बचपन में किताब में पढ़ा था , इस बालक को देखो इसे एस्किमो बालक कहते हैं । यह बर्फ़ के घर में रहता है जिसे इगलू कहते हैं । यह उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश में रहता है । यहाँ छह महीने का दिन और छह महीने की रात होती है । पूरा प्रदेश बर्फ़ से ढंका रहता है । सील वालरस , रेन्डियर और सफेद भालू जैसे जानवर होते हैं । कल्पना की थी पर कभी सोचा नहीं था कि मुझे भी ऐसे प्रदेश को देखने का सौभाग्य प्राप्त होगा । अक्टूबर 2019 में मेरी भाभी डा इन्दू मिश्रा का फोन आया कि नार्वे चलोगी । मैंने सोचा कि वहाँ जाने में तो बहुत पैसे लगंगे पर एक बात मेरे मन में हमेशा रहती है कि इन्दू ने कहा है तो ठीक ही होगा । जब तक हाथ पैर चलते हैं तब तक घूम लो फिर कहाँ जा पाउँगी । पैसे की बात देखी जाएगी । वैसे भी हम दोनों ने यह फैसला लिया है कि जब भी विदेश जाएगें साथ ही जाएगें । घूमने में जगह से भी ज़्यादा महत्व कम्पनी का होता है और हम दोनों को एक दूसरे का साथ अच्छा लगता है ।
हमारे जाने की तारीख 21 नवम्बर 2019 लौटने की तारीख 26 नवम्बर थी । हमें फ्लाइट दिल्ली से पकड़नी थी । सोचा नवम्बर में तो यहीं काफी सर्दी शुरू हो जाती है फिर वहाँ क्या होगा । बर्फ़ ही बर्फ़ चारों ओर होगी । मुझे तो वैसे ही जरा सा पानी पड़ा हो तो चलने में बड़ा डर लगता है फिर बर्फ़ पर कैसे चलूंगी । फिर सोचा देखा जाएगा । जाना है तो जाना है । वैसे भी कहते हैं कि डर के आगे जीत हैं । जब तक लाइफ में कुछ थ्रिल , कुछ एडवैन्चर ना हो तब तक मज़ा कैसा ।
मैंने वीसा के लिए फोटो ,पैन कार्ड ,आधार कार्ड , पिछले तीन साल की इन्कम टैक्स रिटर्न उटाज़ो ट्रैवल कम्पनी के एजेन्ट तापस कुमार को दिल्ली भिजवा दी । 4 नवम्बर को वीसा के लिए नई दिल्ली के शिवाजी स्टेडियम के मैट्रो स्टेशन के अन्दर बने आफिस में गई वहाँ बायोमीट्रिक के द्वारा कुछ पेपर तैयार किए गए । यू ट्यूब पर जगहों की कुछ फ़ोटो देख लीं । कई बार मन में विचार भी आया कि जहाँ -4 डिग्री से -10 डिग्री टैम्प्रेचर है वहाँ कैसे रहेंगे ।
इस बीच दिल्ली के खेलगाँव में डिकैथेलान के शो रूम से जाकर अपने और इन्दू के लिए बलाक्लाश कैप जिसमें गर्दन और सिर पूरी तरह से ढंक जाता है , जिसे पहन कर हम लोग खूब हंसे क्योंकि उस काली कैप में हम पूरी तरह से आतंकवादी लग रहे थे , विन्टर बूट जिन्हें यूजीजी बूट कहते हैं जो गर्म और वाटर प्रूफ कोस्ट लाइन थे ,जैकेट , पिटठू बैग आदि खरीदे । दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला । 20 नवम्बर को हमारे जाने का दिन आ गया ।
19 नवम्बर को मैं लखनऊ से चंडीगढ़ एक्सप्रैस से चलकर 20 तारीख को सुबह बिजनौर पहुँच गई । वहाँ से मैं और इन्दू शाम को 4 बजे कार से चलकर लगभग सात बजे महीपालपुर दिल्ली के होटल में पहुँचे । यह होटल इंदिरा गांधी इन्टरनेशनल एयरपोर्ट के पास ही था । यहाँ लाइन से पचासों होटल बने हैं जिससे देर सवेर फ्लाइट पकड़ने वाले यात्रियों को सुविधा रहती है । हमारी फ्लाइट सुबह 10 बजे की थी पर इन्टरनेशनल फ्लाइट में चार घंटे पहले रिर्पोट करना रहता है इसलिए हमें 5 बजे तैयार होकर निकलना था ।
21 तारीख को सुबह 6 बजे हम लोग इंदिरा गांधी इन्टरनेशनल एयरपोर्ट टर्मिनल 3 पर पहुँच गए । यहीं हमारी मुलाक़ात अपने टूर गाइड आशुतोष और अन्य ग्रुप के 15 साथियों से हुई जो उत्तर प्रदेश के हरदोई ,गाज़ियाबाद ,मुरादाबाद , काशीपुर आदि जिलों से आए थे । जो सभी प्रतिष्ठित डाॅक्टर थे । आशुतोष ने कहा कि वह पूरे छह दिन टूर में हमारे साथ ही रहेंगे । यह सुनकर हमें बहुत खुशी हुई क्योंकि अब हमें किसी प्रकार की चिन्ता करने की कोई ज़रूरत नहीं थी । आशुतोष ने सब लोगों को एक एक उटाज़ो कम्पनी का बैग दिया जिसमें कई तरह की नमकीन ,बिस्कुट ,रेडीमेड चाय ,काफी ,केक , जूस ,टाफी ,खांखरे के पैकेट रखे हुए थे । पाँच लोग जोड़े से थे इसके अलावा मैं ,इन्दू ,अर्नब , डा अंकुर ,आशुतोष । कुल 15 लोग थे।
ठीक 10 बज कर 5 मिनट पर हमारी फ्लाइट ।ल् 122 दिल्ली से हेलसिंकी के लिए उड़ी । स्क्रीन पर जगहों के नाम दिखाई दे रहे थे । हमारी फ्लाइट चंडीगढ, लाहौर ,काबुल , समारा से होकर जा रही थी । हमारा विमान 44000 फीट की ऊँचाई पर होकर जा रहा था । सबसे गर्व की बात यह थी कि इस फ्लाइट में एनाउन्समेन्ट हिन्दी , अंग्रेजी और स्कैन्डिनेवियन तीनों भाषाओं में हो रहे थे । स्क्रीन पर हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में जी पी आर एस दिखा रहा था । - हवा की गति , बाह्य तापमान , विमान की ऊँचाई अक्षांश ,देशान्तर आदि । हेलसिंकी पहँुचने से लगभग एक घंटा पहले से हमारा विमान काफी नीचाई पर होकर उड़ रहा था क्योंकि खिड़की से नीचे बर्फ़ से ढंके मैदान नज़र आ रहे थे जिनमें बीच बीच में नीले पानी की नदियां जैसी भी दिखाई दे रही थीं ।
14 बजकर 15 मिनट पर हम लोग हेलसिंकी वान्टा एयरपोर्ट पर पहुँचे । हेलसिंकी फिनलैन्ड की राजधानी है । एयरपोर्ट पर चारों ओर बर्फ़ ही बर्फ़ नज़र आ रही थी । हम लोग विमान से उतरकर बस में बैठकर टर्मिनल 2 पर पहुँचे वहीं से हमारी फ्लाइट AY 915 चार बजकर 5 मिनट पर हेलसिंकी से ओस्लो के लिए जाने वाली थी । शाम होने लगी थी । हेलसिंकी का एयरर्पोट बहुत बड़ा और शानदार है । यहाँ से अनेक देशों के लिए फ्लाइट जाती हैं । न्यूयार्क , आस्ट्रेलिया , फ्रांस , लन्दन , मास्को , यू ए ई आदि । यहाँ बहुत सारी दुकानें थीं जिनमें तरह तरह के कपड़े ,सूटकेस ,ज्वैलरी , हाउसहोल्ड आइटम्स , क्राकरी , गिफ्ट आइटम , रेन्डियर और लोमड़ी के फ़र के बने कोट , तरह तरह की ब्रान्ड की शराब , सिगरेट , पीज़ा बर्गर , केक बिस्कुट चाय ,काफ़ी आदि बिक रहे थे । सीनियर सिटीज़न के लिए अलग कुर्सियां पड़ीं थीं मैं भी वहीं जाकर बैठ गई ।
विदेश में जाने पर एक बात बहुत खास होती है कि जैसे ही कोई भारतीय सा चेहरा दिखता है एक अपनेपन का एहसास मन में जागने लगता है । मेरे पास एक और महिला खड़ीं थीं जो शक्ल सूरत से भारतीय लग रही थीं । मैंने पूछा आर यू फ्राम इंडिया । उन्होंने कहा यस । मैंने पूछा इंडिया में कहाँ से । बोलीं मेरा नाम सरिता शर्मा है मैं चंडीगढ़ से आ रही हूँ। पिछले 26 साल से ओस्लो में रहती हूँ , इसी फिनायर एयरलाइन्स में काम करती हूँ। फिर क्या था हम लोग ऐसे घुलमिलकर बातें करने लगे जैसे कितनों दिनों से एक दूसरे को जानते हों । बोलीं आपने मुझे कैसे पहचाना क्या मेरी बिन्दी से । मैं हमेशा बिन्दी लगाती हूँ । यहाँ पर पाकिस्तान के बहुत लोग हैं । मुझसे अगर कोई कहता है कि क्या तुम पाकिस्तान से हो तो मैं कहती हॅू कि तुम मेरी बिन्दी नहीं देखते । पाकिस्तान में लेडीज़ बिन्दी नहीं लगातीं । उसने कहा अबकी बार जब मैं इंडिया गई मुझे बहुत अच्छा लगा । पहले से बहुत सफाई दिखाई दी । सड़कें वगैरा बहुत अच्छी हो गईं । मोदी जी की बहुत तारीफ़ कर रही थी । उसने कहा ओस्लो के लोग भारत के बारे में पहले कुछ विशेष अच्छी राय नहीं रखते थे पर जब से मोदी जी प्रधान मंत्री बने हैं तब से लोग इंडिया की न्यूज़ वगैरा देखने में रूचि दिखाने लगे हैं । उसने कहा यहाँ इंडियन , पाकिस्तानी , ईरानी लोग काफी रहते हैं । अच्छी जगह है । ईमानदारी है , सुरक्षा है , शान्ति है , सफाई है । वगैरा वगैरा । मैंने कहा अपने देश की याद नहीं आती । बोली अपने देश की याद तो बहुत आती है पर अब 26 साल से यहीं रह रहे हैं तो बस अब नई नौकरी ढूंढने की हिम्मत नहीं होती । मिलकर अच्छा लगा । अपने देश की प्रगति सुनकर बहुत अच्छा लगा ।
हेलसिंकी से ओस्लो की केवल 30 मिनट की फ्लाइट थी । एयरपोर्ट से बाहर निकलते निकलते एक घंटा लग गया । बस में बैठकर लगभग सात बजे हम लोग ओस्लो के होटल क्लैरियन दी हब में पहुँचे । होटल क्लैरियन दी हब ओस्लो शहर के बीचोंबीच में था । क्रिसमस का त्यौहार होने के कारण पर्यटकों की काफी भीड़भाड़ थी । बड़े बड़े क्रिसमस ट्री सजाए गए थे जिनमें बिजली की झालरें ,रंग बिरंगे बाल आदि सजाए गए थे । लिफ्ट के पीछे लेज़र लाइट से ऐसा सुन्दर इफैक्ट बनाया गया था लगता था जैसे दीवार से ढेर सारी बर्फ़ पिघलकर गिर रही हो और बर्फ़ के टुकड़े नीले शीशे की तरह गिर रहे हों । हमारा कमरा नं 621 था । तीन लिफ्ट । ठ ब् लगीं थीं । लिफ्ट के बाहर गेट पर कमरे का कार्ड डालने पर डिस्प्ले होता था कि कौन सी लिफ्ट से जाना है । हम लिफ्ट में खड़े हो गए 6 नं का बटन दबाया मगर लिफ्ट नहीं चली एक दो मिनट तक वैसे ही खड़े रहे तब तक एक अन्य विदेशी भी लिफ्ट में आ गया उसने इशारा किया हमने फिर 6 नं बटन दबाया । तब उसने कमरे का कार्ड डालने का इशारा किया तब लिफ्ट चली । सिक्योरिटी के लिहाज से हमें उनका यह इंतज़ाम बहुत अच्छा लगा ।
कमरा बहुत शानदार था । बाहर बर्फ़ पड़ी हुई थी पर पूरा होटल एसी होने के कारण हमें बिल्कुल ठंड नहीं लग रही थी । सभी लोग अपने अपने कमरों में सामान रखकर नीचे आ गए । हम लोग पास के ही इंडियन रैस्टोरैन्ट में खाना खाने चले ।
सड़क पर ट्राम चल रही थी । कारें भीं थीं और लोग साइकिलों से भी आ जा रहे थे । गिनी चुनी गाड़ियां हीं थीं पर लाल सिग्नल पर रूकी रहती थीं जब तक सिग्नल हरा न हो जा । भले ही सड़क बिल्कुल खाली पड़ी थी । पूरा ओस्लो शहर बिजली की झालरों से जगमगा रहा था । सड़क पर बिजली की झालरों से बड़े बडे घंटों की आकृति बनाईं गईं थीं । सड़क साफ सुथरी पत्थर के टाइल्स वाली थी । यहाँ अधिकतर सड़कें ऐसी ही बनी हैं । जहाँ लोगों की अधिक आवाजाही है वहाँ भी मैंने देखा सड़क पर छोटे छोटे मोजैक के दाने पड़े हुए थे क्योंकि यहाँ बहुत अधिक बर्फ़ गिरती रहती है जिससे फिसलने का खतरा और बढ़ जाता है । फिसलने से बचाने के लिए ही ऐसी व्यवस्था की जाती है ।
शाम के आठ बजे थे दुकानें खुली हुईं थीं । रैस्टोरैन्ट के बाहर भी कई जगह रेलिंग लगाकर कुर्सियाँ सजाई हुईं थीं । लोग खा पी रहे थे । इस सड़क का नाम चर्च रोड था । सड़कों पर बहुत कम ही लोग थे । सब कुछ सजा धजा व्यवस्थित मगर शान्त । हम इंडियन होटल में खाना खाने गए । होटल में हमें शुद्ध शाकाहारी खाना खाने को मिला । पनीर , नान ,दाल मक्खनी ,फ्रायड राइस , मिक्स वेज ,अचार ,चटनी ,सलाद ,पापड़ , रसगुल्ला आदि । वहाँ की सजावट रख रखाव देखकर ऐसा लगा जैसे हम इंडिया के ही किसी रैस्टारैन्ट में है । खाना खाकर होटल में वापस आकर सो गए ।
सुबह आठ बजे तैयार होकर हमने होटल में ही नाश्ता किया । होटल का रैस्टोरैन्ट बहुत बड़ा था । अन्य देशों के भी टूरिस्ट वहाँ मौजूद थे । कम से कम पचास तरह की चीजें वहाँ सजी हुई। थीं । हम केवल शाकाहारी भोजन ही लेते हैं इसलिए बड़ी सावधानी से एक दो चीजें ही लीं ।
नाश्ता करके हम बस में आकर बैठ गए । र्मिर्सडीज बेंज शानदार बस । हमारे साथ टूरिस्ट गाइड भी थीं जो हमें ओस्लो घुमाने वालीं थीं । वैसे नार्वे की भाषा स्कैन्डेनेवियन है पर वह अच्छी अंग्रेजी बोल लेती थीं । उन्होंने अपना परिचय दिया हम लोगों का स्वागत किया फिर नार्वे के बारे में बताना शुरू किया । बस ओस्लो शहर के अलग अलग जगहों पर होकर गुज़र रही थी । नार्वे यूरोपीय महाद्वीप में है । इसकी राजधानी ओस्लो है । यहाँ की भाषा नार्वेजियन भाषा है । वैसे यहाँ अंग्रेजी हर जगह लिखी रहती है और अधिकतर लोग बोलते और समझते भी हैं । यहाँ का कुल क्षेत्रफल 3लाख 85 हज़ार 252 वर्ग किलोमीटर है और जनसंख्या कुल 60 हज़ार । यह यूरोप में न्यूनतम घनत्व वाले देशों में दूसरे नम्बर पर आता है । यहाँ आज भी राजशाही शासन है । वर्तमान में यहाँ का राजा हैराल्ड पंचम और रानी सोनिया है । यहाँ के लोग बड़े आदर के साथ अपने राजा का नाम लेते हैं और उसकी बड़ी प्रशंसा करते हैं ।
नार्वे के पूर्व में स्वीडन और उत्तर में कुछ सीमाएं फिनलैन्ड और रूस से लगती हैं । इसके एक ओर डेन्मार्क है । नार्वे स्वीडन और डेन्मार्क को अपना मित्र देश मानता है । ग्लोब में इसकी स्थिति 57 डिग्री 81 डिग्री लैटीट्यूड और लौंगीट्यूड 4 डिग्री 32 डिग्री है । इसकी कोस्टल बेस लाइन 2532 किलोमीटर है । यहाँ 17 मई का दिन राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है क्योंकि इस दिन 1814 ईस्वी में नार्वे का संविधान बना था । देश के संसद को स्टोरटिंग कहा जाता है । इसके सदस्य हर चार साल बाद चुने जाते हैं । नार्वे की अधिकांश आबादी नार्वेजियन है । अधिकांश अप्रवासी पोलैन्ड, स्वीडन , ईरान , कुर्दिस्तान , पाकिस्तान , ईराक और भारत से हैं । नार्वे की सीमाएं नार्थ अटलांटिक महासागर और बैरन्ट सी को छूती है।
देश आर्थिक रूप से बहुत सशक्त है । यहाँ पर कैपीटा इन्कम विश्व में चैथे स्थान पर है । यहाँ कई महत्वपूर्ण औद्यौगिक सैक्टर हैं जिसमें पैट्रोलियम , नेचुरल गैस , मिनरल , लम्बर , सी फूड , और फ्रैश वाटर हैं । गाइड बड़े गर्व से बता रही थी कि वर्ड हैपीनैस रिर्पोट 2017 में नार्वे को विश्व में प्रथम स्थान दिया गया था । इसके अलावा OECD, BETTER LIFE INDEX , INDEX OF PUBLIC INTEGRITY , DEMOCRACY RATE में भी प्रथम स्थान मिला है । यहाँ दुनियाँ में क्राइम रेट सबसे कम है ।
नार्वे हाई लैटीट्यूड पर स्थित है इसलिए यहाँ 6 महीने का दिन और 6 महीने की रात होती है । मई से लेकर जुलाई तक सूरज छिपता ही नहीं है । यहाँ लोगों ने घरों में मोटे गहरे भूरे या सिलेटी रंग के पर्दे लगाते हैं जिससे रात का एहसास करके सो सकें । लगभग 20 घंटे सूरज चमकता रहता है । इसलिए इसे लैन्ड आफ मिडनाइट सन भी कहा जाता है । जाड़ों में सूरज लगभग न के बराबर निकलता है बहुत कम उजाला होता है । इसलिए रात जैसी बनी रहती है ।
हमारी बस ओस्लो शहर की भिन्न भिन्न सड़कों से होकर गुज़र रही थी । गाइड हमें हर सड़क के नाम और वहाँ की विशेषताओं को बताती जा रही थीं । कई ऊँची ऊँची बिल्डिंग थीं जिनमें अलग अलग कम्पनियों के दफ्तर खुले थे । एक बिल्डग शिप के आकार जैसी थी । कुछ अपार्टमैन्ट थे भी बने थे । शहर में एक मंजिल वाले घर न के बराबर थे । हल्का हल्का उजाला था । सड़क पर बर्फ़ पड़ी हुई थी । बाज़ार में थोड़ी सी सुन्दर दुकानें थीं । न भीड़ थी न शोर था । हमें अपना देश याद आ रहा था जहाँ सुबह से ही गाड़ियों की रेल पेल शुरू हो जाती है ।
सबसे पहले हम Akershus Fortress , the ROYAL PALACE देखने गए । रायल पैलेस राजा के रहने का घर है । यह पैलेस 19 सैन्चुरी में बनबाया गया था । काफी बड़ा शानदार घर जैसा दिखाई दे रहा था । बिल्डिंग की शक्ल हमारे कनाट प्लेस के मार्केट के जैसी दिखाई दे रही थीं यह ओस्लो शहर में 26 जुलाई 1849 को बनकर तैयार हुआ । पैलेस के चारों ओर पैलेस पार्क और पैलेस स्क्वायर है । इसमें घोड़े पर बैठै किंग चाल्र्स जान का स्टैच्यू बना है । पैलेस के अन्दर रायल कैथेड्रल भी है जिसे राॅयल फैमिली द्वारा प्रयोग किया जाता है ।
पैलेस के मैदान में किनारे की ओर बीच में कुछ बड़े बड़े पेड़ लगे हुए थे जिनमें लाल रंग के पत्ते लगे हुए थै । वैसे अधिकतर पत्ते झड़ चुके थे । बहुत ही ठंडी हवा चल रही थी । । हल्की हल्की फुहार भी पड़ रही थी पर मौसम को मस्ती से एन्जाय करते हुए हम घूम रहे थे । रायल पैलेस के बाद हम लोग सिटी हाल देखने गए ।
सिटी हाल ओस्लो में म्यूनिसिपल बिल्डिंग है । यह सन 1931 से 1950 में बनी लाल ईटों की बनी बिल्डिंग है जिसमें दो टावर है। यहाँ प्रति वर्ष 10 दिसम्बर को अल्फ्रैड नावल की डैथ एनीवरसरी पर नावल पीस प्राइज़ दिया जाता है । उस अवसर पर यहाँ शहर के प्रतिष्ठित लोग यहाँ के राजा रानी मेयर ,विश्व से निम़िन्त्रत अनेक गणमान्य लोग एकत्रित होते हैं । विशिष्ट अवसरों के अतिरिक्त ऊपर के हाॅल में शादियाँ भी कराई जातीं हैं । इस हाल की चैड़ाई 35 मीटर , लम्बाई 39 मीटर और ऊँचाई 21 मीटर है । दीवारों पर ओस्लो वारियर्स की पेन्टिंग बनी है । इसके अतिरिक्त संतों और राजाओं की भी पेन्टिंग बनी है । हाल के दोनों साइड से ऊपर जाने के लिए शानदार जीने बने हैं । हाल शहर के बीच में ही बना हुआ है ।
सिटी हाल देखने के बाद हम लोग नेशनल ओपेरा हाउस देखने गए । ओपेरा हाउस नदी के किनारे बना हुआ था । नदी में दो बड़े बड़े शिप खड़े हुए थे । ओपेरा हाउस के बाहर बहुत बड़ा खुला मैदान था । ओपेरा हाउस के ऊपर जाने के लिए जीना बना था । जीने से छत पर खड़े होकर देखने पर ऐसा लगता था जैसे बर्फ़ का एक बड़ा ग्लेशियर पानी में तैर रहा हो । ओपेरा हाउस में नार्वेजियन ओपेरा और बैले डांस के शो होते हैं । यह 530000 स्क्वायर फीट में बना है । इसमें 1100 कमरे हैं । मेन हाॅल में 1364 लोगों के बैठने की व्यवस्था है । बाहर सफेद टाइल्स से बना बड़ा खुला मैदान था । सामने नदी और उसके पार बसा हुआ ओस्लो शहर ।
ओपेरा हाउस देखने के बाद हम बस में बैठकर बाइजलैन्ड स्कल्पचर पार्क Vigeland Sculpture Park देखने गए । यह पार्क हमारे टूर प्रोग्राम का सबसे आकर्षक हिस्सा थे । यह दुनिया का सबसे बड़ा 45 हैक्टेयर में बना ऐसा स्कल्पचर पार्क जिसे एक ही कलाकार के द्वारा बनाया गया है । यह नार्वे का सर्वाधिक बड़ा घूमने जाने वाला पार्क है । गुस्ताव वाइजलैन्ड 18 अप्रैल 1869 से लेकर 12 मार्च 1945 तक रहे । एक बहुत बड़े से गेट से हम लोग अन्दर घुसे । दूर दूर तक मैदान फैला था जिसमें कहीं खुले में और कहीं हट जैसे कमरे में छोटी बड़ी अनेक आकृतियां बनी थीं । बड़े बड़े पेड़ लगे थे । मैदान में कहीं दूर तक फैले घास के मैदान दिखाई दे रहे थे । कहीं फूल खिले थे । अत्यधिक सुन्दर दृश्य था जिसे शब्दों में वर्णित करना संभव नहीं । इस पार्क में 200 से अधिक स्कल्पचर ब्रान्ज ,ग्रेनाइट और राट आयरन से बनाए गए थे जिनमें मनुष्य के जीवन चक्र की विभिन्न अवस्थाओं और मुद्राओं को दिखाया गया था ।
कहीं दोनों हाथ उठाए खिलख्लिाते बच्चे थे तो कहीं बुढ़ापे से थका शरीर , कहीं प्रणय की मुद्राएं तो कहीं काम करते स्त्री पुरूष । यह सभी मूर्तियां बहुत सुन्दर सजीव और आदमकद थीं और इन्हें बहुत विस्तृत रूप में पार्क में खड़ा किया गया था । पार्क के बीच में एक बहुत ऊँचे चबूतरे पर चढ़कर हमने एक 16 मीटर ऊँचा एक स्तम्भ जिसे मोनोलिथ कहते हैं जिसमें 121 मानव आकृतियां आपस में गुंथी हुई विभिन्न मुद्राओं को प्रदर्शित करती हुई स्तम्भ पर बनी थीं । खड़ा था । इसे वर्ष 1944 में प्रदर्शित किया गया था । सब कुछ इतना सुन्दर और साफ सुथरा लग रहा था मानों अभी अभी तराशा गया हो । वहीं पर एक सन डायल भी बनी थी ।
अब हमारी बस ओस्लो शहर से बाहर जा रही थी । अब जो जगहें पड़ रहीं थीं वहाँ हमारी ड्राइंग की कापी में बनाए छोटे छोटे घर जिनकी ढलवां छतें बर्फ़ से ढंकी । पेड़ जैसे बर्फ़ के बने हों , चारों ओर बर्फ़ ही बर्फ़ आसमान में ढंके हुए बादल हल्की हल्की फुहार पड़ रही थी । कुछ देर चलने के बाद हमारी बस एक बड़ी सी सफ़ेद बिल्डिंग के पास रूकी । हम ओस्लो वाइकिंग म्यूज़ियम देखने जा रहे थे ।
नार्वे के पुराने लोग बड़ी बड़ी नावों में बैठकर दूर देश जाते थे वह बहुत वीर योद्धा थे । उनके समय को वाइकिंग एज कहा गया । इस म्यूजिंयम में पुरातत्व विभाग द्वारा ढूंढी गई उस समय के शिप आदि रखे थे । 1913 में एक स्वीडिश प्रोफेसर गैब्रियल ने वाइकिंग एज की वस्तुओं को एक जगह रखने का प्रस्ताव रखा । इस म्यूज़ियम में तीन बडे़ शिप ओसबर्ग शिप , गोकस्टाड शिप , और ट्यून शिप रखे थे । इसके अलावा उस ज़माने की स्लेज ,बैड, हार्सकार्ट , लकड़ी का नक्काशीदार सामान , टैन्ट का सामान , बाल्टी और इसी प्रकार का खुदाई में प्राप्त हुआ सामान रखा था ।
इसके बाद हम लोग ओस्लो के सर्वाधिक आकर्षण वाले स्थान हालमैन्कोलेन स्काई जम्प
(Holmenkollen Ski Jump and Museum ) देखने चले । सड़क के दोनों ओर बर्फ़ के ऊँचे ऊँचे ढेर लगे थे । बस लगातार चढ़ाई की ओर जा रही थी । थोड़ी ही देर में हम पहाड़ की चोटी पर पहुँच गए । वहाँ से काफी उँचाई तक पैदल चलकर जाना था जो स्कीइंग के लिए विशेष रूप से बनाया गया था । उस जगह से पूरा शहर दिखाई दे रहा था । इतनी उँचाई से लोग कैसे स्कीइंग करते होंगे यही सोचकर हम को डर लग रहा था । वहाँ पर स्कीइंग का एक म्यूज़ियम भी था जिसमें चार हजार वर्षों की स्कीइंग का इतिहास दर्शाया गया था ।
लगभग दो बज चुके थे हम लोग वापस लंच के लिए इंडियन रैस्टोरैन्ट आ गए । खाना खाते खाते चार बज गए थे । हम दोनों वापस होटल आ गए । हमारे साथ के कुछ लोग शापिंग करने चले गए । आशुतोष ने कहा सब लोग वापस शाम को 7. 30 बजे इसी रैस्टोरैन्ट में डिनर के लिए आएगें । मैंने और इन्दू ने सोचा चलो हम लोग सो जाते हैं हम लोग थक गए थे ।
हम लोग गहरी नींद में सो रहे थे तभी अचानक अलार्म बजने लगा । हम लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि यह अलार्म क्यों बज रहा है । एक बार जब अंग्रेजी में बोला तब समझ में आया कि यह फायर अलार्म बज रहा है । होटल खाली कहने को कह रहा है और कह रहा है कि लिफ्ट का प्रयोग न करें बल्कि सीढ़ियों से जाएं । समझ में नहीं आया क्या करें । कमरा खोलकर बाहर आए देखा और लोग भी सीढ़ियों की तरफ भाग रहे थे। मेरी ज़िन्दगी में ऐसा पहला अवसर था । सोचा क्या करें जैकेट पड़ी थी वही उठा ली क्योंकि बाहर बर्फ़ पड़ रही थी । हमारा कमरा छठी मंज़िल पर था । इन्दू ने पर्स और जैकेट उठा ली बोलीं अरे कम से कम कुछ पैसे और पासपोर्ट तो रहेगा । पहली बार विदेश में रहने की व्यथा सताई । सोचा घर वाले कैसे ढूंढेंगे । जल्दी जल्दी दो मंज़िल नीचे उतर गए । तभी अनाउन्समैन्ट हुआ सब ठीक हो गया है आप लोग वापस आ जाएं । मेरी तो जान में जान आई । इन्दू बोलीं मुझे तो पता था कि चिन्ता की कोई बात नहीं । यहाँ ज़रा सा धुँआ होते ही फ़ायर अलार्म बज जाता है । यहाँ तक की सिगरेट का धुँआ होने पर भी फायर अलार्म बज जाता है । खैर सब ठीक हो गया सब लोग हंसने लगे । तभी आशुतोष हम लोगों के लिए खाना लेकर आ गए बोले आप लोगों का फोन नहीं मिल रहा था हम लोगों ने उन्हें पूरी घटना बताई बाकी लोग भी हैरान हो गए । हम लोग फिर जाकर सो गए क्योंकि अगले दिन हमें काफी लम्बी यात्रा करनी थी ।
ओस्लो से बरजेन व्ेसव जव ठमतहमद 23 नवम्बर 2019
हम लोग सुबह आठ बजे तैयार होकर नाश्ता करके होटल से निकले । हमने अपना सामान बस में रख दिया । अब हमें बस से रेलवे स्टेशन गैलीयो पहुँचना था । गैलीयो स्टेशन ओस्लो से 219 किमी दूर था । बस एयरकंडीशन्ड थी इसलिए हम लोगों को बिल्कुल ठंड नहीं लग रही थी जबकि हमारे चारों तरफ बर्फ़ ही बर्फ़ थी । सड़क पर बर्फ़ की मोटी चादर बिछी हुई थी । बाहर पेड़ , पहाड़ , नदी , झील , झरने सब मानों बर्फ़ के बने थे । नार्वे की एक विशेषता है कि यहाँ के पहाड़ बहुत ऊँचे नहीं हैं बल्कि ढालू हैं इसलिए यहाँ पर लोग स्नो बोर्डिंग , डाग स्लैजिंग , स्कीइंग , करते हैं । यहाँ एक बहुत बड़ा स्कीइंग रिर्सोट बना है । रास्ते में बहुत कम ही घर बने थे । घर लकड़ी के बने थे जिन पर मोटी मोटी बर्फ़ जमी हुई थी । बस में वाई फ़ाई की बहुत अच्छी सुविधा थी । बस फिर क्या था हम सभी लोगों ने अपने घर पर बैठे हुए मित्रों रिश्तेदारों और सभी अपनों को फोन मिलाकर सीधे वीडियो काॅल करके नार्वे के दर्शन कराए । हम लोगों की उत्सुकता और प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था । जिसे हम न्यूज़ , टी वी , डिस्कवरी चैनल पर देखते थे वह सब प्रत्यक्ष हमारी आँखों के सामने था । लगभग साढ़े तीन घंटे चलने के बाद हम गैलीयो रेलवे स्टेशन पहुँचे ।
गैलीयो एक छोटा सा स्टेशन था उसमें दो प्लेटफार्म थे । स्टेशन पर बहुत बर्फ़ जीम हुई थी । पटरियों पर भी बर्फ़ जमी हुई थी । सब लोग बहुत मस्ती के मूड थे । बर्फ़ में खेल करने लगे । जैसे ही बर्फ़ में चलने लगे एक पैर उठाते थे तो दूसरा बर्फ़ में घुस जाता था । कोई बर्फ़ के गोले बनाकर खेलने लगा कोई बर्फ़ में लेटकर फ़ोटो खिंचवाने लगा । थोड़ी ही देर में ट्रेन आ गई । छोटी सी चार डिब्बों वाली ट्रेन थी हम सब लोगों की टिकट पहले ही आशुतोष ने ले रखी थीं । हम लोगों के अलावा 20- 25 टूरिस्ट और थे जो विभिन्न देशों से आए हुए थे । टेढ़े मेढ़े रास्तों पर चलकर ट्रेन आगे बढ़ रही थी नीचे घाटी में बने सुन्दर सुन्दर गाँव दिखाई दे रहे थे । हमारी बस भी सड़क के रास्ते से फ्लैम पहुँचने वाली थी । हम लोगों का सामान बस में ही रखा हुआ था ।
रास्ते में बहुत से टनल पड़े । नीचे नदी बह रही थी जो काफी हद तक जमी हुई थी । एक बहुत सुन्दर झरना था जो पूरी तरह जम चुका था । गाॅल और गैलीयो गाँव पड़े । जिनमें कुछ कुछ दूरी पर सफेद लाल या पीले रंग से रंगे हुए एक जैसी डिजायन वाले घर बने थे । गाइड ने बताया कि यहाँ बिना नक्शा पास कराए कोई घर नहीं बना सकता । घरों की डिजायन सरकार द्वारा निर्धारित है उसके अलावा न कोई डिजायन न कोई अलग रंग करा सकता है । सफेद बर्फ़ से ढंके पहाड़ों से कहीं कहीं भूरा रंग झांकता दिखाई दे जाता था वरना चारों तरफ चाँदी ही चाँदी बिखरी दिखाई दे रही थी । प्रकृति की इसी सुन्दरता को निहारते हुए हम मिरडेल स्टेशन पहुँच गए । मिरडेल से हमें दूसरी ट्रेन फ्लैम के लिए पकड़नी थी । लगभग दो घंटे 11 मिनट के बाद हम लोग फ्लैम स्टेशन पहुँच गए ।
फ्लैम स्टेशन घाटी में बना हुआ था । यहाँ पर बर्फ़ काफ़ी कम थी । क्रिसमस की डैकोरेशन यहाँ भी दिखाई दे रही थी । स्टेशन पर ही रैस्टोरैन्ट में हम लोगों ने स्नैक्स वगैरा लिए । स्टेशन के साथ ही नदी जैसे थी जिसमें क्रूज़शिप खड़ा था । उसी में बैठकर हम लोग नार्वे की सबसे खूबसूरत सोगने फियोर्डस ैव्ळछम्थ्श्रव्त्क् देखने चले ।
नार्वे विश्व में अपने खूबसूरत फ्र्योड्स के लिए प्रसिद्ध है । यहाँ लगभग 1200 फ्र्योड्स हैं । फ्र्योड्स सागर से जुड़ी एक पतली खाड़ी होती है जिसके किनारों पर तीखी ढलानों वाली ऊँची चट्टानें या पहाड़ियाँ होती हैं । ग्लेशियरों द्वारा मार्ग काटने से फ्र्योड्स का निर्माण होता है । क्रूज़शिप में बैठकर हम दुनिया के खूबसूरत फ्र्योड्स देखने चले ।
क्रूज़शिप काफ़ी बड़ा और तीन मंज़िल का था । इसमें अन्य देशों से आए हुए यात्री भी बैठे हुए थे ं। सब लोग फ़ोटो खिंचाने में मस्त थे । क्रूज अपनी मस्त गति से चलता हुआ आगे बढ़ने लगा । पाँच बजे का समय था । कई दिनों के बाद हमें कुछ कुछ सूर्य देवता के दर्शन हुए । दोनों ओर पहाड़ बीच में बहता नीला समुद्र का पानी टेढ़े मेढ़े रास्तों हेयर पिन जैसे बैन्डस , बहते हुए झरने अद्वितीय छटा प्रदर्शित कर रहे थे । रास्ते में पहाड़ों के ढाल पर कुछ गाँव दिखाई दे रहे थे । ऐसे ही लगभग 13 बैन्डस को पार करके हम लोग बरजेन के पोर्ट पर पहुँचे । रात हो गई थी । बस में बैठकर बरजेन सिटी की ओर चले । लगभग एक घंटे बाद हम लोग बरजेन शहर पहुँच गए । पूरा शहर बिजली की रोशनी से जगमगा रहा था । हम लोग वहाँ होटल रैडीसन ब्ल्यू नार्थ स्टार में रूके । पास के इंडियन रैस्टोरैन्ट में जाकर खाना खाया ।
अगले दिन 24 नवम्बर को हम नाश्ता करके बरजेन ¼ BERGEN () शहर देखने चले । आशुतोष ने हमको पहले ही बता दिया था कि हम लोग आज शाम को ही बरजेन से ट्राॅम्सो चले जाएगें इसलिए अपना सामान बस में सुबह ही लाकर रख देना है । बरजेन एक सुन्दर शानदार शहर है । इसे कैपीटल आॅफ फ्र्योड्स भी कहा जाता है । एक छोटा सा शहर है जहाँ छोटा सा यूनैस्को ने वल्र्ड हैरिटेज साइट ब्रिगेन बनाया हुआ है जहाँ पर पुराने लकड़ी के बने घर हैं फिश और फ्लावर मार्केट है ।
हम लोग सबसे पहले एक पुराने चर्च को देखने गए । उसके बाद एक केबिल कार में बैठकर बरजेन के सबसे टाप रूफ पर गए । केबिल कार एक ट्रेन जैसी थी जिसके दरवाजे दोनों ओर खुलते थे । उसकी छत शीशे की बनी हुई थी जिससे आसमान दिखाई दे रहा था । इसमें बैठकर ऐसा लगा जैसे कोई ट्रेन जीने पर चढ़ रही हो । पाँच मिनट में ही हम मानों बरजेन की छत पर खड़े थे । यहाँ से पूरा बरजेन शहर दिखाई दे रहा था । साफ सुथरा शहर चैड़ी सड़कें बिल्कुल सपाट मैदान कोई पहाड़ नहीं । बस हरे भरे शहर के बीच फिंगर की शेप के यू टर्न लिए पहाड़ों के बीच से बहता नीला आर्कटिक ओशन का नीला पानी । खिलौने सी दौड़ती कारें । यहाँ अन्य देशों से आए हुए भी सैलानी थे । कुछ फूल भी खिले थे । यहाँ कोई बर्फ़ नहीं पड़ी थी । कुछ देर ठहर कर हम लोग वापस केबिल कार में बैठकर नीचे आ गए । वहाँ से बस में बैठकर शहर आ गए ।
दोपहर का समय था । आसमान खुला था पर हवा में जैसे बर्फ़ घुली हुई थी । लंच टाइम हो गया था । पास के ही इंडियन रैस्टोरैन्ट में जाकर हमने खाना खाया । रैस्टोरैन्ट का नाम था महाराजा । यहाँ पर अन्य देशों के लोग भी आए हुए थे जिनमें पाकिस्तान ,ईरान और इटली के लोग ज्यादा थे । दो बज गए थे आशुतोष ने कहा जो भी लोग साॅविनियर बगैरा खरीदना चाहें वह खरीद सकते हैं क्योंकि इसके बाद कोई और जगह नहीं मिलेंगी । हमारे साथ के एक लोग ने एक जैकेट खरीदी जिसकी कीमत इंडियन करैन्सी में 16000 हजार रूपए थी , एक लेडी डाक्टर ने अपनी बेटी के लिए 7000 का रेनकोट जैसा खरीदा । मैंने और इन्दू ने कुछ नहीं खरीदा मुझे लगा हमारे देश में -10 डिग्री टैम्प्रेचर कहाँ होता है जो ऐसी जैकेट खरीदें । खैर अपनी अपनी मर्ज़ी थी । शाम के तीन बज गए थे अब हमको बरजेन एयरपोर्ट पहुँचना था । यहाँ से जाने में एक घंटा लगना था चार घंटे पहले एयरपोर्ट पर पहुँचना था । हमारी फ्लाइट सात बजकर पचास मिनट की थी ।
हमने बरजेन को बाय बाय कहा । बरजेन एयरपोर्ट बहुत शानदार था । बहुत सुन्दर ढंग से क्रिसमस ट्री सजाया गया था । बरजेन से ट्राम्सो जाने के लिए एक छोटा सा हवाई जहाज था जिसे एयरबस कहते हैं । रात के 22 बजकर 45 मिनट पर हम ट्राम्सो एयरर्पोट पहुँचे । चारों तरफ बर्फ़ ही बर्फ़ थी । हवाई जहाज जब उतर रहा था ऐसा लग रहा था जैसे सैकड़ों तारे ज़मीन पर बिछे हुए हों । नीले समुद्र के बीच में बसे शहर की खूबसूरती देखते ही बनती थी । बस में बैठकर होटल क्लैरियन कलैक्शन पहुँचे । होटल में क्रिसमस पार्टी चल रही थी । हम लोग खाना खाकर ही आए थे । काफी थक गए थे । चुपचाप जाकर अपने कमरों में सो गए । बाहर का तापमान -10 डिग्री था ।
अगले दिन 25 नवम्बर को हम लोग नाश्ता करके तैयार होकर इस टूर का सबसे एडवैन्चर पार्ट आर्कटिक सर्कल में बसे नार्वे के शहर ट्राम्सो ( TROMSO ) घूमने चले । हमारी टूर गाइड ने बताया कि ट्राम्सो शहर नार्वे के उत्तरी छोर पर बसा हुआ है । इसका म्यूनिसिपल एरिया 2581 स्क्वायर किलोमीटर है । सन् 2014 की जनगणना के अनुसार इस शहर की आबादी 71590 थी । चूंकि यहाँ से गल्फ स्ट्रीम काफी पास में है इसलिए यहाँ की क्लाइमेट बे आफ हडसन और रूस की अपेक्षा थोड़ी सुखद रहती है । इसीलिए यहाँ पर थोड़ी हरियाली और पेड़ भी दिखाई पड़ जाते हैं । ट्राम्सो शहर ट्राम्सोया आइसलैन्ड पर बसा है इसलिए इसे ट्राम्सो कहते हैं । 17 वीं शताब्दी में जब यहाँ केवल 80 लोग थे तभी किंग क्रिश्चियन 7 ने यहाँ का चार्टर बनाया था । द्वितीय विश्व युद्ध के बाद फ्रांस , जर्मनी और अन्य देशों से आए हुए लोगों के कारण यहाँ की आबादी काफी बढ़ गई । 19 वीं शताब्दी में इसे नार्थ का पेरिस कहा जाने लगा । साल में 160 दिन यहाँ कम से कम 25 सेंटीमीटर बर्फ़ जमी रहती है । 18 मई से 26 जुलाई तक मिडनाइट सन रहता है । 26 नवम्बर से 15 जनवरी तक पोलर नाइट दिखाई देता है । ट्राम्सो में भी बहुत से सुन्दर फ्र्योड्स हैं ।
बस ज्यों ज्यों आगे बढ़ रही थी बर्फ़ ही बर्फ़ दिखाई दे रही थी । लगभग एक घंटे बाद हम लोग हस्की राइड के लिए लिए पहुँच गए । सबसे पहले आशुतोष हमको एक दुकान के अन्दर ले गए जिसमें विशेष प्रकार के विन्टर सूट थे जिनमें जैकेट ,पैन्ट और कैप एक साथ जुड़ी हुई थी । साथ ही बड़े बड़े भारी भारी बूट थे जिससे बर्फ़ जूतों में न घुस सके । भारी भरकम सूट पहनकर हम लोग हस्की राइड के लिए चले । बचपन में पढ़ी एस्किमो बालक की कहानी और स्लेज की बात साकार होने जा रही थी ।
जहाँ तक नज़र जाती थी बर्फ़ का मैदान नज़र आता था । बहुत सारे कुत्ते थे वहीं उनके लकड़ी के घर बने हुए थे । स्लेज के ड्राइवरों ने हमें कुत्तों और स्लेज के बारे में बहुत विस्तार से बताया । स्लेज लकड़ी की बनी हुई लम्बी सी बिना पहियों की गाड़ी थी जिसमें आगे पीछे दो लोगों के बैठने की व्यवस्था थी । लम्बी सी चेन में जोड़ों से कुत्तों को बांधा हुआ था । हम सोचते थे कि कुत्ते कुछ विशेष प्रकार के होते होंगे पर यह तो देखने में वैसे ही कुत्ते थे जैसे हमारे यहाँ होते हैं । सब लोग अपने अपने साथियों के साथ स्लेज में बैठे । स्लेज में एक कंबल जैसा पड़ा हुआ था । हमारी स्लेज ड्राइवर वीनस की मूर्ति जैसी एक सुन्दर सी लड़की थी वह स्लेज के पीछे बने पटरे पर खड़ी हो गई । हमारी स्लेज में नौ कुत्ते जुते हुए थे । मुझे तो आश्चर्य हो रहा था कि भला यह नौ छोटे छोटे कुत्ते हम तीन लोगों का वजन कैसे ढोएगें । पर जैसे ही उसने इशारा किया कुत्ते बड़ी तेजी से दौड़ने लगे और हमारी स्लेज बर्फ़ पर सरकती हुई चली जा रही थी । दूर दूर तक बर्फ़ से ढंका मैदान और उसमें भागती हुई हम सबकी स्लेज गाड़ियाँ बहुत मजेदार लग रहा था । हमें लगा कि यह थोड़ी दूर घुमाएगें पर स्लेज दौड़ती ही जा रही थी दूर हमें आर्कटिक ओशन दिखाई रहा था । लगभग पाँच किलोमीटर का चक्कर लगाकर हम लोग वापस आए । हमें लग रहा था कि यह कुत्ते बेचारे बहुत परेशान हो गए होंगे पर उनकी मालकिन ने बताया कि हम लोग रोज इन्हें घुमाते हैं अगर यह घूमने नहीं जाते हैं तो परेशान हो जाते हैं ।
स्लेज से उतरकर हम वहीं बने रैस्टोरैन्ट में बैठ गए । बड़ा सा रैस्टोरैन्ट था जिसमें चारों तरफ लगभग तीस से अधिक लोगों के बैठने की व्यवस्था थी बीच में आग जल रही थी । लकड़ी के पटरों को जोड़कर बैन्च जैसी बनाई हुईं थीं उन्हीं पर मोटे मोटे गुदगुदे कम्बल बिछे थे । बाहर बर्फ़ पड़ी हुई थी यहाँ कोयले की आग के सामने बैठना बहुत अच्छा लग रहा था । वहाँ बैठकर काफ़ी और स्नैक्स लिए कुछ देर रूकने के बाद हम लोग वापस ट्राम्सो आ गए । लंच करके अपने अपने कमरों में आराम करने चले गए क्योंकि आज रात हम लोगों को नादर्न लाइट्स
देखने के लिए जाना था ।
रातके आठ बजे हम लोग डिनर करने को गए वहीं से आशुतोष हम लोगों को पास के मार्केट में गए ले गए जहाँ पर विशेष प्रकार के विन्टर सूट और बूट लेने थे इन्हीं को पहन कर हमें रात के ग्यारह बजे नादर्न लाइट्स देखने शहर से बहुत दूर जाना था । सूट लेकर हम लोग अपने अपने कमरों में आ गए और रात के ग्यारह बजे का इन्तज़ार करने लगे । सूट पहन कर हम लोगों को ऐसा लग रहा था मानों हम सब चन्द्रमा पर जा रहे हों ।
रात के ग्यारह बजे जब हम लोग बाहर आए तो सब एक जैसे दिखाई दे रहे थे पहचान में ही नहीं आ रहे थे । चारों तरफ अंधेरा था बस होटल की डिम लाइट्स दिखाई दे रही थीं । चारों तरफ बर्फ़ के ढेर लगे थे सड़क पर भी बर्फ़ पड़ी थी पिघलने के कारण सड़क बहुत फिसलन वाली हो रही थी । सब लोग एक एक कदम फूंक फूंक कर रख रहे थे । सोच रहे थे कि ऐसे में अपने घर में होते तो शायद एक कदम भी बाहर नहीं रखते पर यहाँ तो एडवैन्चर का सवाल था ।
बस में बैठकर हम लोग नादर्न लाइट्स (NORTHERN LIGHTS) देखने चले । हमारी बस में एक गाइड भी थे । उन्होंने हमें हमें इस लाइट के बारे में बताया । आसमान में उड़ती हुई हरी गुलाबी नीली लाइट्स प्रकृति का अदभुत करिश्मा होती है जो ध्रुवीय क्षेत्रों के नज़दीक वाले भागों में अक्सर दिखाई देती हैं । यह पृथ्वी पर उपस्थित गैसीय कणों के टक्कर से उत्पन्न होने वाली लाइट्स हैं । यह अक्सर हल्की पीली हरी दिखाई देती हैं कभी कभी लाल गुलाबी रंग की भी दिखाई देती हैं जो पृथ्वी से 60 मील दूर ऊपर आक्सीजन के कण होते हैं उनकी सूर्य से उत्सर्जित कणों का टक्कर के कारण होती हैं । पहले लोग इसे देखकर अनेक प्रकार की दैवीय आपदाओं की आशंकाओं के कारण डर जाते थे पर अब रिसर्च से ज्ञात हुआ है कि सूर्य से निकले इलैक्ट्राॅन और प्रोटाॅन जो सोलर विंड से पृथ्वी पर आते हैं उन्हीं के आपस में टकराने से नादर्न लाइट्स निकलती है। ऐसी लाइट्स विश्व के कई और देशों में भी दिखाई देती हैं । उत्तरी ध्रुव पर इसे आॅरोरा बोरिएलिस दक्षिणी ध्रुव पर इसे आरोरा आस्ट्रेलियस कहते हैं । जब आसमान साफ रहता है तब यह लाइट्स दिखाई देने की संभावनाएं अधिक रहती हैं । इसे आरोरा हंटिंग भी कहते हैं । ध्रुवों के निकट के देशों में यह लाइट्स दिखाई देती हैं । जैसे उत्तरी ध्रुव के आर्कटिक ओशन के अलास्का, फिनलैन्ड , ग्रीनलैन्ड , आइसलैन्ड , उत्तरी कनाडा , नार्वे ,रूस , स्वीडन । दक्षिणी ध्रुव पर अंटार्कटिका, चिली , अर्जेन्टीना , न्यूज़ीलैन्ड , आस्ट्रेलिया आदि ।
चारों तरफ सन्नाटा फैला था । ऐसा लग रहा था जैसे पेड़ ,पौधे ,घर , मकान सब बर्फ़ की चादर ओढ़कर सो गए रहे हैं । हमारी बस शहर से दूर जा रही थी जहाँ दूर तक किसी का नामो निशान नहीं था । गाइड ने कहा आप लोग बस से निकलकर बाहर आइए यहाँ पर लाइट्स दिखाई देने की काफी संभावना रहती है । कुछ लोग सड़क के किनारे गड़े पत्थरों पर जाकर बैठ गए । अंधेरे में भी सब लोग फोटो खींचने और वीडियो बनाने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहे थे । कहीं कुछ दिखाई नहीं दे रहा था । आसमान में बादल छाए थे हल्की हल्की बूंदाबांदी भी हो रही थी । ऐसे ही कुछ देर मस्ती की फिर गाइड ने कहा चलिए यहाँ से पाँच किलोमीटर दूर एक और प्वाइंट है शायद वहाँ दिखाई दे जाए । हम लोगों को बड़ी निराशा हो रही थी क्योंकि हमारा इतना बड़ा सपना पूरा नहीं हो पा रहा था परन्तु यह प्रकृति का करिश्मा है जिस पर किसी का वश नहीं होता । ऐसे ही एक दो प्वाइंट पर जाकर हमने और खोज की फिर वापस होटल आ गए । रात के दो बज गए थे अगले दिन हमें सुबह वापस अपने देश जाने की फ्लाइट पकड़नी थी ।
26 नवम्बर 2019 सुबह आठ बजे हम लोग अपना सामान लेकर ट्राम्सो एयरपोर्ट पहुँचे । 11.50 बजे की हमारी फ्लाइट हेलसिंकी के लिए थी । वहाँ पहुँचकर हमें फ्लाइट बदलनी थी जो रात के आठ बजे थी । हेलसिंकी में हमारे पास छह घंटे का समय था । कुछ लोग घूमने लगे कुछ लोग शाॅपिंग करने लगे । हेलसिंकी का एयरपोर्ट बहुत बड़ा और शानदार है । वहाँ से दुनिया भर के देशों के लिए फ्लाइट जाती हैं । हमारी फ्लाइट टर्मिनल नं 48 से थी । सुबह आठ बजे हम लोग इंदिरागांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर पहुँच गए । वहाँ से कार से बिजनौर गए अगले दिन टेन पकड़कर वापस लखनऊ पहुँच गए ।
अब हमारे पास सुखद सपने जैसी यादें थी ऐसे देश की जो शुभ्र ज्योत्सना में नहाया किसी देवलोक जैसा था । वहाँ की सभ्यता संस्कृति देश प्रेम निःसंदेह अनुकरणीय है ।