पारस पत्थर के बारे में आप सभी ने तो सुना ही होगा
भारत में एक किला ऐसा भी है
जहाँ आज भी इस पारस पत्थर के होने का दावा किया जाता है
तो चलिए जानते है इस रहस्यमी किले और इस जादुई पत्थर के बारे में
किले और राजाओं के महल मुझे हमेशा से ही अपनी तरफ आकर्षित करते है ऐसे ही एक किले के बारे में मुझे मालूम पड़ा और मै निकल पड़ा इस किले के इतिहास को जान ने के लिए
रायसेन का किला इस किले को उत्तर भारत का सोमनाथ कहा जाता है.
यह किला आज भी अपने इतिहास को दर्शाता है.
इस किले का केवल शानदार इतिहास ही नहीं बल्कि यह बहुत खूबसूरत भी है, परन्तु पुरातत्व विभाग एवं भारत सरकार के द्वारा ध्यान ना दिए जाने के कारण तथा पारस पत्थर की खोज के लिए की जाने वाली खुदाई के कारण यह अपना अस्तित्व खोते जा रहा है.
यह किला एक पहाड़ी पर बना हुआ है.
कैसे पहुंचे रायसेन के किले मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 45 km दुरी पर स्थित है रायसेन
शहर जहाँ स्थित है रायसेन का किला भोपाल में दो रेलवे स्टेशन है हबीबगंज और भोपाल रेलवे स्टेशन
पुरे भारत से आपको भोपाल के लिए रेलगाड़ी मिल जाएंगी
भोपाल हवाई मार्ग से भी बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है राजाभोज एयरपोर्ट से नियमित दिल्ली मुंबई कोलकाता के लिए फ्लाइट उपलब्ध है
भोपाल से आपको बस या टैक्सी से रायसेन पहुँचना पड़ेगा
भोपाल से आपको आसानी से रायसेन के लिए बस मिल जाएंगी
रात को देर से भोपाल पहुंचने के कारण मैंने एक रात भोपाल में ही रुक कर अगले दिन रायसेन जाने का फैसला किया
और अगली सुबह होते ही मै निकल पड़ा बस में सवार होकर रायसेन शहर की ओर
जैसे जैसे मै रायसेन शहर के करीब पहुँचता जा रहा था वैसे ही मेरे मन में किले के लिए उत्सुकता और बढ़ती जा रही थी
शहर के समीप पहुँचने पर दूर से ही ये किला दिखाई पड़ता है रायसेन शहर पे उतरकर लोकल ऑटो में सवार होकर निकल पड़ा किले की ओर
सही ज्ञान और शहर में नया होने के कारण ऑटो वाले ने मुझे 2 किलोमीटर किले से दूर उतार दिया और मै पैदल ही चल दिया किले की ओर रास्ते में बड़े बड़े पत्थर सड़क किनारे पड़े थे मानो युद्ध के समय किले के ऊपर से गिरे हो
2 किलोमीटर चलने के बाद मै किले के द्वारा तक पहुँचा और राहत की सास ली परन्तु अभी तो मैंने आधा रास्ता ही तय किया था किले में पहुँचने के लिए अभी लगभग 150 सीढ़ी और चढ़नी थी जो की थका देने वाला था खैर जैसे तैसे मैंने सीढ़ी चढ़ना चालू किया और आस पास के नज़ारे को देखते हुए सीढ़ी चढ़ रहा था अभी लगभग 50 सीढ़ी ही चढ़ी होंगी की और एक प्रवेश द्वार मिला और ऐसे चढाई करते करते लगभग 3 दरवाज़े मिले और चढाई करते करते मै किले तक पहुँच गया
किले को 3 हिस्सों में विभाजित किया गया है जिसमे से एक हिस्से में जाने की अनुमति किसी को भी नहीं है बाकि 2 हिस्से पर्यटक के लिए खोले गए है जिसमे से एक हिस्सा बहुत बड़ा है और एक हिस्सा छोटा सा है दोनों हिस्से के बीच में 1 किलोमीटर की दुरी थी छोटे हिस्से कुछ खास नहीं सिर्फ कुछ कमरे बने थे और शायद सैनिको के पहरेदारी के लिए बनाये गए होंगे अब छोटे हिस्से को देखके मै बड़े हिस्से की ओर बढ़ने लगा
वहां एक जंग लगा लोहे का गेट लगा था उसके आगे एक बोर्ड लगा हुआ था जिसमे किले के बारे में जानकारी लिखी हुई थी वो बोर्ड से किले की जानकारी लेके मै अंदर गया अंदर बहुत ही कमाल का नज़ारा था सही मायनो में यह किला कम और भूल भुल्लिया ज्यादा लग रहा था
अंदर एक जगह पे भगवान शंकर का मंदिर बना हुआ था जहाँ शिवरात्रि के दिन मेला लगता है मंदिर के बाजु में ही एक खिड़की सी बनी थी जहाँ से किले के बाहर पहाड़ी के नीचे का खूबसूरत नज़ारा दिखाई दे रहा था किले के अंदर ही एक कैंटीन भी बानी हुई है
अंदर एक जगह पे भगवान शंकर का मंदिर बना हुआ था जहाँ शिवरात्रि के दिन मेला लगता है मंदिर के बाजु में ही एक खिड़की सी बनी थी जहाँ से किले के बाहर पहाड़ी के नीचे का खूबसूरत नज़ारा दिखाई दे रहा था किले के अंदर ही एक कैंटीन भी बानी हुई है
थोड़ा आगे चलने पे एक पानी का कुंड मिलता है और सुन्दर पर अब खण्डर हो चुके बहुत ही शानदार बहुत सारे कमरे बने हुए है
थोड़ा आगे चलने पर यहाँ पर कुछ तोपे रखी हुई है और पास में ही एक दरगाह भी है
यह भारत का ही नहीं परन्तु सम्पूर्ण विश्व का एक मात्र ऐसा किला है जहाँ मंदिर मस्जित दोनों ही स्थित है
थोड़े आगे जाने पर जहाँ राजा का दरबार लगता था वह जगह देखी वहां ऊपर महल का गुम्मद आधा टुटा हुआ दिखाई दिया परन्तु वह आधा ही बहुत खूबसूरत दिखाई दे रहा था
महल से आगे चलने पर हमें एक स्थान दिखाई दिया जहाँ से पूरा रायसेन शहर का खूबसूरत नज़ारा दिखाई पढ़ रहा था
महल के भीतर दीवारों पर कुछ खास भी हैं। एक दीवार के आले में मुंह डालकर फुसफुसाने से विपरीत दिशा की दीवार के आले में साफ आवाज सुनाई देती है। दोनो दीवारों के बीच लगभग बीस फीट की दूरी है। यह आज भी समझ से परे है।
सदियों पुराने इस वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से तत्कालीन शासकों की दूर दृष्टि और ज्ञान का अंदाजा लगाया जा सकता है पहाड़ी पर गिरने वाला बारिश का पानी नालियों के जरिए किला परिसर में बने एक कुंड में एकत्र होता है। नालियां कहां से बनी हैं, उनमें पानी कहां से समा रहा है, कितनी नालियां हैं। ये सब आज तक कोई नहीं जान पाया।
कुछ लोगों का यह मानना है की राजा राय सिंह के पास एक चमत्कारी जादुई पत्थर पारस पत्थर था
जिससे लोहा सोने में बदल जाता था
जिससे राजा के पास बहुत सारा सोना एकत्र हो गया था
एक युद्ध में राजा हर गए और उनकी मौत हो गयी अपनी मौत से पहले उन्होंने पारस पत्थर को एक तालाब में फेक दिया था
आज भी यह पत्थर किले में स्थित है
कुछ लोग मानते है की इस पत्थर के लिए ही कई लड़ाई लड़ी गयी परन्तु आज तक किसी को यह पत्थर नहीं मिला
पत्थर के लिए बहुत सी खुदाई की गयी और रात में तांत्रिक आज भी पत्थर के लिए यहाँ तांत्रिकी करते नज़र आते है
कुछ लोगों जो पत्थर को ढूंढ़ने गए उन का मानसिक संतुलन भी बिगड़ चूका है
किले का इतिहास कुछ लोगों से पूछने पर उन्होंने बताया की यह किला की नीव राजा रायसिंह ने 1143 में रखी थी
यह किला 10 किलोमीटर में फैला हुआ है
इस किले पर कई आक्रमण हुए और किले का उस समय का राष्ट्रीय राजमार्ग में स्थित होने के कारण दिल्ली के शाशको की इस किले में खास रूचि रही
इस किले पर सबसे पहले
1223 ई. में अल्तमश,
1250 ई. में सुल्तान बलवन,
1283 ई. में जलाल उद्दीन खिलजी,
1305 ई. में अलाउद्दीन खिलजी,
1315 ई. में मलिक काफूर,
1322 ई. में सुल्तान मोहम्मद शाह तुगलक,
1511 ई. में साहिब खान,
1532 ई. में बहादुर शाह
1543 ई. में शेरशाह सूरी,
1554 ई. में सुल्तान बाजबहादुर,
1561 ई. में मुगल सम्राट अकबर,
1682 ई. में औरंगजेब,
1754 ई. में फैज मोहम्मद ने हमला किया था।
मस्जित के बारे में लोग बताते है की यह शेख सलाउद्दीन की दरगाह है
जब 1532 में बहादुर शाह ने इस किले में आक्रमण किया
तब यहाँ के राजा सिल्हादी ने बचने के लिए इस्लाम अपनाया
और ये दरगाह का निर्माण कराया गया परन्तु वह ये युद्ध हार गए और उन्हें मांडू मै कैद कर दिया गया था
बाद में उनके भाई ने उन्हें छुड़ाया
और जब तक वह वापिस रायसेन पहुँचते उनकी रानी ने 700 अन्य महिलाओ के साथ जौहर कर लिया था
1943 में शेर शाह सूरी ने 4 माह तक इस किले की घेराबंदी की तब यहाँ पूरनमल नाम के राजा का राज था
शेर शाह सूरी ने ताम्बे और लोहे के सिक्कों को पिघला कर तोपे बनवायी जो आज भी महल में स्थित है
शेर शाह सूरी जब यह युद्ध जीत गया तो राजा रत्नावल ने रानी रत्नावली का सिर काट दिया ताकि वह दुश्मन के हाथ ना लग पाए
रहस्य से भरा ये किला ना जाने अपने अंदर और कितने राज़ दबाये बैठा है जिससे आज भी ना जाने कितने लोग अनजान है