1 घण्टे का इंतजार किया दूसरी बस आयी तो उसको पकड़ा। अब शाम के 4 बज गए थे और मैं अपने शहर पहुँच गया था। ख़ुसी तो बहुत थी,लेकिन कुछ पल की क्योंकि मेरा फोन 29 घंटो से स्विच ऑफ था।घर वाले पूरी तरह परेशान की कहाँ है। उन्होंने मेंरे दोस्तों को कॉल किया, लखनऊ में कई लोगो कॉल करके पता किया।अंत मे उन्हें पता था,कि घुम्मकड़ी का शौकीन है,तो उन्होंने इंतजार करना ठीक समझा। बहरहाल घर आते है और सबसे बारी बारी से डांट सुनते है,और कोई जवाब नही देते,क्योंकि मैं उस परिस्थिति से गुजरा था,कि यदि सारी बातें बताता तो और भी सुन लेता। खैर आया घर मे कुछ काम थे वो भी किया। और रात को सबके साथ त्योहार मनाया,वो कहते है न घर वाले ज्यादा देर तक नाराज नही होते और मैं तो घर का छोटा भी😊

ये थी मेरी लगातर 47 घंटे की यात्रा और जनरल टिकेट की यात्रा की जद्दोजहद। लेकिन इस 47 घंटे में मैने सीखा परिस्थिति चाहे जैसी भी हो,आगे क्या करना है इसका ही सोचना चाहिएं। जब परेशानी हर तरफ से आये तो संयम और धैर्य से बड़ा कोई हथियार नही होता, इस बात का भी अनुभव इसी यात्रा के दौरान किया। अब सफर से डर जो थोड़ा बहुत था,इस यात्रा के बाद खत्म हुआ।

आगे उसके बाद 12 और राज्यो का सफर हुआ और जारी है
मिलेंगे फिर...

#Jay