दिल्ली के निजामुद्दीन की अपनी विशेष ऐतिहासिक महत्ता है। देश की कई प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों का केंद्र है ये मगर क्या आपको पता है इसी क्षेत्र में दो ऐसी इमारतें हैं जिनसे प्रेरणा लेकर ताजमहल का निर्माण किया गया था। जी हाँ, इस क्षेत्र में स्थित 'हुमायूँ का मकबरा' व खान-ए-खाना (रहीम) का मकबरा हैं ताजमहल के निर्माण की प्रेरणा जिसमें हुमायूँ के मकबरे से तो सब परिचित हैं, दिल्ली का सबसे बड़ा पर्यटन स्थल है ये, मगर खान-ए-खाना (रहीम) का मकबरा लोगों की नजरों से अनजान है। आज इसी रहीम के मकबरे के बारे में बतलाने जा रहा हूँ।
दिल्ली-मथुरा रोड पर स्थित रहीम के मकबरे का निर्माण स्वयं रहीम ने ही करवाया था। जिस किसी ने हिंदी की पाठ्यपुस्तकों को पढ़ा है, वह रहीम के नाम से तो जरूर परिचित होगा। जी हाँ, ये उन्हीं रहीम का मकबरा है जिनके लिखे दोहे हम बचपन में कंठस्थ किया करते थे। रहीम भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे, और मुगल बादशाह अकबर व जहाँगीर के दरबारी नवरत्नों में भी शामिल थे। रहीम को उनकी बहुमुखी प्रतिभा के लिए जाना जाता था क्योंकि जितने बेहतरीन वे कलमकार थे, तलवार के जौहर में भी उससे कहीं भी कम नहीं थे। मुगलों ने तो कई युद्ध उनके ही नेतृत्व में जीता था और अपनी इन्हीं विशेषताओं की वजह से वे मुगल दरबार में विशेष स्थान रखते थे। उनकी महत्ता को देखते हुए ही उन्हें खान-ए-खाना (खानों का खान) की उपाधि प्राप्त हुई थी।
रहीम का एक परिचय और है। वे बादशाह अकबर के मुँहबोले बेटे थे। असल में रहीम के पिता बैरम खान स्वयं भी मुगल सल्तनत के बड़े सेनापति थे। जब रहीम चार वर्ष के थे, तभी एक युद्ध में बैरम खान की मौत हो गयी, और तबसे उनके लालन-पोषण का जिम्मा अकबर ने अपने ऊपर ले लिया। हालाँकि अकबर की मृत्यु के बाद रहीम के लिए मुगल सल्तनत में कुछ ठीक न रहा क्योंकि जहाँगीर ने अपने बादशाह बनने का विरोध करने पर रहीम के दोनों बेटों को मरवा दिया था। ये मकबरा उन्हीं खान-ए-खाना रहीम से सम्बंधित है। मगर एक सवाल आता है कि यदि रहीम का मकबरा है ये, तो उन्होंने कैसे इसका निर्माण करवाया? असल में इस प्रश्न का जवाब ही इस मकबरे की सबसे खास विशेषता है।
ताजमहल की प्रेरणा रहने वाला ये मकबरा असल में रहीम ने सन् 1598 में अपनी पत्नी माह बानो बेगम की मृत्यु पश्चात बनवाया था। प्रेम की बात आने पर लोग ताजमहल का जिक्र करते हैं, मगर ताजमहल से भी 50 साल पूर्व निर्मित ये मकबरा ही मुगलकाल का पहला ऐसा मकबरा था जिसे किसी स्त्री को समर्पित किया गया था। हुमायूँ के मकबरे का डिजाइन इसके व ताजमहल, दोनों के निर्माण की प्रेरणा रही और यदि आपने इन तीनों मकबरों को देखा हो, तो आपको ये अनुमान लगाते देर नहीं लगेगी। वर्तमान में खान-ए-खाना मकबरे के नाम से प्रसिद्ध इस मकबरे से प्रेरित होकर ही शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल की मृत्यु पर आगरा के ताजमहल का निर्माण करवाया था।
माह बानो की मृत्यु के बाद रहीम ने इस क्षेत्र का चुनाव इसलिए किया क्योंकि मज़हबी मान्यताओं व हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह को देखते हुए इस पूरे क्षेत्र को बेहद पवित्र माना जाता था। 1598 में माह बानो को यहाँ दफ़नाने के बाद, 1627 में जब रहीम की मृत्यु हुई, तो उन्हें भी इसी मकबरे में दफ्न कर दिया गया और तभी से यह मकबरा 'खान-ए-खाना रहीम का मकबरा' के नाम से प्रसिद्ध है। अब इसे जुड़ा एक और तथ्य ये है कि इस मकबरे ने दिल्ली में स्थित एक अन्य खूबसूरत मकबरे 'सफदरजंग का मकबरा' के निर्माण में भी अपना योगदान दिया है। खान-ए-खाना मकबरे के निर्माण के लगभग 150 साल बाद जब अवध के नवाब अबुल मसूर मिर्जा अली खान उर्फ सफदरजंग के मकबरे का निर्माण करवाया जा रहा था, तब वहाँ लाल बलुए पत्थरों की कमी पड़ गयी, और तब सफदरजंग के पुत्र सौजुदुल्लाह खान के आदेश पर रहीम के मकबरे पर लगे पत्थरों को उखाड़कर ले जाया गया था। आज रहीम का मकबरा अपने अस्तित्व को ले संघर्ष कर रहा है, और कभी इसपर लगे पत्थर आज सफदरजंग के मकबरे की शोभा बढ़ा रहे हैं।
कभी बेहद खूबसूरत रहे इस मकबरे का कभी ध्यान नहीं रखा गया। लगातार होते नुकसान, बाढ़ की वजह से ये इतनी बुरी स्थिति में पहुँच चुकी थी कि सबको लगा ये कुछेक वर्षों के अंदर टूटकर गिर पड़ेगा। ऐसे में संस्कृति मंत्रालय ने आगा खान ट्रस्ट को जिम्मेदारी दी इसका पुनरूद्धार करने की। वर्ष 2014 से ही ये ट्रस्ट लगातार इसे ठीक करने के काम में लगा हुआ और हम कह सकते हैं ये अब पहले से काफी बेहतर है। कम-से-कम ये अब गिरने की स्थिति में तो नहीं। तस्वीरों में आप देख रहे होंगे इसपर हरे पर्दे लगे हैं। वहाँ काम चल रहा इसके ठीक करने का। जब मैं यहाँ गया था, तब गेट पर बैठे गार्ड व टिकट काउंटर के चेहरे को देख समझ गया कि यहाँ लोग नहीं आते। उनके चेहरे के हाव-भाव को देखकर स्पष्ट हो रहा था कि वे मुझे यहाँ देखकर हैरान थे। खैर, मैं अंदर गया, जगह को जाँचा परखा। महसूस किया कि आज भले ही ये मकबरा जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हो, मगर कभी बेहद भव्य रहा होगा। प्रेम के प्रतीक इस मकबरे को पुनर्जीवित होते देखना वाकई सुकून देने वाला है। कभी इस ओर भी हो आइयेगा...
कैसे जाएँ?:- निकटतम मेट्रो जंगपुरा मेट्रो स्टेशन है।
प्रवेश शुल्क:- ₹25/- प्रति व्यक्ति।
समय:- सूर्योदय से सूर्यास्त।