बौद्ध धर्म के लिए बनारस का विशेष महत्व है, क्योंकि यहीं पर सारनाथ में गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था. सारनाथ में ही सम्राट अशोक ने कई स्तूप बनवाए थे. उन्होंने यहां प्रसिद्ध अशोक स्तंभ का भी निर्माण करवाया. इस स्तंभ पर बने चार शेर, भारत का राष्ट्रीय चिन्ह हैं और स्तंभ का चक्र हमारे तिरंगे का चक्र है. सारनाथ का डीयर पार्क भी बड़ी संख्या में सैलानियों का ध्यान अपनी ओर खींचता है. डीयर पार्क में स्थित धमेख स्तूप वो जगह है, जहां पर गौतम बुद्ध ने ‘आर्य अष्टांग मार्ग’ का संदेश !
खाने-पीने के हैं शौकीन, तो बनारस आपके लिए जन्नत है.
खाने-पीने के मामले में बनारस से धनी कोई नहीं है. यहां फुटपाथ की दुकानों से लेकर बड़े-बड़े होटलों में आपको बनारसी स्वाद मिलेगा. बनारसी खाने के बहुत शौकीन होते है, इसलिए यहां तरह-तरह के पकवान आपको मिलेंगे. यहां की तो कई गलियां भी खानों के नाम पर ही हैं. बनारसी पान, पप्पू की चाय, मलइयों, चाची की कचौड़ी, रामनगर की लस्सी ऐसी ही खाने-पीने की कई चीज़े है, जो बनारस में ही नहीं दुनिया भर में फ़ेमस हैं.
संस्कृति जाननी है तो बनारस आएं, क्योंकि ये देश की सांस्कृतिक राजधानी है.
अमरीकी लेखक Mark Twain कहते हैं-
'वाराणसी इतिहास से भी अधिक प्राचीन है. परम्परा की दृष्टि से भी अतिशय प्राचीन है. मिथकों से भी कहीं अधिक प्राचीन है. और यदि तीनों (इतिहास, परम्परा और मिथक) को एक साथ रखा जाए तो, यह उनसे दोगुनी प्राचीन है'.
अब क्या बताए! जो शहर इतिहास से भी पुराना है, उसके बारे में बताना कहां से शुरु करें. चौसठ योगिनियों, बारह सूर्य, छप्पन विनायक, आठ भैरव, नौ दुर्गा, बयालीस शिवलिंग, नौ गौरी, महारुद्र और चौदह ज्योतिर्लिंगों वाला यह बनारस, देश की सांस्कृतिक राजधानी है.
2. गंगा नदी से पहचान है बनारस की, क्योंकि ये बनारस की मां है.
पवित्रता का पर्याय बना बनारस, गंगा मईयां की गोद में पलता है. गंगा नदी के किनारे बनारस को बसना था, या इस नदी को बनारस के किनारे बहना था, मालूम करना आसान नहीं है. बनारस ही एकमात्र ऐसी जगह है, जहां ये नदी उल्टी दिशा में यानि दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है. गंगा सब धर्मों और कौमों की ‘मां’ है. इसकी हर बूंद में बनारस बसा है. मां गंगा की अहमियत बताते हुए, शायर नज़ीर बनारसी ने लिखा है-
हमनें तो नमाज़े भी पढ़ी है अक्सर,
गंगा के पानी में वजू कर- करके.
3. घाट ज़रूर आएं, क्योंकि कहानियां शुरू और ख़त्म यहीं होती हैं.
बनारस के अलग अंदाज को देखना, समझना और जीना हो तो बनारस के घाटों पर जाए. भांग-बूटी की मस्ती में डूबे साधु-सन्यासी और बनारसी मस्ती की अद्भुत छवि यहीं देखने को मिलती है. शिव के इस दरबार में दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट, मर्णिकणिका घाट, हरिश्चन्द्र घाट, केदार घाट, अहिल्याबाई घाट, आदिकेशव घाट, गाय घाट सहित चौरासी से ज़्यादा घाट हैं. कुछ नयी कहानियां अस्सी घाट से शुरु होती है, तो वहीं कुछ का अन्त मर्णिकणिका घाट पर हो जाता है.
घाटों पर होने वाली आरती देखना कभी न भूलें और खासकर दशाश्वमेध घाट की आरती. बड़े-बड़े सन्त-महात्मा ज्ञान पाने के लिए यहां आते हैं और फिर यहीं के होकर रह जाते हैं. घाटों में मुक्ति मिलती है और यह दुनिया को जीवन की सीख देता है.
Agar aap solo traveller hai to, Rukne k liye yaha bdia hostels bdi aasani se mil jayenge..
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Jaha tk meri baat hai.. main ZOSTEL hostel mein ruka tha, jaha 840₹ 4 din ka rent muje bharna pda tha.